RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
“ओह........'' राज ने भी झूठा अफसोस जताते हुए कहा-“वाकई एक कीमती और दुर्लभ चीज नष्ट हो गई। लेकिन यार जय, कल तुम गए कहां थे?' मैं आया था कल यहां, मगर इन्तजार से उकता कर वापस चला गया था, तुम देर तक लौटे ही नहीं थे।
"में जानता हूं कि तुम कल आए थे। नौकर ने मुझें आते ही सूचना दी थी। क्या बताऊं यार कल.......।"
उसके बाद जय ने कल फोन आने और फिर कोठी की तलाश में निकलने का किस्सा सुना दिया। फिर उसने कहा- “या तो उसने पता दिया , या फिर मुझें समझने में ही गलती हो गई। करीब ढाई घंटे तक भटकने के बाद वापस लौअ आया था।"
बड़ा बेवकूफ होगा कोई, खामखा तुम्हें परेशान कर दिया!" राज ने हंसी दबातें हुए कहा।
'हां, बेवकूफ ही होगा। लेकिन भगवान जाने उस बेचारे मरीज का क्या बना होगा, जिसे सांप ने काट लिया था। खैर छोड़ों चलो, कुछ चाय वगैरह पीते है।
"क्या तुम यहां का काम खत्म कर चुके हो ?" राज ने पूछा।
"हां ,खत्म ही समझों।" वो यन्त्र को सावधानी से एक तरफ रखते हुए बोला, "आओ चलते हैं।'
वो दोनों ड्राईगरूप में आकर बैइ गए। राज मन ही न खुशा था कि सभी काम अपेक्षानुसार पूरे हो रहे थे, जय को चोरी का सन्देह तक नहीं हो पाया थां
चाय के बाद वो थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करते रहे। बातचीत के दौरान वो पूरे समय में मरने वाले सांप के गुण गिनवाता रहा था और अफसोस प्रकट करता रहा था डॉक्टर जय।
यह घटना सांप बदले जाने के दो दिन बाद की हैं तीसरे पहर सतीश , ज्योति और राज बैठे ताश खेल रहे थे। मौसम हालांकि अभी बदला नहीं था और सर्दी पूरी तरह कम नही हुई थी, फिर भी दोपहर को चहल-पहल कम हो जाने से सन्नाटा सा रहने लगा था।
उस दिन भी ढलती दोपहरी में वो ताश से दिल बहला रहे थे कि ज्योति ने अचानक अपने पत्ते फेंकते हुए कहा-“उफ्फ.....तुम लोग भी कैसे लापरवाह होते जा रहे हो ?" याद नहीं हैं, शाम कों पांच बजे हमें राकेश के यहां चाय पर जाना हैं।'?"
"ओह....... मैं तो भूल ही गया था।" सतीश ने भी पत्ते फेंक दिए। फिर राज की तरफ देख कर बोला-“यह चाय की दावते भी कभी-कभी बुरी तरह बोर करती है। हमारा जीतने का वक्त आया तो यह दावत बीच में आ कूदी! खैर मालिक साहिब की मर्जी .....।"
सतीश कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया। अब राज को भी याद आया कि वाकई सतीश के दोस्त राकेश ने उन्हें शाम की चाय की दावत दे रखी हैं। उन दोनों को उठता देखकर सतीश ने भी पत्ते फेंक दिए।
ज्योति ने सतीश से कहा
“जरा जल्दी से तैयार हो जाना। अपनी आदत के अनुसार बाथरूम में ही गाने गाने मत बैठ जाना या यही पर बैठ गप्पे लड़ाते रह जाओं....।'
“पहले तुम जाकर जल्दी से नहा लो।" सतीश हंसा-“मर्दो की तैयारी का क्या हैं, दो मिनट में तैयार हो लूंगा।
“मुझें तो तैयार होने में कम से कम एक धंटा लगेगा।" ज्योति ने मधुर मुस्कान के साथ कहा- लीजिए सर, मैं तो चल पड़ी।
वो अपने कमरे की तरफ चली गई।
ज्योति को गए हुए करीब पन्द्रह मिनट हुए होंगे, राज और सतीश मजे से तैयार हो रहे थे कि अचानक ज्योति के कमरे से एक भयानक, दर्दनाक चीख उभरी। चीख ज्योति की थी।
राज और सतीश चीख की आवाज सुनकर उछल पड़ें । उन्होंने हैरत से एक-दूसरे की तरफ देखा और कुछ कहे-सुने बगैर ज्योति के कमरे की तरफ दौड़ पड़े।
कमरे के अन्दर से ज्योति के कराहने की आवाज आ रही थी।
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“आह........हाय.......बचाओं सतीश...........मनो..........जा........म.....नो............ज।" संज...............धोखा.........धोखा.....।" वो दोनों दरवाजा खोलने की कोशिश करते रहे और ज्योति के दर्द भरे शब्द धीरे-धीरे डूबते चले गए। यहां तक कि उसकी आवाज आनी बन्द हो गई। कमरे में खामोशी छा गई।
राज और सतीश, दोनों ही घबराए हुए थे और दरवाजा खोलने की कोई तरकीब उनकी समझ में नहीं आ रही थी। इस दौरान ज्योति की चीखें सुकन सारे नौकर भी उनके गिर्द आ जमा हुए थे। जब किसी तरह दोनों से दरवाजा न खुला तो सतीश ने नौकरी को इशारा किया। सभी मिलकर दरवाजे पर जोर लगाने लगे।
तब अन्दर की चिटकनी टूट गई और दरवाजा जोरदार आवाज के साथ खुल गया। राज दरवाजे पर अपना जोर लगाए होने की वजह से अन्दर जा गिरा। लेकिन फौरन ही वो सम्भल गए।
सम्भलते ही राज की निगाह सबसे पहले ज्योति पर पड़ी, लेकिन अन्दर का नजारा देखकर उसके जिस्म में खौफ से झुरझरी दौड़ गई।
सतीश तो वा नजारा देखते ही चीख कर दो कदम पीछे हट गया, राज हैरत और खौफ से स्तब्ध रह गया। जैसे फर्श न उसके पांव जकड़ लिए हो। एक मिनट के अन्दर-अन्दर राज खड़ा-खड़ा पसीने से भीग गया, उसके रोंगटे खड़े हो गए थे।
वो सांप जैसा चांदी का नेकलसे उसकी मी में था ओर वो सांप जो दो दिन पहले राज ने उसके नेकलेस में डाला था, ज्योति के सिरहाने रेंग रहा था।
दो क्षण में ह जब राज सम्भला तो उसने सबसे पहले बढ़ कर उसे जहरीले दोते वाले सांप को मार दिया। अब तक सतीश भी अपनी होशो-हवास पर काबू पा चुका था, उसने जल्दी से एक चादर उठाकर ज्योति के नंगे जिस्म पर डाल दी
सारे नौकर कमरे से बाहर हैरत से मुंह फाड़ें खड़ें अन्दर का दृश्य देख रहे थे। जरूरी कामों से निपटकर राज ने नौकरों से कुछ-न-कुछ काम बता कर वहां से टाल दिया।
तन्हाई होते ही वो ज्योति का मुआयना करने लगा। उसने नब्ज देखी तो बिल्कुल बंद थी। चेहरे को गौर से देखा तो उसे ज्योति के दाए गाल पर एक छोटा सा जख्म नजर आया, जैसे किसी तेज नोकीली चीज की रगड़ लगी हो। इसका मतलब साफ था कि ज्योति के दाए गाल पर उस सांप ने डस लिया था।
ज्योति के गाल पर सांप का काटे का जख्म देखकर राज एब बार फिर चीख कर खड़ा हो गया ओर उसके जेहन में अपने दोस्त उस मिस्त्री डॉक्टर की बातें गूजने लगी।
“वो सांप अगर आपको अपनी जबान से काटता भी रहे तो आपकों कोई फर्क नही पडेगा। कोई नुकसान नही पहुंचेगा। लेकिन अगर किसी तरह इसका जहर आपके खून में दाखिल हो जाए तो दुनिया की कोई ताकत आपकों मौत के मुंह में जाने से नहीं बचा सकती..... । एक ऐसी मौत से, जिसे कोई डॉक्टर अस्वभाविक मौत नहीं कह सकेगा।
ये शब्द थे, राज के उस मिस्त्री डॉक्टर दोस्त के उस सांप के बारे मे, जिसके मुंह में दांत नहीं होते थे और जिसको अभी दो दिन पहले राज ने ज्योति के नेकलेस से निकालकर उसका जहर हासिल करने के लिए अपने बॉक्स मे रख लिया था।
अब ज्योति के गाल पर सांप के काटें का जख्म देख कर राज को पहली बार अहसास हुआ था कि वो सारा मामला समझ चुका है। ज्योति मिस्त्री सांप का जहर सतीश पर किस तरह इस्तेमाल करती थी।
आज उसे यह भी समझ में आ गया था कि डॉक्टर जय ने उस दिन यह दावा क्यों किया था कि वो हमेशा अपनी प्रेमिका के होंठ ही चूमता हैं, गोलों को छुआ तक नही है।
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