RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मेरे महकमे में ये बड़ा नुक्स है ।” वो बोला, “सारा दिन गुमनाम टेलीफोन कॉल आती रहती हैं । और साले अपनी कहना चाहते हैं, दूसरे की नहीं सुनना नहीं चाहते । कुछ पूछने लगो तो लाइन काट देते हैं ।”
मैंने बड़े सहानुभूतिपूर्ण ढंग से गरदन हिलाई ।
“क्या कह रहे थे तुम ?” वो बोला ।
“तुम्हारे से नहीं, मदान साहब से कह रहा था ।” मैं फिर मदान से संबोधित हुआ, “चलें ?”
“ये तो अभी ठहरेंगें ।” यादव मदान के बोलने से पहले बोल पड़ा, “इन्होंने लाश क्लेम करने के लिए चिट्ठी ले के जानी है ।”
“तो फिर” मैं उठ खड़ा हुआ, “मैं चलता हूं ।”
***
मैं फ्लैग स्टाफ रोड पहुंचा ।
मैंने अपनी कार बाहर सड़क पर ही खड़ी कर दी । उसे भीतर ले जाकर मैं उसकी तौहीन नहीं कराना चाहता था । भीतर खड़ी दर्जन भर चमचम करती देसी विलायती कारों के सामने जरूर मेरी खटारा फियेट शर्म से पानी-पानी हो जाती ।
मैं आयरन गेट पर पहुंचा तो सशस्त्र गोरखे ने मुझे पहचान कर दरवाजा खोला । मैं भीतर दाखिल हुआ ।
“गोरखा ! इस आदमी को पकड़ के रखना । खिसकने न पाए । भागने की कोशिश करे तो गोली मार देना ।”
मैंने अचकचाकर आवाज की दिशा में सिर उठाया तो कोठी की विशाल टेरेस पर मुझे ड्रेसिंग गाउन पहने पिंकी खड़ी दिखाई दी । उसकी मुट्ठियां भिंची हुई थीं और वो आंखों से मेरे ऊपर भाले बर्छियां बरसा रही थी ।
मैंने मुस्कुराकर उसकी तरफ हाथ हिलाया ।
उसने यूं एक उंगली से मुझे ऊपर आने का इशारा किया जैसे कोई मलिका किसी गुलाम को तलब कर रही हो ।
मैं ड्राइव वे में आगे बढा ।
मैं कोठी के करीब पहुंचा तो उसी क्षण मनोज बाहर निकला । मुझे देखते ही वो मेरे करीब आया और मेरी बांह पकड़कर मुझे मार्की के एक खंभे की ओट में ले गया ।
“मिस्टर कोहली !” फिर वो धीरे से बोला, “टैल मी फ्रैंकली । वाट इज युअर गेम ?”
“क्या मतलब ?” मैं बोला ।
“मेरी डैडी से बात हुई है । वो कहते हैं कि हमारी एक मिल में एक मोटी रकम का घोटाला हुआ है जिसकी तफ्तीश के लिए तुम्हारी सेवाएं प्राप्त की गई हैं ।”
“ठीक है ।”
“नहीं ठीक है । मैं माथुर इंडस्ट्रीज का एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हूं । ऐसा कोई घोटाला हुआ है तो उसकी खबर मेरे तक क्यों नहीं पहुंची ?”
“मैं क्या जानूं क्यों नहीं पहुंची । मैं तो कॉर्पोरेट फंक्शनिंग को कोई खास समझता नहीं ।”
“रात को अब्बा में तुम मेरे से शशिकांत के कत्ल की बाबत सवाल पूछ रहे थे । हमारी मिल के रकम के घोटाले में शशिकांत के कत्ल का क्या रिश्ता !”
मैंने उत्तर न दिया ।
“मिस्टर कोहली” उसने मेरी बांह थाम कर हिलाई, “कम क्लीन ।”
“मैं” मैं अपनी बांह छुड़ाता हुआ बोला, “एक वक्त में दो केसों की तफ्तीश नहीं कर सकता ?”
“कर सकते हो । एक क्या दस केसों की तफ्तीश कर सकते हो । लेकिन फिर भी हो सकता है कि जो केस मेरे डैडी ने तम्हें सौंपा है, वो उन दसों में से कोई भी न हो ।”
“ऐसा कौन-सा केस होगा ?”
“तुम्हें मालूम है । देखो, मेरे से ठीक से पेश आओगे तो घाटे में नहीं रहोगे, बल्कि बहुत फायदे में रहोगे ।”
“मैं समर्थ आदमी की दोस्ती में पूरा-पूरा यकीन रखता हूं ।”
“ये की न समझदारी की बात ।”
“लेकिन क्या ठीक से पेश आऊं मैं आपके साथ ?”
“मुझे वो असल वजह बताओ जो तुम्हें डैडी के पास लाई है ।”
“असल वजह ?”
“मेरी सौतेली मां । मिसेज सुधा माथुर ! यही है न असल वजह ?”
मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।
“झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं । यही है असल वजह । डैडी ने तुम्हें सुधा को इन्वेस्टिगेट करने के लिए रिटेन किया है ।”
“नहीं ।”
“खामखाह इन्कार न करो । खामखाह झूठ न बोलो ।”
“लेकिन........”
“सुनो । पहले पूरी बात सुनो । अपने प्राइवेट डिटेक्टिव के धंधे में किसलिए हो तुम ? चार पैसे कमाने के लिए । हो या नहीं ?”
“वो तो है ।”
“मैं तुम्हें आठ पैसे कमाने का मौका देता हूं । सुनो” उसका स्वर एकाएक इतना धीमा हो गया कि मैं बहुत कठिनाई से सुन सका, “सुधा के बारे में जो भी जानकारी हासिल करो, उसे डैडी के पास ले जाने की जगह पहले मेरे पास लाओ । मैं तुम्हें डबल फीस दूंगा । ओ के ।”
“आपने ये तो पूछा ही नहीं कि सिंगल फीस क्या है ?”
“कुछ भी हो ।”
“अपने डैडी से पूछेंगें ?”
“हरगिज भी नहीं । आई विल टेक युअर वर्ड फार इट । अपने और मेरे डैडी के बीच सैटल हुई जिस रकम का भी नाम तुम लोगे, मैं उससे दुगनी तुम्हें दूंगा ।”
“चाहे मैं झूठ बोल दूं ?”
“चाहे तुम झूठ बोल दो ।”
“मैं आपकी ऑफर पर विचार करूंगा ।”
“अभी भी विचार करोगे ?” वो आंखें निकालकर बोला ।
“सिर्फ शाम तक । शाम को आपको मेरा जवाब मिल जाएगा ।”
“कहां ?”
“जहां भी आप होंगें । मैं ढूंढ लूंगा आपको । आई एम ए डिटेक्टिव । रिमेम्बर ?”
वो कुछ क्षण अनिश्चित सा मुझे देखता रहा और फिर सहमति में गर्दन हिलाने लगा ।
उसे यूं ही गर्दन हिलाता छोड़कर मैं कोठी में दाखिल हुआ । सीढ़ियों के रास्ते मैं ऊपर पहुंचा ।
वैसे ही फुम्फ्कारती वो मुझे सीढ़ियों के दहाने पर मिली ।
“साले ।” वो फुम्फ्कारी, “हरामजादे ।”
“वो तो मैं हूं ही ।” मैं तनिक सिर नवाकर मुस्कराता हुआ बोला ।
“सन ऑफ बिच !”
“अग्रेजी में भी वही ।”
“यू लाउजी डबल क्रासिंग सन ऑफ बिच ।”
“ओरिजिनल । वैरी फर्स्ट । इस जगत प्रसिद्ध बिच ने जितने सन पैदा किए हैं, सब मेरे बाद पैदा किए पहलोठी का सिर्फ मैं हूं ।
उसका हाथ हवा में घूमा जो कि मैंने रास्ते में ही थाम लिया ।
“जुबानी-जुबानी ठीक है ।” मैं क्रूर स्वर में बोला, “हाथ चालकी नहीं चलेगी । समझ गई ?”
मैंने उसकी कलाई तनिक मरोड़ी ।
“छोड़ो ।” वो पीड़ा से बिलबिलाती हुई बोली, “छोड़ो ।”
मैंने कलाई छोड़ दी ।
“अब बोलो क्या कहना है ?” मैं बोला ।
“तुम्हें नहीं पता क्या कहना है ?” वो चीखी ।
“धीरे । धीरे ।”
“कल रात आठ बजे कहां मर गये थे ?”
“मर ही गया था ।” मैं बड़े दयनीय स्वर में बोला ।
“क्या हुआ था ?” वो गुस्सा छोड़कर सकपकाई ।
“पुलिस ने पकड़ लिया था ।”
“क्या ?”
“बोले उग्रवादी है । बोलो, मैं उग्रवादी लगता हूं ?”
“नहीं ।”
“घंटा बैठाए रखा तो कहीं जाके छोड़ा ।”
“मैं डेढ़ घंटा तुम्हारे फ्लैट के सामने एडियां घिसती रही ।”
“छूटने के बाद आधा घंटा रास्ते में ही लग गया था न ।” मैंने जल्दी से जोड़ा, “बस तुम गई ही होगी तो मैं पहुंच गया होऊंगा ।”
“मैं और इन्तजार कर लेती । तब मुझे पता थोड़े ही था कि तुम...”
“वही तो । आई एम सॉरी, स्वीटहार्ट । तुम्हें तकलीफ हुई ।”
“तकलीफ तो बहुत हुई ।” वो अनमने स्वर में बोली, “कभी ऐसे किसी का इन्तजार नहीं किया मैंने । लेकिन....खैर । फिल्म कहां है ?”
“तुम्हारा कमरा कहां है ?”
उसने पीछे एक बंद दरवाजे की ओर इशारा किया ।
“वहां टीवी, वीसीआर हैं ?”
“हैं ।”
“इस वक्त अपने कमरे में जाकर फिल्म देख सकती हो ?”
“बड़े आराम से ।”
“तो ये लो कैसेट ।” मैं बोला, “जाकर फिल्म देखो । मैंने जरा तुम्हारे डैडी से मिलना है ।”
उसने बड़ी व्यग्रता से सहमति में सिर हिलाते हुए कैसेट ले लिया ।
“कहां मिलेंगे, माथुर साहब ?” मैंने पूछा ।
“नीचे नायर के पास चले जाओ । मिलवा देगा ।”
मैं वापस सीढियां उतर गया ।
उस रोज भी कृष्ण बिहारी माथुर से मेरी मुलाकात शूटिंग रेंज पर ही हुई । उस रोज भी मैंने उसे रायफल से टारगेट प्रैक्टिस करते पाया जो कि मेरे लिए अच्छा ही था । जो कुछ मैं उससे कहने वाला था उसके लिए मेरा उससे तनहाई में मिलना जरूरी था ।
मैं हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया ।
उसने गर्दन के हल्के से झटके से मेरा अभिवादन स्वीकार किया, अपनी व्हील चेयर का रुख थोड़ा मेरी तरफ किया और रायफल को व्हील चेयर के साथ टिकाकर खड़ा किया ।
“आओ, मिस्टर कोहली” वो बोला, “जरूर कोई अच्छी खबर लाए हो ।”
“अभी नहीं, सर ।” मैं अदब से बोला ।
“तो” वो तनिक रुष्ट स्वर में बोला, “फिर कैसे आए हो ?”
“कुछ कहने आया हूं, कुछ पूछने आया हूं कुछ याद दिलाने आया हूं ।”
“हम सुन रहे हैं ।”
“मैंने आपसे कल भी कहा था कि क्लायंट और प्राइवेट डिटेक्टिव का रिश्ता मरीज और डॉक्टर जैसा होता है । जैसे ....”
“हमें याद है । भूले नहीं हैं हम । तुम्हारी बात से इत्तफाक भी है हमें ।”
“फिर भी आपने मेरे से झूठ बोला ।”
“क्या बकते हो ?”
“एक नहीं, दो बातों में । परसों शाम चार बजे आपने शशिकांत से फोन पर बात की थी । लेकिन आपने मुझे नहीं बताया । परसों रात आप उसकी कोठी पर भी गए थे लेकिन आपने ये बात मेरे से छुपा कर रखी ।”
“झूठ ।”
“कौन-सी बात झूठ है, टेलीफोन कॉल वाली या शशिकांत से मिलने जाने वाली या दोनों ?”
उसने उत्तर न दिया ।
मैने जेब से कल हासिल हुआ दस हजार रुपये का चैक निकाला और उसकी कुर्सी के पहलू में पड़ी उस टेबल पर रख दिया जिस पर कारतूस के डिब्बे और रिवॉल्वर पड़ी थीं ।
“ये आपका चैक है” मैं बोला, “जो कल आपने मिस्टर नायर से बतौर रिटेनर मुझे दिलवाया था । साफगोई से परहेज रखने वाले क्लायंट की कोई खिदमत कर पाने में मैं अपने आपको नाकाबिल पाता हूं ।”
“तुम्हें फीस से मतलब होना चाहिए ।”
“दुरुस्त फरमाया आपने । अमूमन फीस से ही मतलब होता है । हराम के पैसे से भी मुझे परहेज नहीं । लेकिन हराम की फीस से मुझे परहेज है । मेरी ये हरकत मेरा धंधा बिगाड़ सकती है । जैसे कल आपने मेरे बारे में किसी से पुछवाया तो आपको अच्छा-अच्छा सुनने को मिला, वैसे ही आइन्दा दिनों में कोई आपसे मेरे बारे में सवाल करेगा तो आपका जवाब यही होगा कि निकम्मा आदमी है सुधीर कोहली । मोटी फीस भी खा गया और कोई काम भी करके न दिखा सका । सर, मेरा धंधा माउथ टू माउथ रिक्मेंडेशन से चलता है । लोग मेरा कोई इश्तिहार पढ के मेरे पास नहीं आते । एक संतुष्ट क्लायंट ही दूसरा क्लायंट भेजता है मेरे पास । आप समझ रहे हैं न मेरी बात ?”
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