RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
UPDATE-71
अब उसके मुँह में मेरा लंड था अपने गान्ड की आंद्रूणई महक और मेरे लंड के निकलते रस की मिली जुली खुशबू उसके मुँह में थी..जिसे सूँघके वो बदहवासी सी हो गयी थी बॅस उम्म्म्म एम्म करते हुए चुस्सें जा रही थी….फिर ऊसने मेरे अंडकोषो को भी मुँह में भरके चुस्सा…और फिर लंड को मुट्ठी में लेकर उसे तैयार करने लगी…ऐसा लगा जिसे अब तो मैं झड़ ही जाऊंगा
उसे मैंने अपने ऊपर सवार किया और गान्ड से उठाया…अब उसके चुत में लंड को टिकाया और ऊसने खुद ही लंड पे चुत को एडजस्ट करके खुद को बिठाया..अब वो मेरी गोदी में थी और मैं नीचे से उसे चोद रहा था….शीतल करारी कराई धक्को की सिसकियां निकाल रही थी…ऊसने चेहरा ऊपर कर लिया था मानो जैसे इस सुकध अहसास को वो झेल नहीं पाएगी ऊस्की चुत रस छोढ़ने लगी…जो मेरे पाओ और तंग से टपक रहा था..चुत बेतरती से गीला था…और मेरा लंड आसानी से अंदर बाहर प्रवेश हो रहा था हम दोनों की साँसें टकराई एक दूसरे को पागलों की तरह चुमन्ना शुरू किया होंठ चूसे जुबान से जबान लगाए एक दूसरे के मुँह में थूक उगला और मैं भी अकड़ते हुए उसी की चुत में झड़ गया उसे मैं लगभग पकड़ा ही रहा गान्ड पे एक हाथ एक हाथ उसके कमर पे क़ास्सके रखे ही रहा..जब मैं स्थिर हो गया तब हांफते हुए हम दोनों बिस्तर पे देह गये
वो मुझसे लिपट गयी..और मेरे लंड की निकलती बूँदो को निचोढ़ने लगी….करीब 9 बजे तक मैंने उसके साथ मनचाहा प्यार किया…इन घंटों के बीच उसे फिर 3-4 बार चोद दिया…मेरी हालत बहुत ताकि हुई सी हो गयी…ऊसने नंगे ही उठके मेरे लिए खाना बनाया और फिर गुसोल करने चली गयी….अचानक घंटी की आवाज़ सुनाई दी मैं सकपकके पास रखी पिस्तौल को हाथों में ले लिया…ऊस वक्त शीतल नहा रही थी…उसे पता नहीं लगा…मैं खुद ही पजामा पहनकर झट से दरवाजा खोला सामने अपर्णा काकी थी वो मुझे मुस्कुराकर देख रही थी वो शीतल को लेने आई थी “अब हो गयी बहन-भाई के बीच बातें अब चल भी शीतल कितना टाइम लगाएँगी भाई को भी आराम करने दे”…..सच ही कहा था ऊन्होने आराम ही तो करना था मुझे मैं भी मुस्कराया
अपर्णा काकी शीतल के तैयार होते तक ठहरी फिर ऊसने पूछा की शीतल अभी नहाई क्यों?…शीतल सकपका गयी पर्म आने बताया की उसे गर्मी लग रही थी और उसे जो सारी दी शायद उसका काप्रा मोटा है….अपर्णा काकी बस हस्सने लगी ऊन्हें शक ना हुआ…शीतल को लेकर दोनों को विदा करके मैं बिस्तर पे पष्ट हो गया…एक बार सोचा क्यों ना रोज़ को फोन करके हाल चाल पूछ लू? पर उसका फोन नहीं आ रहा था
मैं तैयार होकर आज पहली बार गश्त लगाने बाहर निकाला….काला साया बनकर जब अपने ख़ुफ़िया घर के भीतर बने अनॅलिसिस ऑफिस आया तो वहां भी रोज़ नहीं थी…शायद वो अब भी बाहर हो पूरी रास्ते गश्त लगाकर मैं वापिस घर आया..पर रोज़ कही न्ना मिली..मुझे लगा शायद वो अपने घर चली गयी हो उसका घर तो देखा हुआ नहीं था ना ही कभी पूछा अचानक दरवाजे के नीचे बाहर एक लिफाफा पड़ा हुआ था
मैंने उसे उठाया और ऊसमें एक सीडी देखी…उसे फौरन घर में घुस्सके डिस्क प्लेयर पे लगाया…वीडियो के ऑन होते ही जो देखा उससे मेरी साँसें अटक गयी…सामने मेरा चेहरा था और निशानेबाज़ की लाश के ऊपर मैं खड़ा…ये तो क्सिी वीडियो का क्लिप है उसके बाद एक भयंकर चेहरा चेहरा नहीं मुखहोटा..खलनायक का
खलनायक : इंस्पेक्टर देवश ना ना काला साया क्यों भैसाहेब? तो आप ड्युयल रोल में काम कर रहेः आई और हम सोच रहे है हमारे दुश्मन दो हाहाहा (तहकाल अगाते हुए ऊसने सिगरेट का धुंआ फहुंका) खैर जो भी हो तुम्हारी पार्ट्नर मेरा पहला प्यार यूँ बोले तो तेरा मेरा प्यार पीछे है मेरे
खलनायक के हटते ही स्क्रीन पे रोज़ एक चेयर पे बँधी बेहोश थी…खलनायक ने उसके गर्दन पे अपने होंठ रगड़ें..मेरा पारा चढ़ रहा था “हां हां हां ये चुंबन तो मैं इसे जिंदगी भर दूँगा काला साया क्योंकि ये मेरी है..लेकिन तेरा क्या? तूने जो शांटराज की बाज़ी आंखों में धूल झूँकके सबको उल्लू बनाया और क्ाअल साया बना रहा वो तू मुझपर नहीं कर सकता डर मत क्सिी को नहीं बताऊंगा जैसे मुझे तू नहीं जनता किस इस मुखहोते के पीछे कौन है? सिर्फ़ एक ही बात कहूँगा वीडियो के और होते ही एक अड्रेस शो होगा उसे पढ़ लेना और बताए जगह पे आ जाना क्योंकि जो तू चाहता है वो मैं भी चाहता हूँ रोज़ को पाना है और मुझे रोकना है तो आजा”………खलनायक का ओपन चॅलेंज सुनकर मैं चुपचाप बस उसे घूर्रता रहा
उसके बाद वीडियो ऑफ हो गया एक काले स्क्रीन पे लाल लाल फ़ॉन्ट पे अड्रेस शो हुआ…मैंने ऊस अड्रेस को पढ़ा और फौरन उसी पल दिमाग सकते में हो गया “अफ रोज़ काश तुम्हें मैंने अकेला नहीं छोडा होता..दिव्या के खोने के बाद मुझे अब रोज़ को खोने का डर सटा रहा था रोज़ उनके क़ब्ज़े में है और मुझे इस शायर की मांड में अकेले ही घुसना होगा”…….मैं चुपचाप बस अपनी काला साया के दिमाग से प्लान का जाल बुनने लगा
वीडियो की सीडी बाहर निकालके उसे मैंने फिर दराज़ के अंदर फ़ेक दिया…दिल इतना ज़ोर से गंभीर था की काअं और दिमाग सब सुन्न सा पार गया था…करूं तो करूं क्या? आज पहली बार काला साया को कोई ऐसा टक्कर का दुश्मन मिला था…मैंने फौरन दराज़ से अपनी रिवाल्वर निकाली और उसे पॉकेट में रख लिया
दूसरे ही पल मैं जीप पे सवार होकर रफ्तार से जीप को रास्ते पे दौड़ा दिया…पूरी तेज रफ्तार में बस मुझे अपनी नजारे के सामने रोज़ के जिस्म पे खलनायक हाथ फेराया दिख रहा था…ना जाने वो उसके साथ कैसे कैसे शरामणाक हरकत कर रहा होगा…रोज़ का प्यार मेरे लिए इतना ख्याल रखना…और ऊसपे हुए खलनायक के सितम सब दिमाग में जैसे घूमें लगा…दूसरी ओर दिव्या जो मुझे छोढ़के चली गयी उसका खून से लथपथ चेहरा मेरे सामने था ऊस्की लाश जिसे मैंने गोद में रखा था सबकुछ महसूस कर सकता था मैं
जल्द ही अपने इल्लीगल गुण के व्यापारी से मिला ऊसने मुझे एक सिल्वर कलर की हॅंड्ग्यून दी और फिर ऊस्की कुछ बातें बताई मैंने उससे एक-47 की दो बंदूक ले ली और साथ में बहुत से बुलेट्स..आजतक उसके व्यापार को मैंने कंट्रोल कर रखा था इसलिए ऊस्की मेरे सामने कुछ भी नहीं चलती थी….मैं वापिस गाड़ी पे सवार हुआ बताए जगह पे पहुंचने से पहले ही गाड़ी रोक दी
मैंने अपने एक-47 को दोनों हाथों में ले लिया और धीरे धीरे दुश्मन के बसे पे पहुंचा…इलाका सुनसान था या फिर वजह कुछ और थी…मुझे मारने का पूरा इंतजाम किया था खलनायक ने शायद वो मेरी प्रेज़ेन्स को बखूबी जनता था..लेकिन आज मेरे दिल में डर कम और गुस्सा ज्यादा उबाल रहा था…मेरे साथ कोई नहीं था अंदर रोज़ बेबस पड़ी होगी
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