RE: Desi Chudai Kahani मकसद
Chapter 5
होस्टल के पी सी ओ से मैंने फ्लैग स्टाफ रोड फोन किया और अपना नाम बताकर कृष्ण बिहारी माथुर से बात करने की इच्छा व्यक्त की । मेरे नाम ने इस बार जादुई असर दिखाया ! किसी ने मुझे टरकाने की कोशिश न की और न ही गैरजरूरी सवाल पूछे । मुझे बड़े अदब से बताया गया कि तबीयत ठीक न होने की वजह से साहब जल्दी सोने चले गए थे ।
मैंने मनोज माथुर का नाम लिया ।
मालूम हुआ कि छोटे मालिक घर पर नहीं थे ।
आखिर में मैंने सुधा माथुर से बात करनी चाही तो मुझे एक और नंबर बता दिया गया ।
मैंने वो नया नंबर डायल किया तो सुधा माथुर से मेरी बात हुई ।
“सुधा जी ।” अपना परिचय देने के बाद मैं बोला, “मैं दरअसल मनोज से बात करना चाहता था । आप बता सकती हैं कि वो इस वक्त कहां मिल सकता है ?”
“किसी डिस्को में होगा ।” जवाब मिला, “शाम को तकरीबन ऐसी ही जगहों पर जाता है वो ।”
“डिस्को तो शहर में कई हैं । सबका चक्कर लगाने में तो रात बीत जाएगी ।”
“शुरूआत अब्बा से कर के देखो । उसके वहां होने के ज्यादा चांसेज हैं । अब्बा डिफेंस कालीनी में...”
“मुझे मालूम है कहां है । घर कब लौटता है वो ?”
“आधी रात के बाद । कभीर कभार तो सुबह चार बजे । यहां आके उसका इंतजार करना बेकार होगा ।”
“ओह !”
“बात क्या है ? क्यों मिलना चाहते हो उससे ?”
“कोई खास वजह नहीं । यूं ही मालूमात की खातिर । तकलीफ माफ सुधा जी । गुड़ नाइट ।”
मैंने एक ऑटो पकड़ा और डिफेंस कालोनी के लिए रवाना हो गया ।
मैं पहुंचा पडारा रोड ।
मंदिर मार्ग से रवाना मैं डिफेंस कालोनी जाने के लिए हुआ था लेकिन इण्डिया गेट के राउंड अबाउट पर पहुंचने पर ही मेरा इरादा डिसूजा के घर झांकने का बना था ।
वो अपने घर पर मौजूद था ।
मैंनै भाड़ा चुकाकर ऑटो को विदा कर दिया ।
डिसूजा कोई तीस-बत्तीस साल का विलायती पाप सिंगरों जैसे रख-रखाव वाला नौजवान था, जो एक कान में बाली पहनता था और माइकल जैक्सन की तरह अपने झबेदार बालों में से एक कुंडल अपने माथे पर लटका के रखता था । मुझे उसकी आंखों में काजल और होंठों पर लिपस्टिक की हल्की-सी परत तक दिखाई दी । अपनी दोनों नंगी बांहों पर उसने छत्तीस तरह के गोदने गुदवाए हुए थे ।
मैंने उसे अपना परिचय दिया ।
उसने खामोशी से मेरे से हाथ मिलाया और एक फोल्डिंग चेयर खोलकर उस पर मुझे बिठाया ।
“कहां गायब रहे सारा दिन ?” मैंने बड़े आत्मीयतापूर्ण स्वर में पूछा, “सुजाता भी तुम्हारी फिक्र कर रही थी ।”
“लाकअप में बंद था ।” वो बोला, “अभी छूटा एक घंटा पहले ।”
“लाकअप में ।” मैं हैरानी से बोला, “कहां ?”
“तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन ।”
“क्या किया था ?”
“पी के गाड़ी चलाता था । ड्रंकन ड्राइविंग । बलडी होल नाइट लाकअप में कटा । आज भी पैसा देकर छूटा । बहुत डिफीकल्टी हुआ ।”
“कितनी पी ली थी ?”
“वन बाटल । देट्स आल । ज्यास्ती नहीं ।”
“पकडे क्यों गए ?”
“ट्रैफिक पोलीस वाला पकड़ा । बोला गाड़ी ठीक नहीं चलाता । एक्सीडेंट करना मागता ।”
“ट्रैफिक पुलिस वाले तो चालान करके छोड़ देते हैं ।”
“नशे में मैं कुछ लफड़ा किया ।”
“ओह ! तुम्हें मालूम है शशिकांत का कत्ल हो गया है ?”
उसके चेहरे पर हैरानी के बड़े जेनुइन भाव आए ।
“कब !” - उसके मुंह से निकला ।
“कल रात को । कोई साढ़े आठ बजे ।”
“कौन किया ?”
“अभी पता नहीं चला । पुलिस की तफ्तीश जारी है । मेरी असाइनमेंट भी कातिल का पता लगाने की ही है ।”
“ओह !”
“पुलिस को ये खबर लगे बिना नहीं रहने वाली कि कल शाम तुम भी शशिकांत की कोठी पर गए थे । उनका बुलावा भी बस आता ही होगा तुम्हें । इसलिए बेहतर यही होगा कि अपने बयान का मेरे साथ रिहर्सल कर लो ।”
“बयान !”
“जो तुम्हें पुलिस को देना होगा ।”
“ओह !”
“तुम्हारी सुजाता से सात बजे की अपोइंटमेंट थी, लेट कैसे हो गए थे ?”
“कार की वजह से ।”
“क्या मतलब ?”
“मेरे पास मोटरसाइकल है । कल मैं एक फ्रेंड का कार उधारी मांगा । फ्रेंड शाम को कार तो दिया - प्रॉमिस था - पर उसमें पैट्रोल कम था । पंप पर पेट्रोल डलवाने में बीस मिनट वेस्ट द्रुआ । क्लोजिंग का टाइम था । कुछ रश था । पैट्रोल ही लेट किया मेरे को । सात बजे उधर मैटकाफ रोड़ पहुंचने का था बट शाम सात बजे से पंदरह मिनट ज्यास्ती पर पहुंचा । मैं उधर उसकी कोठी के कम्पाउंड में क्या घुस गया, ब्लडी वास्टर्ड मेरा फुल इनसल्ट करके रख दिया । मैं ब्लडी कोठी में तो कदम भी न रखा । बोला, कम्पाउंड भी काहे एंट्री किया । बहुत इन्सल्ट हुआ मेरा । वो तो मिस्टर खेतान मेरे को बोला कि सुजाता उधर से चली गई थी और मेरे को उसे बाहर रोड पर कहीं देखने का था ।”
“तुम खेतान को, पुनीत खेतान को जानते हो ?”
“यस ।”
“कैसे ?”
“मैन, वो शशिकांत का लीगल एडवाइजर है । जब नाईट क्लब ओपन था तो वो उधर राजेंद्र प्लेस में आता था । सैवरल टाइम्स ।”
“फिर आगे क्या हुआ ?”
“मैं उधर कोठी से बाहर निकलकर रोड पर आया । मैं रोड पर देखा, बस स्टैंड पर देखा, रोड के दोनों कॉर्नर तक देखा बट, यू सी, सुजाता उधर किधर भी मेरे को नहीं मिली । या मेरे को दिखाई नहीं दी ।”
“उसे मालूम था तुम आने वाले हो । वो तो सात बजे ही कोठी से बाहर निकल आई थी । अगर वो तुम्हारी ही राह तकती वहां मौजूद थी तो उसे तो तुम आते दिखाई देने चाहिए थे ?”
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