RE: Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद
"हन, अब से तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह साज धज के रहो, शृंगार करो, मान से सारी नेगेटिव बातें निकाल दो और एक गर्ल की तरह बेबाक निसफ़िक़ार जिंदगी जियो और निर्मल आनंद लो." यह कह कर मेने मा के गाल का चुम्मा ले लिए. मा मेरी और देख कर हंस रही थी. में मा के हंसते होंठ पर एक उंगली रख कर अपने होंठ पर अपनी जीभ फिराने लगा. मेने अपनी ओर से इशारा दे दिया की में तुम्हारे होंठों का रस पॅयन करना चाहता हूँ.
"तर्क करना तो कोई तुमसे सीखे. पर तुम्हारी बातें है बहुत गहरी. हम उचित-अनुचित, भले-बूरे, पाप-पुण्या इन दुनिया भर के लफडों में उलझे पड़े रहते हैं, और जो मान चाहे वा कर नहीं पाते और सोचते ही रह जाते हैं की दूसरे क्या सोचेंगे. किसी को भी कष्ट पाहूंचाए बिना जिस भी काम में मान को शांति मिले, आत्मा प्रसन्न हो वही निर्मल आनंद है." मा ने एक दार्शनिक की भाँति कहा.
में: "हन मा, यही तो में तुम्हें कहता रहता हूँ. तुम्हारी और मेरी सोच कितनी मिलती है. जो में सोचता हूँ ठीक तुम भी वही सोचती हो. तभी तो तुमसे मेरा इतना मान मिलता है. जब से तुम यहाँ आई हो मुझे सिर्फ़ तुम्हारी कंपनी में ही मज़ा आता है. तभी तो स्टोर से सीधा तेरे पास आ जाता हूँ. घर से बाहर भी जितना मज़ा मुझे तुम्हारे साथ आ रहा है उतना आज तक नहीं आया."
हम मा बेटे इस प्रकार कई देर बातें करते रहे. फिर रोज की तरह मा अपने कमरे में सोने के लिए चली गई. में बिस्तर पर कई देर पड़े पड़े सोचता रहा की मा मेरी कोई भी चीज़ का तोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है. पर में मा को पूरी तरह खोल लेना चाहता था की मा की मस्त जवानी का खुल के मज़ा लिया जाय. मा आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी.
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