RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मुझे क्या मालूम ?”
“क्यों नहीं मालूम ? बाकी हर बात मालूम है तो ये क्यों नहीं मालूम ?”
“बस, नहीं मालूम । जरुरी थोड़े ही है कि हर बात मुझे ही मालूम हो ? तुम इस बाबत माथुर से भी तो सवाल कर सकते हो ।”
“वो जरुर ही बताएगा मुझे कुछ ।”
“तुम्हारा भाई” यादव मदान से संबोधित हुआ, “मुल्क से कूच की तैयारी क्यों कर रहा था ?”
मदान परे देखने लगा ।
यादव ने एक गहरी सांस ली और बड़े असहाय भाव से गर्दन हिलाई । फिर वो खेतान के करीब पहुंचा ।
“तुम” वो बोला, “अपना जुर्म कबूल करते हो ?”
“कौन-सा जुर्म ?” खेतान बड़े दबंग स्वर में बोला, “कैसा जुर्म ? मैंने कोई जुर्म नहीं किया ।”
“तुमने शशिकांत का कत्ल किया है ?”
“बिलकुल झूठ । मैं उसे जीता-जागता, सही सलामत यहां छोडकर गया था । इस आदमी की” उसने खंजर की तरह एक उंगली मेरी तरफ भौंकी, “बकवास से आप मुझे खूनी साबित नहीं कर सकते । सिवाए बेहूदा थ्योरियों के और अटकलबाजियों के क्या है आपके पास मेरे खिलाफ ? कोई सबूत है ? है कोई सबूत ?”
“घड़ी पर” मैं धीरे-से बोला, “इसकी उंगलियों के निशान हो सकते हैं ।”
यादव को बात जंची । तत्काल उसने अपने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को तलब किया ।
एक्सपर्ट ने घड़ी को चैक किया ।
“घड़ी पर” वो बोला, “या बुत पर, कहीं भी उंगलियों के कैसे भी कोई निशान नहीं हैं ।”
“ओह ।” यादव बोला ।
“लेकिन इंस्पेक्टर साहब” मैं बोला, “ये भी तो अपने आप में भारी संदेहजनक बात है । इसके न सही, किसी के तो उंगलियों के निशान होने चाहिए बुत पर ।”
“शशिकांत के तो होने चाहिए” मदान बोला, “जो कि रोज इस घड़ी में चाबी भरता था ।”
“चाबी !” फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट बोला, “चाबी तो इस घड़ी में कोई लगी ही नहीं हुई ।”
“वो चाबी अलग से लगती है ।” मदान बोला, “एक लम्बी-सी चाबी है जिसके दोनों सिरों पर मुंह है । एक ओर का बड़ा मुंह घड़ी में चाबी भरने वाले लीवर को पकड़ता है और दूसरा एकदम छोटा मुंह वो लीवर पकड़ता है जिससे घड़ी की सुइयां आगे-पीछे सरकती हैं ।”
“कहां है चाबी ?”
“यहीं कहीं होगी ।”
दो मुंही चाबी घड़ी वाले बुत के पीछे से बरामद हुई ।
फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने उस पर से उंगलियों के निशान उठाए ।
चाबी पर पुनीत खेतान के बाएं हाथ के अंगूठे का स्पष्ट निशान मिला ।
यादव की बांछे खिल गई ।
पुनीत खेतान के तमाम कस बल निकल गए ।
“मैंने तुम्हारी काबलियत को कम करके आंका ।” पुनीत खेतान बोला ।
मैं उसके साथ ड्राईंगरूम में बैठा था । मुस्तैद पुलिसिए ड्राईंगरूम के बाहर के दरवाजे पर खड़े थे । यादव भीतर स्टडी में मदान और उसकी बीवी के साथ था । उसी ने बाकी लोगों को स्टडी से बाहर निकाला था ।
“मेरी काबलियत को” मैं बोला, “ठीक से आंकते तो क्या हो जाता ?”
“तो जो कुछ तुमने पुलिस को बताया, उसका ग्राहक मैं होता ।”
“ग्राहक ?” मेरी भंवे उठी ।
“हां ।”
“इतना बिकाऊ तो नहीं मैं !”
वो हंसा । प्रत्यक्षतः उसकी निगाह में मैं ‘इतना ही बिकाऊ’ था ।
“वैसे मानते हो” फिर वह संजीदगी से बोला, “कि निशाना कुछ है मेरा !”
मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा । कैसा आदमी था वो ! कदम फांसी के फंदे की ओर बढ़ रहे थे और वो अपनी निशानेबाजी की आइडेंटिटी का ख्वाहिशमंद था ।
“घड़ी की तरफ तवज्जो कैसे गई ?” वो बोला ।
“मधु के बयान की वजह से ।” मैं बोला, “मुझे यकीन था कि वो झूठ नहीं बोल रही थी । अब अगर मैंने उसके बयान पर एतबार करना था तो घड़ी की शहादत को झूठा और फर्जी करार देना मेरे लिए जरुरी था ।”
“हूं । और ?”
“और मेरे ज्ञानचक्षु माथुर साहब के शूटिंग रेंज पर खुले जहां कि मेरा हर निशाना खाली गया । तभी मुझे पहली बार महसूस हुआ कि ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम नहीं था । ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम हो ही नहीं सकता था ।”
“ओह ।”
“कैसी अजीब बात है कि एक अकेला, अनपढ़, नादान मदान ही था जिसने कि शूटिंग के मामले में कोई काबलियत की बात कही थी । उसने लाश और लाश के इर्द-गिर्द एक निगाह डालते ही कहा था कि वो किसी पक्के निशानेबाज का काम था ।”
“मदान ने कहा था ऐसा ?”
“हां । और दूसरी गौरतलब बात उसने ये कही थी कि किसी औरत की मजाल नहीं हो सकती थी शशिकांत पर गोलियां चलाने की । इन दोनों बातों की अहमियत को मैंने फौरन समझा होता तो परसों ही केस का तीया-पांचा एक हो जाता ।”
वो खामोश रहा ।
“अब एक बात तो बता दो ।” मैं बोला ।
“क्या ?”
“शशिकांत की मां कौशल्या के तुम्हें सौंपे कोई कागजात तुम्हारे पास हैं ?”
वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला, “देखो, कौशल्या का वकील मेरा बाप था । मेरे बाप के पास कौशल्या का सौंपा एक सीलबंद लिफाफा था जोकि मेरे बाप की मौत के बाद मुझे हस्तांतरित हो गया था । मुझे नहीं पता कि उस लिफाफे में क्या है लेकिन अब लगता है की उसमे जरुर वो ही कागजात हैं जिनको हासिल करने के लिए मदान मरा जा रहा है ।”
“उस लिफाफे का तुम क्या करोगे ?”
“तुम बताओ क्या करूं ?”
“उसे मदान को सौंप दो । उसका भला हो जाएगा ।”
“बदले में मेरा क्या भला होगा ?”
“तुम क्या भला चाहते हो ?”
“उसे कहो, मुझे छुड़वाए ।”
“पागल हो ! ऐसे कैसे छूट जाओगे ! खुद वकील हो, फिर भी ऐसी बाते कर रहे हो ।”
“पैसे से केस को हल्का किया जा सकता है । पैसे की बिना पर मेरी खलासी दो-चार साल की सजा से ही हो सकती है । संदेह लाभ पाकर छूट भी जाऊं तो कोई बड़ी बात नहीं । और सवाल उस सीलबंद लिफाफे का नहीं, शशिकांत की विरासत का भी है । वो लिफाफा शशिकांत की विरासत से, इंश्योरंस क्लेम से, हर क्लेम से मदान को बेदखल करा सकता है । वो मदान को जेल में मेरा नेक्स्ट डोर नेबर बना सकता है । तुम बिचौलिया बनकर इस बाबत मदान से मेरा कोई सौदा पटवा दो, लिफाफा मैं तुम्हें दे दूंगा ।”
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