RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-37)
दिव्या : कैसे लोग है? अपने इज्जत के लिए किसी भी भायंट चढ़ा देते है ये भी नहीं समझते वो कोई मुजरिम तो था नहीं अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो क्या बिट्टी ? क्या जरूरत थी इतना बड़ा रिस्क लेने की
देवश : अगर मैं ऐसी ही गायब हो जाता तो हल्ला होने में डायरी नहीं लगती….पुलिसवाले तब भी मेरी टल्लश करते रहते और तुम नहीं जानती बढ़ता शक हुंपे ही आता है काला साया के मरने से काम बहुत हड़त्ाक आसान हो गया है
दिव्या : लेकिन ज़िल्ला वालो का क्या होगा? ऊँका जो विश्वास है की काला साया उनके लिए इंसाफ करेगा
देवश : अगर हर कोई काला साया की ही जरूरत अपना ले तो फिर इंसाफ की देवी अदलात और पुलिस का क्या रोल? हर इंसान को अपनी लरआई खुद लर्णि पार्टी है…जहाँ तक मेरा सवाल है मैं अपने असल अओदे पे उनकी जितनी हो सकता मदद करूँगा
दिव्या : काश ये सब कभी ना होता?
देवश : हाहाहा खैर जाने दो अरे यार कुछ खाने को दो मुझे भूख लगी है…
दिव्या : अच्छा अभी लाई
दिव्या किचन में चली गयी इतने में मेरा फोन बज उठा…कमिशनर का था…मैंने फोन उठाया तो पहले ऊन्होने मुझे बधाई दी और मेरी तारीफ की फिर उसके बाद मुझे कल कलकत्ता आने को बुलाआ पुलिस हेडक्वॉर्टर में..फिर फोन कट हो गया…अचानक फिर दूसरा कॉल आया इस बार अपर्णा काकी का था…फोन उठाते ही वो मुझपर बरस पड़ी
अपर्णा : बेटा कहांन हो तुम? ना कॉल किया ना कुछ घर से कहाँ चले गये तुम्हारे थाने गयी बोले साहेब तो घर चले गये यहां आई तो तालाल आगा देखा करीब कुछ दीनों से तुम कहाँ थे?
देवश : काकी मां आप तो जानती हो मेरी थोड़ी तबीयत ठीक नहीं थी थोड़ा बाहर आउट ऑफ स्टेशन निकाला हूँ कल तक आ जाऊंगा घर
अपर्णा : पता है मैं कितना डर गयी थी? तुम जबसे गये हो शीतल कितना तुम्हें याद करती है बोलती है भाई कब आएँगे बहुत मिलने का मन है (शीतल की इंतजार को मैं बखूबी समझता था आप मर्दों को एक बात कहूँगा यहाँ जब भी किसी की औरत की चुत मारोगे खासकरके अपनी लवर की तो वॉ बार्ब आर मिलने मिलाने की बात बहुत करेगी चस्का जो चढ़ जाता है )
देवश : अच्छा मेरी काकी मां मैं आ जाऊंगा आप फिक्र ना करे
अपर्णा : ठीक है बेटा ऐसे मत जा कर और जाए भी तो बोलकर जा पता है मैं कितना तुझे मिस कर रही हूँ
देवश : अरे मेरी रसगुल्ला मैं आता हूँ ना फिर मां बेटा जमकर प्यार करेंगे
अपर्णा : शैतान कहीं का चल जल्दी आना
कुछ देर तक अपर्णा काकी से बात की…अपर्णा काकी भी कम ठरकी नहीं हो गयी थी अभी से ही लंड लेने की इतनी उतालवली…उधर शीतल के बार्िएन में पूछा तो पता लगा की मेमसाहेब आजकल काफी खुश रहने लगी और मेरी दी हुई पएेल पहनकर खन्न् खन्न् की आवाज़ निकाले खेतों से गाँव जाती है…बस डर लगता था कहीं साला कोई लौंडा ना उसके पीछे पढ़ जाए…क्योंकि ऊसपे सिर्फ़ मेरा हक़ है और उसके होने वाले पति का खैर फोन कट करके देखा दिव्या खाने का प्लेट लाई मुस्करा रही थी
दिव्या : किससे बात कर रहे थे?
देवश : बस अपनी काकी मां से काला साया के जिंदगी में सिर्फ़ दिव्या थी लेकिन देवश के जिंदगी में अपर्णा काकी ऊस्की मां जैसी है और ऊस्की एक प्यारी जवान बहन शीतल
दिव्या : अच्छा ग तो अभी से हमारे से दिल भर गया आपका
देवश : अरे पगली वो तो मेरे अपने है
दिव्या : और मैं क्या गैर हूँ?
देवश ने फौरन दिव्या को अपने ओर खींच लिया दिव्या ने सक़ती से देवश के छाती उसे धकेलना चाहा पर देवश ने सक़ती से उसे थाम लिया “खाना ठंडा हो जाएगा”…..दिव्या ने शरमाते हुए कहा…..”पेंट पूजा बाद में पहले इस गरमा गरम माँस को खाना है मुझे”……..मैंने दिव्या के नाभी पे अपना मुँह लगा दिया…दिव्या कसमसाने लगी अब क्या खाना? पहले एक राउंड चुदाई तो करनी ही पड़ेगी
दिव्या के नाभी को मैंने बारे ज़ोर से जीभ से कुरेदना शुरू किया…और फिर उसके पूरे पेंट पे जबान फहीरयाई…दिव्या पूरी तरह कसमसाए जा रही थी…उसके ठीक बाद दिव्या को टाँग से उठाया और उसे लेटा दिया..इस बीच बड़ा ही क़ास्सके जख्म वाले जगह में दर्द उठा….मैंने दिव्या को नहीं बताया क्या पता बना बनाया मूंड़ खराब हो जाए
देवश ने दिव्या के जंपर और सलवार को उतार फ़ैक्हा….और उसके गान्ड की फहाँको में अपनी उंगलियां फहीराने लगा और दो उंगली ऊस्की गान्ड की छेद में डाल दी…अंगुल करते ही दिव्या कसमसा उठी और बिना पानी मछली की तरह बिस्तर पे छटपटाने लगी….देवश ने दिव्या की छेद में दो उंगली बारे ही ज़ोर किया…और उसके ब्रा के ऊपर से ही छातियो को दबा दिया
दिव्या कुछ देर तक मॉआंन करती रही…और फिर ऊसने झट से देवश को अपने ऊपर खींच लिया….देवश ने फौरन अपने खड़े लंड को निकाला और दिव्या की ब्रा भी उतार फैक्ी….दिव्या ने झुककर देवश का लंड मुँह में भर लिया…अब उसे धीरे धीरे देवश का लंड चूसने की आदत सी पढ़ चुकी थी..वो बारे ही प्यार से देवश के लंड को चुस्ती रही ऊसपे अपनी जबान फहीराती रही…उसके मुख मैथुन से ही देवश झड़ जाता लेकिन वो रुका नहीं ऊसने दिव्या के मुँह में ही सक़ती से लंड मुँह से अंदर बाहर किया…स्लूर्रप्प्प म्म्म्मम की आवाजें निकलते हुए दिव्या बारे ही चाव से लंड को चुस्ती रही
फिर देवश ने कुछ देर तक दिव्या को अपना लंड चुस्वता रहा..और फिर उसे गोद में उठाए बिस्तर पे लेटा दिया इस बार मुँह का धायर सारा थूक उसके योनि के छेद पे लगा दिया…और ऊस्की टाँगें अपने कंधे पे रख ली…टाँगें और चुत दोनों जैसे ही चौड़ी हुई…देवश ने लंड चुत के मुआने पे कसके टिकाया और एक करारा धक्का मारा…सस्स्सस्स आआआआआआः…दिव्या चीख उठी…फक्चाक्क से जैसे कोई जिस चीरने की आवाज़ आती है वैसे ही लंड दिव्या के चुत में धंस गया
उसी हालत में देवश दिव्या की चुत में लंड अंदर बाहर करता था…चुत ने घपप से लंड अपनी योनि में भर लिया और देवश भी दोनों पलंग पे मज़बूती से हाथ टिकाए धाधा धढ़ धक्के मारते रहा…चुत से फकच फकच की आवाज़ आने लगी…बीच बीच में दिव्या लरखरा जाती कारण देवश ऐसे तेजी से धक्के पेल रहा था की लंड चुत से बाहर निकालने को हो जाता फिर टाँग को कंधे पे सेट करके फिर करारा शॉट देवश उसके चुत पे मारने लगता
कुछ देर तक हालत ऐसे ही चलते रहे फिर देवश ने लंड को बाहर खींच लिया और ऊस्की योनि पे मुँह लगा दिया ऊपर भीनी झांतों से आती खुशबू ऊसपे रखी नाक अपनी और पूरा मुँह चुत के फहाँको में लगाए देवश खुद को सांत्वे आसमान पे महसूस कर रहा था….मर्द जितना भी टेन्शन में हो जब एक बार चुदाई कर लेता है तो ऊस्की सारी थकान और टेन्शन चली जाती है उसे सब अच्छा लगने लगता है….खैर देवश भी चुत पे ज़ाबान फहीराएज आ रहा था उसके गीली चुत से बहते रस को चत्टता रहा उसका स्वाद बेहद नमकीन था
देवश ने उठके फौरन कांपति दिव्या को अपने से लिपटा लिया ऊस्की एक टाँग उठाई उसके पीछे लेटा…टाँग को अपने टाँग पे चढ़ाया और हाथों में धायर सारा थूक गान्ड की छेद पे लगाया और फिर लंड को छेद के मुआने पे घिस्सने लगा..दिव्या सिहर उठी देवश का एक हाथ बारे ही ज़ोर से छातियो को मसल रहा था…दिव्या को भी तारक चढ़ चुकी थी….एक ही शॉट में लंड छेद में घुसेड़ दिया दिव्या चौंक उठी….ऊस्की गान्ड में कुछ गाड़ने लगा…देवश भी गांडम आइन बारे ही हल्के हल्के धक्के लगाने लगा…लंड गान्ड के भीतर घुसता और फिर बारे ही धीमे से बाहर निकल जाता फिर देवश को लंड छेद पे एडजस्ट करना परता
कुछ देर तक देवश ऐसे ही तरीके से दिव्या की गान्ड मारता रहा…ठप्प्प ठप्प करके धक्को की रफ्तार बढ़ी गान्ड से अंडकोष टकराए और शुरू हुआ आहों का सिलसिला…गान्ड के बजने से आवाज़ आने लगी….दिव्या बारे ही मीठी मीठी आहें भरने लगी….और देवश उसके गले पे होठों को घिस्सने लगा…और उसके कान को चबा जाता…दिव्या आंखें मुंडें देवश के छाती पे सर रखक्के जैसे बेहोश हो गयी..और देवश धक्के लगातार लगता रहा…कुछ देर में ही देवश के लंड में अकड़न होने लगी…और ऊसने झट से छेद से लंड को बाहर निकाला
और उसे दिव्या के गान्ड ऊपर ही झाधने लगा…देवश फारिग हो गया और अपना सारा रस दिव्या की गांदपे छोढ़के उसके दूसरी ओर निढल पढ़ गया….पसीने पसीने हो गया था देवश हांफते हुए कुछ देर तक लेटा रहा..फिर ऊसने झाब उठके देखा दिव्या सो चुकी थी..और ऊसने उठाकर गंदे कपड़े से दिव्या की फूली गान्ड के ऊपर लगे रस को साफ किया और फिर खुद भी बाथरूम जाकर नहाया धोया
फिर बाहर आकर खाने को गरम किया और फिर बिस्तर पे ही बैठकर नंगी दिव्या को देखते हुए खाने लगा….इसी तरह वो दिन भी ढाल गया….अब देवश ने अपने जिम्मेदारी को समझते हुए केस पे ध्यान देने लगा..अब ऊसमे ंवो ब्रष्ट वाली बात नहीं रही थी….क्राइम थोड़ा तरफ गया जाहिर था काला साया अब किसी को दिख नहीं रहा था…पर अब सब पुलिस पे ही डिपेंड थे
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