RE: Desi Chudai Kahani मकसद
पन्द्रह मिनट बाद पहली परफोरमंस खत्म हुई और सिल्विया फिर स्टेज पर प्रकट हुई । उतने में ही वो अपना गाउन बदल आई थी । अब वो पहले जैसा ही स्याह काला गाउन पहने थी । पहले की तरह दो मिनट उसने स्टेज से हॉल में अपना जादू बिखेरा और फिर नई डांसरों के लिए स्टेज छोड़कर वहां से हट गई ।
इस बार नई डांसरों के साथ दो मेल डांसर भी थे ।
मुझे मालूम था कि परफोरमेंस के समापन के बाद जब सिल्विया ने फिर स्टेज पर आना था तो उसके जिस्म पर फिर नई ड्रेस होनी थी ।
मैंने हॉल में परे उधर नजर दौड़ाई जिधर मैंने नायर को अकेले बैठे देखा था ।
वो अपनी टेबल पर मौजूद नहीं था ।
मैं कुछ क्षण सोचता रहा फिर मैंने अपना व्हिस्की का गिलास खाली किया, सिगरेट को ऐश-ट्रे में झोंका और उठ खड़ा हुआ ।
“मैं अभी आया ।” मैं बोला ।
उसने सहमति में सिर हिला दिया ।
मैं हॉल के पिछवाड़े की ओर बढा ।
उधर शनील के भारी परदे से ढका एक बंद दरवाजा था जिसके आगे एक लम्बा गलियारा था जिसके दोनों तरफ, मुझे पहले से मालूम था कि कैब्रे स्टार्स के ड्रेसिंग रूम थे । उस गलियारे के सिरे पर एक और दरवाजा था जो बाहर इमारत की पिछली गली में खुलता था ।
मैंने एक ड्रेसिंग रूम का दरवाजा ट्राई किया । वो खुल गया । मेंने भीतर निगाह डाली तो उसे खाली पाया ।
अगला दरवाजा पहले से ही तनिक खुला था और उसमें से कई लड़कियों के हंसने खिलखिलाने की आवाजें आ रही थी । मैंने तीसरा दरवाजा ट्राई किया ।
मुझे भीतर शीशे के आगे एक स्टूल पर बैठी सिल्विया दिखाई दी । उसका काला गाउन एक ढेर की सूरत में एक कुर्सी पर पड़ा था । उस घड़ी उसके जिस्म पर एक सिल्क का ढीला-ढाला चोगा था और वह शीशे में अपना अक्स देखकर अपना मेकअप दुरुस्त कर रही थी । खुलते दरवाजे का प्रतिबिम्ब उसने शीशे में देखा । वो तत्काल मेरी ओर घूमी, उसका मुंह बोलने के लिए खुला तो मैने अपने होंठो पर उंगली रखके उसे चुप रहने का इशारा किया । वो सकपकाई-सी खामोश बैठी रही ।
मैंने अपने पीछे दरदाजा भिडकाया और दबे पांव आगे वढा । वो ड्रेसिंग रूम मेरा देखा भाला था । नायर अगर वहां कहीं हो सकता था तो दाईं ओर एक दीवार से दूसरी दीवार तक खिंचे परदे के पीछे ही हो सकता था । उस पर्दे के पीछे इस्तेमालशुदा ड्रेस और वैसा ही कबाड़ भरा रहता था । वो पर्दा तीन भागों में था । मैं बीच वाले भाग के करीब पहुंचा और मैंने एक झटके से परदा खींचा ।
वहां से कपड़ों के एक गट्ठर पर बैठा नायर नुमाया हुआ । परदा हटते ही उसकी घिग्घी बंध गई और वो फटी-फटी आंखों से मुझे देखने लगा ।
मैने उसे टाई से पकड़कर उसके पैरों पर जबरन खड़ा किया और फिर बाहर घसीटा ।
“ओ माई गॉड ।” सिल्विया घबराकर उठ खड़ी हुई और आतंकित भाव से बोली, “थीफ । पोलीस ।”
“मैं माफी चाहता हूं ।” घिघियाए स्वर में नायर बोला । “प्लीज फारगिव मी । आई बैग आफ यू । मेरा कोई गलत इरादा नहीं था ।”
“काल दि पोलीस ।” सिल्विया फिर चिल्लाई ।
“ऐसा न करना ।” नायर बोला - “प्लीज ! प्लीज मैडम मेरा कोई गलत इरादा नहीं था ।”
“यहां चोरों की तरह घुसे बैठे हो ।” मैं बोला “और गलत इरादा क्या होता है ?”
“चोरी के इरादे से नहीं ।”
“तो फिर किस इरादे से ?”
“मैं .....मैं ....”
“सुधीर ।” सिल्विया बोली, “इसको पकड़ के रखना । मैं पुलिस को फोन करके आती हूं ।”
और वो दृढ कदमों से दरवाजे की ओर बढी ।
“मिस्टर कोहली” नायर गिड़गिड़ाया, “प्लीज सेव मी । मैडम को रोको । तुम मैडम को जानते लगते हो । मैडम तुम्हारी तुम्हारी सुनेंगी । प्लीज, मिस्टर कोहली ।”
मैंने उसकी टाई छोड़ दी और सिल्विया को रोका ।
ऐब भी क्या लानती चीज थी । दिन में जो आदमी मेरे साथ बात करता शेर जैसा शाही मिजाज दिखा रहा था, वह उस घड़ी बकरी की तरह मिमिया रहा था ।
“इसे” सिल्विया रुक तो गई लेकिन कहर भरे स्वर में बोली, “अपनी करतूत की सजा जरूर मिलनी चाहिए ।”
“माफी ।” नायर ने फरियाद की, “माफी ।”
“दो शर्तों पर माफी मिल सकती है ।” मैं बोला ।
“बोलो” वो आतुर भाव से बोला, “बोलो ।”
“दोबारा कभी अब्बा में पांव न रखना ।”
“नहीं रखूंगा ।”
“और मेरे चंद सवालों का जवाब दो । जवाब झूठे या टाल-मटोल वाले हुए तो फिर रात तो हवालात में कटेगी ही, इज्जत आबरू का जनाजा यहीं से निकलता हुआ जाएगा । यहां के सारे स्टाफ ने मिलकर एक-एक हाथ भी जमाया तो दर्जनों की तादाद में हाथ पड़ेंगें । बाकी खबर थाने में पुलिस लेगी ।”
“ओह, नो ! नो !”
“न नहीं, हां करो ।”
“क्या पूछना चाहते हो ?”
मैंने सिल्विया की ओर देखा ।
“सामने का कमरा खाली है ।” वो बोली ।
“दरवाजा अंदर से बंद रखा करो ।”
“मेरे ड्रेसिंगरूम में कदम रखने की किसी की मजाल नहीं होती लेकिन अब रखा करूंगी ।”
“चलो ।” मैं नायर से बोला ।
नायर के साथ मैं निर्देशित कमरे में पहुंचा । वहां हम एक सोफे पर अगल-बगल बैठ गए, मैंने उसे सिगरेट पेश किया जो उसने कांपती उंगलियों से थामा । उसका नशा उड़ चुका था और उसके हवास अभी भी उसके काबू में नहीं थे ।
“तो शुरू करें ?” हम दोनों सिगरेट सुलगा चुके तो तो मैं बोला ।
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“तुम्हारा एम्पलायर कह रहा था कि जब से वो अपाहिज हुआ है, तुम उसके हाथ-पांव दिमाग सब कुछ हो ।”
“कल शाम तुम माथुर साहब को घर से बाहर कहीं लेकर गए थे ?”
“नहीं ।”
“कभी लेकर जाते हो ?”
“कई बार । दफ्तर के काम से तो हमेशा ।”
“लेकिन कल कहीं नहीं लेकर गए थे ?”
“नहीं ।”
“कोई और लेकर गया हो ?”
“और कौन ?”
“कोई फैमिली मेम्बर ? कोई मुलाजिम ?”
“मुझे उम्मीद नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वो एकाएक उठके चल देने वाले तो शख्स नहीं । कोई पहले से अप्वायंटमेंट होती तो मुझे उसकी खबर होती । आखिर सारा दिन तो मैं वहीं होता हूं ।”
“वो अकेले जाते हैं कहीं ?”
“नहीं ।”
“जा सकते हैं ?”
वो हिचकिचाया ।
“टालमटोल नहीं चलेगी ।” मैं चेतावनी भरे स्वर में बोला, “पहले ही बोला है । दोबारा न कहना पड़े ।”
“जा तो सकते हैं ।” वो बोला ।
“कैसे ? व्हील चेयर लुढ़काते हुए ही ?”
“नहीं । स्टाइल से ।”
“वो कैसे ?”
“उनके पास एक होंडा अकार्ड है जो बनी ही अपाहिज व्यक्ति के चलाने के लिए है । उसके सारे कंट्रोल - क्लच, ब्रेक, एक्सीलेटर वगैरह - हाथ से ओपरेट किये जाने वाले हैं और उसमें उनकी व्हील चेयर ऐन कार की ड्राइविंग सीट की जगह जाकर फिट हो जाती है । कार में पीछे की सीट नहीं है । वहां ऐसा इंतजाम है कि दरवाजा खोलने पर एक प्लेटफार्म-सा बाहर जमीन पर सरक आता है जिसके जरिए वो अपनी व्हील चेयर को कार के भीतर ले जा सकते हैं । तुमने देखा होगा कि उनकी व्हील चेयर भी छोटी-मोटी कार ही है । कार की तरह उसमें ब्रेक, एक्सीलेटर, क्लच, गियर वगैरह फिट हैं, और पेट्रोल से चलती है । एक कार्डलेस टेलीफोन तक फिट है उसमें ।”
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