RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
इन्हीं ख्यालों में ही रास्ता कट गया और राज नेहरू अस्पताल पहुंच गया। डॉक्टर गुप्ता अपनी गम्भीर मुस्कराहट के साथ उसका प्रतीक्षक था।
"हेलो राज, आ गए। बैठो, कहो, क्या हाल-चाल है? अच्छे हो गए हैं।" नीलकण्इठ एक कुर्सी खींच कर बैठ गया।
"बहुत उत्सुक हो मिस्र जाने के लिए?" डॉक्टर गुप्ता ने गम्भीर मुस्कराहट के साथ पूछा।
"हां, आजकल मूड कुछ उखड़ गया है यहां से। मैं कहीं दूर जाने के लिए कई दिनों से सोच रहा था....कि तुमने मेरी बहुत बड़ी उलझन आसान कर दी है।"
डॉक्टर गुप्ता जवाब में मुस्कराया और बोला
"प्रोफेसर एम. के. दुर्रानी से कभी मिले हो तुम?"
"वही तो नहीं जो प्राचीन लिपियों को पढ़ने के माहिर है?" राज ने पूछा, "और जिनका घर पुरानी और दुर्लभ चीजों का अजायबघर लगता है।"
"वही!" डॉक्टर गुप्ता ने सहमति से सिर हिलाया।
"एक दो बार सरसरी सी मुलाकात हुई है....और उससे ज्यादा वाकफियत नहीं है।" राज ने जवाब दिया।
"वो कल मेरे पास आए थे। कुछ प्राचीन ऐतिहासिक तहकीकात के लिए वो मिस्र जा रहे हैं। इस मिशन में दर्शनिक, डॉक्टर, फिजिशियन, साइंटिस्ट सभी तरह के लोग शामिल हैं। वो मेरे पास भी इसीलिए पधारे थे कि मैं उनके साथ मिस्र चलूं। लेकिन तुम तो जानते हो कि मुझे इस अस्पताल से मरने तक की फुसत नहीं होती, इसलिए मैंने उनसे क्षमा मांग ली थी, लेकिन उन्हें अपने बदले एक दूसरा डॉक्टर देने की पेशकश की थी। इन्होंने जब तुम्हारा नाम सुना था तो खुश हो गए थे और जाते-जाते कह गए थे कि कैसे भी हो, मैं तुम्हें उस मिशन के लिए तैयार कर लूं। जब तुम तैयार हो तो मैं उन्हें फोन कर देता हूं।"
प्रोफेसर दुर्रानी से राज की एक-दो मुलाकातों हो चुकी थीं, इसलिए उसने बड़ तपाक से राज का स्वागत किया और मिशन पर जाने के लिए राज को धन्यवाद दिया।
काफी देर तक वो दोनों बैठे मिस्र जाने के बारे में प्रोग्राम बनाते रहे और दूसरे विषयों पर चर्चा करते रहे। प्रोफेसर ने राज से पूरा समझा दिया और यह भी कह दिया कि मिशन में अपने साथ क्या ले जाना चाहिए। सारी बातें तय हो जाने के बाद राज प्रोफेसर से विदा होकर घर वापिस लौट आया।
दूसरे दिन जब राज ने सतीश और ज्योति को बताया कि वो पन्द्रह दिन के अन्दर-अन्दर मिस्र जा रहा है तो वो दोनों हैरान रह गए थे।
"यह अचानक क्या दौरा पड़ा है तुम्हें?" सतीश ने पूछा ।
"एक अन्वेषक पार्टी के साथ जा रहा हूं।” राज ने बताया-"दरअसल आजकल मैं कुछ परेशान सा था। मैं खुद भी कहीं बाहर जाने की सोच रहा था....कि अचानक यह सुनहरी मौका मिल गया।"
"वापसी कब तक होगी?' ज्योति ने चिंतित लहजे में पूछा था।
"ज्यादा से ज्यादा पांच छ: महीने लगेंगे।"
"छ: महीने....हे भगवान! तुम छ: महीने बाद वापिस आआगे?" ज्योति के कुछ ज्यादा ही फिक्रमंदी से कहा-"अचानक मिस्र जाने का फैसला कर लिया? भले मानुष, तुम्हारी तबीयत घबरा रही थी तो भारत में ही कहीं शिमला....श्रीनगर जाने का प्रोग्राम बना लो-भला उस रेगिस्तानी देश में क्या रखा है जी बहलाने को?"
"हां, अगर किसी हिल स्टेशन पर जाने का प्रोग्नाम बनाते तो हम भी तुम्हारे साथ चलते । अब इतने लम्बे अर्से की जुदाई खामखां सहन करनी होगी.....।"
"इसमें दिक्कत ही क्या है? अरे भाई, मैं छ: महीने बाद तो वापस आ ही जाऊंगा।"
"आपके लिए चाहे कुछ भी न हो, लेकिन मेरे लिए तो है न!"
ज्योति ने जल्दी से कहा, "मेरी तो हमेशा से आदत रही है कि जिस शख्स से मैं जरा भी घुल-मिल जाती हूं, उसकी जरा सी जुदाई से बेचैन हो जाती हूं।"
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