RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-07)
“ठीक है समझ जाओ तुम्हारी नौकरी लग गयी और तुम फिक्र ना करो अबसे तुम यही रहोगी मेरे साथ”….पहले दिव्या संकोच करने लगी…फिर काला साय ने ऊस्की संकोच को थोड़ा और उसे समझाया की हूँ चाहे तो उसे कहीं किराए के घर में रखवा सकता है पर वो रही नहीं सकती थी इसलिए ऊसने हामी भर दी की…काला साय ने उसे बताया की हूँ चाहे तो कभी कभी गाँव भी जा सकती है
इतना कहकर ऊसने अपनी जेब से दिव्या को कुछ रुपया दिया…दिव्या ने पहले मना किया…लेकिन काला साया ने उसे समझाया की ये रुपया उसके बूढ़े मां के लिए हूँ ले ले ताकि जो तनख़्वाह ऊस्की मालकिन ने मर ली कम से कम इससे तो गुजारा कर सकती है..उसे खाने पीने की कोई प्राब्लम नहीं होगी यहां हूँ बीच बीच में गाँव भी जा सकती है
इतना सुख अगर किसी औरत को मिले..तो हूँ औरत अपने आप ऊसपे सबकुछ न्योछावर कर देती है…दिव्या काला साए के स्ाअए में रहने के लिए तैयार हो गयी…और दिल ही दिल में उसे दुआयं देने लगी…काला साया ने उसे सिर्फ़ इतना कहा की भूल से भी कभी भी हूँ उसके मुखहोते और ऊस्की जिंदगी के बार्िएन में ना पूछे बाकी हूँ हर तरह की बातें शेयर कर सकती है…उसे भी क्या प्राब्लम थी? एक छत्त दो वक्त की रोती और गुजारा करने के लिए उसे काफी रुपया मिला था हूँ चुपचाप बस हाँ में जवाब देती रही
और फिर बिना वक्त गुज़ारे काला साया ने उसे घर का दरवाजा लगाने की हिदायत दी और कोई भी चीज़ के लिए फोन करने को कहा…जरूरत पढ़ने पे हूँ आ जाएगा…इस रहस्मयी इंसान को जानना दिव्या के बस की बात नहीं थी ऊस एक रात ने ऊस्की जिंदगी को बदल दिया…काला साया फिर अपनी बाइक पर बैठे अंधेरे रास्तों से होकर गुजरते हुए चला गया…और एक गहरी सोच दिव्या के मन में छोढ़ता हुआ चला गया उसके भी मन में यही था की रहमसय मुकोते के पीछे हूँ कौनसा दयावान इंसान है जो मसीहा बनकर आता है…
लगभग पाँच दिन हो गये…और इन पाँच दीनों में दिव्या काला साया के शरण में रहते हुए काफी खुद को बदल चुकी थी…काला साया ने गुप्त रूप से गौरव से दिव्या को मिलवाया पता चला की गौरव गरीब विधवा और नाबालिक लड़कियों पे होते सोशण का करा विरोध करता आया है और काला साया की वो मदद भी करता है सिलाई बुनाई का उसे काम मिल गया और वो गौरव के ऑफिस दिन भर काम करके जल्दी से घर आकर बंद हो जा करती थी…दूसरी तरफ काला साया रोज़ रात को आ जा करता था और फिर भोर होने से पहले ही चला जाता था उसके इस रहस्मयी व्यवहार से दिव्या काफी हैरान थी पर उसके दिल में काला साया किसी फरिश्ते से और उससे भी ज्यादा अपने से कम नहीं था वो अब घर की साफ सफाई कर लेती और काला साया के लिए खाना भी बनकर रखने लगी एक तरह से वो काला साया की सेविका बन गयी
दूसरी ओर देवश का तरकपन फिर सर चढ़ने लगा और ऊसने मौका ना ज्यादा गावते हुए ठान लिया की वो अब औरत का जुगाड़ करके ही रहेगा…कंचन पे हाथ तॉहवो साफ नहीं कर सकता था पर दूसरी ओर रणदिपारा जाना भी बेकार ही था क्योंकि ऊसने कुछ महीने पहले ही शांता नाम की अपनी प्राइवेट रंडी के साथ जब सेक्स किया तो उत्सुकता में धदढ़ ऐसे चुदाई की ऊस्की चुत बुरी तरह चील गयी और शांता के नखरे वो और सहने वाला नहीं था वो उसे लंड चुत में तो डालने रत्तीभार भी नहीं देगी
इसी कशमकश में देवश खिजला गया और उसका व्यवहार चिड़चिड़ा होने लगा…शादी वो कर नहीं सकता था…और किसी के साथ ज़बरदस्ती करना मतलब काला साया को वो दावत देना वैसे भी दिल ही दिल में वो काला साया से बहुत दरर्ता था जबसे उसके किससे और उसके विक्टिम्स को देखा था की ऊँका क्या हश्र हुआ था
ऊस दिन मौसम काफी बिगड़ गया…और देवश अपनी गाड़ी को खूब रफ्तार से चलाए जा रहा था..अचानक बाज़ार से शहर के रास्ते में उसे एक औरत दिखी जो गान्ड मटकते हुए मटका लेकर जा रही थी उमर यही कोई 46 साल तो होगी बदन में काफी चर्वी था….देवश ने रफ्तार तेज कर दी और ठीक उनके करीब गाड़ी खड़ी की और उतरके उसे आवाज़ दी शकल जानी पहचानी लगी वो औरत भी एकटक देवश को देखते हुए उसके करीब आई
देवश बात छेड़ता ऊसने खुद ही टपक से बोला “तुम अंजुम के बेटे हो ना”….ये सुनते ही देवश एकदम से उसे घूर्रने लगा कहीं ये ऊस्की मां की सहेली अपर्णा तो नहीं थी…”अरे काकी मां आप?”…..बिना पैर छुए देवश तहेर ना पाया
अपर्णा : ओह मां तू तो काफी बड़ा हो गया मेरा बच्चा कैसा है? (ऊन्होने देवश के माथे को चूमा और उसके गाल पे हाथ रखकर उसके जवानी की तारीफ करनी लगी)
देवश : बस काकी मां आप सुनाए आपके बच्चे?
देवश जनता था अपर्णा मां के बुरे दीनों में ऊँक इकाफी मदद करती थी…ऊँका पड़ोस में घर था खास अमीर तो नहीं थी पर मां के पेंट में जब देवश था वही उनकी मसाज वगैरह करती आई थी और देवश के जन्म के बाद भी अपर्णा ही उसके पूरे बदन की मालिश किया करती थी…अपर्णा के दो बच्चे थे जो अब गुंडे और लफंगे बनकर कहीं शहर छोढ़के जा चुके थे…उनके पति की भी मृत्यु हो गयी थी अब वो अकेले पढ़ सी गयी और दोआबारा शहर में आ गयी देवश करीब 20 साल बाद अपर्णा को देख सकता था आखिरी बार जब वो पाँच साल का था तब अपर्णा ऊनसे अलग हुई थी
अपर्णा का बदन काफी भरा पूरा था किसी मल्लू आक्ट्रेस की शकीला को बिता लो और इसके उठा लो रंग रूप सब वैसा…”और बेटा बहुत दुख हुआ सुनकर तेरी मां के साथ?”…..देवश ने आगे कुछ कहने नहीं दिया
देवश : बस काकी मां अब रहने दो ऊन बातें लम्हो में सिर्फ़ दर्द है
अपर्णा : सच बेटा तुझे देखे अरसा हो गया तुझसे मिलने की बड़ी ख्वाहिश थी पर तुझे ऐसे हालत में मिलूंगी सोचा नहीं तू तो बड़ा ज़िम्मेदारर हो गया है
देवश : बस आपकी दुआ है
अपर्णा : तेरा घर कहाँ है? किसके साथ रहता है?
देवश : चलिए में घर
अपर्णा : बेटा वो तेरी बहन घर में अकेली है
देवश : मेरी बहन मतलब आपकी एक बेटी हो गयी कितनी बड़ी है?
अपर्णा : बस ऊस कमीने ने मुझे पेंट करके इस दुनिया से चला गया मुझे बेसहारा छोढ़के 18 साल की है शीतल नाम है उसका
देवश : मेरा सारा परिवार यहां है और उजहे पता नहीं काकी मां चलिए ना मैं अपनी शीतल को देखना चाहा हूँ
अपर्णा : हाँ बाबू तुझे ऐसे थोड़ी ना जाने दूँगी चल
देवश अपनी गाड़ी में अपर्णा को सवार किए पूरे रास्ते बात करते हुए दूसरी बस्ती में घुसा…ड्रोगा को देखकर पहले तो सब चौंक गये लेकिन किसने कुछ नहीं कहा जब अपर्णा ने सबसे देवश का परिचय कराया….देवश जनता था अगर कोई प्यार करने वाली इस दुनिया में औरत है तो वो है अपर्णा
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