RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
"कल कई घंटे तक मैं डॉक्टर सोच-विचार करते रहे थे लेकिन हमारी समझ में कुछ नहीं आया था।" राज ने जवाब दिया, "अब सोच रहा हूं कि नाश्ते के बाद मैं टैक्सी लेकर जाऊं या कार में शिंगूरा की कोठी के चारों तरफ आधा मील के दायरे में घूम-फिर कर देखू, शायद कोई सुराग मिल जाए। और मैं वहां जाकर यह भी देखना चाहता हूं कि क्या किसी तरह चोरी-छुपे कोठी में घुसने की कोई तरकीब हो सकती है? अगर ऐसा कोई सुरक्षित रास्ता मिल गया तो रात के वक्त मैं कोठी में जाकर बंता सिंह को तलाश करने की कोशिश करूंगा।"
"काम बहुत खतरनाक है।' सतीश ने कहा।
"मालूम है मुझे।" राज बोला, "लेकिन उस गरीब को राम भरोसे भी तो नहीं छोड़ा जा सकता। वो हमारी वजह से इस संकट में फंसा है।"
"ठीक है।' सतीश बोला, " अब तुम यह बताओ कि इसमें मैं किस तरह तुम्हारे काम आ सकता हूं?" ।
"फिलहाल तो तुम अपनी हिफाजत ढंग से करते रहो। बाद में तुम्हारी जरूरत पड़ी तो देखा जाएगा।"
"लेकिन राज, कोई भी काम करो, अपना ख्याल रखना।" सतीश ने फिक्रमंदी से कहा, "मुझे तो वो लोग बहुत खतरनाक महसूस हो रहे हैं।"
"मेरी फिक्र न करो, मैं अपनी रक्षा करना खूब जानता हूं।" राज ने मुस्करा कर जवाब दिया।
"क्या अभी जाओगे?" सतीश ने पूछा।
"हां । बस नाश्ता करके जा रहा हूं।" राज ने जवाब दिया।
उसके बाद वो दोनों खामोशी से नाश्ता करने लगे और कोई आधे घंटे बाद ही राज अभियान पर निकल गया।
अपनी कार में आया था राज, और कार को उने खंदकों में खड़ी करके और पैदल ही कोठी के इर्द-गिर्द घूमता रहा और शाम तक जंगलों की खाक छानता रहा।
लेकिन उसे बंता सिंह का कुछ पता नहीं चल सका । कोठी को भी उसने चारों तरफ से देख लिया था, जाहिरी तौर पर उसमें घूसने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था।
कोठी में जानबूझ कर बाहर की तरफ खिड़कियां बनवाई ही नहीं गई थीं। लेकिन छत पर कई जगह बुर्जियां सी बनी हुई थीं जिनके नीचे शायद रोशनदान टाईप की कोई चीज हो या शीशे के उठाए जा सकने वाले रोशनदान हो सकते हैं। नीलकण्ड ने उन्हें देखा तो उसने सोचा अगर किसी तरह कोठी की छत पर पहुंचा जा सके तो कोठी के अन्दर की स्थिति मालूम की जा सकती है।
कोठ की इस बनावट से ही उसने यह अन्दाजा भी लगाया कि इस कोठी में जरूर कोई गड़बड़ है जिसे वहां रहने वालों में छुपाए रखने के लिए सब पर्देदारी बरती जा रही है। वर्ना खिड़कियां ने बनवाने की वजह कोई न होती।
बहुत देत तक इधर-उधर घूम कर राज यह ढूंढने की कोशिश करता रहा कि छत पर किसी रास्ते से चढ़ा जा सकता था। लेकिन डेढ़ घंटे की नाकाम कोशिश के बाद उसकी समझ में आ गया कि बगैर किसी बाहरी मदद के वो कोठी की छत पर भी नहीं पहुंच सकता।
आखिरी मायूस होकर वो फ्लैट पर लौट आया। बंता सिंह का ख्याल उसके दिमाग पर इस तरह सवार था कि उसे चैन नहीं
आ रहा था। वो सोच रहा था कि अगर बंता सिंह को कुछ हो गया तो उसकी सारी जिम्मेदारी उन्हीं लोगों पर होगी। क्योंकि वो इनके हितों के लिए काम कर रहा था।
बंता सिंह कोई पेशेवर जासूस नहीं था बल्कि एक गरीब टैक्सी ड्राईवर था और उसे ऐसे खतरनाक काम पर लगाकर उन्होंने एक गलती ही की थी। दुश्मन बहुत ज्यादा चालाक और खतरनाक थे और उनसे टक्कर लेने के बहुत ज्यादा चालाक और ताकतवर शख्स की जरूरत थी।
शाम तक राज इन्हीं ख्यालों में उलझा रहा, डॉक्टर सावंत के यहां भी नहीं गया, बल्कि फोन पर अपनी नाकामी की दास्तान संक्षेप में सुना दी थी।
शाम को सतीश ने बहुत ज्यादा अनुरोध किया तो राज को उसके साथ क्लब आना पड़ा। लेकिन क्लब में जाते ही सतीश
को जूही मिल गई और राज अकेला रह गया था।
थोड़ी देर राज अकेला बैठा दिल बहलाने की कोशिश करता रहा, एक-दो पैग स्कॉच पीकर फिक्र दूर करने की कोशिश की
और एक बार एक लड़की के साथ डांस करने फ्लोर पर भी गया। लेकिन एक दो राउण्ड डांस करने के बाद ही उसका दिल उकता गया और तबीयत खरा का बहाना करके, लड़की से माफी मांगकर टेबल पर वापिस आ गया।
आखिर तंग आकर उसने सतीश की बातचीत में दखल देते हुए
कहा
" सतीश, मैं घर जा रहा हूं और कार ले जा रहा हूं। तुम टैक्सी में आ जाना।” राज कार में बैठ कर सीधा घर आ गया।
एकांत में बैठकर राज बहुत देर तक सोचता रहा कि आखिर बंता सिंह को किस तरह तलाश किया जाए।
बैठे-बैठे सोचते हुए राज को न जाने कितना वक्त गुजर गया। ऐशे-ट्रे में सिगरेटों के टाटों से उसने अन्दाजा लगाया कि उसे क्लब से आए कम से कम दो घंटे गुजर चुके हैं।
उसी वक्त अचानक उसके दिमाग में एक ख्याल आया कि इसी वक्त शिंगूरा की कोठी पर चलना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए। हो सकता है किसी तरह इस वक्त अन्दर जाने की कोई तरकीब सूझ जाए या कम से कम छत पर पहुंचने का कोई
रास्ता ही मिल जाए।
दिल और दिमाग की इस आवाज को उसने फौरन सुना और उस पर अमल करने का फैसला कर लिया। पिस्तौल जेब में डाल कर वो चल पड़ा।
रास्ते में उसने एक मजबूत प्लास्टिक की रस्सी भी खरीदी ताकि छत पर चढ़ने के काम आ सके। इस वक्त चारों तरफ अन्धेरा छाया हुआ था, क्योंकि चांद की शुरूआती तारीखें थीं इसलिए रात को किसी के देखे जाने का खतरा भी नहीं था।
शहर से बाहर कोठियां बिल्कुल सुनसान पड़ी थीं। राज ने घड़ी देती तो साढ़े ग्यारह बजे रहे थे। दस-बारह मील का सफर नीलकण्ड को बड़ा सुहाना लग रहा था। कार की हैड लाईट में तारकोल की सड़क चमक रही थी। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, जिसे कभी-कभी किसी कार के इंजन की आवाज भंग कर देती थी। उसके बाद फिर वही गम्भीर सन्नाटा छा जाता था।
शिंगूरा की कोठी के करीब पहुंचकर राज ने कार की सभी लाईटें बुझा दी और सड़क से हटकर कोठी के पीछे जहां एक बागीचा सा बना हुआ था, वहीं कार राक दी।
उस वक्त राज प्रकृति की सुन्दरता के दृश्यों में इतना मगन था कि थोड़ी सी असावधानी कर बैठा। जिसका खामियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ा। जब कार उसने कोठी के करीब जाकर रोक दी, तब उसे इस मूर्खता का अहसास हुआ कि कोठी के पीछे एक कार के अक्षरों के निशान देख कर उन्हें जरूर शक हो जाता और उन्हें मालूम हो जाता कि रात को किसी ने कोठी के बारे में छानबीन करने की कोशिश की है। लेकिन यह अहसास राज को वक्त के बाद हुआ था। अब कुछ नहीं हो सकता
था उस बारे में।
कार छोड़कर राज ने एक बार कोठी की परिक्रमा की, लेकिन एक दरवाजे के सिवा उसे कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं
आया। पानी को टंकी क्योंकि छत पर था इसलिए लोहे का एक मजबूत पाईप ऊपर से नीचे जरूर आ रहा था। दीवार से लगा-लगा।
अगर कोई फुर्तीला वोर या कोई पशेवर डिटेक्टिव होता तो उस पाईप को देखते ही बगैर सोचे-समझे लपककर उसके जरिये छत पर चढ़ जाता।
लेकिन राज ने चूंकि इसके पहले कभी इस तरह का कोई काम नहीं किया था, इसलिए छत पर पहुंचने को एक रास्ता मिल जाने के बावजूद उसे सोचना पड़ रहा था।
इसमें भी कोई शक नहीं कि ज्योति और शिंगूरा के चक्करों में उलझ पर राज भी आधा-अधूरा जासूस बन गया। और उसे पूरी उम्मीद थी कि हालात की रफ्तार अगर ऐसी ही रही तो बहुत जल्दी वो एक माहिर जासूस बन जाएगा। वहां खड़े-खड़े तो राज यहां तक सोच गया कि थोड़ा अनुभव और हो जाए तो बाकायदा लाइसें लेकर प्राइवेट डिटेक्टिव बन जाएगा
और एक एजेन्सी खोल लेगा।
कुछ देर वो पाईप के पास खड़ा छप पर जाने के लिए हिम्मत बटोरता रहा। कोठी के अन्दर के हालात जानने का एकमत्र जरिया छत पर बने वो वेंटीलेटर थे और छत पर जाने का इकलौता जरिया या पानी का पाईप ही था।
|