RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“आई सी । यानी कि मर्जी होने पर माथुर साहब का अकेले कहीं निकल पड़ना उनके लिए, कोई खास दिक्कत की बात नहीं ।”
“खास क्या मामूली दिक्कत की भी बात नहीं ।”
“सुधा का किस से अफेयर है ?”
वो चौंका ।
“किसने कहा” वो बोला, “सुधा का किसी से अफेयर है ?”
“मैंने कहा । मैं सुधा की बहन मधु को जानता हूं । दोनों के खाविंद उम्रदराज व्यक्ति हैं । मुझे ऐसा एक हिंट मिला है कि अपने खाविंदों को धोखा देने के लिए वो एक-दूसरे की मदद करती हैं । इस मामले में उन दोनों की कोई मिलीभगत जरूर है । जरूर सुधा से मिलने के बहाने घर से अक्सर निकलती है । ऐसा ही कुछ सुधा भी जरूर करती होगी । बोलो क्या सिलसिला है ?”
वो खामोश रहा ।
“नायर” मैं कर्कश स्वर में बोला, “कोई सिलसिला है, इतना तो मैं तुम्हारे चेहरे से ही पढ़ सकता हूं ।”
“कुछ है भी तो उसकी बाबत जानकर तुम्हें क्या हासिल होगा ?”
“होगा । कुछ तो हासिल होगा ।”
“यूं दूसरे की जाती जिंदगी के बखिए उधेड़ना....”
“मुझे पसंद है । तुम्हारी जाती जिंदगी के भी बखिए उधेड़े हैं अभी मैंने । नंगी औरत को कपड़े पहनते देखकर या औरत को नंगी होते देखकर निहाल हो जाते हो । जरूर अपने एम्पलायर के घर की औरतों को भी यूं ताड़ते होवोगे ।”
“नैवर ।”
“फिर भी माथुर साहब बहुत खुश होंगे तुम्हारे इस अनोखे शौक की बाबत सुनकर ।”
“मत बताना उन्हें । प्लीज ।”
“इतनी खिदमत मेरे से करा रहे हो, खुद कोई खिदमत नहीं करना चाहते हो । मैं तुम्हें पुलिस के हवाले न करूं । मैं तुम्हारी करतूत की खबर तुम्हारे एम्पलायर से न करूं । मैं इतना कुछ करूं । बदले में तुम कुछ भी न करो ।”
“ये विश्वासघात होगा । मालिक के साथ नमक हरामी होगी । मिस्टर कोहली, प्लीज मुझे नमक हराम बनने पर मजबूर न करो ।”
“तुम खामखाह जज्बाती हो रहे हो । इस पूछताछ में भी तुम्हारे मालिक की ही भलाई है । जाती तौर पर मैंने इन बातों से कुछ लेना देना नहीं है । तुम्हारे मालिक ने मुझे ये काम सौंपा है कि मैं मालूम करूं कि शहर में हुए एक कत्ल में उनकी फैमिली के किसी मैम्बर का तो कोई हाथ नहीं है । ये न भूलो कि तुम्हारा मालिक ही मेरे कहने पर तुम्हें ये हुक्म दे सकता है कि तुम मेरे हर सवाल का जवाब दो ।”
वो सोचने लगा । उसने सिगरेट का एक गहरा कश लगाया ।
“तुम” आखिरकार वह बोला, “हासिल जानकारी का कोई बेजा इस्तेमाल तो नहीं करोगे ?”
“नहीं ।”
“वादा करते हो ?”
“हां । बेजा क्या, मुमकिन है कि जानकारी के कैसे भी इस्तेमाल की कोई नौबत न आए ।”
“बात ऐसी है कि उसकी खबर अगर माथुर साहब को लग गई तो उनके दिल को बहुत सदमा पहुंचेगा ।”
“नहीं लगेगी । बशर्ते कि बात का सीधा ताल्लुक कत्ल से न हुआ ।”
“तो सुनो । सुधा का मनोज से अफेयर है ।”
अब चौंकने की मेरी बारी थी ।
“मां का” मैं धीरे से बोला, “अपने सौतेले बेटे से अफेयर है ?”
“ऐसे सौतेले बेटे से जो उम्र में मां से तीन साल बड़ा है ।”
कितना फैशनेबल हो गया था बंदे का गुनहगार होना ! कितनी पोल थी दिल्ली शहर के बाशिंदों के कैरेक्टर के ढोल में । साहबान, कभी भी आप किसी गुनहगार बंदे के फौरी दीदार के तलबगार हों तो बरायमहरबानी महज इतना कीजिएगा कि किसी शीशे के सामने जाकर खड़े हो जाइएगा ।
“चलता कैसे है वो सिलसिला ?” प्रत्यक्षत: मैंने पूछा, “मधु की मदद से ?”
“नहीं ।” वो बोला ।
“तो ?”
“उनके अपने बलबूते चलता है । बिना किसी की मदद से ।”
“कहां ?”
“कोठी में ही ।”
“कैसे ?”
“हर दूसरे-तीसरे दिन मनोज शाम को दफ्तर से लौटकर नए सिरे से तैयार होकर तफरीहन घर से निकलता है और आधी रात के बहुत बाद वापस लौटता है । ऐसा उसने कोठी के हाउसहोल्ड में अच्छी तरह से स्थापित किया हुआ है । अपनी एक कार का साइलेंसर उसने बिगाड़ा हुआ है जिसकी वजह से कार खूब शोर करती है । वो शाम को उस कार पर खूब शोर मचाता घर से निकलता है और वैसे ही शोर मचाता घर लौटता है । असल में वो कार को कोठी से दूर कहीं छुपाकर खड़ी कर देता है और चुपचाप वापस लौट आता है । पिछवाड़े से चोरों की तरह कोठी में घुसता है और सुधा के कमरे में पहुंच जाता है । फिर चोरों की तरह ही बाहर निकलता है, गाड़ी काबू में करता है और शोर मचाता वापस लौट आता है । हर कोई यही समझता है कि वो शाम का गया तभी वापस लौटा था ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है ?”
“खानसामे ने देखा अपनी आंखों से आधी रात को ।”
“नौकर-चाकर भी कोठी में ही रहते हैं ?”
“नहीं । उनके लिए अलग इमारत है । उस रात मिस्टर माथुर ने आधी रात को खानसामे को फोन करके उनके लिए दूध लाने को कहा था । उस रोज उन्हें कोई तकलीफ थी जिसकी वजह से आधी रात को ही उनकी नींद खुल गई थी । खानसामा दूध लेकर उनके कमरे में जा रहा था तो उसने मनोज को दबे पांव सुधा के कमरे से निकलते देख था ।”
“ओह !”
“लेकिन ये बात उसने किसी को बताई नहीं ।”
“सिवाय तुम्हारे ?” मैं उसे घूरता हुआ बोला ।
“हां ।”
“तुम्हें किसलिए ?”
“वो मेरा भांजा है ।”
“ओह !”
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“माथुर साहब को” फिर मैंने पूछा, “अपनी बीवी पर शक है ?”
“तुम बताओ, नहीं होना चाहिए ?”
“तुम्हीं बताओ ।”
“शक तो वो तब भी करते थे जबकि अभी वो अपाहिज नहीं हुए थे । अपाहिज होने के बाद से तो वो बहुत ही शक्की हो गए थे । बात को अपने तक ही रखोगे, इस उम्मीद में बता रहा हूं कि पिछले डेढ़ साल से उन्होंने ऐसा इंतजाम किया हआ है कि सुधा के घर से बाहर गुजरे एक-एक मिनट की रिपोर्ट उन्हें मिले ।”
“तौबा ! इतनी लम्बी निगरानी !”
“हां ।”
“इतनी लम्बी निगरानी तो छुप भी नहीं सकती । सुधा को शर्तिया खबर होगी ऐसी निगरानी की ।”
“हो सकता है ।”
“हो सकता है नहीं, है । उसे कोठी से बाहर मनोज से मिलने की सुविधा होती तो वो दोनों कोठी के भीतर मिलने का यूं पेचीदा रास्ता न अख्तियार करते ।”
“यू आर राइट ।”
“मिस्टर नायर, अपनी जानकारी का तुम कोई बेजा इस्तेमाल तो नहीं करते ?”
“कौन सी जानकारी का ?”
“सुधा और मनोज की आशनाई की जानकारी का । जो नजारा यहां वेटरों को रिश्वत देकर छुप-छुपके करते हो, पीछे फ्लैग स्टाफ रोड पर उसी नजारे की धौंस से मांग तो नहीं करते हो ?”
“ओह माई गॉड नैवर ।”
“आगे करने का इरादा होगा !”
“मिस्टर कोहली” वो बहुत दयनीय स्वर में बोला, “आई एम नाट ए ब्लैकमेलर । आई एम ए सिक मैन । मेरा मनोविशेषज्ञ कहता है कि यह एक बीमारी होती है ।”
“ओह !”
“आई एम डिवोटीड टू माथुर फैमिली । मैं माथुर परिवार के किसी सदस्य के हित के खिलाफ जाने का सपने में भी ख्याल नहीं कर सकता । जो कुछ अभी मैंने तुम्हें बताया है, उसके लिए भी मुझे उम्र-भर पछतावा रहेगा । अब, फॉर गॉड सेक, मेरी जान छोड़िये ।
“अभी एक मिनट में । सिर्फ एक सवाल और ।”
“वो भी पूछो ।”
“मैं माथुर फैमिली के लिए तुम्हारी निष्ठा की कद्र करता हूं । अब ये बताओ किसी फैमिली मेम्बर की खातिर कत्ल कर सकते हो ?”
“बेहिचक । गोली की तरह । एक नहीं, अनेक ।”
“किया है ?”
“नहीं ।”
“कल रात साढ़े आठ बजे के करीब कहां थे ?”
“यहीं था । जिससे मर्जी पूछ लो ।”
“पुनीत खेतान तुम्हारे सामने यहां आया था ?”
“हां ।”
“कितने बजे ?”
“साढ़े आठ ।”
“और मनोज ?”
“वो कल यहां नहीं आया था ।”
“तुम तीनों एक दूसरे से वाकिफ हो । कभी यहां इकट्ठे नहीं बैठते ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“तीनों के मिजाज नहीं मिलते । जरूरतें नहीं मिलती । उम्र नहीं मिलती ।”
“ओह !”
“मेरी तो पूरी कोशिश होती है कि उनमें से किसी को पता तक न लगे कि मैं यहां हूं ।”
“हूं ।” फिर मैं एकाएक उठ खड़ा हुआ, “ओ के, नायर । फिर मिलेंगें ।”
“जरूर ।” वो भी उठा ।
“लेकिन अब्बा में नहीं ।” मैं चेतावनीभरे स्वर में बोला, “याद रखना ।”
“नेवर । यू हैव माई वर्ड ।”
***
आधी रात को मैं ग्रेटर कैलाश अपने घर जाकर लगा ।
पिंकी माथुर से आठ बजे की अप्वाइंटमेंट मैं भूला नहीं था लेकिन निर्धारित समय पर घर का रुख न करने की मेरे पास कई वजह थीं । मसलन: मैंने आधा जमा एक बराबर डेढ़ लाख रुपए की फीस कमानी थी और पिंकी से अप्वाइंटमेंट फिक्स होने के बाद से इस दिशा में मैंने बड़े अहम काम किए थे, निहायत कारआमद मालुमात की थीं ।
|