RE: Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद
माँ: "तो आज वापस मुझे दुल्हन के रूप में अपने कमरे में बुला कर तुम दोनो भाई एक साथ मेरे साथ सुहागरात मनाओगे. तो क्या तूने अजय को अपने बीच की सारी बातें बता दी?"
में: "नहीं माँ तेरी मेरी पर्सनल चुदाई के बारे में मेने मुन्ना को कुच्छ भी नही बताया है और ना ही आगे बताउन्गा. तू भी उसे मत बताना. उसके सामने हम दोनों इस तरह पेश आएँगे कि जैसे सब कुच्छ पहली बार हो रहा है. इस में वापस नये के जैसा मज़ा आएगा. दूसरी बात मुन्ना और मेरे बीच अब कोई परदा नहीं रहा है. मुन्ना को में बहुत प्यार करता हूँ और मुन्ना भी मेरी उतनी ही इज़्ज़त करता है. यह समझ लो की हम दोनो भाई दो जिस्म एक जान हैं. जो कुच्छ भी मेरा है वह सब मुन्ना का है. इसलिए मुन्ना के बारे में बिल्कुल भी मत सोचो और हम दोनों भाइयों को अपनी मस्त जवानी का खुल कर मज़ा दो. एक बात तुझे ऑर बताता हूँ की मुन्ना को यह गानडुपने का शौक़ गाँव से लगा हुआ है
. वैसे तो मुन्ना मेरी ही तरह एक पूरा मर्द है, मस्ताना लंड है, जोश है, जवानी है पर अभी तक उसने औरत की चूत का स्वाद नहीं चखा है और गाँव में ना कभी इसे चखने की उसके मन में आई. उसे चूत का मज़ा देना ज़रूरी है नहीं तो कई गांडुओं को खाली गान्ड मरवाने में
ही मज़ा आता है और औरत की चूत देखते ही उनका लंड मुरझा जाता है. आगे शादी व्याह करके उसका घर भी तो बसाना है." तभी घर
की घंटी बज उठी. माँ ने उठ कर दरवाजा खोला तो अजय था.
माँ: "विजय बेटा तो आज जल्दी ही घर आ गया था, तेरा कब से खाने के लिए इंतज़ार हो रहा है. चल तू भी रेडी हो जा, में दोनो भाइयों का खाना लगाती हूँ." यह कह माँ किचन में चली गई और अजय मेरे रूम में. थोड़ी देर में हम तीनों खाने की टेबल पर थे. तीनों ने रोज की तरह हँसी मज़ाक और बातों में खाना खाया. खाना ख़तम होने पर माँ अपने कमरे में चली गई और हम दोनो भाई टीवी के सामने बैठे रहे.
थोड़ी देर बाद माँ ने कहा कि वह नहाने जा रही है. हम दोनो भाई भी अपने कमरे में आ गये. में भी शवर लेने बाथरूम में चला गया. में काफ़ी देर बाद बाथरूम से निकला तो अजय बिस्तर पर लेटा हुआ था. में भी बिस्तर पर आ कर बैठ गया. हम दोनो भाई इधर उधर की बातों में खो गये.
करीब 45 मिनिट्स यूँ ही बीत जाने के बाद 10.30 के करीब माँ हमारे कमरे में आई. माँ की आज की सजधज देखने लायक थी. वही शादी का जोड़ा, सर पर चुनर, माथे पर बिंदिया, गले में सोने का हार, हाथों में कंगन और साथ ही दुल्हन वाली नज़ाकत और शर्म. अजय एक
तक माँ को देखे जा रहा था. माँ धीरे धीरे चलती हुई आ कर हमारे साथ बिस्तर पर बैठ गई.
"लो पंडितजी महाराज दुल्हन भी तैयार हो कर शादी का जोड़ा पहन कर आ गई. चलिए चट मँगनी पट व्याह वाला काम शुरू कीजिए." माँ ने अजय की तरफ देखते हुए हंसते हुए कहा.
"माँ तू तो सचमुच में मेरी भाभी बनने के लिए दुल्हन बन कर तैयार हो कर आ गई. हां, भैया जैसा दूल्हा बड़े नसीब वालियों को मिलता है. कहीं लड़के वालों का इरादा ना बदल जाय तो तुझे तो जल्दी दिखानी ही थी. क्यों भैया, आपसे ज़्यादा तो आपकी दुल्हन को जल्दी है, तैयार हैं ना?" अजय ने मेरी ओर देखते हुए कहा.
में: "ऐसी मस्त और सुंदर दुल्हन को देख कर कोई फूटे नसीब वाला ही ना कर सकता है. मेने तो कल ही कह दिया था कि तुम्हारी पसंद मेरी पसंद है. आगे अब तुम जानो और तुम्हारा काम." मेरी बात सुन अजय ने कुच्छ देर पंडित जैसा मन्त्र पढ़ने का नाटक किया और घोषणा कर दी की हम दोनो पति पत्नी बन गये.
अजय: "भाभी आप कितनी प्यारी लग रही हो. आप जैसी सुंदर पत्नी पाकर मेरे भैया की तो तक़दीर खुल गई है. भाभी आप सजधज के भैया के साथ सुहागरात मनाने तो आ गई है पर में यहाँ से हिलने वाला नहीं. भाभी में तो रात भर यहीं बैठा बैठा आपको देखता रहूँगा."
अजय माँ को बार बार भाभी कह संबोधित कर रहा था और छेड़ रहा था.
माँ : "तू यहाँ से क्यों हिलेगा, तू तो पहले ही मेरी सौत बनके बैठा हुआ है. में तेरी सारी लीला गाँव से ही जानती हूँ. वहाँ हरदम लौंडेबाज़ों की संगत में रहता था. यहाँ भी जब ऐसे गबरू जवान भैया के साथ सोता है तो सुहागरात तो तूने बहुत पहले से ही मना ली होगी. छिप गया होगा अपने भैया से. आजकल भैया का तो तू खासम खाश बना हुआ है. भैया की हर बात में हां में हां मिलाते रहता है. साथ में तेरा सैंया भैया भी तुझे ज़्यादा ही हवा दे रहा है. में सब समझ रही हूँ. गाँव में तो तेरे मुख से बोली तक नहीं निकलती थी. यहाँ तो तू ऐसे खिल गया है जैसे लड़की शादी के कुच्छ दिनों बाद खिल जाती है. तुम मुझे कितना ही भाभी भाभी बोलो और देवर बनने की कोशिश करो पर तू मेरी सौत है मेरी सौत. समझ रहे हो ना सौत का मतलब?" माँ ने सौत शब्द पर बार बार ज़ोर देकर कहा. अजय जो इतनी देर से शेर बना हुआ था और माँ पर हाबी था, माँ की बात सुन उसकी सिट्टी-पिटी गुम हो गई और वह बूरी तरह से झेंप गया. उसने शर्म से गर्दन झुका ली.
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