Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
12-27-2021, 01:22 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
मैं: “हम तो अभी तैयार भी नहीं हुए, तुम बड़ा जल्दी आ गए. और तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हुए, बाहर नहीं जाना क्या?”

पायल: “मुझे न्याय चाहिए. ये डीपू मुझ पर शक कर रहा हैं कि इसके सोने के बाद मैंने कुछ किया हैं अशोक के साथ मिलकर.”

अशोक: “डीपू ये क्या हैं? अपने दोस्त पर यकीन नहीं तुम्हे?”

पायल: “डीपू ही नहीं, ये अशोक भी सुबह डीपू और प्रतिमा को चिपक कर सोते हुए देख शक कर रहा था.”

अशोक: “झूठी, शक तुम कर रही थी, मैं नहीं.”

मैं: “अच्छा ! यहाँ रूम में आने के बाद भी तुम मुझे पूछते हुए शक कर रहे थे, उसका क्या?”

अशोक: “अरे यार तुम दोनों बीवियां तो मेरे पीछे ही पड़ गयी. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था.”

डीपू: “थोड़ा बहुत पूछ लिया तो क्या हो गया. क्लियर ही तो कर रहे थे.”

पायल: “इसे पूछना नहीं, शक करना कहते हैं. हम बीवियों ने तो तुम पतियों पर शक नहीं किया फिर. तुम ही क्यों करते हो?”

मैं: “वो तो ठीक हैं कि कल रात वाला तीसरा चेलेंज बीच में ही छूट गया, वरना ये दोनों पति तो शक के मारे पता नहीं क्या करते हमारा.”

अशोक: “ना तो हम शक करते हैं और ना ही किसी चेलेंज से डरते हैं.”

डीपू : “चाहिए तो वापिस करा लो चेलेंज.”

पायल: “चेलेंज तो होकर ही रहेगा. मैं प्रूव कर दूंगी कि ये दोनों पति शक्की हैं.”

मैं: “नहीं बाबा, मुझे नहीं करना. मैं अब ओर कपड़े नहीं उतारने वाली फिर से.”

पायल: “चिंता मर कर कपड़े के अंदर कोई नहीं देखेगा.”

अशोक: “तो फिर बाहर घूमने का क्या? हम तो घूमने आये थे.”

पायल: “मुझे सिर्फ एक घंटा दो, तुम दोनों मर्दो की पोल खोल दूंगी.”

डीपू: “आ जाओ, जो करना हैं करो. हम शक नहीं करेंगे.”

पायल: “चल प्रतिमा, बेड पर चल.”

मैं: “पर मैं अब कपड़े नहीं खोलूंगी.”

पायल: “अरे हां, नहीं खोलने, चल.”

मैं और पायल कल रात की तरह बेड के बीच एक दूसरे की तरफ मुंह कर करवट लेके लेट गए.

पायल: “तुम दोनों पति अपने बाथरोब की लैस खोल कर एक दूसरे की बीवियों के पीछे चिपक कर लेट जाओ.”

अपने बाथरोब की लैस खोल कर डीपू मेरे पीछे आकर लेट गया और अशोक पायल के पीछे.

पायल: “अब पहले किसका टेस्ट ले?”

मैं: “पहले तुम ही करके बताओ क्या करना चाहती हो.”

पायल: “ठीक हैं. मैं और अशोक मिल कर डीपू के मन में शक पैदा करने की कोशिश करेंगे. अगर डीपू को शक हुआ तो वो अपनी जगह से उठ कर हमारे पास में आ शक दूर करने की कोशिश करेगा. अगर वो वही लेटा रहा तो मतलब उसे शक नहीं हैं. सिंपल?”

सबने इसमें अपनी हामी भरी.

पायल: “अशोक अपना सामान तैयार करो.”

अशोक: “ऐसे कैसे करू, कुछ मूड नाम की चीज भी तो होती हैं.”

पायल: “ऐसे करो” ये कहते हुए पायल ने अपने बाथरोब की लैस खोल उसको पीछे से ऊपर कर अपनी गांड को बाहर निकाल दिया.

मुझे और डीपू को तो आगे से कुछ नहीं दिखा पर अशोक तो पायल के पीछे ही था, उसे दिखा. अशोक पायल की गांड को घूरते हुए अपना लंड को पकड़ आगे पीछे रगड़ते हुए कड़क करने लगा.

अगले दो तीन मिनट में ही अशोक अपने कड़क सामान के साथ तैयार था.

अशोक: “अब बोलो, तैयार हैं?”

पायल: “मेरे पीछे चिपक कर लेट जाओ और अपना सामान से मेरे पीछे झटके मारो, पर याद रखना मेरी उस जगह के वहा ना जाए.”

अशोक ने अब पायल के पिछवाड़े के उभारो पर जोर जोर से झटके मारना शुरू कर दिया. पायल की गुदगुदेदार गांड से अशोक के शरीर के टकराने से थाप थाप की आवाजे आने लगी.

आगे से देखने पर एकदम ऐसा भ्रम हो रहा था जैसे सचमुच अशोक पायल को चोद रहा हो.

पायल: “डीपू, जब भी तुम्हे शक हो तो आकर देख लेना, कही हम कुछ कर तो नहीं रहे.”

डीपू: “अब तो तुम असली में कर लो फिर भी नहीं आऊंगा.”

पायल ने जानबूझकर सिसकियाँ निकालनी शुरू कर दी जैसे सच में चूदा रही हो. पर डीपू समझ गया था ये उसको फंसाने का जाल था. पायल ने अब अपनी अगली तरकीब लगायी.

पायल: “अशोक, अपना सामान अब मेरे जांघो के बीच रखो. एक दम ऊपर की तरफ जहा दोनों टाँगे मिलती हैं.”

पायल ने अपनी ऊपर की टांग को थोड़ा उठा दिया और अशोक ने पायल की चूत के एकदम पास अपना लंड रख दिया. पायल ने अपनी टांग फिर बंद कर दी.

हमें आगे से सिर्फ पायल की दोनों जाँघे दिख रही थी. अशोक ने अब फिर झटके मारने शुरू कर दिए और पायल ने सिसकिया मारते हुए डीपू को जलाना.

थोड़ी देर ये चलता रहा पर डीपू पर कोई असर नहीं हुआ, हां उसका लंड जरूर कड़क हो, मेरे पिछवाड़े को छू, चुभ रहा था.

पायल: “ये आखिरी प्रयास हैं. प्रतिमा जरा चादर लाकर हम दोनों के कमर से लेकर नीचे टांगो तक ओढ़ा दे.”

मैं सोचने लगी अब ये क्या करने वाली हैं. मैंने वैसा ही किया और फिर अपनी जगह आकर लेट गयी.

उनके नीचे का हिस्सा पूरा ढक चूका था तो कुछ दिख ही नहीं रहा था. अशोक के झटको की वजह से सिर्फ चद्दर हिल रहा था.

थोड़ी देर बाद अशोक के हाथ की उंगलियों की आकृति पायल के कूल्हों पर चादर में से दिख रही थी. धीरे धीरे जरूर पायल की सिसकियाँ तेज होने लगी थी.

फिर थोड़ी देर में अशोक की जोर लगाने वाली हलकी सिसकिया भी सुनाई देने लगी. पायल असल में सिसकियाँ निकाल रही थी या नकली ये कह पाना बहुत मुश्किल हो गया था.
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RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र - by desiaks - 12-27-2021, 01:22 PM

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