RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-47)
देवश : क्या अरे वाहह ये तो बहुत खुशी की बात है?
शीतल : भैया क्या बात कर रहे हो आप? जानते भी हो की मैं किसी को पसंद नहीं करती सिवाय आपके और मैं किसी से शादी नहीं करना चाहती
देवश : देखो शीतल तुम अभी पूरी तरीके से समझदार नहीं हुई हो…सील टूटने से पूरी तरह से औरत नहीं बनी हो जब तुम शादी कर लाओगी ज़िम्मेदारिया संभालॉगी तब तुम एक संपपोर्ना औरत बनोगी देखो मानता हूँ तुम मुझसे प्यार करती हो पर मैं तुम्हारा भैईई हूँ तुम्हारी मां की नजारे में तुम्हें पता है अगर तुम्हारी मां को पता चला की ऊन्ही का बेटा अपनी ही बहन के साथ सोता है तो ऊन्हें हेअरटत्टकक हो जाएगा तुम चाहती हो ऐसा? की ऊन्हें हमारे रीलेशन ?
शीतल : नहीं भैया पार मैं आपसे ही शादी करना चाहती थी
देवश : ये मुमकिन तो नहीं है ना अब तुम मेरी मुँह बोली बहन हो दुनिया की नजारे में पर हमारा प्यार दुनिया नहीं मानेगी समझा करो जो हो गया वो सिर्फ़ तुम्हारा मेरे प्रति प्यार और मेरा तुम्हारे प्रति प्यार था
शीतल : लेकिन भैया फिर भी आप समझाओ ना मां को की आप मुझसे शादी!
ये तो गले पढ़ने वाली बात हो गयी साला एक तो इतना टेन्शन सबको शादी की ही पड़ी है…किस किस से शादी करूं? दिव्या से? इससे? लेकिन गलती मेरी भी थी शीतल को बहन भी मना और उससे चुदा भी कर ली ये भी तो पाप ही था लेकिन अब जो हो गया सो हो गया अगर अपर्णा क्काई की पता लगा तो हमारे संबंध में बवाल खड़ा हो जाएगा…और मुझे ना अपरा काकी को खोना था ना शीतल को और ना ऊन्हें बदनामी के डर में फसाना था मैंने फौरन शीतल को खूब समझना शुरू किया…और उससे कहा की मैं उसे ऐसा संपूर्ण मर्द दूँगा जो वो पसंद कर लेंगी मुझसे भी अच्छा होगा और उसे खूब खुश रखेगा पर शीतल नहीं मानी…और ऊसने उदास होकर फोन कांट दिया
अब यहां मुझे अपर्णा काकी से बात करनी थी पर आज नहीं कल ही हो पाएगा?…पूरा दिन मैं सोचता रहा…फीरसे दिव्या का कॉल आया…दिव्या को भी समझा भुजाके कहा की काम में फ़सा हुआ हूँ…फिर शाम के ढलते ही मैं अपने वीरान ख़ुफ़िया घर पहुंचा….वहां का सारा काम निपटना शुरू किया
जल्द ही..कोई दीवार से तदपके आए..जैसे मैंने दरवाजा खोला सामने मुकोता पहनी रोज़ खड़ी थी..अफ आज उसके बदन से खुशबू आ रही थी ऊसने मुस्कुर्या उसे लाल होठों की लाली ने मेरे पूरे दिन के दुख को जैसे गायब कर डाला
देवश : अर्र..ए वाह तुम आ गयी आओ अंदर?
रोज़ : हम आती कैसे नहीं? जब एक दोस्त से हाथ मिलाया है
देवश : अच्छा ग तो हब मैं आपका दोस्त बन गया मुझे तो लगा मैं आपका
रोज़ : थोड़ी काम की बात बताओ कहाँ से शुरू करना है ? क्या सेट-उप किया?
मैंने रोज़ को मुस्कुराकर देखा और फौरन हॉल की लाइट्स ऑन की धढ़ धढ़ करके पूरे हॉल में उजाला छा गया चारों ओर काफी अच्छे से मैंने अपने ख़ुफ़िया एजेन्सी को बनाया था…एक तरफ पीसी जिसमें सारे क्रिमिनल्स देता ट्रेसिंग डिवाइस रोज़ के लिए हर बचाव का इंतेज़मत था ऊसमें लोकेशन जीपीयेस सिस्टम सबकुछ दूसरी ओर स्कॅनिंग डिवाइसस थे जिसमें फिंगरप्रिंट्स प्रिनटाउट्स दी इन ए डिवाइसस भी परे हुए थे इन सब चीज़ों को मैंने बारे ही मुस्किलो से खरीदा था…हालाकी काला साया में मुझे इन चीज़ों की जरूरत नहीं पड़ी पर मैं काफी बरेक़्क़ी से जाँच पढ़ताल करके किसी सूपरहीरो की तरह ही दिमाग चला रहा था
दूसरी ओर दो बाइक्स खड़ी थी…जिससे मॉडिफाइ करवाया था मैंने ये भी इल्लेगली तीसरी तरफ काला साया का सारा मेरा काप्रा मौज़ूद था साथ ही साथ रोज़ के मुखहोते और उसके कपड़े मज़ूउद थे..इतने इंतेज़मत को देखें के बाद रोज़ के मुँह से वाहह निकली
रोज़ : वेरयय वेल्ल्ल डन
देवश : थॅंक्स सोचा आजसे हम जब पार्ट्नर्स है तो काम शुरू किया जाए सारें इंतेज़ांत है (मैं रोज़ को सब चेज़ों के बारे में बताने लगा वो कंप्यूटर एक्सपर्ट थी ऊसने सारे रेकॉर्ड्स चेक करने हसुरू किए…हर डिवाइस को चेक किया एक प्रोफेशनल चोर थी वॉ और मैं नपोलिसेवला तेहरा इसलिए मेरी भी छानबीन और डेवीसेस्क ए आड़हर् में मैं भी प्रोफेशनल था)
रोज़ : जब तुम्हारे पास इतना इंतेज़मत है तो फिर तुम काला साया क्यों बन गये?
देवश : कुछ चीज़ें आईस होती है जो बताई नहीं जाती…पुलिस वालो के लिए मैं डेड ओर अलाइव वाला पर्सन बन गया था मैंने कई खून किए इसलिए उनकी नजारे में मर गया पर तुम अब मेरी पोज़िशन को सम्भालो तो बेहतर रहेगा
रोज़ : तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया है मैं कैसे भूल जाओ (कोमिससिओनेर वाली सायर बात उसे बता डाली वो बस चुप रही)
देवश : अच्छा तो फिर तुम तैयार हो
रोज़ : मुझे तैयार नहीं करोगे (ऊस्की आंखों में चमक सी थी मैंने मुस्कुराकर उसे जॅकेट दी ऊसने मेरे सामने ही अपनी हुक खोल के एक मोटा बुलेटप्रूफ जॅकेट के ऊपर लेदर जॅकेट पहना उसके क्लीवेज दिख रहे थे)
मैंने रोज़ के बदन पे हाथ रख रखकर उसे तैयार कर रहा था बीच बीच में ऊस्किसांसें मेरी साँसों से टकराए…बार बार रोज़ मेरी नजारे में झांटकी जब मैं उसे बेल्ट पहना रहा था क्योंकि मैं काला साया हूँ और उससे ज्यादा प्रोफेशनल…तैयार करने के बाद ऊसने अपने मुखहोते को ठीक करते हुए पास ही के टेबल पे अनगिनत वेपन्स में से नानचाकू के बजाय हॉकी का डंडा ले लिया….मैंने उसे ट्रेनिंग सेशन में पनचिंग बॅग्स और हेंड तो हेंड कंबेट्स के साथ साथ वर्काउट के लिए दुम्ब्ेल्लस और कुछेक्शेरसीसे एक्विपमेंट्स दिखाए…पर ऊसने मुझे आँख मरते हुए कहा की वो पहले से तैयार है
फिर ऊओसने बाइक स्टार्ट की और तीवर्ता से हॉल के ख़ुफ़िया दरवाजे से निकल गयी…मैं उसके लिए बेहद डर भी रहा था पर जनता था वो कौन सी काला साया से कम है?…मैंने फौरन हेडफोन लगाया और पीसी पे बैठकर उसी लोकेशन ट्रेस की…वो पूरे शहर का गश्त लगा रही थी बिना पुलिस के नजारे में आए
जैसे जैसे रात के साए में रोज़ निकलती…सन्नाटे को चीरती जुर्म पे ऊस्की दस्तक होती….अबतक तो टाउन के हिस्से लेकर पूरे डिस्ट्रिक्ट तक ये बात फैल चुकी थी…की हूबहू काला साया की तरह एक शॅक्स बाइक पे आता है हेलमेट और अंधेरे के वजह से उसके मुखहोते पहने चेहरे को देख नहीं पाता है…और फिर कहीं पे हो रहे अपराध पे रोक पे अपनी ही मोहर लगा देता है
सबकी नजारे में बस ऊस शॅक्स का नाम था….”रोज़”….वो अंधेरे साए में आती है…और गुंडे मवालीयो से अकेले ही भीढ़ जाती है उससे तरकने की तो दूर उससे भागने की भी ताक़त किसी के हाथों में नहीं होती…अपराधियों को मर के ऊन्हें पुलिस के आने से पहले उनके हाथों में सुपुर्द करके निकल जाती है और साथ ही साथ अपने हर दुश्मन के पॉकेट में एक लाल गुलाब चोद देती है
रोज़ के साथ ऐसा टीमवर्क भरा काम करते हुए 2 महीने बीत गये..इन 2 महीनों में शहर में ऐसी रोज़ के नाम की आग लगी…की सबके जुबान पे काला साया के बॅया दब रोज़ का नाम था…कोई कहता काला साया ही है..और कोई कहता नहीं ये कोई और है? पुलिस जानती थी की ये लड़की वही चोर है जिसने पूरे बंगाल स्टेट को हिला डाला था…पुलिस आजतक उसका पीछा ना कर पाई हूँ कौन थी ? कहाँ से आती थी?…इधर मेरा मूवमेंट और ऑपरेशन दोनों बखूबी रोज़ के संग चल रहा था उसके गुलाबी महक नेट ओह मुझे उसका दीवाना बना दिया साथ ही साथ उसके काबिल-ए-तारीफ हौसले और हिम्मत की दास्तान को रोज़ थाने में सुनकर दिल बैग बैग हो जाता गुलाब के फूलो से
पुलिस कभी कभी ट्रॅप बिछाके रोज़ को पकड़ने की कोशिश करती थी..लेकिन मैं अपने वर्दी के फायदे से कभी पुलिस को रॉंग वे में भेज देता या फिर कभी पुलिस के सामने अड़चन बनकर सामने आ जाता…जैसे रोज़ अगर बाइक लेकर जिस रास्ते से गुजरती और हूँ रास्ता दो रहा…तो उसके निकलते ही मैं भी उसी के भैईस में दूसरे रास्ते निकल जाता…पुलिस इससे चकमा कहा जाती…कभी रास्ते में पुलिस के पत्थरे बिछा देता…तो कभी रोज़ को झूते मूओते नाम पे पकड़ने के साथ साथ अपने हेडफोन से उसे डाइरेक्षन और लोकेशन दोनों बताते रहता…रोज़ के हर हरकत और उसके हर सिचुयेशन पे मेरी निगाह होती अनॅलिसिस ऑफिस से…रोज़ जल्द ही अपने पाप की दुनिया से निकलकर अक्चाई की लड़ाई में खुद को काफी तृप्त महसूस करती थी
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