RE: Desi Chudai Kahani मकसद
Chapter 6
मैं मंदिर मार्ग पहुंचा ।
शुक्र था खुदा का कि सुजाता मेहरा अपने कमरे में थी । मुझे वो शीशे के आगे खड़ी बाल संवारती दिखाई दी ।
“मैं बस जा ही रही थी ।” वो बोली ।
“दिखाई दे रहा है । शुक्र है चली नहीं गई ।”
“कैसे आए ?”
“तुम्हारी बरसाती मांगने आया हूं ।”
“क्या ?”
“तुम्हारी वार्डरोब में एक बरसाती टंगी हुई है । वो शाम तक के लिए मुझे चाहिए ।”
“तुम्हें क्या पता वहां बरसाती टंगी है ?” वो हैरानी से बोली ।
“कल जब आया था तो देखी थी ।”
“तब वार्डरोब तो बंद थी ।”
“थोड़ी सी खुली थी । भीतर नजर पड़ गई थी मेरी ।”
“लेकिन.....”
“अब छोड़ो भी !” मैं झुंझलाया “क्यों हुज्जत कर रही हो जरा-सी चीज पर ?”
“लेकिन बिन बारिश के मौसम में जनाना बरसाती का तुम करोगे क्या ?”
“उबाल के खाऊंगा । हद है तुम्हारी भी । कल तो पता नहीं क्या कुछ देने को तैयार थीं, आज बरसाती नहीं दे सकती । ऐसा ही है तो कीमत ले लो ।”
“तुम तो जलील कर रहे हो मुझे ।”
“क्यों होती हो ? बरसाती निकाल के मेरे मत्थे मारो और दफा करो मुझे ।”
“ठीक है ।” वो पांव पटकती वार्डरोब की ओर बढती हुई बोली, “यही करती हूं ।”
उसने वार्डरोब से बरसाती निकाली और मेरे ऊपर फेंक के मारी ।
उसे गुस्सा दिलाने के पीछे मेरा जो मकसद था वो पूरा हो गया था । वो सीधे-सीधे वहां से बरसाती निकालती तो हो सकता था उसे सौंपने से पहले उसकी जेब टटोलकर देखती जो कि उस घड़ी वांछित न होता ।
“शुक्रिया ।” बरसाती लपकता हुआ मैं बोला, “बहुत जल्दी लौटा जाऊंगा ।”
“जरूरत नहीं ।” वो भुनभुनाई, “अब उबाल के ही खाना ।”
“मैं शाम को ही.....”
“अब जा भी चुको ।”
मैं पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
अरने भैंसे की तरह बिफरा हुआ और ड्रम की तरह लुढकता हुआ लेखराज मदान मुझे हैडक्वार्टर की सीढ़ियों पर मिला । मुझे देखकर वो ठिठका ।
“क्या हुआ ?” उसका रौद्र रूप देखकर मैं हैरानी से बोला ।
“एन्ना दी मां दी !” कहर बरपाती आवाज में वो बोला ।
“अरे, क्या हुआ ?”
“मेरी बीवी को पकड़ के ले आए । चिट्ठी देने के बहाने उस कुत्ती दे पुत्तर इंस्पेक्टर ने मुझे यहां अटकाए रखा और होटल जा के मेरी बीवी को गिरफ्तार कर लिया ।”
“क्यों ?”
“कत्ल के जुर्म में ।”
“क्या !”
“हां ।”
“उनकी तवज्जो कैसे गई तुम्हारी बीवी की तरफ ?”
“कोई गुमनाम कॉल आई बता रहा था उस इंस्पेक्टर का मातहत एक हवलदार ।”
“वो वही कॉल होगी हमारे बैठे ही इंस्पेक्टर यादव के पास आई थी ।”
“मुझे भी यही शक है । उस कॉल के बाद से ही उसने मुझे एक घंटा यहीं अटकाए रखा था । फिर कह दिया था मैं ऐसे ही मोर्ग चला जाऊं, चिट्ठी की जरूरत नहीं थी । वहां गया था तो पता लगा कि मोर्ग का इंचार्ज खाना खाने चला गया था । ढाई बजे आएगा । दस्सो । सवा बारह बजे माईयवा लंच करने चला गया । मैं होटल वापस गया तो पता लगा कि मधु को पुलिस पकड़कर ले गई थी । दौड़ा-दौड़ा यहां आया तो पता चला वो माईयवा इंस्पेक्टर उसे मैटकाफ रोड ले गया है ।”
“वहां किसलिए ?”
“उसे तोड़ने के लिए । विलायत से जो सीख के आया है इंस्पेक्टरी । मुजरिम को मौकाएवारदात पर वापस ले जाया जाए तो उसके कस बल निकल जाते हैं । दुर फिट्टे मूं ।”
“तुम खामखाह भड़क रहे हो । अरे, उन्होंने वैसे ही उसे पूछताछ के लिए तलब किया होगा ।”
“अब क्या पता क्या किया है ! वो इंस्पेक्टर मिले तो पता लगे न ?”
“अब तुम कहां भागे जा रहे थे ?”
“मैटकाफ रोड ही जा रहा था । वहां जाके कहीं ये पता न लगे कि इंस्पेक्टर उसे तिहाड़ ले गया ।”
“ऐसा कहीं होता है ?”
“होता है । जब किस्मत ने बजाई हुई हो तो सब कुछ होता है । आजकल लेखराज मदान माईयवे के साथ तो खास तौर से सब कुछ होता है ।
“अरे, घबराओ नहीं । कुछ नहीं होता । चलो मैं भी चलता हूं मैटकाफ रोड । वो इंस्पेक्टर मेरा यार है । मेरे से कुछ नहीं छुपाएगा । अभी मालूम हो जाता है क्या किस्सा है ! चलो ।”
आगे-पीछे गाड़ी चलाते हम मैटकाफ रोड पहुंचे ।
शशिकांत की कोठी के सामने एक पुलिस की जीप खड़ी थी जिसकी ड्राइविंग सीट पर एक सिपाही बैठा था । उसने संदिग्ध भाव से हमारी तरफ देखा लेकिन जीप से बाहर न निकला ।
कोठी का आयरन गेट बदस्तूर पूरा खुला था ।
“तुम चलो, मैं आता हूं ।” मैं मदान से बोला ।
वो सहमति में सिर हिलाता भीतर दाखिल हो गया ।
मैंने बरसाती की जेब में से रुमाल समेत रिवॉल्वर निकाली जो और उसे अपने कोट की जेब में हाथ समेत डाल लिया ।
मैं भीतर दाखिल हुआ ।
ड्राइव-वे के मध्य में पहुंचकर मैं ठिठका मैंने सामने कोठी के प्रवेशद्बार की ओर देखा । द्वार बंद था । मैने पीछे देखा । पुलिस जीप में बैठा सिपाही मुझे वहां से दिखाई नहीं दे रहा था । मैंने हाथ जेब से निकाला और अपनी दाईं ओर लहराया । रिवॉल्वर रूमाल से निकल पेड़ों के पीछे झाडियों से पार कहीं जाकर गिरी । एक हल्की-सी धप्प की आवाज हुई लेकिन उसकी कोई प्रतिक्रिया मेरे सामने न आई ।
मैं संतुष्टिपूर्ण भाव से गरदन हिलाता आगे बढ़ा । रिवॉल्वर से मेरा पीछा छूट चुका था और अब उसके बरामद होने या न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था ।
हत्यारे को भी नहीं ।
मैं कोठी के भीतर पहुंचा । वहां मदान इंस्पेक्टर यादव के सामने खड़ा था और गरज-गरज के उसे पता नहीं क्या कुछ कह रहा था । प्रत्युत्तर में यादव की शक्ल पर ऐसे भाव थे जैसे उसे कुछ सुनाई तक नहीं दे रहा था । वो बड़े इत्मीनान से एक सोफे पर बैठी जार-जार रोती मधु की उंगलियों के निशान लेते अपने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को देख रहा था । उसके अलावा वहां दो और वर्दीधारी पुलिसिए मौजूद थे जो एक ओर चुपचाप खड़े थे ।
यादव ने मेरी तरफ निगाह उठाई ।
“वक्त जाया कर रहे हो ।” मैं बोला ।
“क्या ?” यादव बोला, “इसे चुप कराओ तो तुम्हारी सुनूं ।”
“मदान साहब ।” मैं बोला, “खामोश हो जाओ । प्लीज ।”
उसके कहर को ब्रेक लगी ।
'हां, तो” यादव बोला, “क्या कह रहे हो तुम ?”
“मैं कह रहा था वक्त जाया कर रहे हो ।” मैं बोला ।
“क्या मतलब ?”
“मदान की बीवी मुजरिम नहीं है ।”
“इसने कबूल किया है कि परसों रात ये यहां आई थी ।”
“जरूर किया होगा । एसे जद्दोजलाल वाले इंस्पेक्टर के सामने जुबान बंद रख पाना कोई मजाक है ।”
“बकवास मत करो ।”
“मैं साबित कर सकता हूं कि ये हत्यारी नहीं है ।”
“अच्छा !”
“मैं इसी के बयान के जरिए ये साबित कर सकता हूं कि असल में कातिल कौन है ।”
“तुम” यादव के नेत्र सिकुड़े, “जानते हो असल में कातिल कौन है ।”
“हां ।”
“ग्यारह बजे तुम मेरे पास आए थे । इस वक्त” उसने घड़ी देखी, “डेढ़ बजा है । ढाई घंटे में ऐसा कुछ हो गया है जिससे तुम कातिल को पहचान गए हो ?”
“हां ।”
“बताओ क्या जानते हो ?”
“अभी बताता हूं । पहले अपने आदमी को कहो कि मधु का पीछा छोड़े ।”
यादव ने इशारा किया । फिगरप्रिंट एक्सपर्ट तत्काल मधु के पास से हट गया ।
मैं मधु के करीब पहुंचा ।
“तुम बिल्कुल नहीं घबराओ ।” मैं आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला, “मैं यकीनी तौर से जानता हूं कि तुम बेगुनाह हो । अभी इंस्पैक्टर साहब भी जान जाएंगें और तुम्हें हलकान करने के लिए बाकायदा तुमसे माफी मांगेंगे ।”
यादव ने आंखें तरेर कर मेरी तरफ देखा ।
“तुमने इन्हें सब कुछ बता दिया ?” यादव की निगाह की परवाह किए बिना मैंने मधु से पूछा ।
“और क्या करती !” वो रुआसे स्वर में बोली, “इनकी घुड़कियां सुन-सुनकर मेरा तो हार्टफेल हुआ जा रहा था ।”
“पुलिस वालों की जुबान ही ऐसी होती है । रिवॉल्वर के बारे में भी बताया ?”
“बताना पड़ा ।”
“अपने इरादे के बारे में भी ?”
“हां ।”
“यानी कि जो कुछ मुझे बताया था वो सब यहां इंस्पेक्टर साहब के सामने दोहरा चुकी हो ?”
“हां ।”
“तुम्हें” मैंने यादव से पूछा, “इसके बयान पर एतबार है ?”
“हां ।” वो बोला, “इसलिए एतबार है क्योंकि झूठ बोलने के काबिल मैंने इसे छोड़ा ही नहीं था ।”
तत्काल मदान के चेहरे पर कहर बरपा । वो दांत पीसकर बोला, “ठहर जा, सालया ।”
मैं लपककर उसके सामने जा खड़ा हुआ ।
“मदान साहब” मैं सख्त लहजे में बोला, “अक्ल से काम लो । यूं भड़कोगे तो पछताओगे ।”
“लेकिन....”
“शटअप ।” मैं गला फाड़कर चिल्लाया ।
वो सकपकाकर चुप हो गया ।
“यूं चिल्ला-चिल्लाकर और आपे से बाहर होकर दिखाना है तो मैं चलता हूं ।”
“मैं चुप हूं ।”
“चुप ही रहना । समझे !”
उसका केवल सिर ही सहमति में हिला । तत्काल ही वो परे देखने लगा ।
“तो फिर....”
“मैं... मैं.... मैं अपने वकील को फोन करता हूं ।”
“जरूर करो । माथुर साहब के यहां मिलेगा वो ।”
वो तत्काल कोने में रखे फोन की ओर झपटा ।
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