RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
सतीश ने उससे हाथ मिलाया तो उसका चेहरा भी गुलाबी हो गया, जैसे किसी कुंवारी कन्या के सामने शादी का जिक्र छेड़ दिया गया हो।
दस-पन्द्रह मिनट वो उनकी मेज पर बैठी डॉक्टर सांवत से बातें करती रही और उसके बदन से फूटती भीनी-भीनी सुगन्ध राज और सतीश के दिमागों को छूती रही ।
शिंगुरा ने ज्यादातर डॉक्टर सांवत से ही बातचीत की थी, इसलिए वो दोनों खामोश बैठे शिंगरा के बदल और चेहरे को गौर से देखते रहे।
शायर उन दोनों की उत्सुक निगाहों से शिगूरा भी अन्जान नही थीं, क्योंकि कभी-कभी वो भी तिरछी निगाहों से उन दोनों की तरफ देखकर धीरे से मुस्करा देती थी।
करीब पन्द्रह मिनट बाद वहीं नौजवान हॉल में दाखिल हुआ,
जिसे उन्होनें चौपाटी पर शिंगूरा के साथ देखा था। उसे देखकर शिगूरा खड़ी हो गई और डाक्टर सांवत से “एक्सक्यूज मी डॉक्टर' कहकर उस जवान के साथ दूसरी मेज पर जा बैठ।
"डॉक्टर सावंत, क्या आपको यह औरत शिंगूरा रहस्यमयी नही लगती ?"
"क्यों ?" उसमें ऐसी कोन सी बात हैं जो उसे रहस्यमयी कहा जाए ?" सांवत न पूछा।
"उसकी नकाब।” सतीश ने कहा।
"बिल्कुल नहीं।' वो उसके देश और समाज का एक जरूरी रिवाज और परम्परा हैं।" सावंत ने कहा।
और उसके रंगीन गॉगल्स जो फैशन नहीं, उसकी आंखों को छुपाने का काम करते हैं। क्या उसकी आंखों में कोई खराबी हैं
“नहीं, मैंने उसकी आंखें बहुत करीब से देखी है।" डॉक्टर सांवत ने कहा,“ उसकी दोनों आंखें बड़ी सुन्दर और मोहक हैं हालांकि यह चीज मुझें भी हैरत में डाल देती हैं कि वो हर वक्त चश्मा क्यों लगाए रहती है।
लेकिन इस बात पर ज्यादा ध्यान इसलिए नही दिया क्योंकि आजकल बहुत से लोग हर वक्त चश्मा लगाए रखते है।
इसके बाद ज्यादा बहस को फिजूल समझ कर राज ने बातचीत का विषय बदल दिया।
शिंगूरा और उसका भाई अलग मेज पर बैठे किसी मामले पर बहस कर रहे थे। राज ने अन्दाजा लगाया कि बाते उन्ही के बारे में हो रही हैं। क्योंकि एक-दो बार उसके भाई ने मुड़कर उनकी तरफ देखा भी था। बीच में शिंगुरा का भाई एक बार उठकर काउंटर पर गया था और किसी को फोन करता रहा था। वो वापस जाकर बैठ गया था ओर उसके आधे घंटे बाद वो दोनो उठ कर चले गए थें
(यह कहानी उस वक्त की हैं जब मोबाईल फोन अभी आए नहीं हुए थे और बम्बई अभी मुम्बई नहीं बनी थी)
उनके जाने के थोड़ी देर बाद ही नीकलण्ठ और सतीश भी उठ खड़े हुए।
क्लब से बाहर आकर वो अपनी कार की तरफ बढ़ा तो राज ने सड़क पर एक शख्स को खडें देखा। किसी का सड़क पर खडे होना कोई ध्यान देने की बात नही थी, लेकिन उस शख्स का चेहरा इतना भयानक था कि उसे देखकर राज को झुरझुरी आ गई
चौ
ड़ा चकला चेहरा जिस पर चेचक के बड़े-बड़े दाग थे, आंखें सुर्ख अंगारों जैसी, डील-डौल किसी खतरनाक पहलचान जैसा वो शानदार सूट पहने हुए था, इसके बावजूद ऐसा लगता था जैसे कोई गुण्डा किसी का सूट चुकरा कर पहन आया हो।
उसे देख कर खामखां एक खौफ भरी नफरत राज के दिल में जाग रही थी। जब वो तीनों उसके करीब से गुजरे तो उसे गुण्डे ने बहुत गौर से उनके चेरे देखे।
कितनी भयानक शक्ल हैं उस आदमी की।" थोडा आगे बढ़ जाने पर सतीश ने कहा।
बिल्कुल खूनी गुण्डा लगता हैं।” डाक्टर सावंत ने हंसकर कहा।
वो पार्किंग लॉट में पहुंचे तो राज ने देखा कि एक कार की आगली सीट पर शिगुरा और उसका भाई बैठे थे, शिंगूरा का भाई स्टेयरिंग व्हील पर झुककर कार स्टार्ट करने की कोशिश कर रहा था।
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