RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। यानि प्लेट में कोई दूसरी चटक नहीं दिखाई दी थी उसे, जिससे साफ हो गया कि इस तरह का ख्याल सिर्फ बेवकूफी ही था। खाने में किसी किस्म का जहर नही मिलाया जाता था।
, दस-बारह दिन के बाद राज ने खुद ही वो प्लेट बावर्ची से वापिस ले ली।
धीरे-धीरे एक महीना और गुजर गया, लेकिन राज को अपनी गतिविधियों में जरा बराबर भी सफलता नहीं मिली। सतीश दिन-प्रतिदिन दुबला और कमजोर होता जा रहा था, इसके साथ ही राज की शारीकि और मानसिक शक्यिां भी जैसे खत्म होती जा रही थी। रहस्यों और उलझनों के इस दौर में वो हैरान, परेशान , अकेला ही चारों तरफ टक्करे मारता फिरता था
और उसकी निगाहों के सामने ही उसका सबसे प्यारा दोस्त सतीश अपनी अकाल मृत्यु की तरफ तेजी से बढ़ता जा रहा था।
ज्योति अब बिलकुल स्वस्था हो चुकी थी, बीमारी से उबरने के बाद उसका रूप कुछ और निखर आया था। जैसे सोना आग में तप कर सुन्दर हो जाता है। जहां तक राज ने ज्योति की फितरत का विश्लेषण किया था, उससे उसने अन्दाजा लगाया था कि ज्योति को सतीश की जिन्दगी या मौत से कोई दिलचस्पी नहीं थी, वो सिर्फ दिखावें के लिए सतीश की बीमारी पर चिंजा प्रकट करती थी। कभी जब सतीश की तबीयत बिगड़ जाती थी तो पूरी-पूरी रात उसके सिरहाने बैइ कर गुजार देती थी। इस में दिली लगाव या प्यार नहीं था, सिर्फ दुनियादारी ही थी।
डाक्टर जय वर्मा भी अब नियमित रूप से सप्ताह में एक बार जरूर आता था। कई बार राज को सन्देह हुआ कि कहीं डॉक्टर जय ही ज्योति के जरिये सतीश पर मिस्त्री सांप के जहर का एक्सपेरीमेंट तो नहीं कर रहा था? लेकिन इस बात को उसकी अक्ल नहीं स्वीकारती थी, भला सतीश ने जय का क्या बिगाड़ा था, जो जय उसकी जान लेने पर तुल जाता ?
डॉक्र जय गुप्ता के अलावा राज ने सतीश के दूसरे दोस्तों को भी परखा और जांचा, नौकरी की जांच की, आने-जाने वालों पर कडी निगाह रखी, लेकिन नतीजा जीरों ही रहा। उसके संदेह की सुई घूम-फिर कर फिर उसी एक बिन्दु पर पहुंचकर रूक जाती,यानि ज्योति पर।
उसकी तालाश और तफ्तीश की सीमा जैसे ज्योति पर आकर खल्क हो जाती थी, जो रूप और शालीनता के पर्दे में अपनी असलियत छुपाए हुए थी।
मानसिंह तनाव और आत्मिक यन्त्र्या के इस जमाने में, कभी-कभी एक ख्याल और राज के दिल में आता था जिससे वो और भी परेशान रहने लगा था। वो ख्याल यह था कि आखिर डॉक्र जय गुप्ता की वो प्रेमिका कौन थी जिसका उसने जिक्र किया था ? हालांकि एक असम्बंधित आदमी की प्रेमिका के बारे में सोचना बेकार था। फिर भी न जाने क्यों बार-बार यह सवाल राज के जेहन में चकराने लगता था। जब यह सवाल उसके मन में उठता था तो खुद-ब-खुद ज्योति की तस्वीर उसके जेहन मे नाच जाती थी।
"क्या ज्योति ही डॉक्टर जय की शादीशुदा प्रेमिका हैं ?" उसने यह सवाल एकांत में कई बार अपने आप से पूछा होगा, जिसका जवाब उसे अपने दिमाग से नही मिलता था।
जब डॉक्टर संयज सतीश की कोठी पर आता था तो कई बार राज ने जय और ज्योति के चेहरों का गौर से जायजा बार राज ने जय और ज्योति के चेहरों का गौर से जायजा भी लिया था। लेकिन उसे जय और ज्योति के चेहरे हमेशा सपाट ही नजर आते थे। बिल्कुल भावहीन, प्यार का रंग और उसकी गर्मी की चमक उनके चेहरों पर कभी नजर नही आती थी उसे यह उसके सवाल का जवाब था कि ज्योति डॉक्टर जय की प्रेमिका नहीं हो सकती। लेकिन भगवान ही जाने क्यों, राज का दिल पूरी तरह संतुष्ट नहीं होता था।
फिर एक दिन एक अजीब संयोग हुआ। उस दिन सतीश को बुखार आ गया था और वो अपने कमरे में पड़ा हुआ था। शाम को चार बजे राज सतीश को दवा खिला का ज्योति के कमरे में से होता हुआ अपने कमरे में जा रहा था। ज्योति ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी अपने चांद से सुन्दर चेहरे पर मेकअप कर रही थी। वो इस वक्त सुर्ख लिपस्टिक अपने रसीले होंठों पर फेर रही थी।
कदमों की आहट सुनकर उसने राज की तरफ गर्दन घुमाकर दूखा और मुस्कुरा कर बोली।
"हेलो राज ! क्या सतीश को दवा पिला दी हैं ?"
"जी हां।" राज ने सिर हिला दिया।
“एक बात कहूं, अगर तुम मान लो तो ......।"
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“जी....कहिए............? राज चलता-चलता ठिठक गया
"ओडियन में एक बहुत अच्छी पिक्चर लगी है। मैने बहुत दिनों से कोई पिक्चर नहीं देखी। अगर तुम मेरे साथ चलों तो तुम्हारी बड़ी कृपा होगी।" ज्योति ने कहा।
"आप देख आईए , मेरे जाने की क्या जरूरत हैं ?" राज ने गम्भीरता से कहा।
“अकेले पिक्चर देखने में दिल नहीं लगता।' ज्योति ने बड़ी अदा से मचल कर कहा।
" सतीश यहां अकेला रह जाएगा.....।"राज ने बहाना बनाया।
'मैं सतीश से कह देती हूं। फिर यहां उसकी देखभाल के लिए कई नौकरी भी तो मौजूद है।
"नही भाभी, यह अच्छा नहीं लगता कि सतीश यहां.............।"
'राज.....।" उसने राज की बात काटकर बड़ें विनीता स्वर में कहा-“आज मेरा दिल पिक्चर देखने को बहुत कर रहा है। भगवान के लिए निराश न करो।"
“अच्छा, चलता हूं।” राज ने ज्योति की जिद के आगे हथियार डालते हुए कहा।
"थैक्यू ।” वो राज को राजी पाकर किसी फूल की तरह खिल उठी थी।
"मैं जरा कपड़ें बदल लूं। सिर्फ दस मिनट इन्तजार करो।"
"मंजूर! मैं इन्तजार कर रही हूं। लेकिन जरा जल्दी आना। शो शुरू होने में सिर्फ बीस-पच्चीस मिनट ही बाकी रह गए है।"
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