RE: Desi Chudai Kahani मकसद
उसकी तीन गोलियां तो टारगेट से टकराई ही नहीं, पांच बाहरले रिंग में लगीं और दो उससे अगले रिंग में ।
“आज आपका मूड नहीं मालूम होता, सर ।” खेतान बड़े अदब से बोला ।
“ऐसा ही है कुछ ।”
“रिवॉल्वर ट्राई करें सर ?”
माथुर ने सहमति में सिर हिलाया और मेज पर से एक रिवॉल्वर उठाकर उसमें गोलियां भरने लगा । मैंने नोट किया कि वो जर्मन मोजर रिवॉल्वर थी जो कि दस फायर करती थी ।
“मैं मूविंग टारगेट चालू करता हूं । खेतान बोला और एक तरफ बढा ।
उधर एक ऊंची दीवार थी जिसके दाएं-बाएं एक-दूसरे से कोई बीस फुट के फासले पर दो केबिन थे और उनके बीच में एक कोई चार फुट ऊंचा संकरा-सा प्लेटफार्म था । उस प्लेटफार्म पर कन्वेयर बैल्ट चलती थी जिस पर कि एक-एक फुट के फासले पर चीनी मिट्टी की बनी बत्तखें लगी हुई थीं । खेतान ने बाएं केबिन में जाकर एक स्विच आन किया तो कनवेयर बैल्ट तत्काल बाएं से दाएं चलने लगी और यूं उन पर लगी मिट्टी की बत्तखें भी भी बाएं से दाएं गुजरती दिखाई देने लगीं ।
माथुर अपनी व्हील चेयर उस मूविंग टारगेट से तीस फुट की दूरी पर ले आया ।
खेतान ने दूसरी रिवॉल्वर उठा ली, उसमें गोलियां भरी और माथुर के करीब पहुंचा ।
मैं भी उत्सुकतावश उनके पास जा खड़ा हुआ ।
“सर, पहले आप ।” खेतान खास मुसाहिबी वाले स्वर में बोला ।
माथुर ने सहमति में सिर हिलाया ।
उसने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ मूविंग टारगेट की तरफ किया और एक के बाद एक दस फायर किए ।
केवल तीन बत्तखें उड़ीं ।
फिर वही क्रिया अपने हाथ में थमी रिवॉल्वर से खेतान ने दोहराई ।
उससे केवल दो फायर मिस हुए, आठ गोलियां बत्तखों से टकराई ।
“वंडरफुल ।” माथुर बोला ।
“थैंक्यू सर ।” खेतान सिर नवाकर बड़े अदब से बोला ।
“मैं” एकाएक मैं बोला, “इजाजत चाहूंगा ।”
“मिस्टर कोहली !” माथुर बोला, “एक बार तुम भी रिवॉल्वर चलाओ ।”
“सर...”
“फिक्र मत करो । इससे कंधा नहीं टूटता ।”
खेतान हंसा ।
“कभी रिवॉल्वर भी नहीं चलाई ?” वो बोला ।
“चलाई है । लेकिन मजबूरन ।”
“अच्छे डिटेक्टिव हो !”
“वो तो मैं हूं ही मैं । तभी तो यहां मौजूद हूं ।”
“मेरा मतलब है रिवॉल्वर चलानी तो एक डिटेक्टिव को आनी चाहिए, यार ।”
“खेतान साहब, मैं दिमाग से लड़ता हूं, हथियार से नहीं ।”
“वो ठीक है । लेकिन फिर भी आज एक बार यहां रिवॉल्वर से टारगेट प्रैक्टिस करो । माथुर साहब की ख्वाहिश है । वाट डू यु से, सर ।”
“हां । जरूर ।” माथुर बोला, “ये पकड़ो ।”
उसने जबरन अपनी भरी हुई रिवॉल्वर मुझे थमा दी ।
मैंने उन महारथियों के ही अंदाज से अपनी बांह मूविंग टारगेट की ओर तानी और और ताक ताक दस फायर किए ।
“वंडरफुल !” खेतान बोला “परफेक्ट स्कोर ।”
“क्या ?”
“दस फायर । दस मिस ।”
“घिस रहे हो, यार ।” मैं झुंझलाकर बोला, “खिल्ली उड़ा रहे हो । मैंने कहा तो है कि मुझे फायर आर्म्स का कोई तजुर्बा नहीं ।”
“नहीं है तो हो जाएगा । लो, एक बार फिर ट्राई करो ।”
उसने माथुर वाली रिवॉल्वर मेरे हाथ से ले ली और भरी हुई रिवॉल्वर जबरन मेरे हाथ में थमा दी ।
“लेकिन ......”
“सब्र करो मैं टार्गेट बढाता हूं ।”
वो लपककर फिर बाएं केबिन के करीव पहुंचा । इस बार उसने बिजली के दो तीन स्विच ऑन किए ।
तत्काल पहली कनवेयर बैल्ट के पीछे लेकिन उससे कोई दो ढाई फुट की ऊंचाई पर एक और कनवेयर बैल्ट उभरी । उस पर भी बत्तख लगी थीं लेकिन उनकी रंगत काली थी ।
प्लेटफार्म के नीचे से बीसेक डंडे से प्रकट हुए जिन पर कि चीनी मिट्टी के छोटे-छोटे कबूतर टंगे हुए थे । वो डंडे भी प्लेटफार्म की ओट में से किसी कनवेयर बैल्ट से ही जुड़े हुए थे जोकि जरूर ऊंचे-नीचे फिट किए गए रोलरों से गुजर रही थी जिसकी वजह से कबूतर विपरीत दिशा में चलती बत्तखों की कतारों के बीच में ऊपर नीचे फुदकते मालूम हो रहे थे ।
वो वापस लौटा ।
“अब तो टार्गेट तीन गुणा हो गए हैं ।” वो बोला ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और उधर रिवॉल्वर तानी । अब मेरे सामने तीन तरह के टार्गेट थे । एक, बाएं से दाएं चलती सफेद बत्तखें । दो, दाएं से बाएं चलती काली बत्तखें । और तीन, उनके बीच में नीचे ऊपर फुदकते सफेद कबूतर ।
मैं फायरिंग शुरू करने ही वाला था कि ठिठक गया । मेरा रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे झुका ।
“क्या हुआ ?” खेतान बोला ।
“कुछ नहीं ।” मैं बोला । मैंने हाथ फिर सीधा किया और आखें मीचकर आनन-फानन सारे फायर सामने झोंक दिए । मैंने आंखें खोलीं ।
नतीजा फिर वो ही निकला था । सारी गोलियां पीछे दीवार से टकराई थीं । एक भी गोली निशाने पर नहीं लगी थी । लेकिन इस बार मैं मायूस होने की जगह खुश था । इस बार मुझे अपने जीरो स्कोर का जीरो अफसोस था । मुझे ये जो सूझ गया था कि हत्यारा कौन था ।
मैंने रिवॉल्वर टेबल पर रख दी और बोला, “मैं अब इजाजत चाहता हूं । मुझे एक बहुत जरूरी काम याद आ गया है । मैं फिर हाजिर होउंगा ।”
मेरे बदले तेवरों को दोनों ने नोट किया ।
उनका अभिवादन करके मैंने वापसी के लिए कदम बढाया ही था कि माथुर बोल पड़ा, “अपना चैक तो लेते जाओ ।”
“अब इसकी जरूरत नहीं ।” मैं बोला ।
“क्या मतलब ?” माथुर सकपकाया ।
“अब मैं पूरी फीस का चैक लेने आऊंगा ।”
“कब ?”
“बहुत जल्द । शायद आज ही ।”
लम्बे डग भरता हुआ मैं वहां से रुखसत हो गया
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