RE: Desi Chudai Kahani मकसद
लॉबी से मैंने मंदिर मार्ग फोन किया ।
सुजाता मेहरा होस्टल में मौजूद थी । मालूम हुआ कि बस वो वहां पहुंची ही थी । मैंने उससे दरखास्त की कि वो वहीं रहे, मैं तुरंत मंदिर के लिये रवाना हो रहा था ।
होटल से निकलकर मैं मंदिर मार्ग के लिए एक ऑटो में सवार हो गया ।
अपनी कार मुझे सुबह से ही याद आ रही थी लेकिन उसे लाने के लिए ग्रेटर कैलाश जा पाने लायक फुरसत मुझे सुबह से ही नहीं लगी थी । दूसरी बात सुबह से कोई पेट पूजा कर पाने की भी फुर्सत नहीं लगी थी । दूसरी बात ने मुझे रास्ते में गोल मार्केट रुकने के लिए प्रेरित किया जहां से कि मैंने कुछ कबाब और टिक्के खरीदे ।
मैं मंदिर मार्ग सुजाता मेहरा के होस्टल के कमरे में पहुंचा ।
“नान वेज खाती हो ?” जाते ही मैंने पहला सवाल किया ।
“हां ।” वो तनिक हड़बड़ाकर बोली, “क्यों ?”
“लाया हूं । सुबह से कुछ खाना नसीब नहीं हुआ । तुम खाओगी न ?”
“वाह ! नेकी और पूछ-पूछ । मेरे अपने पेट में चूहे कूद रहे हैं ।”
मैंने पैकेट उस थमा दिया । उसने कहीं से एक बड़ी प्लेट बरामद की और उसमें कबाब सजा दिए । उसने प्लेट मेज पर रख दी और फिर दोपहर की तरह एन आमने-सामने वो पलंग पर, मैं कुर्सी पर-बैठ गए ।
“क्या हुआ मैटकाफ रोड पर ?” मैंने पूछा ।
“सब ठीक-ठीक हुआ ।” वो बड़े इत्मीनान से बोली, “मैंने वहां जाकर वही कुछ किया जो कुछ तुमने मुझे करने को कहा था । मैने शोर मचाया, लोग इकट्ठे हो गए, फिर एक पड़ोसी ने ही पुलिस को फोन किया । सुधीर, पुलिस ने मेरे ऊपर जरा भी शक नहीं किया ।”
“बढिया । पुलिस के अलावा और कौन था वहां ?”
“पहले मरने वाले का भाई लेखराज मदान वहां आया था, फिर चार बजे के करीब वो वकील पुनीत खेतान वहां आया था । बस और तो कोई नहीं आया था वहां ।”
“तुम कब आई वहां से ?”
“बताया तो था फोन पर ! तुम्हारा फोन आने के वक्त बस पहुंची ही थी यहां ।”
“खेतान कब तक ठहरा था वहां ?”
“तभी तक जब तक मैं ठहरी थी । हम दोनों इकट्ठे ही वहां से रुखसत हुए थे उसने तो मंडी हाउस तक मुझे अपनी गाड़ी में लिफ्ट भी दी थी । एकदम नई टयोटा कार है उसके पास । मजा आ गया ड्राइव का ।”
“वो तो आना ही था । तब मदान अभी वहीं था ?”
“न सिर्फ था, अभी काफी देर तक वहीं रहने वाला भी था ।”
“वो किसलिए ?”
“पुलिस उससे और पूछताछ करना चाहती थी । फिर पोस्टमार्टम की भी कोई बात थी ।”
यानी कि मेरा अंदाजा गलत नहीं था । मदान को फ्लैग स्टाफ रोड पर लंबा फंसा पाकर ही वो बीवी का यार लपकता-झपकता बाराखम्बा पहुंचा था ।
“कल रात की कोई और बात याद आई तुम्हें ?” मैंने पूछा ।
“हां ।” वो तत्काल बोली, “याद आई तो है एक बात ।”
“क्या ?”
“कल शाम चार बजे मुझे शशिकान्त की एक फोन कॉल सुनने का इत्तफाक हुआ था ।”
“अच्छा !”
“हां । वो उस वक्त अपनी स्टडी में था और मैं पिछले बैडरूम में थी । वहां कोठी में एक ही टेलीफोन कनेक्शन है जिसके तीन चार जगह पैरेलल फोन हैं । मैंने एक सहेली को फोन करने के लिए फोन उठाया था तो पाया था कि फोन पर पहले ही बातचीत हो रही थी । यूं बातचीत बीच में सुनने की मेरी कोई नीयत नहीं थी, मैंने तो यूं ही थोड़ी देर रिसीवर कान से लगे रखा था और यूं .....”
“आई अंडरस्टैंड । हो जाता है ऐसा । मेरे साथ भी कई बार हुआ है । क्या सुना तुमने ?”
“फोन पर शशिकांत किसी माथुर नाम के आदमी से बात कर रहा था । दोनों में किसी बात पर तकरार हो रही थी । दूसरी ओर से बोलने वाला माथुर नाम का वो आदमी बहुत भड़क रहा था । आपे से बाहर हुआ जा रहा था । शशिकांत फोन पर उसे शान्ति बरतने को कह रहा था और उसे राय दे रहा था कि फोन पर गरजने बरसने की जगह वो शाम साढ़े आठ बजे उसके घर पर आकर उससे बात करे । जवाब में उसने गरजकर कहा था कि अगर उसे उसके घर आना पड़ा तो वो उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने आएगा ।”
“ऐन यही कहा था उसने ?”
“शब्द जुदा रहे हो सकते हैं लेकिन कहा यही था उसने ।”
“माथुर नाम ठीक से सुना था ?”
“हां । साफ सुना था ।”
“सिर्फ माथुर पूरा नाम नहीं ?”
“न ।”
“वो फोन शशिकान्त ने किया था या उसे आया था ?”
“मालूम नहीं ।”
“फोन आए तो घंटी बजती है । सारे पैरेलल टेलीफोनों पर ।”
“बैडरूम के फोन की नहीं बजती । वहां के फोन में घंटी को आन ऑफ करने का बटन है जो कि दिन में ऑफ रहता है ।”
“था कौन वो माथुर ?”
मुझे क्या पता ?”
“शशिकांत को तो पता होगा ?”
“जाहिर है । लेकिन मैं उससे पूछ थोड़े ही सकती थी ! पूछती तो उसे पता न लग जाता कि मैं कॉल बीच में सुन रही थी ! और फिर मैंने क्या लेना देना था किसी माथुर से या शशिकांत से उसके झगड़े से ?”
“ये महज इतफाक था कि कल शशिकांत के साथ झगड़े फसाद ज्यादा हो रहे थे या वो था ही ऐसा आदमी ?”
“क्या मतलब ?”
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