RE: Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद
अपडेट-02
जिस प्रकार सपने में मेरा लंड माँ की गान्ड पर ठोकर दिए जा रहा था मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि में माँ की गान्ड ताबड़तोड़ मार रहा हूँ. तभी ट्रेन को एक जोरदार झटका लगता है और मेरा सपना टूट जाता है. धीरे धीरे में सामान्य स्थिति में आने लगा, मुझे नाइट लॅंप की रोशनी में मेरा कमरा साफ पहचान में आने लगा. लेकिन आश्चर्य मेरे लंड पर किसी गुदाज नरम चीज़ का अभी भी दबाव पड़ रहा था. कुच्छ चेतना और लौटी तो मुझे साफ पता चला कि मेरा छोटा भाई अजय जो मेरे साथ ही सोया हुआ था सरक कर मेरी कंबल में आ गया है
और वह अपनी गान्ड मेरे लंड पर दबा रहा है. मेरा लंड बिल्कुल खड़ा था. में बिल्कुल दम साधे उसी अवस्था में पड़ा रहा. अजय मेरे लंड पर अपनी गान्ड का दबाव देता फिर गान्ड आगे खींच लेता और फिर दबा देता. एक लय बद्ध तरीके से यह क्रिया चल रही थी. अब मुझे
पूरा विश्वास हो गया कि अजय जो कुच्छ भी कर रहा है वह चेतन अवस्था में कर रहा है. थोड़ी देर में मेरे लिए और रोके रहना मुश्किल
हो गया तो मेने धीरे से अजय की साइड से कंबल समेट कर अपने शरीर के नीचे कर ली और चित होकर सो गया.
सुबह का वक़्त था और मेरा दिमाग़ बहुत तेज़ी से पूरे घटनाक्रम के बारे में सोच रहा था. आज से पहले कभी भी माँ मेरी काम-कल्पना (फॅंटेसी) में नहीं आई थी. वैसे कॉलेज लाइफ से ही लंबा, सुगठित, आतलॅटिक शरीर होने से लड़कियाँ मुझ पर मर मिटती थी लेकिन मेने अपनी ओर से कभी भी दिलचस्पी नहीं दिखाई. मेरी स्टोर की आकर्षक सेल्स गर्ल्स पर जहाँ दूसरे पुरुष मित्र मरे जाते हैं वहीं उन लड़कियों के लिफ्ट देने के बावजूद भी में उनसे केवल काम का ही वास्ता रखता हूँ. हां सुंदर नयन नक्श की, आकर्षक ढंग से सजी धजी, विशाल सुडौल स्तन और नितंब वाली भरे बदन की प्रौढ़ (40 वर्ष से अधिक की) महिलाएँ मुझे सदा से ही प्रभावित करती आई है. मेरी माँ में ये
सारे गुण जो मुझे आकर्षित करते हैं, बहुतायत से मौजूद है. जब से माँ चंडीगढ़ आई है और अपने शरीर के रख रखाव पर पूरा ध्यान
देने लगी है तब से लगातार ये सारे गुण दिन प्रतिदिन निखर निखर कर मेरी आँखों से सामने आ रहे हैं. तो आज सुबह के इस सुखद
सपने का कहीं यह अर्थ तो नहीं कि मेरी माँ ही मेरे सपनों की रानी है? इस सपने का तो यही मतलब हुआ कि मेरी माँ राधा देवी ही
मेरी काम कल्पनाओं की रानी है. में माँ को चाहता हूँ, माँ मेरे अवचेतन मन पर छाइ हुई है. में उसके मस्त शरीर को भोगना चाहता हूँ.
फिर मेने माँ का ख़याल अपने दिमाग़ से निकाल दिया और अपने छोटे भाई अजय के बारे में सोचने लगा.
अजय जिसे में ज़्यादातर 'मुन्ना' कह कर ही संबोधित करता हूँ, आख़िर गे (नेगेटिव होमो यानी कि लौंडा, मौगा, गान्डू या गान्ड मरवाने का शौकीन) निकला. तो इसका इतना नाज़ुक, कोमल, चिकना, शर्मिला होने का मुख्य कारण यह है. आजतक मुझे अजय की लड़कीपने की जो आदतें कमसिनी लगती आ रही थी वे सब अब मुझे उसकी कमज़ोरी लगने लगी. यहाँ आने के बाद अजय के भोलेपन में और शर्मिलेपन में धीरे धीरे कमी आ रही है पर अभी भी वह मुझसे बहुत शंका संकोच करता है. इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि उससे भैया के
सामने कोई असावधानी ना हो जाय. हालाँकि में अजय से बहुत स्नेह रखता हूँ, बहुत खुल के दोस्ताना तरीके से पेश आता हूँ फिर भी
मेरे प्रति अजय के मान में कहीं गहराई में दर च्चिपा है. और आज अपनी काम-भावनाओं के अधीन उस समय जिस समय वा मेरे
लंड पर अपनी गांद पटक रहा था, यह ख़ौफ़ उसके मान में बिल्कुल नहीं था की भैया को यदि इसका पता चल जाएगा तो भैया उसके
बारे में क्या सोचेंगे? ये सब सोचते सोचते मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरी आँख लग गई. इसके बाद हम दोनो भाइयों के अपने
अपने काम पर निकलने तक सब कुच्छ सामान्य था.
आज स्टोर में भी मेरे मन में रात की घटना घूम रही थी. रह रह के पूर्ण नौजवान भाई का आकर्षक बदन, भोला चेहरा और उसका लड़कीपन आँखों के आगे छा रहा था. रात घर आते समय स्टोर से फॉरिन की 30 कॉंडम का 1 पॅकेट और एक चिकनी वॅसलीन का जार ब्रिफकेस
में डाल ले आया. आज माँ ने गाजर का हलवा, पूरियाँ, 2 मन पसंद सब्जियाँ, चटनी बना रखी थी और बहुत ही चाव से पूच्छ पूच्छ कर
दोनो भाइयों को खाना खिलाई. खाना खाने के बाद रोज की तरह हम टीवी के सामने बैठे गप्प सप्प करने लगे. मेने बात छेड़ी.
"माँ आज तो तूने इतने प्यार से खिलाया की मज़ा आ गया. ऐसे ही हंस हंस परौसति रहोगी और चटनी का स्वाद चखाती रहोगी तो और कहीं बाहर जाने की दरकार ही नहीं है. सीधे स्टोर से तुम्हारे व्यंजनों का स्वाद लेने घर भाग के आया करूँगा."
माँ हंस कर: "वहाँ गाँव में तो तेरे पिताजी का,गायों का, खेती बाड़ी का और सौ तरह के काम रहते थे. यहाँ तो थोड़ा सा घर का और खाना बनाने का काम है जो धीरे धीरे करती रहती हूँ. शाम होते ही तुम दोनों के आने की बाट जोती रहती हूँ. तुम दोनों का ही ख़याल नहीं
रखूँगी तो ऑर किसका रखूँगी. माँ के परौसे हुए में जो मज़ा है वह दूसरे के हाथों में थोड़े ही है."
अजय: "हां माँ, भैया तो तुम्हारी इतनी बधाई करते रहते हैं. भैया कहते रहते हैं कि बाहर का खाते खाते मन उब गया अब जो घर का
स्वाद मिला है तो बस बाहर कहीं जाने का मन ही नहीं करता."
में: "हां मुन्ना तुम तो इतने दिनों से माँ के साथ का मज़ा गाँव में लेते आए हो. अब भाई में तो यहाँ घर में ही माँ के परौसे हुए का पूरा
मज़ा लूँगा. जो मज़ा माँ के हाथ में है वह दूसरी में हो ही नहीं सकता."
माँ: "विजय बेटा तेरे जैसा माँ का खायल रखने वाला बेटा पाकर में तो धन्य हो गई. मेरी हर इच्छा का तुम कितना ख़याल रखते हो. मेरे बिना बोले ही मेरे मन की बात जान लेते हो. वहाँ गाँव में तुमसे दूर रह कर में कोई बहुत खुश थोड़े ही थी. मन करता रहता था कि तुम्हारे
पास चंडीगढ़ कुच्छ दिनों के लिए आ जाया करूँ पर तेरे पिताजी को उस हालत में छोड़ एक दिन के लिए भी तुम्हारे पास आना नहीं होता था."
में: "माँ, तुम्हारे जैसी शौकीन औरत ने कैसे फ़र्ज़ के आगे मन मार कर अपने सारे शौक और चाहतें छोड़ दी और उसकी पीड़ा को भला मुझसे ज़्यादा कौन समझ सकता है? अब तो मेरा केवल एक ही उद्देश्य रह गया है कि आज तक तुझे जो भी खुशी नहीं मिली वह
सारी खुशियाँ तुझे एक एक कर के दूँ. माँ, तुम खूब सज-धज के चमकती दमकती रहा करो. मेरे स्टोर में एक से एक औरतों के शृंगार की
, चमकने दमकने की, पहनने की चीज़ें मौजूद है. तुम्हें वे सब अब में ला कर दूँगा. अब यहाँ खूब शौक से और बन ठन कर रहा करो."
माँ लंबी साँस लेकर: "विजय बेटा, ये सब करने की जब उमर और अवस्था थी तब तो मन की साध मन में ही रह गई. अब भला विधवा को यह सब शोभा देगा? आस पड़ोस के लोग भला क्या सोचेंगे?"
में: "माँ, यह मेट्रो है, यहाँ तो आस पड़ोस वाले एक दूसरे को जानते तक नहीं फिर भला परवाह और फिक़र किसको है? अब तुम गाँव छोड़ कर मेरे जैसे शौकीन और रंगीन तबीयत के बेटे के पास शहर में हो तो तुम गाँव वाली ये बातें छोड़ दो. तुम्हारी उमर को अभी हुई ही क्या है? तुम्हारे जैसी मस्त तबीयत की औरतों में तो इस उमर में आ कर आधुनिकता के रंग में रंगने के शौक शुरू होते हैं. क्यों मुन्ना, में ठीक कह रहा हूँ ना. अब तुम भी तो कुच्छ कहो ना."
अजय: "माँ, जब भैया को तुम्हारा बन ठन के रहना ठीक लगता है ऑर साथ साथ तुम भी तो यही चाहती रहती हो तो जो सबको अच्छा लगे वैसे ही रहना चाहिए."
में: "ऑर माँ, यह विधवा वाली बात तो अपने मन से बिल्कुल निकाल दो. दुनिया कहाँ से कहाँ आगे बढ़ गई. विदेशों में तो तुम्हारे जैसी शौकीन और मस्त औरतें आज विधवा होती है तो दूसरे ही दिन शादी करके वापस सधवा हो जाती है."
हम कुच्छ देर तक इसी प्रकार हँसी मज़ाक करते रहे और टीवी भी देखते रहे. फिर माँ रोज की तरह उठ कर अपने कमरे में सोने चल दी. हम दोनों भाई भी अपने कमरे में आ गये. में आज सिर्फ़ बहुत ही टाइट ब्रीफ में था. वैसे तो में रोज पायजामा पहन कर सोता हूँ पर आज एक दम तंग ब्रीफ पहनना भी मेरी तैयारी का एक हिस्सा था. अजय बाथरूम में चला गया. वापस आया तो वह बिल्कुल टाइट बर्म्यूडा शॉर्ट
में था, कई दिनों से वह रात में बॉक्सर या बर्म्यूडा शॉर्ट में ही सोता है. में बेड पर बीचों बीच बैठा हुआ था, अजय भी मेरे बगल में दोनो घुटने मोड़ कर वज्रासन की मुद्रा में बैठ गया.
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