RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“कोई बड़ी बात नहीं ।” मैं बोला, “हो जाते हैं ऐसे इत्तफाक । आखिर मैं भी तो हूं शशिकांत का हमशक्ल । अलबत्ता हमनाम नहीं हूं ।”
“मिस्टर, ये तुम क्या....”
“अब एक लाख रुपए का सवाल । सोच के जवाब देना । हो सके तो सच्चा जवाब देना । न हो सके तो भी चलेगा । पहले की तरह ।”
“प..पहले की तरह ?”
“हां झूठ बोलने का तुम्हें पूरा अख्तियार है ।”
“मैं भला खामखाह क्यों झूठ बोलूंगी ?”
“हां । ये भी एक गहरी रिसर्च का मुद्दा है ।”
“क्या पूछना चाहते हो ?”
“लाख रुपए का सवाल ।”
“वो तो हुआ लेकिन सवाल क्या है ?”
“इंश्योरेंस की जानकारी तुम्हें कैसे है ?”
“क्या मतलब ?”
“मैं शशिकांत के पचास लाख रुपए के जीवन बीमे की बात कर रहा हूं । उस बीमे की बाबत मदान से मेरी बात हुई थी । उसने कहा था कि उस बीमे के बारे में उसके, शशिकांत के, बीमा कंपनी के और उसके वकील पुनीत खेतान के अलावा और कोई नहीं जानता था । तुम्हारे बारे में मैंने मदान से खास तौर से सवाल किया था । जवाब मिला था कि तुम्हें इंश्योरेंस की कोई वाक्फियत नहीं थी । अब वोलो कैसे है तुम्हें इंश्योरेंस की जानकारी ?”
उसने उत्तर न दिया । वो निगाहें चुराने लगी ।
“जवाब जल्दी दो” मैं चेतावनी भरे स्वर में बोला “वरना गब्बर आ जाएगा ।”
“क..कौन ?”
“तुम्हारा हसबैंड । मदान ।”
तभी कॉलबैल बजी ।
“लो !” मैं असहाय भाव से कंधे झटकाता हुआ बोला, “शैतान को याद करो, शैतान हाजिर ।”
वो उठकर दरवाजे के पास पहुंची । वहां पहले उसने दरवाजे का झरोखा खोलकर बाहर झांका और फिर दरवाजा खोल दिया । आगंतुक पुनीत खेतान था । मैं फैसला न कर सका कि फ्लैट में उसका कदम पहले पड़ा था या मधु की नंगी कमर में उसका हाथ पहले पड़ा या उसके मुंह से ‘हल्लो माई लव’ पहले निकला । वो यकीनन अभी उसे आलिंगनबद्ध भी करता लेकिन मधु उससे छिटककर परे हट गई और अपनी तरफ से बड़े गोपनीय ढंग से मेरी तरफ इशारा करने लगी ।
खेतान सकपकाया, उसकी निगाह मेरी तरफ उठी ।
“ओह, हल्लो !” फिर वह जबरन मुस्कुराता हुआ बोला ।
“हल्लो !” मैं उठता हुआ बोला, “बड़ी जल्दी दोबारा मुलाकात हो गई, खेतान साहब ।”
साफ जाहिर हो रहा था कि वो मधु के वहां अकेले होने की अपेक्षा कर रहा था । मदान को वो जरूर कहीं पीछे ऐसी जगह छोड़ के आया था जहां से उसके जल्दी न लौट पाने की उसे गारंटी थी मसलन - मौकाएवारदात या पुलिस स्टेशन या ऐसी ही किसी और जगह - और वो बाखूबी जानता था कि मदान की गैर हाजिरी में वहां और कोई नहीं होता था ।
“तुम यहां कैसे ?” वो बोला ।
“वैसे ही “ मैं बोला “जैसे आप ।”
“क...क्या ?”
“अपने क्लायंट से मिलने आया था । आप भी अपने क्लायंट से ही मिलने आए होंगे ?”
“क्या ! ओह, हां । हां । आई मीन, जाहिर है ।”
“जी हां ।” मैने एक नकली जम्हाई ली, “बिल्कुल जाहिर है । बहरहाल, आप बैठकर मदान साहब का इन्तजार कीजिए । बंदा चला ।”
“बैठो, मैं भी चलता हूं ।”
“नहीं, नहीं । आप तो अभी पहुंचे हैं । मैं बहुत देर का आया हुआ हूं । और फिर मेरी खातिर तो हो भी चुकी है । मैं फिर आऊंगा ।”
उसका सिर स्वयंमेव ही सहमति में हिला ।
“और मधु जी” मैं मधु की तरफ घूमकर इन्तेहाई मीठे स्वर में बोला ।, “जो लाख रुपए का सवाल अभी मैं आपसे पूछ रहा था, उसके जवाब पर बरायमेहरबानी, अब सिर न धुनिएगा । मुझे अपने सवाल का उत्तर मिल गया है ।”
और फिर मधु के कुछ बोल पाने से पहले ही मैं वहां से कूच कर गया ।
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