RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“लानत ।” मैं भुनभुनाता हुआ उठ खड़ा हुआ, “लानत ।”
“कहीं जा रहे हैं ?”
“हां । दरिया में डूबने जा रहा हूं । चलोगी ?”
“पानी ठंडा होगा । मई में चलें तो कैसा रहे ?”
“अब थोबड़ा बंद कर । रिजक कमाने जा रहा हूं मैं । वो काम करने जा रहा हूं जिसके कि तु मुझे काबिल नहीं समझती ।”
“वैसे तो गलत घड़ी भी दिन में दो बार ठीक टाइम देती ही है ।” उसने मुझे नोट दिखाए, “सबूत ये रहा ।”
“लानत हई । मुझे गलत घड़ी कहती है । पता नहीं मेरे कौन से बुरे कर्मों का फल है तू ?”
“अच्छे कर्मों का ।”
“अच्छा, अच्छा । नोट संभाल के रखना ।”
“इन में से चार पैसे में खर्च लूं तो ?”
“जितने मर्जी खर्च ले । सब तनखाह में से काट लूंगा ।”
“सारे खर्च कर लूं तो जब तक आप मेरी तनखाह में से आखिरी किश्त काटेंगें, मैं चार बच्चे खिला रही होउंगी ।”
“मेरे ?” मैं आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“आप के कैसे । दोनों काम कैसे हो सकते हैं । बच्चों का बाप बच्चों की मां से कहीं किश्तें वसूल करता है !”
“बहुत हाजिरजवाब हो गई है ।”
“सोहबत का असर है ।”
“अच्छा, अच्छा । मैं चला । ऑफिस में ही रहना ।”
“शाम को तो क्या लौटेंगें ?”
“शाम को !” मैं आखें निकालकर बोला, “मैं दोपहरबाद ही लौटूंगा । और तेरे ब्वाय फ्रेंड के साथ तुझे रंगे हाथों पकडूंगा ।”
वो जोर से हंसी ।
फिर मेरी भी हंसी निकल गई ।
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