RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
मेरी चूत अब फड़फड़ा रही थी. कभी चूत की पंखुडिया सिकुड़ती तो कभी फूल कर खुल जाती.
मैं अब आबरू, नफरत, दया सब भूल चुकी थी, मैं अपने शरीर की जरुरत के आगे लाचार हो चुकी थी. पति ने वैसे भी पिछले एक सप्ताह से मुझे कोई शारीरिक सुख नहीं दिया था.
वो अपने कपडे उतार कर मेरे पास में लेट गए. शायद इतनी मेहनत के बाद थोड़ा आराम करना चाहते थे. मैंने देखा उनका लंड फुँफकार मार रहा था और रह रह ऊपर नीचे हो सलामी दे रहा था.
उनके हाथ में एक कंडोम का पैकेट था. उन्होंने वो कंडोम खोल अपने लंड को पहना दिया.
फिर उन्होंने मुझे अपनी तरफ खिंच कर मुझे अपने आप पर झुका दिया. मैं जैसे उन पर सवार हो गयी. मेरा थोड़ा शरीर उन पर झुका हुआ था. मेरे दोनों मम्मे उनके मुख पर थे.
वह अब मेरी चूँचियो को धीरे धीरे चूसने लगे. साथ ही साथ वो अपने दोनों हाथ मेरे कमर और नितंबो पर फेरने लगे.
उनका लंड नीचे से बार बार खड़ा हो कर मेरी चूत पर चांटे मार रहा था, जिसके छूते ही मुझे करंट सा लगता. मेरे शरीर में झुरझुरी छूट जाती.
थोड़ी देर इसी तरह चलता रहा. अब उन्होंने अपना लंड पकड़ कर मेरी चूत में डाल दिया. वो मेरे कूल्हे पकड़ कर मुझे आगे पीछे हिलाते हुए मेरी धक्का मशीन चालू कर रहे थे.
एक बार मजा आना चालू हुआ तो मैं उनके हाथ छोड़ने के बावजूद अब खुद ही झटके मारने लगी. अब मैं तेजी से आगे पीछे होते हुए अपने बदन से उनके बदन को रगड़ रही थी.
मेरे मम्मे उनके सीने से रगड़ खाकर और मजा दे रहे थे. थोड़ी ही देर में हम दोनों की आहें एक साथ निकलने लगी. मैं अपने चरम की और बढ़ रही थी. मैंने उन्हें कस कर पकड़ लिया था.
आह्ह्ह आह्ह आह्ह ओह्ह्ह यस्स्स्स उम्म उँह उँहह्ह्ह्ह आह्ह्ह आईईईइ हम्म्म्म की आवाज के साथ और कुछ हल्के धक्को के साथ अपना काम पूरा किया.
उनका अभी भी पूरा नहीं हुआ था. इसलिए थकी होने के बावजुद मैंने करना जारी रखा. पर थोड़ी ही देर में मैं थक कर रुक गयी.
अब वो नीचे लेटे लेटे ही अपने लंड को मेरे शरीर में अंदर बाहर करने लगे. मुझे फिर मजा आने लगा. थोड़ी देर में मैंने भी साथ देते हुए थोड़ा जोर लगाया.
जिससे मेरा मूड एक बार फिर बनने लगा. शायद ये सारा जादू उस खेल का हैं जो उन्होंने मेरे साथ खेला था. मैं वो पंख अभी भी अपने मम्मो और चूत पर फिरते हुए महसूस कर पा रही थी.
मैंने रुक रुक कर जोर से झटके मारने शुरू किये. मेरा थोड़ा पानी तो पहले ही निकल चूका था तो उन झटको से फच्चाक फच्चाक की आवाजे आने लगी.
हम दोनों एक दूसरे की विपरीत दिशा में एक साथ झटके मार रहे थे, जिससे उनका लंड और मेरी चूत एक दूसरे की तरफ तेजी से बढ़ते हुए एक दूजे में समा रहे थे, और झटको का वेग और भी बढ़ने से लंड गहराई में उतर रहा था.
उनकी आहें अब और भी लंबी होने लगी और आवाज भी बढ़ने लगी. अब उन्होंने जोर लगाना बंद कर दिया था शायद उनका होने वाला था. इसलिए मैंने अपना पूरा जोर लगाते हुए करना जारी रखा.
जल्द ही उनकी चीख निकली और मुझे अपने सीने से चिपका कर अंदर की ओर कुछ हलके धक्के देने लगे.
अब तूफ़ान शांत हो चूका था. मैं अपनी चूत से थोड़ा पानी रिसता हुआ महसूस कर रही थी. शायद मैंने ही दूसरी बार झड़ने के करीब होने से पानी छोड़ा होगा.
शारीरिक जरुरत पूरी होने के बाद ही इंसान को अपने सारे गुनाह नजर आते हैं. हम दोनों का हो तो गया, पर मन ही मन में पता था कि हमने क्या गलती कर दी हैं जिसका कोई प्रायश्चित भी नहीं हैं.
थोड़ी देर उसी मुद्रा में सोये रहने के बाद मैं उनसे नीचे उतर गयी. जो मैंने देखा उस पर यकीन नहीं कर पायी. मैंने देखा उनका कंडोम फट चूका था. इसका मतलब उनका सारा वीर्य मेरी चूत में जा चूका था. वो जो पानी रिसा था वो मेरा नहीं संजीव का था.
ये मेरे महीने के सबसे खतरनाक दिन चल रहे थे, जब बच्चा होने की सम्भावना सबसे ज्यादा होती हैं. शायद वो कंडोम नहीं मेरी किस्मत फटी थी.
वो उठे और कपडे पहन कर बाहर चले गए. मेरा गाउन तो जा चूका था, मेरे कपडे बाहर ड्रायर में थे तो ऐसे ही बैठ मैं इंतज़ार करने लगी. थोड़ी ही देर में वो लौट आये, उनके हाथ में मेरी ड्रायर में सुख चुकी लेगिंग कुर्ता थे. मैंने उनसे वो कपडे ले लिए.
कपड़ो के बीच में वो मेरे अंतवस्त्र छुपा कर लाये थे मेरी ही स्टाइल में. जो की मेरी लापरवाही से फिर नीचे गिर पड़े. मैं एक बार फिर शर्मिंदा हुई. उन्होंने झुककर तुरंत वो कपडे उठाये और मुझे थमा दिए.
अब उनको यह अधिकार था कि वो इन वस्त्र को भी छु सकते थे. वो बाहर चले गए और मैं फिर उसी अलमारी के पास खड़ी हो कपडे पहनने लगी.
दरवाज़ा अभी भी खुला था, पर अब मुझे परवाह नहीं थी. छुपाती भी क्या? सब कुछ तो दे ही चुकी थी. बाहर देखा तो वो सोफे पर बैठे मुझे ही कपडे पहनते देख रहे थे. शायद वो पहले वाला साया सच्चाई ही था.
मैं अब बाहर हॉल में आ गयी थी और उनसे जाने की इजाजत मांगी. वो मेरे पास आये और अपने हाथ में मेरा हाथ लेकर मुझे धन्यवाद करने लगे. अपनी आदत के अनुसार मेरे मुँह से वेलकम निकल गया.
अपनी इस आखिरी गलती पर मैंने अपनी जुबान दाँतों से काट ली. तुरंत मुड़ कर उनसे विदा लेते हुए दरवाज़े के बाहर चली गयी.
नीचे उतरते हुए यही सोच रही थी कि क्या मैंने जो भी किया सही था? मैना के पति के लिए निश्चित रूप से सही किया था.
शायद मेरे खुद के लिए भी ठीक ही किया था. मुझे आज एक नया अनुभव हुआ. मैंने कही मैना का घोंसला तो नहीं तोड़ दिया या फिर वो घोसला पहले से ही टुटा हुआ था.
फटे कंडोम को याद कर मेरा मदद करने का हौंसला भी टूट चूका था. पहले ही हिल स्टेशन पर जो डीपू के साथ किया वो काफी नहीं था जो अब ये कांड भी कर बैठी.
चार दिन के बाद मैना का फ़ोन आया, एक बार तो मैंने डर के मारे उठाया ही नहीं, कि कही उसको सब मालुम तो नहीं चल गया.
दूसरी बार आने पर मैंने उठाया, वो मुझे शुक्रिया बोल रही थी. उसके हिसाब से मैंने उसके पति को अच्छे से समझाया जिससे वो माफ़ी मांग कर उसको फिर अपने घर ले आये थे मैना की शर्तो पर.
मुझे बहुत अच्छा लगा कि मेरी इज्जत की कुर्बानी मेरी सहेली के कुछ तो काम आयी. मन में एक अपराध-बोध था वो थोड़ा कम हुआ.
पर मेरी मुसीबत अब दोहरी हो चुकी थी. अगर माँ बनी तो बच्चे का बाप कौन होगा, डीपू या संजीव !
उससे बड़ी मुसीबत अपने पति को क्या जवाब दूंगी कि ये बच्चा किसका हैं? आने वाले दो सप्ताह का इंतज़ार मेरे लिए भारी पड़ने वाला था.
उस वक्त मुझे नहीं पता था कि रंजन की हमारे ज़िन्दगी में वापसी होने वाली थी.
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