RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“किस बाबत ?” मैं जानबूझकर अनजान बनता हुआ बोला ।
“तुम्हें मालूम है । सोचना तो जो सोचना उसे दिल में रखना । मदान के आगे कुछ अनाप-शनाप न बोल देना ।”
“हुक्म दे रहे हो ?”
“दरखास्त कर रहा हूं ।”
“एक शर्त पर तुम्हारी दरख्वास्त कबूल हो सकती है ।”
“क्या ?”
“अपनी जुबानी कबूल करो कि मदान की बीवी से तुम्हारा अफेयर है ।”
“भई, मैं उसे मदान से भी पहले से जानता हूं । अब हर पुरानी जानकारी कोई अफेयर ही तो.....”
“फुंदनेबाजी छोड़ो । तुम उसे उसकी पैदाइश के वक्त से जानते हो लेकिन आज की तारीख में वो तुम्हारे से फंसी हुई है । कबूल करो ।”
“ठीक है । किया ।”
“और ये भी कबूल करो कि शशिकांत की बीमा पॉलिसी के बारे में उसे तुम्हारे से ही मालूम हुआ था ।”
“ये भी कबूल किया ।”
“क्यों बताया ?”
“इत्तफाक से कभी मुंह से निकल गया था । किसी खास मकसद से नहीं बताया था ।”
“तुम्हें ये बात मानूम हूं कि असल में शशिकांत मदान का कुछ नहीं लगता था”
“पहले नहीं मालूम थी । अब मालूम है ।”
“अब कैसे मालूम हुआ ?”
“मधु ने बताया । तुम्हारे जाने को बाद ।”
“तुम शशिकांत के वकील भी हो फाईनान्शल एडवाइजर भी हो.....”
“ऑडीटर भी हूं । स्टाक ब्रोकर भी हूं । जनरल एजेंट भी हूं । ट्रबल शूटर भी हूं । मेरी कंसल्टेंसी आल-इन-वन है । वो क्लायंट के लिए बहुत फील्ड कवर करती है ।”
“इस लिहाज से तो शशिकांत के पास अगर कोई ऐसा डोक्युमेंट होता जिसे वो बहुत हिफाजत से, बहुत महफूज रखना चाहता होता तो वो तुम्हारी ही सेवाएं इस्तेमाल करता ।”
“हां । लेकिन ऐसा कोई डोक्युमेंट उसने मेरे पास नहीं रखवाया हुआ । मदान भी बहुत बार मेरे से ये सवाल पूछता है । लेकिन वजह नहीं बताता कि क्यों पूछ रहा है । कम-से-कम तुम तो वजह बताओ ।”
“शशिकान्त के पास अपने बचपन से ही कुछ ऐसे कागजात थे ये साबित करते थे कि असल में वो किन्हीं और मां-बाप का बेटा था और यह कि लेखराज मदान से उसका दूर-दराज का भी कोई रिश्ता नहीं ।”
“ओह । लेकिन मरे पास ऐसे कोई कागजात नहीं ।”
“शायद वो सीलबंद हों । इस वजह से तुम्हें मालूम न हो कि भीतर क्या है !”
“मेरे पास शशिकांत का दिया कोई सीलबंद लिफाफा है ही नहीं । मेरे पास तो सिर्फ उसकी फाइनान्शल होल्डिंग्स हैं - जैसे सिक्योरिटीज । शेयर सर्टिफिकेट्स । ऐसी चीजें हम बाकी क्लायंट्स की भी रखते हैं ।”
“कितने का माल होगा वो ?”
“होगा कोई बीस-बाईस लाख रुपए का ।”
“अब उसका क्या होगा ?”
“अब तो मैं खुद हैरान हूं क्या होगा ? पहले तो मैं उसे मदान को ही सौंपता लेकिन अब जबकि तुम कहते हो कि वो शशिकांत का भाई था ही नहीं, तो फिर वो सब कागजात मदान को सौंपना गलत होगा ।”
“और किसे सौंपोगे ?”
“जो कोई भी उसका वारिस होगा शायद उसकी कोई वसीयत बरामद हो ।”
“कोई वारिस न निकला तो ?”
“ऐसा हो तो नहीं सकता । कोई तो हर किसी का होता ही है ।”
“शशिकांत का न हुआ तो ?”
“तो जो उसकी बाकी जमीन-जायदाद का होगा, वो ही उसकी सिक्योरिटीज का हो जाएगा ।”
“यानी कि तुम वो सब कुछ सरकार का सौंप दोगे ?”
“हां ।”
“वैसे तुम लोग चाहो तो क्लायंट्स की सिक्योरिटीज को या सर्टीफिकेटस को कैश करा सकते हो ?”
“करा तो सकते हैं । हमारे पास क्लायंट की ऑथोरिटी होती है । हर स्टाक ब्रोकर के पास अपने क्लायंट ऑथोरिटी होती है ।”
“क्यों ?”
“शेयर बाजार में एकाएक आ जाने वाली तेजी का फायदा उठाने के लिए । या मंदी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए । शेयर मार्केट में कई बार सिर्फ कुछ घंटों के लिए या कुछ दिनों के लिए रेट एकदम शूट कर जाते हैं । या एकदम नीचे आ जाते हें । तब शेयरों को फौरन बेचना या खरीदना होता है । ऐसा तभी हो सकता है जब क्लायंट की हमारे पास ऑथोरिटी हो । उसके हमें निर्देश होते हैं कि फलां शेयर का रेट फलां कीमत तक पहुंचे तो बेच दो या फिर कोई शेयर फलां कीमत तक गिर जाए तो खरीद लो ।”
“ये जो बीमे की रकम है, ये मिल जाएगी मदान को ?”
“देखो अगर शशिकांत का कातिल पकड़ा गया तब तो रकम न मिलने की कोई वजह नहीं होगी । तब तो ये ओपन एंड शट केस होगा । कातिल न पकड़ा गया तो बीमा कम्पनी वाले केस को लटकाएंगे । तब वो इस शक को हवा देने की कोशिश करेंगे कि शायद मदान ने कत्ल किया हो । कानून किसी को अपने ही गुनाह से फायदा उठाने की इजाजत जो नहीं देता ।”
“मदान ने कत्ल किया हो सकता है ?”
“नहीं ।” उसने बड़ी मजबूती से इन्कार में सिर हिलाया ।
“और कौन हो सकता है कातिल ?”
“ये तो तुम बताओ । आखिर जासूस हो और इसी काम के लिए तो तुम्हें इंगेज किया गया है ।”
“अभी तो ये बात अपने ही लोगो के बीच में है कि शशिकांत मदान का भाई नहीं था । लेकिन अगर ये बात जाहिर हो जाए तो फिर ये ही रकम की अदायगी में मजबूत अडंगा नहीं बन जाएगी ?”
“बन तो सकती है, यार ।” कई क्षण खामोश रहने के बाद वो बोला, “इतनी बड़ी रकम की अदायगी में अड़ंगा लगाने की तो हरचंद कोशिश करेंगे बीमा कम्पनी वाले । कोहली, हमारे कामन क्लायंट के हक में अच्छा वैसे ये ही होगा कि ये बात जाहिर न हो ।”
“हमारा एक कामन क्लायंट और भी है ।”
“और कौन ?”
मैंने उसे कृष्णबिहारी माथुर के बारे में बताया ।
“कमाल है !” वो मंत्रमुग्ध स्वर में बोला, “तुम तो यार बहुत ही पहुंची हुई चीज हो ।”
“माथुर साहब तुम्हारी शूटिंग की बहुत तारीफ कर रहे थे । पक्का निशानेबाज बता रहे थे वो तुम्हें । क्रैक शोट !”
“उन्हीं की मेहरबानी से बन गया । शूटिंग रेंज उनका अपना न होता तो मुझे तो शौक तक न पड़ता शूटिंग का ।” वो तनिक आगे को झुका और बड़े रहस्यपूर्ण स्वर में बोला, “एक भेद की बात बताऊं ?”
“बताओ ?”
“दस में से छ: बार तो मैं वहां जाता ही शूटिंग के लालच में हूं ।”
“अच्छा !”
“फ्री हथियार । फ्री गोलियां । जीरो हाय तौबा । किसी कमर्शियल शूटिंग रेंज में जाऊं तो मैम्बरशिप भरने के अलावा पहले तो मुझे कोई गन ही खरीदनी पड़े ।”
“आपके पास गन नहीं है ?”
“गन क्या मेरे पास तो फायरआर्म्र रखने का लाइसेंस तक नहीं है ।”
“क्यों ?”
“कभी कोशिश ही नहीं की हासिल करने की । जरूरत ही नहीं महसूस हुई कभी ।”
मैंने देखा डांस फ्लोर डिस्को दीवानों से खाली कराया जाने लगा था ।
“कैब्रे शौक से देखते हो ?” मैंने पूछा ।
“कैब्रे नहीं ।” वो बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला ।
“तो और क्या ?”
“यहां की मलिका । सिल्विया ग्रेको । उसे शौक से देखता हूं । यहां आता ही उसके लिये हूं । वो आज यहां से रुखसत हो जाए तो मैं दोबारा रुख न करूं अब्बा का ।”
“इतने दीवाने हो उसके ?”
“इतने से कहीं ज्यादा । मेरी दीवानगी लफ्जों में तो बयान ही नहीं की जा सकती । पहले कभी यहां आए हो ?”
“नहीं ।”
“फिर तो सिल्विया को देखा नहीं होगा ।”
तभी डांस फ्लोर पर सिल्विया प्रकट हुई । वो एक लाल रंग का लो नैक का टखनों तक आने वाला गाउन पहने थी और गाउन के अलावा कुछ नहीं पहने थी । गाउन में कूल्हे से नीचे दोनों तरफ लंबी झिरियां थीं जिस्म में जरा-सी हरकत होते ही जिनमें से उसकी लंबी सुडौल टांगें जांघों तक दिखाई देने लगती थीं और स्तन यूं मादक अंदाज में हौलै-हौले हिलने लगते थे कि कद्रदानों के मुंह से हाय निकल जाती थी ।
जैसे उस घड़ी खेतान के मुंह से निकल रही थी ।
“हाय !” वो बोला “साली एक बार हमारी टेबल पर ही आ जाए ।”
“नशे में बोल रहे हो ?”
“अरे, दिल की गहराइयों से बोल रहा हूं ।”
“उसे बुला लो ।”
“नहीं आती । टेबल पर नहीं आती वो । किसी की टेबल पर भी नहीं आती वो । बड़ी हद हल्लो कहती करीब से गुजर जाती है ।”
“टेबल पर आ जाए तो खुश हो जाओगे ?”
“तुम तो यूं कह रहे हो जैसे उसे बुला सकते हो ।”
“बुला सकता हूं ।”
“बुला के दिखाओ ।” वो चैलेन्ज भरे स्वर मे बोला, “मुंह चूम लूंगा ।”
“मेरा ?”
“हां । नहीं, उसका । मेरा मतलब है तुम्हारा भी या सिर्फ उसका या दोनों का । या पहले.....”
“बहक रहे हो ।”
उसे ब्रेक लगी । वह कुछ क्षण आंखों-ही-आंखों में सिल्विया को हजम करता रहा और फिर बोला, “भगवान औरत को इतनी शानदार क्यों बनाता है ?”
“ताकि तुम्हारे जैसे कद्रदानों मेहरबानों को इस झूठ पर एतबार न आने लगे कि सब औरतें एक जैसी होती हैं ।”
“वो तो कहा जाता है कि कमर के नीचे तमाम औरतें एक जैसी होती हैं ।”
“अभी तुम सिल्विया को कमर से ऊपर-ऊपर देख रहे हो ?”
“पागल हुए हो ! मैं तो उसे नख से शिख तक देख रहा हूं ।”
“सो देयर यू आर ।”
“यार, वो कमर से नीचे तमाम औरतें एक जैसी होने की बात का मतलब कुछ और है जो कि इस वक्त शराब और सिल्विया दोनों के नशे में मुझे सूझ नहीं रहा ।”
“अच्छा है नहीं सूझ रहा । वो गुमराह करने वाला मतलब है ।”
“यानी कि तुम्हें सूझ रहा है ।”
“न सिर्फ सूझ रहा है मुझे उसकी हकीकत पर भी एतबार है । उसी बात को लार्ड बायरन ने इस तरह से कहा है कि आल कैट्स आर ग्रे इन डार्क ।”
“यहां डार्क कहां ! यहां तो जगमग रोशनी है ।”
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