RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
वो तीनों उन्हें नजरअन्दाज करते हुए अपनी कार में सवार हो गए। राज ने ड्राईविंग सीट पर बैठ कर कार स्टार्ट कर दी। लेकिन सड़क पर उसकी निगाह बैक ब्यू मिरर पर पड़ी तो यह देखकर राज हैरान रह गया कि वो भयानक सूरत वाला गुण्डा सड़क पार करके शिंपूरा की कार की तरफ जा रहा था
कुछ ही दूर जाकर राज ने पलटकर देखा तो वो बदमाश शिंगूरा की कार की खिड़की पर झुका उसके भाई से बात कर रहा था और उनकी कार की तरफ घूर कर देख रहा था।
बात राज को वाकई कुछ अजीब सी लगी थी। उसने कुछ सोचकर सतीश और डॉक्टर सांवत से इस बात का जिक्र नहीं किया, लेकिन उसके अपने दिमाग में खटका सा जरूर लग गया था
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उसके बाद एक हफ्ता बड़े आराम से बगैर किसी घटना के गुजर गया।
वो यानि राज और सतीश अब लगभग शिंगुरा जैसी रहस्यमयी हस्ती को भूलते जा रहे थे या फिर जानबूझ कर उसके बारे में ध्यान नहीं दे रहे थे। डॉक्टर सावंत भी एक वैज्ञानिक था और उसे भी जहरों से बहुत दिलचस्पी थी। राज और डॉक्टर सांवत मध्यप्रदेश में एक जहर के बारे में प्रयोग कर रहे थे।
राज के दिन भर के वक्त का ज्यादातर हिस्स उसी काम में लग जाता था और सतीश या तो दिन भर कोई उपन्यास पढ़ता रहता था या पडौस के बुजूगो। के साथ ताश खेलता रहता था।
शाम को जरूरज वो दोनो साथ-साथ तफरीह के लिए निकलते और किसी क्लब, बार या रेस्टोरेंट वगैरह में वक्त बिता कर रात बारह साढ़े बारह तक वापस लौटते थे।
शाम को वो हमेशा पैदल ही निकलते थे, जरा-जरा से कामों के लिए बम्बई की सड़कों पर कार दौड़ाते फिरना राज को पसन्द नही था। उसके ख्याल में इससे आदमी सुस्त हो जाता हैं। रात के वक्त सुनसान सड़ाकं पर टहलते हुए उसे बड़ा मजा आता था।
बम्बई का चर्च रोड़ बड़ा मार्डन इलाका हैं, वहां शकर के दूसरे इलाको की तरह उन दिनों ज्यादा गहमा गहमी नही होती थी,
ज्यादातर लोग शादियों में आते-जाते हैं, इसलिए सड़के वीरान ही रहती है। रात की लाइटों की रोशनी में चौड़ी-चौडी खाली सड़कों के दोनों तरफ खड़ी इमारते राज को बहुत अच्छी लगती थी। बड़ी-बड़ी लाईटें दूर तक फैली खाली सड़क को और भी आकर्षक बना देती थी।
रात के वक्त क्योंकि कारों, गाड़ियों की भी ज्यादा भीड़ नही होती, इसलिए वो दोनों फुटपाथ छोड़कर सड़क पर चलना ज्यादा पसन्द करते थे।
उस दिन उन्हें बालरूम डांस में काफी देर हो गई थी। दरअसल सतीश को एक हसीन लड़की मिल गई थी और उसके साथ डांस करने में वो इतना मस्त हो गया था कि उसी वक्त का अहसासा ही नहीं रहा था।
दो बजे के करीब जब राज ने खासतौर से घड़ी उसके सामने कर दी थी, तब वो चौंककर जैसे होश में आया था और उसने लड़की का वादा करे उससे विदा ली थी।
उस दिन हल्की-हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी, लेकिन ज्यादा परेशानी की बात नहीं थी, इसलिए उन्होंने कार में आना पसन्द नहीं किया था और न ही लौअते वक्त भी टैक्सी ली थी। अपने अपने रेनकोट वो जरूर साथ लाए थे।
रात के दो बजे सड़क हमेशा की तरह सुनसान थीं। काली सड़क पर खम्भों की रोशनी बड़ी जादुई लग रही थी। राज और सतीश सड़क के बीचों-बीच मजे से चले आ रहे थे, अपनी-अपने ख्यालों में गुम।
करीब आधा मील चलने के बाद उन्हें पीछे से आती किसी कार की आवाज सुनाई दी और वो दोनों सड़क के मध्य से एक तरफ हट गए।
राज खड़ा होकर सिगरेट सुलगाने लगा। सतीश भी रूक गया, कार इतने में उनके करीब आ गई थी।
कार बहुत आहिस्ता चल रही थी या फिर उनके करीब आकर ही रफ्तार सुस्त कर दी गई थी। कार के अन्दर और बाहर की तमाम लाईटें बन्द थी।
कार जब बिल्कुल उनके बराबर पहुंच गई तो राज ने संयोग से ही उसकी तरफ तिरछ निगाल डाल ली, कार के अन्दर का दृश्य देखकर जैसे उसके बदन में बिजनी दौड़ गई। उसके दिमाग की नसे झनझना उठी। उसके बाद जो कुछ हुआ, वो सिर्फ एक पल में ही हो गया।
राज ने बाद में बहुत दिनों तक भगवान का शुक्र मनाया था कि ऐन वक्त पर उसकी नजर कार की तरफ घूम गई थी वर्ना उस रात इन दोनों में से एक का अंत तो हो ही गया होता।
वो खतनाक घटना एक सैकिण्ड से भी कम वक्त में हो गई थीं सिगरेट सुलगाते-सुलगाते जब राज की निगाह कार के अन्दर पड़ी ती तो उस कार में एक तेज चमक दिखाई दी थी, जैसे कोई चमकता खंजर लाईट के सामने पड़ गया हो।
आधे सैकिण्ड में ही उसके जेहर में सारा सीन घूम गया। बाकी आधे सैकिण्ड में उसने बिजली की तरह तड़प कर सतीश को एक धक्का दिया और साथ ही खुद भी जमीन पर गिर गया।
अभी वो जमीन पर गिरे भी नही थे कि कोई चीज सांय की आवाज के साथ उनके सिरों के ऊपर से गुजर गई और सड़क के किनारे एक पेड़ के तने में जा लगी।
जब वो नीचे गिर थे, ठीक उसी वक्त जोर से बादल गरजे थे और साथ ही बिजली चमकी थीं बिजली की रोशनी में राज को कार के स्टेयरिंग के पीछे एक चेहरा दिखाई पड़ा था।
उस चेहरे की सिर्फ एक ही झलक देखना काफी थी।
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