RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
बम्बई आने के बाद करीब हर रोज ही वो क्लब जाते थे, लेकिन इस बार कोई लड़की उसकी नजर में नहीं अटकी थी, जो स्थाई रूप से उसकी डांस पार्टनर बनी रहती । वो हर रोज नई लड़की के साथ डांस करता था।
लेकिन उस दिन जब डॉक्टर सांवत और राज क्लब में दाखिल हुए तो उन्होंने सतीश को एक कोने की मेज पर एक बहुत ज्यादा हसीना लड़की के पास बैठे हुए देखा। वो दोनों अपने आस-पास से बेखबर बड़े प्यार से आपस में बातें करने में व्यस्त थे।
उस लड़की को राज ने पहली बार देखा था। वो हर रोज कल्ब जाते थे लेकिन यह लड़की उन्हें कभी नजर नहीं आई थी। राज ने डॉक्टर सावंत का हाथ दबाकर सतीश की तरफ इशारा किया और पूछा
"क्या आपने पहले कभी इस लड़की को क्लब में देखा है?"
"नहीं।” डॉक्टर ने इन्कार में सिर हिलाया, "यह नई लड़की है...और आजकल में ही क्लब की मेम्बर बनी होगी।"
"लड़की तो एकमदल एटमबम है।'' राज ने लड़की की तारीफ की।
"वाकई।" डॉक्टर सावंत ने कहा, "आपका दोस्त भाग्यशाली
वो जानबूझ कर उन दोनों के करीब से गुजरे तो सतीश ने उन्हें देख लिया और मुस्कराते हुए उसने उन दोनों से लड़की का परिचय करवाते हुए कहा
"यह जूही है, और जूली, यह मेरे दोस्त राज और यह डॉक्टर सावंत हैं।"
उन दोनों ने ही जूही से हाथ मिलाया।
जूही का रेशमी मुलायम हाथ अपन हाथ में पाकर राज ने अपने आपको जन्नत की फिजाओं उड़ता हुआ महसूस किया। वो बेहद हसीन थी और उसका हुस्न तारीफों से बहुत ऊंचा था। लम्बी-लम्बी रेशमी काली जुल्फों के नीचे उसी खूबसूरत, मुस्कराती हुई आंखें यों मालूम होती थीं जैसे घने बादलों के बीच बिजलियां कौंध रही हों। गालों में जवानी का खून झलक रहा था। हरे रंग की साड़ी में लिपटा उसका गोरा बदन निगाहों में समाया जा रहा था।
"बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।" राज ने बड़ी मुश्किल से उसके सम्मोहन से निकलते हुए कहा।
"मुझे भी।" उसने शोखी से हंसते हुए कहा।
रस्मी बातचीत के बाद राज और डॉक्टर उन्हें अकेला छोड़
कर एक दूसरों मेज पर जा बैठे। वो दोनों खामखां कबाब में ही नहीं बनना चाहते थे।
बहुत देर तक दोनों बैठे स्कॉच से दिल बहलाते रहे । एक-दो बार राज ने भी अच्छी पार्टना मिल जाने पर डांस भी किया। एक बार डॉक्टर सावंत भी अपनी एक पुरानी दोस्त के साथ डांस करने फ्लोर पर गया।
दो-तीन घंटे उनके बड़े मजे से गुजर गए। कुछ देर के लिए बंता सिंह का ख्याल भी राज के जेहन से उतर गया। लेकिन नौ बजे के करीब शिंगूरा अपने भाई के साथ हॉल में दाखिल हुई तो एक बार फिर बंता सिंह का ख्याल राज के दिमाग पर बुरी तरह छा गया। उसका नशा हिरण हो गया।
दूर से ही हल्का सा सिर हिलाकर शिंगूरा ने राज और डॉक्टर सावंत का स्वागत किया और जमाल से बातें करती हुई उनमें दूर एक मेज पर जा बैठी। राज की तरफ शिंगूरा की पीठ थी जबकि जमाल पाशा का चेहरा उसकी निगाहों के सामने
था।
डॉक्टर सावंत ने राज के चेहरे पर पेरशानी के लक्षण देख कर आधी बोतल स्कॉच और मंगवा ली। दो पैग और पीकर राज हर किस्म की फिक्र से आजाद हो गया।
सतीश उनसे थोड़े फासले पर जूही के साथ बैठा हुआ था, कुछ इस तरह कि जमाल और शिंगूरा की तरफ उसकी पीठ थी, अलबत्ता जमाल और जूही आमने-सामने थे।
उस वक्त, जबकि राज और डॉक्टर सावंत पूरी तरह नशे में थे, न चाहते हुए भी राज की नजरें एक बार सतीश की तरफ उठ गई थीं।
उसने देखा कि सतीश सिगरेट मुंह में दबाए मेज पर झुका हुआ था और जूही माचिस की तीली जलाकर उसकी सिगरेट सुलगा रही थी।
उसके हाथ तो सिगरेट सुलगाने में व्यस्त थे लेकिन उसकी नजरें सतीश के झुके हुए सिर के ऊपर से होती हुई जमाल पाशा की तरफ उठी हुई थीं। नशे में होने की वजह से था या हकीकत थी कि एक बार राज ने महसूस किया कि जूही ने आंख दबा
और भौंहें उचकाकर ऐसे भाव जाहिर किए थे जैसे किसी को कोई खास इशारा कर रही हो। राज ने जल्दी से उकी नजरों की सीधी में देखा तो जमाल पाशा उन दोनों की तरफ बड़े गौर से देख रहा था और उसके होंठों पर पैशाचिक मुस्कराहट नाच रही थी।
यह सारा कुछ इतनी ही देर में हो गया था, जितनी देर में कि माचिस की तीली जलाकर सिगरेट सुलगाई जा सकती है। उसके बाद सतीश और जूही फिर बातें करने लगे थे।
राज इस पहेली को न समझ सका। फिर यह सोचकर कि
वो नशे में है और ऐसी हालत में कुछ गलतफहमी भी हो सकती है, यह सोचकर उसने वो ख्याल दिमाग से निकाल दिया।
थोड़ी देर में ही जूही सतीश से विदा लेकर चली गई और सतीश उठ कर नीलकण्ड और डॉक्टर सावंत वाली मेज पर आ बैठा। वो बहुत ज्यादा खुश था, जिससे राज ने अन्दाजा लगाया कि लड़की पूरी तरह उसके काबू में आ चूकी है। सतीश ने भी खुशी में बेतहाशा पीनी शुरू कर दी। उसके राज को कुछ पता नहीं चला कि शिंगूरा और जमाल पाशा कब गए और क्लब में कौन-कौन आया गया।
आखिर बारह बजे जब वो क्लब से निकले तो तीनों ही नशे में चूर थे। सतीश को उन दोनों से कुछ कम नशा था, इसलिए कार ड्राईव करने ही जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले ली थी और वो उम्मीद के खिलाफ बगैर किसी घटना के सुरक्षित घर पहुंच गए।
सुबह को जब सतीश राज के साथ नाश्ते की मेज पर बैठा हुआ था तो नीलकण्ड ने सतीश से कहा
" सतीश, यह लड़की जूही है तो बहुत हसीन, मगर इतनी हसीन लड़की से बच कर ही रहना। आजकल हम बड़ी पेचीडा स्थितियों से गुजर रहे हैं।"
"ओह डियर राज, तुम उसकी फिक्र न करो।” सतीश ने शोख लहजे में कहा-"मैं बहुत सावधान हूं।"
"वो है कौन?"
"एक लड़की है, क्लब की मेम्बर है।"
"कहां रहती है?" नीलकण्ड ने पूछा।
"मालूम नहीं। मैंने पूछा नहीं था।"
"अजीब बेवकूफ बन्दे हो यार!" नीलकण्ड ने झुंझलाकर कहा-'"इश्क लड़ाना शुरू कर दिया, और उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते हो?"
"अरे, इश्क कौन कर रहा है यार, वो तो बस जरा सी दिल्लगी है।" सतीश मुस्करा कर बोला।
"चलो दिल ही लगा हो, उसके बारे में कुछ जानकारी तो होनी ही चाहिए थी न।”
"ठीक है साहब ।” सतीश ने शोखी से कहा-"आज ही इसकी वंशावली और जन्म स्थान के बारे में मालूम कर लूंगा। और कुछ? अब उसका पीछा छोड़ा, नाश्ता कर लेते हैं।"
कह कर उसने केतली खींच कर चाय बनानी शुरू कर दी और बोला
"तुम बताओ, तुम्हारे जासूस बंता सिंह जी कोई खबर लाए हैं?"
"वो तो कल रात से लापता हो गया है....।"
"लापता हो गया है?" सतीश ने हैरत से पूछा, "क्या मतलब?'
"यही कि परसों रात से फिर वो वापिस नहीं लौआ।" राज बोला, "आज सुबह मैं शिंगूरा की कोठी की तरफ गया था, सिर्फ उसकी गाड़ी खड़ी थी, वो मैं वापिस लाट लाया।"
"कहां जा सकता है वो?" सतीश ने कुछ फिक्रमंदी से कहा।
"जाना कहां है!" राज बोला, "या तो उसे कत्ल कर दिया गया है, या फिर वो शिंगूर की कोठी में कैद है।"
"फिर क्यों ने पुलिस की मदद से उसकी कोठी की तलाशी ले ली जाए?"
"राय तो अच्छी है।" राज बोला, "लेकिन फर्ज करो, उन्होंने बंता सिंह को उस कोठी में नहीं, किसी और जगह कैद कर रखा हो या उसे मार कर कहीं दबा दिया हो-ऐसी सूरत में हम उन पर क्या आरोप लगा सकेंगे? ओछा हाथ डालकर मुफ्त
की शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी।"
"यह भी ठीक है।" सतीश ने कहा, "लेकिन कुछ तो करना ही होगा।"
"हां, करना तो जरूर चाहिए। लेकिन क्या किया जाए? किस तरह किया जाए? यही सोचने की बता है।"
"कुछ सोचा भी है?"
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