RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
"बस.....यही वो सवाल हैं जो मुझे भी परेशान कर रहे है। ?' राज ने जवाब दियां
उसके बाद वो दोनो ही खामोश हो गए थे और असी उलझन मे फंसे घर आ गए थे
अस्थाई तौर पर उन दोनों ने उस औरत का ख्याल दिल से निकाल दिया था। लेकिन खाने के बाद जब वो बिस्तरों पर जा लेटे तो उसे अज्ञात औरत के ख्याल ने फिर राज को आ घेरा
बार-बार राज के दिल में एक सवाल उठ रहा था, कि वो कौप थी? लेकिन उसके दिमाग से उसे इसका कोई जवाब नहीं मिलता था। वो साने की कोशिश करता तो उसे काली नकाब वाली रहस्यमयी का चेहरा उसकी आंखों मे घूम जाता और वो चौंक उठता था।
यही हालत शायद सतीश की भी थी , क्योंकि रात के करीब डेढ़ बजे वो दबे पांव राज के कमरे में दाखिल हुआ। राज ने आहट पाकर उसकी तरफ देखा और पूछा
"कौन......... सतीश?"
"हां, मैं ही हूं।'' उसने कहा-"क्या तुम अभी तक सोये नहीं हों ?"
"नींद ही नहीं आ रही हैं यार...... ।'राज ने जवाब दिया। यही हालत मेरी भी हैं।" वो राज के करइब आकर बैठ गया। थोड़ी देर की खामोशी के बाद बोला
"तुमसे क्या छुपाना राज , दरअसल उस नकाबपोश औरत का ख्याल मुझें सोने नहीं दे रहा हैं
“मेरी नींद भी उसी वजह से उड़ी हुई है।" राज हंस कर बोला," लेकिन सतीश, भगवान के वास्ते उस औरत पर आशिक होने की कोशिश मत करना। तुम बार एक ऐसी रहस्यमयी से प्यार करके उसका नतीजा भुगत चुके हो। कही ऐसा न हो कि.......।"
“नहीं-नहीं। ऐसी कोई बात नहीं है यार।" सतीश ने जल्दी से नीकण्ठ की बात काटकर कहा,” मूझे तो यह सवाल परेशान कर रहा हैं कि वो हैं कौन ? अचानक इस वक्त मुझे एक अजीब समानता का ख्याल आया है और मैं अपना ख्याल तुम्हें बताने के लिए बह उठ आया हूं।"
"कैसा ख्याल ?" राज ने पूछा।
"क्या तुमने महसूस नही किया वा ज्योति से कितनी मिलती-जुलती पर्सनेलिटी वाली थी। ? स्वर्गीय ज्योति........मेरी बीवी जैसी थी बिल्कुल वो।"
ज्योति का नाम सुनकर राज के जेहर मे ज्योति का व्यक्तित्व घूम गया। उसने मन ही मन दोनों औरतों की तुलना की तो दोनो मे वाकई बहुत समानता पाए। मगर फिर उसे ख्याल आया कि वो तो बहुत साल पहले मर चुकी थी, उसकी आंखों के सामने ही।
“समानता थोड़ी बहुत जरूर है।........" उसने धीरे से कहा।
'थोड़ी बहुत नहीं, बहुत ज्यादा हैं" सतीश ने कहा, 'अगर नकाबपोश औरत की दाई भौंह पर एक काला निशान बना दिया जाए , जो ज्योति की भौंह के पास था, ता उसमें और ज्योति में रत्ती भर भी फर्क नहीं रहेगा।
“हो सकता हैं इसी समातनता की वजह से हमारा ध्यान उसकी तरफ हो गया हो। राज ने कहा, लेकिन सवाल यह कि अगर यह सिर्फ समानता की वजह से था तो उसका असर हम पर ही होना चाहिए था। वो क्यों हमें देख कर चौंकी थी और भाग निकली थी ?"
“मुझें तो काई गडबड़ लगती है।' सतीश ने कहा।
"और मेरी समझ में नही आ रहा कि क्या कहूं।” राज बोला-" हो सकता हैं ज्योति की कोइ बहन हों ..... ।
'नही। ज्योति ने कभी अपनी किसी बहन का जिक्र नहीं किया।" सतीश ने कहा-“एक डेढ़ साल के अर्से में उसने ऐसा जिक्र नहीं किया था, हमशक्ल बहन वाला।
'लेकिन एक ऐसी औरत से क्या उम्मीद की जा सकती हैं जो शुरू से अंत तक रहस्यमयी और अन्धे कुए की तरह गहरी रही हो। वो किसी खास मकसद से यह बहन वाला राज छुपा रही हो......."
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'हमे यह नहीं भूलना चाहिए राज कि ज्योति मर चुकी और
और उसकी बहन को हमने देखा तो क्या-उसका जिक्र भी हमने कभी नहीं सुना-तो हमें कैसे पहचान सकती थी? फिर वो हमें देखते ही चौंक कर भाग क्यों निकली थी ?"
"इस सवाल का जवाब न मेरे पास हैं, न तुम्हारे पास..." राज ने उकताकर कहा-"अब यह ख्याल दिल से निकाल दो। दो बज चुके है। खामखां दिमाग खपाने से क्या फायदा ?" सतीश खामोशी के साथ राज के पास से उठा और छोटे-छोटे कदम उठाता हुआ कमरे से बाहर चला गया। राज लेट गया, लेकिन और एक घंटा करवटें बदलने के बाद ही सो पायां
दूसरे दिन वो डॉक्टर सांवत से मिले तो यो ही राज ने उससे भी उस नकाब वाली औरत का जिक्र कर दियां,
पूरी बात सुनकर डॉक्टर सावंत ठहाका लगाकर हंस पड़े।
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