RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-70)
देवश : अरे तो रामलाल के साथ उसका विवाहित जीवन कैसा चल रहा है पूछा ऊस्से? कहीं कोई
अपर्णा : अरे बेटा हर औरत जब काली से खिलती फूल बनती है ना तो फिर उसे व्यतीत करना ही पढ़ता है हाँ बहुत खुश है शीतल तेरे से मिलने के लिए दोनों छटपटा रहे है आख़िर तू शादी में जो नहीं आया बहटू कफा भी है
देवश : छी छी छी छी और मैंने शीतल को तोहफा भी नहीं दिया कोई बात नहीं मैं अभी बाज़ार से उसके और रामलाल के लिए तोहफा ले आता हूँ और मां अब मुझे मना मत करना कुछ तो देने दे आख़िर मेरी बहन है
अपर्णा : अच्छा बाबा अच्छा किसने रोका है तुझे? खूब करना अपनी बहन को प्यार (अपर्णा काकी ने फिर मेरे बारे में बताया की ऊन्हें आस पड़ोस के मालकिन से पता चला और मेरे नये घर को देखने भी गयी थी वहां पुलिस ने घर को बंद करवा दिया है इसलिए वो चटपटाते हुए सीधे यही चली आई)
कुछ देर बात करने के बाद…अपर्णा काकी ने मेरे लिए खाना बनाया और फिर चली गयी उनके रुकने का दिल तो था पर रामलाल शीतल को यहां छोढ़के अपने क्वार्टर चला गया ये सुनकर मुझे अच्छा ही लगा चलो कम से कम मेरी नयी नवेली शादी शुदा बहाना को देख तो पाऊँगा जी भर के खुशी जैसे उमड़ सी आई थी मेरे आँगन में
फटाफट बाज़ार से दो जोड़ा सारी कीमती वाली खरीद ली…कॉन्स्टेबल धीरज मिल गया ऊसने मुझे घर तक चोद दिया और बोला की अगर कोई भी प्राब्लम लगे सर तो फोन कर दीजिएगा..मैंने उसे जाने को कहा…फिर आर्डर करके कुछ पकवान मँगवाए शाम करीब करीब 5 बजे तक शीतल अपने पति रामलाल के साथ आ गयी
वाहह उसे सररी में देखकर लंड एकदम बेचैन हो गया ऊस्की सुंदरता भी खिल गयी थी…शीतल मुझे देखकर जान चुकी थी की मेरे साथ हाल ही में क्या कुछ हुआ है वो मेरे से लग्के रोने लगी…मैंने उसे गले लगाया ऊस्की पीठ पे बँधे पेटीकोट के डोरे पे हाथ घुमाया और रामलाल से भी गले मिला…दोनों बहुत खुश थे…मैं क्यों नहीं आया बहुत कफा हुए…फिर ऊन्हें मानने में 2 घंटे लग गये..रामलाल को मेरे लिए बहुत अफ़सोस हुआ साथ एमिन शीतल को भी मैंने कहा फिलहाल तो मैं सिर्फ़ ऊन दोनों की खुशी सुनना चाहता हूँ
शीतल हम मर्दों के बीच हँसी मज़ाक का विषया बन गयी थी…शीतल शर्माके बर्तन ढोने चली गयी….रामलाल को मैंने पूछा की सबकुछ कैसा चल रहा है शीतल खुश तो है ना तुम्हारे साथ?….इतना पूछना था रामलाल ने मेरा हाथ पकड़ लिया “भैया मैं बहुत खुश हूँ सब आपकी वजह से आप नहीं जानते शीतल का यौवन इतना मधुर है की मैं उसके बिना एक सेकेंड भी नहीं रही पाऊँगा ऐसा लगता है नौकरी भी चोद दम आपके कहें मुताबिक मैंने उसे खेत में ले जाकर उसके साथ खूब खुलके बातें की और जैसा अपने बताया था उसे खुश करने को वो भी किया”…..उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया….मैंने ऊस्की खूब मजे लिए
शीतल भी खुश थी ये जान्ँके खुशी हुई पर अब बहाना जी अपने ही भाई से शर्मा रही थी…बीच बीच में टोकती क्या बातें चल रही है मेरे भैया और पति के बीच….कुछ देर में अपर्णा काकी भी आ गयी खूब हँसी मज़ाक का दौड़ चला…फिर पता लगा की शीतल को वो अगले माह लेने आ जाएगा…खुशी तो बहुत हुई लेकिन मेरा मकसद भी इसी वक्त में चल रहा था इसलिए खुलके शीतल से एंजाय करना भी एक सजा…अपर्णा काकी ने बोला की वो रामलाल को छोढ़ने जा रही है….पर शीतल ने मना किया बोली उसे और टाइम स्पेंड करना है मेरे साथ..पर अपर्णा काकी ने बोला भला वो अपनी पति को सी ऑफ करने भी नहीं जाएगी
रामलाल को शक ना हो मैंने ही शीतल को जाने कहा की 1 महीना तो है और हमारे रामलाल का क्या होगा ऊन्हें भी तो प्यार देकर आओ…रामलाल मुस्कराया शीतल भी झेंप सी गयी..फिर अपर्णा काकी रामलाल और शीतल को लेकर निकल गयी…मैंने शीतल को पहले से ही किचन में पकड़कर कान में फुसफुसा दिया की वो जैसे तैसे रात को यहां आ जाए…ये काम शीतल को खुद करना था
उसके जाने के बाद करीब करीब 7 बज गया..पर शीतल नहीं आई..रामलाल तो शायद ट्रेन में बैठ भी चुका होगा….कुछ देर बाद शीतल की आवाज़ आई दस्तक देते हुए दरवाजे पे..मैं तो पहले ही तैयार था..और दरवाजा खोल के उसे अपनी बाहों में कैद कर लिया..शीतल एकदम शर्मा गयी “क्या भैया आप तो अपनी शादी शुदा बहन को शादी के भी नहीं चोद रहे”…..मेरे बालों से कहलते हुए…”क्या करे? बहाना हो ही तुम ऐसी चल आ बैठ तेरे से अब खुलके बात करूं”……..मैंने शीतल को बिस्तर पे बिठाया और अच्छी तरह से चारों घर का दौरा किया….मुझे पता है मजे में खलल तो पहुंचने वाला शैतान हमेशा होता है…फिर कमरे में आकर दरवाजा खिड़की सब बंद कर दिया…रोज़ का फोन आया और उसने बताया की वो दौरे पे है मैंने उसे झूठ कह दिया की मेरे घर पे अपर्णा काकी आए हुए है…रोज़ ने आपत्ति की उसे लगा शायद इस वक्त जाना ठीक नहीं…मैंने उसे सावधान रहने को बोलकर फोन कट कर दिया
तब्टलाक़ शीतल हाथों के बाल बिस्तर पे बैठी मुझे प्यार भारी अदायो से देख रही थी…”और भैया श मां इस्श इतना चोट कैसा लगा आपको?”……मैंने अपनी बनियान जैसे उतारी मेरे पीठ पे लगे चोट और पट्टी को देख ऊसने सवाल करा..उसे बताने के बाद उसके आंखों में भी आँसू आए पर वो खुश थी की मैं सुरक्षित हूँ…मैंने उससे अपना बताने के लिए पूछा
शीतल : मां तो चोद ही नहीं रही थी…मैंने बोला की भैया बुला रहे है आज वो मुझसे काफी प्यार करना चाहते है
देवश : अच्छा तू अब मुझे सुलही पे चढ़ाएगी अगर मां को पता चल गया तो
शीतल : अरे भैया शीतल ऐसी चीज़ है जो किसी को भनक ना लगने दे खैर भैया आपको पता है रामलाल ने मेरे साथ क्या किया?
देवश : क्या किया? (सुनाने को तो मैं भी बेचैन था ओसोसके मुँह से हालकनी मेरे सारे तरक़ीब जो रामलाल ने इस्तेमाल किए और मुझे बताए वही वो भी बता रही थी)
शीतल को वो खेत ले गया…और वहां ऊसने ऊस्की चुत चानति…और उसे मजा दिया…ऊसने शीतल को भी अपना लंड चुस्वाया…पहले तो ऊसने साफ इनकार किया…लेकिन शीतल के मनपसंद रसगुल्ले दिखाने पे शीतल शर्मा गयी…शीतल ने भी रामलाल का लंड छूसा और फिर उसका दिया हुआ रसगुल्ला खाया..रामलाल ने शीतल को काफ टाइम देना शुरू किया…और उसे गंदी गंदी पिक्चर दिखाने ले जाने लगा…उसका कहना था की मेरे से भी ज्यादा रामलाल ठरकी है…शीतल को वो बहुत देर तक मजा देता है..और अब शीतल भी शादी के बाद बहुत चुदासी हो गयी है..अभी तक दोनों में से किसी ने बच्चा लेने की सोची नहीं है…देवश ने शीतल को बधाई दी
देवश : हम ये बहुत अच्छा हुआ चल तू खुश तो है ना
शीतल : हाँ लेकिन शायद मेरे बिना आप खुश नहीं भैया
देवश : तो खुश कर दे (मेरे हाथ ने तुरंत शीतल के पल्लू को गिरा डाला)
शीतल बेशरम सी हो गयी थी वो खुद उठके अपने ब्लाउज के स्तनों मेरे सामने खड़ी होकर खोलने लगी…फिर ऊसने अपनी पेटीकोट के नारे को भी खुद ही खोल डाला…”मैं तो रामलाल के सामने ऐसे ही पेश होती हूँ रोज़ रात लेकिन लगता है आज भैया मुझे नहीं छोढ़ने वाले”….शीतल ने होठों के बीच उंगली रख आँख मारी..और अपने पेटीकोट को खोल के उतार दिया ऊसने एक छोटी सी फ़िटे वाली पैंटी पहनी थी….जो बिकिनी ज़्ीडा लग रही थी…ये भी रामलाल की चाय्स थी
शीतल ने वो कक़ची भी उतार डाली अब उसके भारी भरकम मांसल जांघों के बीच एक अच्छा ख़ासा झाँत उगा हुआ था..और ऊस्की नीचे से चुत भी ऊस्की गहरी काली खाई में खो सी गयी थी ऊसने पलटके अपने भारी नितंबों का भी दीदार कराया..अपने नितंबों को उचकके घोधी बनकर मुझे अपनी गान्ड की फहांक दिखाई उसके भी इर्द गिर्द थोड़े बाल उगे हुए थे बस गोल गहरा छेद दिखाई दे रहा था
मैं संभाल ना पाया..और अपनी बहन के ब्लाउज को धीरे से हटाया…बहन के छाती पेटीकोट से बाहर निकल आए…उसके मोटे निपल्स को मुँह में लेकर चूसे बगैर मैं रुक ना पाया..और बड़ी बड़ी से दोनों चुचियों को मुँह में भर लिया “हाँ भैया ऐसे ही चूसो ना हमारी आहह”……शीतल ने मुझे अपनी छाती से चिपका लिया..और मैं ऊस्की छातियो को ज़ोर से दबाने लगा शीतल और मेरे होंठ एक दूसरे से भीढ़ गये जुबान लार्न लगे होंठ गीले थूक से तरबतर हो गयी…शीतल की छातिया को मैं हाथों से मसलते हुए उसके होठों का जोरदार चुम्मा ले रहा था…शीतल की आंखें मंडी हुई थी
फिर शीतल को लाइटाया और ऊस्की टाँगें फैला दी…मैं उसे बिस्तर पे लैटाके घुटनों के बाल फर्श पे कुत्ता बनकर बैठ गया और ऊस्की मधक मनमोहक खुश्बुदार चुत पे जुबान फहरने लगा…ऊस्की झांतों भारी चुत को चूसने में जो मजा आया वो लाजवाब था…मेरी आग भधकी हुई थी वैसे इतने दीनों बाद आज ही इतने महीनों बाद बहन पे न्योछावर कर रहा था….ऊस्की चुत में मुँह लगा लग्के उसके अंगूर जैसे दाने को चूसा और ऊस्की गुलाबी फहाँको में जितना हो सका उतना जीभ रगड़ा घुसाया चाटना..छूसा सबकुछ किया
शीतल इस बीच मेरे बालों को सहलाने लगी…जब ऊस्की चुत मेरे लंबो से अलग हुई तो वो रस से तरबतर थी..”आहह भैया आहह ज़ोर से बारे ज़ोर से सस्स आहह हाइईइ दैया मैं गाइिईई”……शीतल का शरीर ज़ोर से अकड़ा और वो झधने लगी…उसका बरसता पानी मेरे चेहरे पे पढ़ने लगा…वो ठप ठप्प की आवाज़ अपने चुत पे मारते हाथों से निकालने लगी फिर अपनी ही चुत में उंगली की…ऊस्की चुत बेहद गहरी हो गयी थी चुदाई करते करते
मैंने उसे उठाया और पाओ तक सर को झुका दिया…अब ऊस्की गुकछेदार बालों के बीच के छेद पे मैं अपना लंड रगड़ने लगा..ऊसने बोला वो चूसना चाहती है लेकिन मुझे चुदाई की जल्दी थी…मैंने उसके गान्ड के छेद पे थूक खाकरते हुए फैका और उसे अंगुल से खोलना चाहा…फिर लंड को छेद पे दबा दिया..शीतल काँप गयी और मेरा लंड भी बारे ही सटाक से अंदर प्रवेश कर गया…गान्ड काफी पहले से सख्त थी…”ऊन्हें गीन आती हे भैया आहह इसलिए गान्ड नहीं मारते”……शीतल ने झुके झुएक ही मेरे लंड को गान्ड में महसूस करते हुए करहते हुए कहा
मैंने उसके गान्ड में फकच से लंड घुसाय और निकाला..और फिर बहुत आहिस्ता धक्का मारने लगा….शीतल पाओ पे हाथ रखकर खड़े खड़े झुककर चुद रही थी ऊस्की दबी आवाज़ सिसकियों के साथ साथ दर्द भी निकल रही थी…मैं उसे खूब काश क़ास्सके धक्के पेल रहा था..तप्प ठप्प फिर फ़च फ़च्छ…जैसे ही एक बार लंड अंदर धीमें सरकता फिर ऊस्की पेंट पे हाथ क़ास्सके 2-3 धक्के मारता करार करार…शीतल की तो जैसे जान निकल रही थी वॉ भी आहह आ आहह करके चुदवाती रही फिर मैंने लंड ऊस्की गान्ड के छेद से बाहर खींचा…और फिर शीतल को बिता ही दिया
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