RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-34)
देवश जनता था वॉ जल्द ही महसूस करेगा की आख़िर काला साया कौन है?…और वो पूरे वीरने खंडहर में बहुत की तरह इधर उधर टहलने लगता है…बीच बीच में टूटे कमरों में झाँकके देखता भी है सिर्फ़ टॉर्च की रोशनी…और कहीं सोए चमगढ़ हूँ हूँ करती उल्लुओ की आवाजें….बेटा अगर या मर दिए गये तो जीवन भर आत्मा बनकर ही तहलॉगे
देवश ने अच्छा ख़ासा खतरा अपने सर पे ले लिया था…अचानक उसे किसी कदमों की आवाज़ सुनाई देती है…वॉ फौरन उल्टे पाओ सीडियो के दीवारों के पीछे चुपके दरवाजे की ओर देखने लगता है…ऊस्की आंखें तहेर गयी वॉ एकदम गंभीर हो गया किसी भी पल वो अक्स उसके सामने आने वाला था….और अचानक वो सामने आया…देवश ने अपने पास रखकर बेसबॉल बात को काफी सक़ती से पकड़ लिया उसे एक ही वार में काला साया को सुला देना था…पर इतना आसान नहीं
वो जैसे जैसे ऊस अक्स के करीब जाने को हुआ एकदम से उसके माथे की शिखर गायब हो उठी…ये अक्स काला साया का नहीं किसी लड़की का था…
“दिवव्यया तूमम्म”…..वो कंबल लपटी लड़की ने जैसे ही अपना कंबल हटाया तो ऊस अक्स को पहचानने में…देवश को डायरी ना लगी वो वैसे ही बहुत की तरह खड़ा चुपचाप हाथों में बेसबॉल बात लिए खड़ा रहा
“हाँ मैं”…दिव्या के ऊन लवज़ो के बाद ही बदल गाराज़ उठा…बिजली की हल्की हल्की रोशनी पूरे खंडहर में फैल उठी…उसके चेहरे के गंभीरता भाव को देखते ही देवश का गला सुख गया मौके को हाथ में लेते हुए ऊसने एक बार चारों ओर देखा क्या पता शायद? काला साया पीछे से वार कर दे पर वहां कोई मज़ूद नहीं था सिवाय ऊन दोनों के
देवश : टीटी..तुम यहां क्या कर रही हो? (देवश ने फौरन उसके करीब आकर भारी लव्ज़ में कहा)
दिव्या : ये सवाल मुझे बोलने की जरूरत नहीं की मुझे किसने भेजा है? और ये भी नहीं कहूँगी की मैं यहां क्या कर रही हूँ?
देवश : देखो ज्यादा भोलेपन की ऐक्टिंग मत करो चुपचाप बता दो तुम्हारा काला साया किधर है वरना मुझे मज़बूरन तुम्हें गेरफ़्तार करना पड़ेगा काला साया को छुपाने के लिए
दिव्या : तो कर लो ना इंतजार किसका है? तुममें और ऊन बाकी लोगों में फर्क क्या जो गुनाहो को पनाह देकर इंसाफ को पकड़ते हो तुम्हारी ही जैसे लोगों के चलते काला साया पैदा होता है वरना आज इसकी नौबत ही नहीं आती
देवश : ओह चुत उप मिसेज़.पॉन एक प्यादा हो तुम ऊस्की और वो तुम्हें बखूबी उसे कर रहा है अब चुपचाप बताओ कहाँ है वॉ? ऊसने मुझे धमकिभरा खत भेजा आज ऊस्की लाश ले जाए बिना मैं चैन नहीं लूँगा
दिव्या : हां हां हां हां हां हां (दिव्या ऐसे हस्सने लगी जैसे कोई जोक सुना दिया हो उसे…साला आजतक जिसको भी धमकी दी वो साला पेशाब कर देता था पेंट में…और ये लड़की इसे तो लगता है मिर्गी की बीमारी चढ़ गयी हो)
देवश : चुपचाप बताऊं (देवश ने इस बार हॉकी को चोद पॉकेट से रिवाल्वर सीधे दिव्या के माथे पे लगा दी दिव्या की हँसी तो बंद हो गयी पर इस बार उसके आंखों में सख्त गंभीरता थी कहा जाने वाली नज़र ऐसा लग रहा था ये कोई आम लड़की नहीं कोई प्रेत आत्मा है वैसे देवश जी की फॅट तो रही थी लेकिन भाई हीरो है कहानी के डर कैसे जाते)
दिव्या : चलो मेरे साथ (पहले सवाल नहीं बताके देवश वैसे ही चिढ़ गया था और अब किसी मिस्टरी फिल्म की तरह दिव्या चलने लगी देवश ऊस गंभीर औरत के पीछे पीछे चलने लगा दिव्या उसे तिरछी निगाहों से देख रही थी मानो जैसे अभी ऊस्की गुण छीन लेगी और वही देवश को मर देगी)
देवश पूरा सतर्क था….मौका पाते ही कोई भी सामने आए चुत कर देने का…लेकिन वॉ धीरे धीरे बढ़ता गया खंडहर बिजली की गरगरहट से गूँज रहा था….पुरानी सी सीडी थी जो ऊपर जा रही थी…ऊपर के मेल पे पहुंचते ही..दिव्या ने देवश को अपने साथ एक कमरे के भीतर आने को कहा
देवश : इस अंधेरे कमरे में क्या है?
दिव्या : जिसकी तलाश में आए हो तुम?
देवश : क्या मतलब? देखो गोल गोल बातें मत घूमाओ अगर तुम्हारी ये प्लान है
दिव्या : देखो जिस काम के लिए आए हो उसी के लिए अंदर बुला रही हूँ
देवश : त..हीक हे चलो (देवश ने मन को सख्त किया और दिव्या के पीछे पीछे ऊस कमरे में घुसा)
देवश जैसे ही कमरे के अंदर आया..उसका बदन काँप गया…बेसबॉल बात जो हाथ में थी वो वही गिर पड़ी…बस दाएँ हाथ की रिवाल्वर कांपें जा रही थी हाथ के हिलने से….देवश चुपचाप दरवाजे के किनारे तेहरा हुआ था…दिव्या मुस्कराए देवश की ओर देखने लगी…और फिर ऊस बिस्तर की चादर को हटा दिया “ये रहा तुम्हारा काला साया”…..बिजली की गरगाहट तेज हो गयी
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