RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मेरा ऐसा इरादा होता तो मैं आइन्दा किसी दिन का इन्तजार क्यों करता ? आज के दिन में क्या खराबी है ?”
“हम शर्मिंदा हैं, बेटा लेकिन हम भी क्या करें ! हम सिर्फ कृष्ण बिहारी माथुर नहीं, एक बेटी के बाप भी हैं । औलाद कितनी ही नालायक क्यों न हो, उसकी फिक्र मां-बाप ने ही करनी होती है, उसके रास्ते के कांटे मां बाप ने ही बीनने होते हैं । अब पिंकी की मां तो है नहीं ....”
“आई अंडरस्टैंड, सर । वो कैसेट मैंने पिंकी को सौंप दिया है । इस वक्त अपने कमरे में बैठी वो उस कैसेट की फिल्म ही देख रही है । आप खुद ही कल्पना कर सकते हैं कि देख चुकने के बाद वो फिल्म की क्या गत बनाएगी ।”
“क्या गत बनाएगी ?”
“समझदार होगी तो फिल्म की राख तक का पता नहीं लगने देगी ।”
“होगी समझदार ?”
“क्यों नहीं होगी ? आखिर बेटी किस की है !”
उसने सहमति में सिर हिलाया । वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला, “हम शर्मिंदा हैं कि हमने तुम्हारी नीयत पर, तुम्हारे कैरेक्टर पर शक किया ।”
“जाने दीजिए । मेरी नीयत बद है और कैरेक्टर खराब है ।”
“तुम मजाक कर रहे हो ।”
“यही समझ लीजिए ।”
“हम तुम्हारी फीस में कोई इजाफा......”
“फिर वो फीस नहीं, रिश्वत बन जाएगी ।”
“तुम हमारी समझ से बाहर हो ।”
“बात कुछ और हो रही थी । बात दूसरी बात की, शशिकांत से आपके मिलने जाने की, हो रही थी ।”
“दूसरी बात झूठ है ।” पलक झपकते ही वो फिर पहले वाला सर्वशक्तिमान माथुर बन गया, “हम उसके यहां कभी नहीं गए ।”
“लेकिन साढे आठ बजे की अपोइंटमेंट.....”
“वाट अपोइंटमेंट ?” वो झुंझलाया, “देयर वाज नो अपोइंटमेंट, मिस्टर कोहली । वो चाहता था हम उसके यहां जाएं । हम नहीं चाहते थे कि हम उसके यहां जाएं । हम ऐसे बिलो डिग्निटी आदमी की मेजबानी कबूल करते जिसकी हमें सूरत भी देखना गवारा नहीं था ?”
“तो आप नहीं गए थे ?”
“हमने ख्याल तक नहीं किया था जाने का ।”
“सच कह रहे हैं ?”
“वाट नानसेन्स !”
“आप एक बार झूठ बोल चुके हैं । कल आपने शशिकांत से वाकफियत होने से इन्कार किया था ।”
“क्या वाकफियत थी हमारी उस शख्स से? हमने कभी सूरत तक नहीं देखी उसकी ।”
“आपने नाम तक से नावाकफियत जाहिर की थी ।”
“हां, उस मामूली-सी गलतबयानी के खतावार हम हैं ।”
“लेकिन ये आप सच कह रहे हैं कि आप कल रात वहां नहीं गए थे ?”
“हां ।”
“चाहे तो जा सकते थे ? अकेले ?”
वो हिचकिचाया ।
“'मेरे को आपकी उस हैंडीकैपड पर्सन वाली होंडा अकॉर्ड की खबर है जिसके स्टीयरिंग के पीछे तक आपकी ये व्हील चेयर चढ़ जाती है और जिसके सारे कंट्रोल हाथों से आपरेट किए जाते हैं ।”
“कैसे जाना ?” वो मुंह बाए मुझे देखता हुआ बोला ।
“आई एम ए डिटेक्टिव । रिमेम्बर !”
“कैसे जाना ?”
“दैट इज बिसाइड दि पॉइंट , सर । कैसे भी जाना । जाना । पहले भी अर्ज किया है, फिर अर्ज करता हूं, सर कि मेरी हर जानकारी पर सवालिया निशान न लगाइए । बात सच नहीं है तो साफ कहिए ।”
“बात सच है और तुम्हारे सवाल का जवाब भी ये है कि हम चाहते तो बिना किसी की मदद के वहां जा सकते थे ।”
“आप गए थे ?”
“नहीं ।”
“मेरे पास सबूत है कि आप वहां गए थे ।”
“क्या सबूत है ?”
“आपकी व्हील चेयर के टायरों के निशान शशिकांत की कोठी के ड्राइव-वे में बने पाए गए हैं ।”
वो खामोश हो गया ।
“पुलिस ने तो” फिर वो बोला, “ऐसे निशानों का कोई जिक्र नहीं किया था ।”
“पुलिस की तवज्जो नहीं गयी होगी उन निशानों की तरफ ।”
“जब तुम्हारी गई थी तो उनकी तवज्जो....”
“न जाना कोई बड़ी बात नहीं । उन्हें केस की तफ्तीश की लाख रुपया फीस नहीं मिलती ।”
“वो निशान कहां पाए गए थे ?”
“बताया तो था । ड्राइव-वे पर ।”
“मेरा मतलब है कहां से कहां तक ?”
“पूरे ड्राइव-वे पर । बाउंड्री वाल में बने आयरन गेट से लेकर कोठी के प्रवेशद्वार तक । आगे भीतर पक्का फर्श था या कार्पेट था इसलिए वहां निशान नहीं बन पाए थे ।”
“आयरन गेट बंद नहीं रहता ?”
“नहीं । उसमें कोई नुक्स है । वो झूलकर अपने आप खुल जाता है और अमूमन खुला ही रहता है । भीतर से ताला ही लगाया जाए वो अपनी जगह पर टिकता है । और ताला सुना है कि रात में ही लगाया जाता है ।”
“और तुम कहते हो कि निशान हमारी व्हील चेयर से बने थे ।”
“क्या ऐसा नहीं है ?”
“बात को समझो । वो निशान व्हील चेयर के थे, कबूल । लेकिन वो हमारी ही व्हील चेयर के थे, ये कैसे कह सकते हो ?”
“क्योंकि व्हील चेयर इस्तेमाल करने वाले इस केस से ताल्लुक रखते वाहिद शख्स आप हैं ।”
उसने अट्टहास किया ।
मैंने सकपकाकर उसकी तरफ देखा ।
“मिस्टर” वो पूर्ववत हंसता हुआ बोला, “जैसे हम टांगों से लाचार हैं, वैसे ही तुम हमें दिमाग से भी लाचार तो नहीं समझ रहे हो ?”
“मैं कुछ समझा नहीं ।”
“फर्ज करो हम वहां गए । अपनी हैंडीकैपड पर्सन वाली होंडा अकार्ड खुद चलाते हुए हम वहां गए । अब वहां आयरन गेट या बंद रहा होगा या खुला रहा होगा । बंद वो तभी रह सकता है जबकि उसे ताला लगा होगा । ओ के ?”
“यस सर ।”
“अपनी आमद की तरफ उसकी तवज्जो दिलाने के लिए हम क्या करेंगे ?”
“आप घंटी बजाएंगें ।”
“वहां आयरन गेट पर घंटी भी है ?”
“जी हां । वहां भी और भीतर भी ।”
“हमें नहीं मालूम था । हम तो कार के हार्न की बाबत सोच रहे थे । बहरहाल चाहे होर्न बजा हो, चाहे घंटी बजी हो, वो कोठी से निकलकर आयरन गेट तक जरूर आएगा ।”
“जाहिर है । फाटक खुलेगा तो आप भीतर दाखिल होंगें ।”
“वो ही आएगा । क्योंकि अखबार में भी छपा है कि वो उस वक्त घर में अकेला था ।”
“जी हां ।”
“तो फिर हमने उसे आयरन गेट पर ही गोली क्यों नहीं मार दी ?”
“सड़क पर आवाजाही होगी ।”
“पागल हुए हो ! हम क्या मैटकाफ रोड को जानते नहीं । इस मौसम में उधर अंधेरा होने के बाद वहां सड़क पर बंदा नहीं दिखाई देता ।”
मैं खामोश रहा ।
“वैसे हमारे पास आवाजाही का भी जवाब है । वहां ऐसा कोई माहौल होता तो चलने-फिरने से लाचार होने की दुहाई देकर हम शशिकांत को कार में अपने साथ बिठाते, उसे कार में ही शूट करते और रात में किसी सुनसान जगह पर लाश को धकेल कर घर आ जाते । अब बोलो, मिस्टर डिटेक्टिव ?”
“गेट खुला होगा ।”
“उस सूरत में हम कार बाहर छोडकर अपनी कुर्सी लुढ़काते हुए अंदर तक क्यों जाते, व्हील चेयर पर लुढकते फिरने का क्या हमें शौक है? तब कार को ही कोठी के भीतर ऐन प्रवेश द्वार तक ले जाना आसान काम न होता ?”
“होता ।” मैंने कबूल किया ।
“और फिर सौ बातों की एक बात । फोन पर हम कह नहीं सकते थे कि हम अपाहिज थे, आ जा नहीं सकते थे, इसलिए मुलाकात के लिए वो आए ।”
“मुलाकात के लिए उसे यहां आने को कहा जा रुकता था लेकिन कत्ल के लिए तो जाना पड़ता है न, सर !”
“बाईस कैलिबर की खिलौना रिवॉल्वर साथ ले के, कुल जहान के फायर आर्म हमारे यहां उपलब्ध हैं । शूटिंग हमारी हॉबी है और कत्ल के लिए हम चुनते हैं एक मामूली, नाकाबिलेएतबार, जनाना हथियार । और उससे भी अपने मकसद में कामयाब होने के लिए हमें छः गोलियां चलानी पड़ी तो लानत है हमारी मार्क्समैनशिप पर ।”
“मैं आपसे सहमत हूं सर, लेकिन ये हकीकत फिर भी अपनी जगह पर कायम है कि मौकाएवारदात पर व्हील चेयर के पहियों के निशान थे ।”
“वो जरूर किसी ने हमें फसाने के लिए बनाए थे ।”
“किसने ?”
“जिस किसी ने भी हमारा और शशिकांत का टेलीफोन पर हुआ वार्तालाप सुना होगा । मसलन तम्हारे उस गवाह ने जिसने तुम्हें बताया है कि हमने फोन पर कहा था कि अगर हमें शशिकांत के घर जाना पड़ा तो हम उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगे । तुम्हारा वो गवाह क्या कोई औरत है ?”
“है तो औरत ही ।”
“तो फिर ये जरूर उसी की करतूत है । उसी ने घटनास्थल पर व्हील चेयर के निशान बनाकर हमें फंसाने की कोशिश की है । उसी ने ये स्थापित करने की कोशिश की है कि हम सच में ही शशिकांत को गोली मार देने के लिए उसकी कोठी पर पहुंच गए थे ।”
“आई सी ।”
“हमें वैसे भी पुलिस की इस थ्योरी पर एतबार है कि ये काम किसी औरत का है जिसने कि रिवॉल्वर का रुख मरने वाले की और किया और आखें बंद करके उसका घोड़ा खींचना शुरू कर दिया ।”
“यूं खौफ खाकर रिवॉल्वर चलाने वाली औरत से आप उम्मीद करते हैं कि कत्ल के बाद भी घटनास्थल पर व्हील चेयर के पहियों के निशान प्लांट करने के लिए ठहरी होगी वो । वो क्या गोलियां खत्म होते ही रिवॉल्वर फेंककर भाग न खड़ी हुई होगी ?”
“अब हम क्या कहें, भई ! डिटेक्टिव तुम हो, हम तो नहीं ।”
“आप को मालूम है कि कत्ल के संभावित वक्त पर मिसेज माथुर घर पर नहीं थी ?”
वो कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“कैसे मालूम हुआ ? पुनीत खेतान के बयान के बाद पुलिस के मिसेज माथुर से पूछताछ करने आने से ?”
“नहीं । हमें तो परसों से मालूम था । तभी मालूम था जबकि वो कोठी से गई थी ।”
“तब आप जाग रहे थे ?”
“हां ।”
“आपने मिसेज माथुर का दिया सिडेटिव नहीं खाया था ?”
“खाया था । फिर भी जाग रहे थे । हमारे दिमाग पर फिक्र का बोझ हो तो सिडेटिव हमारे पर असर नहीं करता । परसों उस आदमी की फोन कॉल ने हम बहुत डिस्टर्ब किया था । सिडेटिव खाने के बावजूद हमें नींद नहीं आई थी ।”
“या शायद आपने सिडेटिव खाया ही नहीं था ।” मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला, “इसलिए क्योंकि मिसेज माथुर के लिए आई फोन कॉल के बाद ही वो आपको सिडेटिव देने पहुंच गई थीं ।”
उसने उत्तर न दिया । वो परे देखने लगा ।
“खैर छोड़िये ।” मैं बोला, “तो परसों रात आपने मिसेज माथुर को यहां से निकलकर चुपचाप कहीं जाते देखा था ?”
“हां ।”
“लौटते भी देखा था ?”
“हां ।”
“आपने पूछा था कि वो कहां गई थी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वो मेरी उम्मीद से बहुत जल्दी लौट आई थी । किसी फाश इरादे से वो घर से निकली होती तो इतनी जल्दी न लौटी होती ।”
“फौरन न सही, बाद में भी कुछ नहीं पूछा था आपने इस बाबत ? शक की बिना पर नहीं तो उत्सुकतावश ही सही ।”
“बाद में भी नहीं पूछा था ।” वो धीरे से बोला ।
“आपके कहने के ढंग से लगता है कि बाद में भी न पूछने की कोई जुदा वजह थी ।”
“हां । वजह तो जुदा ही थी ।”
“क्या ?”
“अब क्या बताऊं ?”
“मैं बताता हूं । तब तक आपको शशिकांत के कत्ल की खबर लग चुकी थी और उस बाबत जो बातें मालूम हुई थीं, उन्होंने आपको ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि शायद मिसेज माथुर ने ही कत्ल किया था । देखिए न, रिवॉल्वर उन्हें आसानी से उपलब्ध । ऐन कत्ल के वक्त वो मौकाएवारदात पर उपलब्ध । हालात का इशारा कातिल किसी औरत के होने की तरफ । आपने ऐसा सोचा हो तो क्या बड़ी बात थी ?”
“यही बात थी । हमने इसीलिए सुधा से कोई सवाल नहीं किया था । इसीलिए हमने उस पर ये भी जाहिर नहीं होने दिया था कि हमें मालूम था कि वह परसों शाम को चुपचाप घर से निकली थीं ।”
“मिसेज माथुर के पास कत्ल का क्या उद्देश्य रहा होगा ?”
“शायद पिंकी की खातिर उसने ऐसा किया हो ।”
“कमाल है, सर ! एक तरफ आप बीवी के कैरेक्टर पर शक करते हैं और दूसरी तरफ आप उसके कैरेक्टर को इतना ऊंचा उठा रहे हैं कि समझते हैं कि वो आपकी औलाद की खातिर, जो कि उसकी कुछ भी नहीं लगती, अपनी जान जोखिम में डालकर किसी का कत्ल कर सकती है । एक ही औरत बीवी के रोल में तो हर्राफा और सौतेली मां के रोल में सती सावित्री !”
वो खामोश रहा । एकाएक वो कुछ विचलित दिखाई देने लगा ।
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