RE: Desi Chudai Kahani मकसद
वो खामोश रहा । एकाएक वो कुछ विचलित दिखाई देने लगा ।
“ये तो आप मानते हैं न कि जिस किसी ने भी कत्ल किया होगा, मौकाएवारदात पर व्हील चेयर के पहिये के निशान भी उसी ने बनाए होंगे ?”
“और कौन बनाएगा ?”
“एग्जेक्टली । अब आप ये बताइये कि ऐसा क्योंकर मुमकिन है कि कोई औरत बेटी को बचाने के लिए कत्ल करे और उसी कत्ल में बाप को फंसाने का सामान कर दे ?”
“हो तो नहीं सकता ऐसा ।
“कबूल करते हैं फिर भी बीवी पर कातिल होने का शक करते हैं ।”
वो खामोश रहा । उसने बेचैनी से व्हील चेयर पर पहलू बदला ।
“मुझे लगता है कि आपको तो खुशी होगी कि अगर आपकी बेटी किसी स्कैंडल का शिकार होने से बच जाए और आपकी बीवी कत्ल के इलजाम में पकड़ी जाए, बीवी का क्या है, वो तो और आ जाती है । लेकिन औलाद और वो भी पली-पलाई ......”
“ओह, शटअप ।” वो चिढकर बोला “अब इतने भी कमीने नहीं हैं हम ।”
“जरूर नहीं होंगे । दरअसल मैं इतना ही कमीना हूं । कमीने आदमी को कमीनी बात जरा जल्दी सूझती है न ।”
“मिस्टर कोहली, तुम हमारी समझ से बाहर हो ।”
“सर, आप जरा शशिकांत वाली टेलीफोन कॉल को फिर अपनी तवज्जो में लाइए । हर टेलीफोन कॉल के दो सिरे होते हैं । शशिकान्त वाले सिरे की बाबत मैंने आपको बताया । अब अपने सिरे की बाबत आप मुझे बताइए ।”
“क्या बताऊं ?”
“उस फोन कॉल के दौरान आपके करीब कौन था ?”
“कई जने थे । सुधा थी, जिसने कि फोन मुझे दिया ही था । नायर था जो कि होता ही है यहां । खेतान था । मनोज भी था शायद । हां, था ।”
“इन सबको मालूम था कि आप शशिकांत से बात कर रहे थे और इन सब ने आपको फोन पर ये कहते सुना था कि अगर आपको शशिकांत के घर जाना पड़ा तो आप उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगें ?”
“हां ।”
“मिसेज माथुर और मनोज शाम चार बजे घर होते हैं ?”
“मनोज नहीं होता । वो तो इत्तफाक से ही उस रोज, उस वक्त घर था । सुधा का कोई नियमित कार्यक्रम नहीं होता । कई बार तो वो ऑफिस जाती ही नहीं । जाती है तो जल्दी लौट आती है । दरअसल इंटीरियर डेकोरेटर का कारोबार उसका कैरियर नहीं, हॉबी है । वक्त गुजारी का शगल है ।”
“आई अंडरस्टैंड । और खेतान साहब उस रोज....”
मैं बोलता-बोलता रुक गया ।
मेरी निगाह पुनीत खेतान पर पड़ी जो कि उधर ही चला आ रहा था ।
वो करीब पहुंचा । उसने माथुर का अभिवादन किया और मेरे से हाथ मिलाया ।
“बड़े बेमुरब्बत हो, यार ।” वो शिकायतभरे स्वर में बोला, “कल चुपचाप ही खिसक आए ।”
“सॉरी ।” मैं खेदपूर्ण स्वर में बोला ।
“मैं तो इंतजार करता रहा । घर चले गए थे या मैडम ने रोक लिया था ?”
“घर चला गया था ।”
“केस की क्या प्रोग्रेस है ?”
“अभी तफ्तीश जारी है ।”
“सर” वो माथुर से सम्बोधित हुआ, “डिटेक्टिव आपने स्मार्ट चुना है ।”
माथुर ने मुस्कराते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“मुजरिम की खैर नहीं ।” खेतान बोला ।
“मुजरिम की खैर तो कभी भी नहीं होती ।” मैं बोला ।
“मेरा मतलब है तुम्हारे सदके मुजरिम की खैर नहीं ।”
“वो भी कभी नहीं होती ।”
खेतान हंसा ।
“आदमी दिलचस्प हो ।”
“पुलिस से आपकी बात हुई ?”
“हां । तुम्हारे सामने ही तो मैं गया था मैटकाफ रोड शक्ति नगर से ।”
“मेरा मतलब है उसके बाद ?”
“उसके बाद और तो कोई बात नहीं हुई ।”
“आई सी ।”
“सर !” वो माथुर से सम्बोधित हुआ, “यहां भी तो आए थे वो ?”
“हां ।” माथुर बोला, “एक यादव करके इंस्पेक्टर आया था । बहुत कान खा के गया । पिंकी और मनोज से भी बात करना चाहता था लेकिन वो कल घर पर नहीं थे । आज फिर आने को कह कर गया था । अभी तक तो आया नहीं ।”
“वक्त ही खराब करेगा अपना ।”
“उसकी ड्यूटी है । उसे बजाने दो ।”
“आज शूटिंग कैसी चली, सर ?”
“वैसी ही जैसी हमेशा चलती है । नथिंग अनयूजल ।”
“मैं ट्राई करूं जरा ?”
“हां, हां । क्यों नहीं ।”
खेतान ने मुझे आंख मारी और रायफल उठा ली ।
अगले पांच मिनट में उसने टारगेट पर दस फायर किए जिसमें से चार, एन सेंटर में लगे, पाच सेंटर से अगले दायरे में लगे और सिर्फ एक टारगेट के बिल्कुल बाहरले दायरे में लगा ।
“आप ट्राई कीजिए सर ।” फिर वह माथुर से बोला ।
“मिस्टर डिटेक्टिव को दो ।” माथुर बोला ।
“ओह, नो, सर ।” मैंने तत्काल प्रतिवाद किया, “मैंने कभी रायफल नहीं चलाई, सर ।”
“कोई बात नहीं । अब चला लो ।”
“सर, सुना है अनाड़ी पहली वार रायफल चलाए तो रिकायल से कंधा तोड़ बैठता है ।”
दोनों ने बड़ा फरमायशी अट्टहास किया ।
“किससे सुना है ?” खेतान बोला ।
“ये तो ध्यान नहीं लेकिन बात तो सच है न ?”
“भई, बट का धक्का तो लगता है लेकिन यूं किसी का कंधा टूट गया हो, ये तो तुम्हारे से ही सुन रहे हैं ।”
मैं हंसा ।
खेतान ने रायफल माथुर को दी ।
माथुर ने भी दस फायर टारगेट पर किए ।
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