RE: Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद
में: "मा, अब यहाँ तुम कैसे एंजाय करती हो यह कोई देखने वाला नहीं या तुम्हारे बारे में सोचने वाला नहीं. में तुम्हें हर वा सुख दूँगा जो आज तक तुझे गाँव में पति की इतनी सेवा करके भी नहीं मिला. अब से मेरा केवल एक ही उद्देश्या है की तुझे दुनिया का हर वह सुख डून जो तुम जैसी सुंदर और जवान नारी को मिले." में धीरे धीरे पासा फेंक रहा था.
मा,"जब उमर थी तो ये सब मिले नहीं."
में: " मा तुम्हें देखकर कोई भी तुम्हें 35 से ज़्यादा की नहीं बताएगा. फिर मान की तो तुम इतनी जवान हो की कुँवारी लड़कियों को भी मॅट देती हो. पिच्छले 15 साल से बीमार पिताजी की सेवा करते करते तुम्हारी सोच कुच्छ ऐसी हो गई है. लेकिन अब तुम यहाँ आ गई हो और अपने वे सारे शौक और दबी हुई इच्छाएँ पूरी करो. यहाँ मेरी जान पहचान का एक बहुत ही अच्छा बेउटी पार्लर है. कल स्टोर जाते समय में तुझे वहाँ छ्चोड़ दूँगा. तुम वहाँ फेशियल, आइब्रो, बालों की सेट्टिंग सब ठीक से करवा लेना."
मा,"में जानती हूँ की तुम मुझे बहुत खुश देखना चाहते हो और में यहाँ सचमुच में बहुत खुश हूँ. पर ये सब करके मुझे किसे दिखाना है?"
में: "अरे मा ये किसी को दिखाने की बात नहीं है बल्कि खुद का सॅटिस्फॅक्षन होता है. देखना तुम्हें खुद पर नाज़ होगा. फिर में मुन्ना को सर्प्राइज़ देना चाहता हूँ. वा जब गाँव से वापस आएगा तो तुम्हे देखता ही रह जाएगा और सोचेगा की हमारे घर में यह स्वर्ग की अप्सरा कहाँ से आ गई?'
मा: "मेरे ऐसे शहरी रूप को तो मेरा शहरी नटखट बड़ा बेटा ही देखना चाहता है. अजय तो भोलाभाला और सीधा साधा है उसे तो सीधी साधी ही मा चाहिए."
में: "मा, मुन्ना अब पहलेवला मुन्ना नहीं रहा. कुच्छ ही दिनों में यहाँ रह के पूरा चालू हो गया है. स्टोर में भी उसने अपना काम इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया है की सब उसकी प्रशंसा करते हैं."
मा: "तुम्हारे साथ रह के तो आजे चालू नहीं बनेगा तो और क्या बनेगा. कुच्छ ही दिनों में उसे भी अपने जैसा बना लेगा."
में: "मा, अजय भी तुम्हारी तरह पूरा शौकीन है. वा तो च्छूपा रुस्तम निकला पर मुझे पता चल गया और एक बार मेरे से खुल गया तो बहुत जल्दी पूरा खुल गया. मेरा भाई वैसे ही मक्खन सा चिकना है, अब देखो कैसे स्मार्ट बन के रहता है और टाइट स्मार्ट कपड़ों में कैसा मस्त लगता है. तुम तो वैसे ही इतनी स्मार्ट हो और तोडसा भी रख रखाव रखोगी तो पूरी निखार जाओगी."
मा: "पर एक विधवा का ज़्यादा बन तन के रहना.... भला आस पास के लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे?"
में: "मा ये सब गाँव की बातें हैं. यहाँ शहर में इन बातों की कोई परवाह नहीं करता. मुझे ऐसे लोगों की कोई परवाह नहीं. जिस भी चीज़ से या काम से तुझे खुशी दे सकूँ उसे करने में ना तो मुझे कोई संकोच है और ना ही किसी की परवाह. यह विधवा वाली सोच मान से बिल्कुल निकाल दो. कौन कहता है की तुम विधवा हो? तुम तो मॅन्ज़ एकदम सधवा हो. अब तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह बन तन के रहा करो."
मा: "तो अब तुम मुझे विधवा से वापस सुहागन बनाएगा."
हम मा बेटे इस प्रकार कई देर बातें करते रहे. फिर रोज की तरह मा अपने कमरे में सोने के लिए चली गई. में बिस्तर पर कई देर पड़े पड़े सोचता रहा की मा मेरी कोई भी बात का तोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है. पर में मा को पूरी तरह खोल लेना चाहता था की मा की मस्त जवानी का खुल के मज़ा लिया जाय. मा आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी. इसलिए में कोई भी हड़बड़ी नहीं करना चाहता था. में इंतज़ार कर रहा था की जल्द ही यह फूल खुद बा खुद टूट के मेरी गोद में गिरे. उसे विधवा से सुहागन बनाओन और उसका सुहाग में खुद बनूँ.
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