RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
बम्बई बन्दरगाह पर जहाज से उतर कर राज ने सतीश को अपने आगमन की खबर और कुशल मंगल का बता दिया था, इसलिए पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर सतीश और दोनों ही उसके स्वागत के लिए मौजूद थे।
प्लेटफार्म पर कदम रखते ही राज की नजर सबसे पहले ज्योति के हसीन मुखड़े पर पड़ी जो खुशी से चमक रहा था। राज ने महसूस किया था कि एक साल के अर्से में ज्योति का हुस्न कुछ और निखर आया था। उसकी निगाहें ज्योति के चेहरे से फिसलती हुई उसके गले में पड़े हुए सांप जैसे नेकलेस पर जाकर जम गई। फिर एक पल के लिये राज की खोपड़ी घूम कर रह गई। भगवान जाने उस सांप में ऐसी कौन सी शैतानी चीज छुपी हुई थी कि उसे देखकर राज के बदन में सनसनी की लहरें दौड़ने लगती थीं।
"हैलो राज!"
नजर मिलते ही वो मधुर मुस्कराहटों के फूल बरसाती हुई राज की तरफ बढ़ी। तो बिल्कुल उसी तरह हसीन और जवान थी जैसे पहले थी।
"हैलो भामी, कैसी...."
राज इतना ही कह पाया था कि किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख दिया। राज बात अधूरी छोड़कर ही घूम गया। लेकिन घूमते ही खौफ और आतंक से राज की आंखें फैल गईं और वो
" सतीश...।" कह कर अपने दोस्त से लिपट गया।
"यह तुम्हें क्या हो गया है सतीश?" उसने सतीश के कंधे पर हाथ रखकर कहा। सतीश इस एक साल के अर्से में सिर्फ हायों का ढांचा भर रह गया था।
यही वही सतीश था जो एक साल पहले तक पत्थर से तराशी गई एक मूर्ति की तरह सख्त और सुडौल था। वही सतीश इस वक्त राज के सामने एक कंकाल की तरह खड़ा था, जिस पर पतली सी खाल मढ़ दी गई हो। जैसे वो कई सालों से बीमार चला आ रहा हो।
सतीश को इस स्थिति में देखकर खूबसूरत औरत कीमती लिबास में होने के बावजूद ज्योति एक भयानक डायन नजर आने लगी। पांच पतियों को हड़प जाने वाली डायन-जो अब छठे पति का खून चूस रही हो!
अनापेक्षित रूप से सतीश की हालत देखकर राज के होश उड़ गए और कुछ देर बो स्तब्ध सा खड़ा रह गया था। ऐसा लग रहा था कि उसका दिमाग सुन्न हो गया हो। उन दोनों से उसकी क्या-क्या बातें हुईं और वो स्टेशन से घर कैसे पहुंचा, राज को कुछ याद नहीं था।
जब उसके होशों-हवास काबू में आए तो वह सतीश की कोठी के एक भव्य सजे सजाए कमरे में बैठा हुआ था। वो ज्योति और सतीश के दाम्पत्य जीवन के बारे में सोचने लगा। लेकिन शायद व्यर्थ में और वक्त निकल जाने के बाद।
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