RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-57)
देवश : अच्छा रुकिये
देवश ने अपर्णा काकी के सारी से आ रही पसीने की महक को महसूस किया…और जल्दी से फटाफट पानी के बजाय ग्लूकों-द काकी को दी…काकी ने मुस्कुराकर ग्लूकों-द को एक ही साँस में पी लिया…”अब जाकर राहत मिली”…..अपर्णा काकी ने धीमी साँस लेते हुए कहा
देवश : आप कहाँ से आ रही हो इतना छलके?
अपर्णा : अरे बेटा तेरी शीतल के लिए रिश्ता पक्का हुआ है
देवश : क्या? वाहह ये बहुत खुशी की बात आपको भी मुबारकबाद कब कैसे?
अपर्णा : अरे बेटा एक लड़का शीतल को कुछ दीनों से पीछा कर रहा था…खेतों से लेकर घर तक मुझे लगा कहीं लड़का गलत तो नहीं लेकिन फिर मैंने उसके बारे में पूछताछ की तो पाया की वो लड़का फ़ौजी में वो क्या नक्शा बनाते है वो कमा करता है…डाल में रहके और बर्दमान में रहता है
देवश : अच्छा लड़का लेकिन ठीक तो है ना
अपर्णा : हाँ बेटा मुझे तो बहुत अच्छा लगा उसे शीतल बहुत पसंद है…बोलता है की मैं इसके बिना किसी से शादी नहीं करूँगा वो दहेज की भी डीमाड नहीं कर रहा…अब ऐसा लड़का हमें कहाँ मिलेगा तू ही बता? ये कामकल तो समझती नहीं
देवश : क्यों शीतल राजी नहीं है?
अपर्णा : बेटा मैं तो उसे समझते समझते तक गयी बस रोने लगती है बोलती है की मैं आपको और देवश भैया को छोढ़के कहीं नहीं जाना चाहती अब तू ही बता ऐसे थोड़ी ना होता है
देवश : होगा काकी मां शीतल राजी होगी
अपर्णा : वो कैसे बेटा?
देवश : वो आप मुझपर चोद दीजिए मैं एक बार ऊस लड़के से मिल लू जिंदगी का सवाल है देख भी लूँगा उसका खंडन कैसा है? क्या वो मेरी शीतल को खुश भी रख पाएगा
अपर्णा : हाँ बेटा ये काम तो तू ही कर सकता है बस किसी तरह शीतल को मना ले बहुत ही अच्छा लड़का है हाथ से निकल गया तो चिराग लेकर भी नहीं मिलेगा
देवश : ठीक है मुझे टाइम दीजिए (मैंने फौरन अपर्णा काकी से ऊस लड़के का नाम पूछा ऊन्होने बताया रामलाल है मैंने उसे फोन किया और उससे मुलाकात करने को कहा पहले तो वो झिझक गया फिर वो मान गया)
अपर्णा काकी खुश हो गयी….”बेटा सोच रही हूँ अगले महीने ही शीतल की शादी करवा दम वो के है ना? लड़का फिर चला भी जाएगा वापिस वो बोल रहा है वहां क्वार्टर में उसे रखेगा”……..मेरे लिए ये बात सुनकर बहुत ही अच्छा महसूस हुआ…मैं भी चाहता था की शीतल अब मुझसे थोड़ी दूरिया बनाए ताकि वो अपना नया ग्रहस्ति जीवन जी सके…एक बार दूसरे मर्द की आदत पढ़ जाएगी खुद पे खुद वो ऊस की हो जाएगी….ये सब सोचते हुए मैं खुश हुआ
अपर्णा काकी ने मेरे उदासी को समझा की आज मेरा मूंड़ ज्यादा क्यों नहीं ठीक है?….”केस के मामले में थोड़ा बिज़ी हूँ काकी मां और ऊपर से बढ़ते काम का भोज”………..अपर्णा काकी ने मुस्कुराकर बोला….”तू भी शादी कर ले बेटा एक बार औरत आ गयी तो फिर तेरी टेन्शन दूर हो जाएगी “………मैंने मुस्कुराकर अपर्णा काकी की बात को सुना
देवश : क्या काकी मां? तुम भी ना मुझे कोई और लड़की झेल भी सकेगी आप तो मेरे राग राग से वाक़िफ़ हो
अपर्णा : हाँ हाँ तू अपने इस पेंट के भीतर छुपे ऊस राक्षस की बात कर रहा है ना जो एक बार हमारी बिल में घुस्सके खुद दर्द पहुंचता है
देवश : हाँ काकी मां बस वही बात है
अपर्णा : तब तो तेरे लिए औरत खोजनी पड़ेगी 40-35 की जो तुझे झेल सके
देवश : क्या काकी मां?
अपर्णा : और नहीं तो क्या तेरे इस मोटे मूसल को तो गड्ढा चाहिए छेद थोड़ी ही
देवश : अच्छा ग मेरे साथ रही रहके आप भी खुल गयी हो
अपर्णा काकी हंस पड़ी…ऊँका पल्लू थोड़ा नीचे सरक गया और उनके भारी छातियो के कटाव को देखकर मैं खुद पे खुद उनके चेहरे के करीब आने लगा…काकी भी मेरे नज़दीक आने लगी…हम अभी एक दूसरे के होठों से होंठ सताके चुमन्ने ही लगे थे की मेरा सख्त आइरन रोड की तरह खड़ा हो गया…मेरे हाथ काकी मां के ब्लाउज के फ़िटे पे और उनकी न्नगी पीठ को सहलाने लगे हम दोनों एक दूसरे से लिपट गये…एक दूसरे के होठों को पागलों की तरह चूम ही रहे थे इतने में दरवाजे की घंटी बज उठी मैं दरवाजे की ओर रुख करने लगा…पर काकी मां मेरे चेहरे को पाखारे अपने होठों से सताने लगी…ऊन्हें तारक चढ़ चुकी थी..फिर फोन बज उठा…मैंने फुआरन काकी मां को धकेल दिया और दरवाजा खोलने के लिए हम दोनों गहरी गहरी साँसें चोद रहे थे काकी मां ने अपना पल्लू अपने छातियो के ऊपर रख लिया…जैसे दरवाजा खोला मामुन आ चुका था
काकी मां को देखकर एकटक उसके मदमस्त जवानी को निहारने लगा…मैंने उसे झिंजोधा “क्या देख रहा है आबे”……मामुन कुछ नहीं बोला बस मुझे अनख् मर दी “ये वैसी औरत नहीं है”……मैंने धीमे आवाज़ में कहा…काकी मां बर्तन ढोने चली गई…उसे भी मम्मून को देखकर थोड़ा आश्चर्य हुआ…कुछ देर बाद मैं किचन आया माँफी माँगी काकी मां से मामुन के रवैये के लिए…ऊन्होने कुछ नहीं कहा बस मुस्कराया..और बोली की ये कौन है?…मैंने ऊन्हें बताया तो ऊन्हें याद आ गया ऊन्होने बोला ये यहां कैसे? मैंने बताया की वो मुझे ढूँढते हुए आया है…काकी मां ने उसे संभलके रहने को कहा और पूछा की कबतक रहेगा? मैंने बताया की बस चला जाएगा कल परसों तक…तो ऊन्होने फिर कुछ नहीं कहा फिर मुझसे रिकवेस्ट की रामलाल से मिल लू आज शाम…मैंने हामी भारी और ऊन्होने जल्द ही विदा कर दिया मामुन के सामने उनके साथ कुछ करना ठीक नहीं…क्योंकि मैं अपनी औरतों को दूसरों के सामने पेश नहीं करता
फिर मामुन से बातचीत में बातें काट गयी…मेरा गुस्सा कहीं हड़त्ाक शांत हो चुका था…मैं दोपहर तक दिव्या और मेरे दूसरे घर पहुंचा…घर में ताला लगा हुआ था…यक़ीनन सब्ज़ी मंदी गयी होंगी….मैं फिर वहां से रामलाल को फोन मिलाए उससे मिलने गया
रामलाल नुक्कड़ पे ही चाय पी रहा था…मुझे देखते ही वो उठ खड़ा हुआ…रामलाल देखने में गबरू जवान था 25 साल का और काफी देखखे ही डिसेंट लग रहा था…मैंने गाड़ी रोकी और उससे हाथ मिलाया…वो भी मुझसे मेरे बार्िएन में पूछने लगा एक अफ़सर एक फ़ौजी से आज मिला था…फिर हमने कुछ देर चाय पी एक दूसरे का परिचय लिया और खेतों की तरफ निकल लिए
देवश : देखो रामलाल मुझे तुमसे कुछ बातें कहनी है इसी लिए तुम्हें बुलाया है?
रामलला : हाँ कहिए ना भैया
देवश : देखो उमर में तो हुमुमर ही हो तुम मेरे…लेकिन रही बात ज़िम्मेदारियो की वो तुम्हें संभालनी होगी मेरी बहन है शीतल खून का रिश्ता तो नहीं पर खून के रिश्तो से भी बढ़के है…तुम मेरी बहन का पीछा करते थे मैंने सुना
रामलाल हकला गया…”दररो नहीं तुम मुझसे एकदम खुलके कह सकते हो क्या तुम्हें शीतल पसंद है?”……वो शर्मा गया फिर ऊसने हाँ कहा…”उम्म देखो एक दूसरे के साथ जबतक फ्रेंक नहीं होंगे बात आगे नहीं बढ़ेगी मैं यही चाहता हूँ की तुम शीतल की खूबसूरती के साथ साथ ऊस्की इक्चाओ को समझो मेरी बहन पे सभियो की नज़र है कोई भी उसे गंदा ही करना चाहेगा फ्रॅंक्ली बोल रहा हूँ तुम्हें कहना नहीं”………मैंने उसे समझते ही कहा और वो सुनता रहा हाँ हाँ में जवाब देता रहा
रामलाल : हाँ भैया मुझे शीतल पसंद है पर वो मुझसे राजी नहीं हो रही क्या मैं इतना बुरा हूँ? मैं उसे दुनिया की सारी खुशिया दूँगा मेरे घर में सिर्फ़ मेरी एक बीमार मां है जो मेरे बाबा के साथ यहां रहती है मेरी पोस्टिंग बर्दमान में है 22000 की टंकवह है और सरकारी फेसिलिटी अलग से
देवश : देखो रामलाल मेरी बहन ने बहुत तक़लीफें देखी है ऊसने बहुत गरीबी और दर्द सहा है वो मेहनती है और कोई लालची नहीं पैसों की इसी लिए तुम ये भूल जाओ की वो तुम्हारी पोस्टिंग के लियेटुँसे शादी करेगी असल सुख तब उसे दोगे जब औरत को तुम उसका असली गहना दोगे उसे खुश रखोगे उसे वो वाला प्यार दोगे
रामलाल पहले तो कुछ समझा नहीं फिर वो जब समझा की मैं किस टॉपिक की बात कर रहा हूँ तो मुस्कुराकर शरमाते लगा ..”बोलो मेरी बहन को तुम ऊन सबतरह की सुख दे पाओगे”….रामलाल ने मेरे हाथ को पकड़ा और बोला “सच पूछिए तो बिलकुल मेरी एक गर्लफ्रेंड थी इससे पहले मैं झूठ नहीं बोलूँगा उससे मेरे काफी अच्छे संबंध थे पर वो मुझे धोखा दे गयी अगर आपको ये बात बुरा ना लगे इसलिए मैंने ये बात कहीं”………..मैंने रामलाल के कंधे पे हाथ रखकर ऊस्की बातों को गौर से सुना
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