RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
थोड़ी देर में ही चाय आ गई थीं जब उसके बाद नौकर चाय के बर्तन लेने आया था तो राज ने कहा
"अच्छा भाई, मैं चलता हूं। जय आए तो उनसे कह देना कि मैं आया था और इन्तजार करके चला गया। इस तरह करीब एक घंटे में ही राज एक अहम काम निबटा कर वापस भी लौट आया था।
यह उसकी दूसरी बड़ी कामयाबी थी। इसके बार राज को यकीन हो गया था कि वो अपने दोस्त की जान जरूर बचा लेगा।
उस दिन पहली बार नलीकण्ठ को अहसास हुआ कि फरेब चाहे किसी भी रूम में और कितने भी पर्यों में रह कर किया जा रहा हो एक दिन उसका भेद खुल ही जाता हैं
सांप चुराने के बाद उस दिन राज ने फिर रात के खाने में सतीश और ज्योति दोनों को ही नींद की दवा खिला दी नतीजा यह हुआ कि पहले की तरह दोनों वक्त से पहले ही सो गइ।
बारह बजे के करीब जब किसी भी नौकर के आवागमन की आशंका न रही तो राज चोरों की तरह ज्योति के बेडरूम में जा घुसा। लेकिन उस रात उसके दिल में खौफ और आंतक का निशान मात्र भी नही था। बड़ी लापरवाही से वहा उस खौफनाक नेकलेस को ज्योति की गर्दन से निकाल लाया, जिसे देखकर कभी उसके रोंगटे खड़े हो जाया करते थे।
अपने कमरे में आकर राज ने इत्मीनान से अपने यन्न निकाले और नेकलेस से वो मिस्त्र सांप निकलाकर आज ही
चुराया हुआ सांप उसकी जगह रख दियां
उसके बाद उसके नेकलेस दोबारा ज्योति की सुराहीदार गोली गर्दन में पहना दियां
अब ज्योति के नेकलेस का सांप राज के पास सुरक्षित था
और डॉक्टर जय की लेब्रॉटरी वाला खतरनाक जहरीले दांतों वाला सांप ज्योति के नेकलेस में बन्द था। इस तरह राज को उम्मीद थी कि राज जल्दी से नही खुल सकता । इसलिए राज ने सोचा कि पांच-छः दिन में इत्मीनान से उस सांप का जहर निकालकर सांप को दोबारा ज्योति के नेकलेस मे डाल देगा।
सांप बदलने के इस हम काम से निबटने के बाद राज के दिल को चैन आ गया था और दिमाग को बड़ी राहत मिली थी, तीन-चार महीने के लम्बे अर्से के बाद उस राज पहली बार उसे सुख की नींद आई थी।
दूसरे दिन वो फिर डॉक्टर जय की कोठी पर गया, ताकि जान सके कि उसकी चोरी का भेद तो नही खुल गया। और बेचारा जय कब तक खेतों की खाक छानता रहा था फर्जी कोठी की तलाश में ।
कार पोर्च में रोककर वो ड्राईंग रूम की तरफ बढ़ा तो लेब्रॉटरी मे से उसे डॉक्टर जय की आवाज आती सुनाई दी
"राज , इधर ही आ जाओं, मैं यहां लेब्रॉटरी में हु"
शायद उसने खिड़की में से राज को कार से उतर कर अन्दर की तरफ बढ़ते देख लिया था। नीकण्ठ उसकी आवाज सुन कर पलट पड़ा और लेब्रॉटरी में पहुच गया। वहा डॉक्टर जय एक भयानक छिपकली को प्लास्टिक के नाजुम से यन्त्र में दबाए खड़ा था।
"हैलों डॉक्टर जय! तुम इसके साथ क्या करने जा रहे हों ?" राज ने उसके हाथ में दबी छिपकली की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
"कुछ नही यार.......।" डॉक्टर जय ने छिपकली को शीशे के एक बड़े से जार में डालते हुए कहा, “इसका थोड़ा सा जहर निकला रहा हूं।'
"यह छिपकली आम छिपकलियों से बड़ी नहीं हैं ?" राज ने हैरत से पूछा।
"जरा नहीं, काफी बड़ी हैं । यह नस्ल श्रीलंका के पहाड़ी इलाके में पाई जाती है। अरे हां, सुनो.....।'
उसने अचानक छिपकली की बात छोड़कर अपना हाथ राज के कंधे पर रख कर कहा-“यार, कल बहुत बड़ा नुकसान हो गया.............।"
“क्या हुआ था ?"
"वो मिस्त्री सांप था..जिसका जहर बहुत तेज और घातक होता हैं, कल वो........।'
"वही , जिसके बारे में तुमने कहा था कि उसका काटा तीन मिनट से ज्यादा जिन्दा नहीं रह सकता ?" राज ने उसकी
बात काटकर जल्दी से कहा।
'हां हां,वहीं। उसने गर्दन हिलाई-"वो कल मर गया।;
"मर गया.......कैसे मर गया ?" राज ने हैरत की एक्टिंग की।
"कुछ न पूछा यार।" डॉक्टर जय ने अफसोस भरे लहले में कहा-'मैं कल एक काम से बाहर चला गया था, वापिस आकर देखा तो पत्थर का वो भरी मर्तबान नीचे गिरा पड़ा था और । उसके नीचे वो सांप कुचला हुआ पड़ा था। तुमने ठीक कहा था कि अगर मर्तबान गिर पड़ा तो वो कीमती सांप मारा जाएगी। वही हुआ! अपनी लापरवाही से मैं एक अनमोल और दुर्लभ सांप से हाथ धो बैठा......."
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