RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
थोड़े दिन बाद जैसा मुझ शक था मैं दूसरी बार गर्भवती हो चुकी थी. घर पर सब खुश थे. भाभी को अशोक की सारी सच्चाई पता थी तो वो मुझे शक की निगाहो से देख रही थी कि मैंने कहा मुँह काला कराया और पता नहीं किसके बच्चे की माँ बनी हूँ.
एक बार फिर मुझे नहीं पता था कि मेरे होने वाले बच्चे का असली पिता कौन था. डीपू जिसने मुझे महीने के पहले ही हफ्ते दो दिन के अंदर छह बार चोदा था, या फिर महीने के बीच के उन सबसे खतरनाक दिंनो में संजीव के फटे हुए कंडोम की एक चुदाई या फिर रंजन के द्वारा आखिरी हफ्ते में मेरी पांच बार चुदाई.
मैं रंजन की सगाई-शादी में नहीं गयी, पता नहीं और क्या जिद कर बैठे. अशोक अकेले ही गए. डर भी था कि कही एक दिन वो फिर से हमारी ज़िन्दगी में ना आ जाये, इस बार तो उसकी बीवी भी प्रभावित होगी.
पिछले एक महीने में मैंने स्वार्थवश जो भी एक के बाद एक किया था उससे मैं अंदर कही ना कही हिल चुकी थी. अपने आप पर गिन्न आ रही थी. कुछ ठीक नहीं लग रहा था. मैं तनाव में रहने लगी, जब कि मैं खुद शायद दूसरा बच्चा चाह रही थी. पर जिस तरह से ये बच्चा मेरी कोख में आया था मुझे ठीक नहीं लगा.
इसी तनाव के कारण तीन महीनो के अंदर ही मेरा गर्भपात हो गया और मैं डिप्रेशन (अवसाद) में चली गयी. शायद पाप का घड़ा भर गया था और फूटने की ही बारी थी.
अशोक ने मेरी हालत देख मुझे मशवरा दिया कि हम लोग फिर से किसी की मदद लेकर बच्चा पैदा कर सकते हैं. रंजन तो विदेश जा चूका था पर डीपू, संजू या मेरी पसंद के किसी भी मर्द से मैं मदद लेकर माँ बन सकती हूँ इसकी छूट अशोक ने दी दी थी. पर अब मैं इन सब चीजों में नहीं पड़ना चाहती थी.
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घडी में सुबह के 10:30 बज गए थे और मेरे पति अशोक बेसब्री से पियूष का इंतज़ार कर रहे थे, जिसे 10 बजे आना था अपने रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम का डेमो देने के लिए. हमको ये सिस्टम नए घर के लिए लगवाना था जिसमें कुछ समय पहले ही रहने आये थे.
जब से मेरा गर्भपात हुआ था, मैं अवसाद में चली गयी और अशोक मुझे फिर अपने होम टाउन ले आये मेरी सास के पास. पर वहा महीने भर रहने के बाद भी मेरी स्तिथि में सुधार नहीं हुआ.
तब अशोक ने इसी शहर के बाहरी भाग में एक नया घर खरीद लिया. नए घर में आने के बाद मेरी मानसिक स्तिथि में थोड़ा सुधार होना शुरु हुआ.
पियूष पुराने वाले घर का पडोसी और अशोक का मित्र भी था. अशोक ने पियूष को फ़ोन किया और पता चला की वो रास्ते में ही हैं और पहुंचने वाला हैं.
पौने ग्यारह के बाद पियूष पंहुचा, अशोक ने आते ही शिकायत शुरू कर दी कि उसका ऑफिस का कॉल हैं 11 बजे इसलिए उसे 10 बजे बुलाया था.
मेरी हालत की वजह से अशोक ने ऑफिस का काम घर से ही करना शुरू कर दिया था और कभी कभार ही ऑफिस जाता था. हमारा बच्चा अधिकतर दादी के पास ही रहता था.
मुझे इस स्तिथि से निकालने के लिए अशोक ने मुझे ये विकल्प भी दिया की हम बच्चा पैदा करने के लिए फिर से किसी की मदद ले सकते हैं. पर मैं अब इन सब झमेलों में नहीं पड़ना चाहती थी.
पियूष ने अपने सारे कागजात जल्दी से बेग से बाहर निकाले. अशोक और मैं उसके दोनों तरफ बैठ कर सुनने लगे. थोड़ी ही देर में अशोक उठे और बोले मुझे कॉल के लिए जाना हैं. मेरे से कहा तुम सब अच्छे से समझ लेना और बाद में मुझे समझा देना, मैं बाहर गार्डन के पास वाले कमरे में बैठ कर कॉल अटेंड करूँगा और मुझे डिस्टर्ब मत करना एक घंटा लगेगा.
अब पियूष ने मुझको समझाना जारी रखा कि प्लांट कैसे काम करता हैं. अब वो अपने प्लान बताने लगा तो मैंने कहा थोड़ा ब्रेक लेते हैं, मैं चाय बना देती हूँ, चाय पीते पीते समझते हैं. जैसे ही मैं उठी एक चीख के साथ अपना घुटना पकड़ कर फिर सोफे पर बैठ गयी.
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