RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
छाया भाग 2
सीमा की यादें
एक-दो दिन उदास रहने के बाद मैं धीरे-धीरे सामान्य हो गया मेरे वापस दिल्ली जाने का वक्त भी आ गया था. माया जी ने मेरे लिए कई सारे नाश्ते के सामान बनाए थे. छाया मेरे लिए अभी भी एक अपरिचित ही थी. इस बार में उसकी नजरें मुझसे सिर्फ दो बार मिली थी वह भी खेल के दौरान, वापस आते समय भी वह मुझे छोडने नहीं आयी आई. मैंने पापा के पैर छुए तथा माया जी को हाथ हिलाकर अभिवादन किया और दिल्ली के सफर पर रवाना हो गया. माया जी का पैर न छूना शायद पापा को अजीब लगा हो पर वह मेरी स्थिति समझते थे. माया जी मेरे पैर छूने का इंतजार नहीं था. इस एक महीने में उन्होंने मेरी काफी मदद की थी जैसे मेरे पसंद के पकवान बनाना तथा मेरे कपड़ों आदि का ख्याल रखना. दिल्ली पहुंच कर मैं अपने दोस्तों में मशगूल हो गया. मैं अपनी पढ़ाई पर वापस ध्यान देने लगा इस बार की छुट्टियां मेरे लिए यादगार छुट्टियां थी. मैं 19 वर्ष का हो चुका था और मुझे अपने युवा होने पर उचित इनाम भी मिल चुका था इसका सारा श्रेय सीमा को जाता था.
मेरा मन अब ब्लू फिल्मों से पूरी तरह हट चुका था. मशीनों की तरह एक दूसरे से संभोग करने वाले नायक और नायिका मुझे अब प्रभावित नहीं करते थे. नायक द्वारा नायिका का बेरहमी से योनि मर्दन अब मुझे हास्यास्पद लगता था. पर ब्लू फिल्मों से मुझे मुखमैथुन की शिक्षा मिली थी. मैंने इस इस विद्या का प्रयोग सीमा की राजकुमारी पर किया था और इसका परिणाम सुखद रहा था. उसे मेरी यह कला पसंद आई थी. इस बात की तस्दीक उसने अपने प्रत्युत्तर में कर दी थी.
सीमा के साथ बिताए पलों से मुझे लड़कियों के शर्म और हया का मूल्य समझ आ चुका था. लड़कियों की योनि इतनी कोमल होती है मैंने यह नहीं सोचा था. मेरी जीभ भी उसकी कोमलता से प्रभावित थी. सीमा के स्तनों का स्पर्श और उसकी कोमलता मुझे याद है परंतु उसका आकार अभी छोटा था. ब्लू फिल्मों की नायिकाओं की तरह उसके स्तन विकसित नहीं थे. मैं इस बात से लज्जित महसूस कर रहा हूं की मैंने सीमा की ब्लू फिल्म की नायिका के साथ तुलना की. सीमा की हाजिर जवाबी और कामुक परिस्थितियों में भी बिना साथी को दुखी किए अपने कौमार्य की रक्षा करने की कला अद्भुत थी.
मुझे दिल्ली आए 4 महीने बीत चुके थे इस दौरान ना तो मैंने कोई ब्लू फिल्म देखी नहीं ना कोई गंदे और कामुक साहित्य पढ़े. मैं अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह ध्यान दे रहा था हां कभी-कभी सीमा को याद करके हस्तमैथुन कर लिया करता था. चंडीगढ़ यहां से बहुत दूर नहीं था पर सीमा से मिलने जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी. वहां जाने का और उससे मिलने का रिस्क मैं नहीं ले सकता था. उस समय मोबाइल की उपलब्धता आम नहीं थी और सीमा से बात करने का कोई तरीका नहीं था. मुझे नहीं पता था कि सीमा मुझे कितना याद करती है पर मैं उसको अक्सर याद करता था सिर्फ हस्तमैथुन के समय ही नहीं अपितु उसकी बातें उसका राजकुमारी कहने का अंदाज यह हमेशा मेरे मन को गुदगुदाते रहते थे.
छायाचित्र “लम्हें”
सेमेस्टर एग्जाम खत्म होने के बाद मैं अपने दोस्तों के साथ “लम्हे” पिक्चर देखने गया. यह अनिल कपूर और श्रीदेवी द्वारा अभिनीत फिल्म थी. इसमें अनिल कपूर अपने से उम्र में काफी बड़ी युवती से प्यार करता है बाद में उसकी शादी उसी युवती की पुत्री से होती है,. फिल्म मुझे मेरे सभी दोस्तों को भी पसंद आई थी. परीक्षा खत्म होने के कारण मैं भी तनाव मुक्त था बिस्तर पर लेटते ही मुझे सिनेमा के दृश्य याद आने लगे. मैं श्रीदेवी जैसी मादक हीरोइन को अपनी कल्पना में नग्न करने लगा. साड़ी के पीछे श्रीदेवी के नितंबों की कल्पना करते करते अचानक मिले माया जी की याद आ गई. उनकी उम्र फिल्म की नायिका के करीब ही थी मैंने उससे ध्यान हटाने की कोशिश की. माना कि मेरे से उनसे कोई रिश्ता नहीं था फिर भी वह मेरे घर में रहती थी मुझे इस बात पर थोड़ी ग्लानि हुई और मैं श्रीदेवी को आगे नग्न नहीं कर पाया परंतु श्रीदेवी के उरोज और नितंब भुलने लायक नहीं थे. मैंने श्रीदेवी के दूसरे किरदार की ओर ध्यान लगाया जिसमें वह नायिका की बेटी बनी थी. वह मेरी उम्र के हिसाब से हस्तमैथुन के लिए उपयुक्त नायिका बन सकती थी. मैंने श्रीदेवी के वस्त्र उतारने शुरू किए और फिर माया जी का ध्यान वापस दिमाग में आ गया. दरअसल श्रीदेवी के नितंब और उरोज माया जी से हुबहू मिलते थे. मैंने हस्तमैथुन का विचार त्याग दिया और सो गया.
स्वप्नसुंदरी
एक बड़े से राजसी पलंग पर मैं पीठ के बल लेटा हुआ था पलंग पर सफेद रंग की मलमल की चादर पड़ी हुई थी. कमरे में कई सारी मोमबत्तियां जल रही थी कमरे में अद्भुत शांति थी. एक नव योजना जिसने सफेद रंग की लाल पाढ़ वाली साड़ी पहन रखी थी कमरे में प्रविष्ट हुई. उसके हाथ में एक बड़ा कटोरा था वह धीरे धीरे चलते हुए मेरे समीप आई. ज्यादा रोशनी ना होने की वजह से मैं उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था. उसके उरोज पूर्णतयः विकसित थे कटी प्रदेश के उभार दर्शनीय थे. ऐसा लग रहा था जैसे उसने सिर्फ एक वस्त्र ही पहना है. स्तन अंदर से झांक रहे थे. उसकी नाभि स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी. उसने साड़ी नाभि से लगभग चार अंगुल नीचे बांधी हुई थी. उसके बाल खुले हुए थे एवं सामने की तरफ लटके हुए थे उसका कटी प्रदेश मादक तथा जांघें सुडौल थी. धीरे धीरे वह मेरे समीप आकर बैठ गई. उसने कटोरा पलंग पर रख दिया उसके दोनों घुटने मेरे मेरी जांघों से सटे हुए थे वह मुझे वज्रासन में बैठी हुई दिखाई दे रही थी.
इस अवस्था में मैं उसके स्तनों का उभार पूरी तरह देख पा रहा था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने सांची के स्तूप को सफेद पारदर्शी चादर से ढक दिया था. कमर का खुला हुआ हिस्सा आकर्षक लग रहा था. उसकी जांघें घुटना और पिंडलियों सभी दिखाई पड़ रहे थे कभी वह नग्न दिखाई पड़ती कभी उसकी साड़ी सामने आ जाती. उसने पैर में आलता लगाया हुआ था तथा पैरों में पाजेब पहनी हुई थी. वह साक्षात रति लग रही थी. मैं उसका चेहरा अभी तक नहीं देख पा रहा था. मैं स्वयं एक सफेद रंग की धोती पहने हुए लेटा हुआ था. कमर के ऊपर मेरे शरीर पर कोई वस्त्र नहीं था. उसने कटोरी में से सुगंधित तेल निकालकर मेरे पैरों की उंगलियों में लगाना शुरू किया और धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगी. मैं बार-बार उसे पहचानने की असफल कोशिश कर रहा था. उसके हाथ अब मेरे घुटनों तक आ चुके थे वह बढ़ती गई तथा मेरी जाँघों तक पहुंच गई. उसने मेरी धोती की गाँठ खोल दी तथा अपने दोनों हाथों से धोती को मेरी कमर के दोनों तरफ गिरा दिया.
मैं उसके सामने पूरी तरह नग्न पड़ा हुआ था. मेरा लिंग तनाव से भर चुका था. उस नव योजना के मादकता ने मेरे लिंग में अभूतपूर्व तनाव पैदा कर दिया था. उसके हाथ मेरी कमर को तेल से सराबोर करते हुए नाभि प्रदेश तक पहुंच गए उसने मेरे लिंग को उपेक्षित साथ छोड़ दिया था. धीरे-धीरे वह मेरे सीने तक आ गई सीने की मालिश करते समय उसने मेरे छोटे-छोटे निप्पलों को अपनी उंगलियों से दबाया मेरा लिंग अब और भी उत्तेजित हो चुका था. वह मेरे बायीं तरफ बैठी थी. उसने मेरे बाएं कंधे और बाएं हाथ मैं तेल लगाया. जब वह दाहिने हाथ में तेल लगाने के लिए आगे की तरफ झुकी तो उसके स्तन मेरे सीने के बिल्कुल समीप आ गए.
मैं अपना कौतूहल बर्दाश्त नहीं कर पाया तथा अपने बाएं हाथ से उसके स्तनों को छूने की कोशिश की. पर पता नहीं मेरे हाथ क्यों नहीं उठ रहे थे. जैसे लग रहा था वह जड़ हो गए हैं. मैं चाह कर भी वह वो कोमल स्तन नहीं छू नहीं पा रहा था, बड़ी विषम परिस्थिति बन गई थी. मैंने अपने दाहिने हाथ को भी उठाना चाहा पर असफल रहा. उसके हाथ वापस मेरे सीने पर आ चुके थे और वह धीरे-धीरे मेरे नाभि की तरफ बढ़ रही थी. उसने अपनी उंगलियों से मेरे नाभि के अंदर तेल लगाया उसने अपनी हथेलियों से मेरे नाभि प्रदेश को सहलाते हुए अपने हाथ मेरे अंडकोष तक ले आई. मेरी व्यग्रता अब बढ़ती जा रही थी.
मेरे हाथ पैर अपनी जगह से नहीं उठ रहे थे. सिर्फ लिंग के तनाव का एहसास मुझे हो रहा था. अचानक मैंने अपने लिंग पर उसका हाथ महसूस किया. जैसे वह लिंग को मेरी नाभि की तरफ व्यवस्थित कर रही हो. उसने मेरी पीठ और मेरे नितंबों को भी तेल से सराबोर कर दिया मेरा पूरा शरीर तेल से डूबा हुआ था. आश्चर्यजनक रूप से मुझे अपने पूरे शरीर पर उसके हाथों और उंगलियों का दबाव महसूस हो रहा था परंतु मैं अपना हाथ और पैर उठाने में सक्षम नहीं था.
उसने मुझे फिर से मुझे पीठ के बल लिटा दिया और हाथों में तेल लेकर मेरे लिंग के चारों तरफ मलने लगी. मेरा लिंग भी उसके हाथों की प्रतीक्षा कर रहा था. मैंने फिर से उसे छूने की कोशिश की पर असफल रहा. अंततः उसने मेरे लिंग को अपने कोमल हाथों में ले लिया तथा अपनी उंगलियों से उसकी चमड़ी को पीछे किया. जैसे वह लिंग के मुख को देखना चाहती हो.
उसकी उंगलियां तरह-तरह के करतब दिखा रही थी. मैंने उससे पूछने की कोशिश की आप कौन हैं परंतु मुझे कोई जवाब नहीं मिला. उत्तर में उसने मेरे लिंग को प्यार से सहला दिया. अब वह अपने हाथ तेजी से चला रही थी. मेरा लिंग लावा उगलने के लिए तैयार हो चुका था .अचानक मैंने देखा उसके स्तन से साड़ी हट चुकी है वह कमर के ऊपर पूरी तरह नग्न दिखाई दे रही थी. फिर मैंने उसे पुकारा “सीमा” मुझे उसके हंसने की आवाज सुनाई दी. एक पल के लिए मुझे लगा जैसे वह कोई अप्सरा थी. उसने अपने हाथों को तेजी से चलाते हुए कहां
“मानस भैया मैं आपके मन में हूं आप मुझे क्यों नहीं पहचान पा रहे हैं?” मेरी धड़कनें तेज हो गयीं और उसकी उंगलियों की चाल भी. मैंने कहा “माया जी” वह हंस पड़ी और मेरे शिश्नाग्र को कसकर दबा दिया मेरे लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी. मुझे अब चेहरा साफ साफ दिखाई दे रहा था. माया जीके चेहरे और स्तनों पर मेरे वीर्य के धार दिखाई पड़ रही थी वह मुस्कुराते हुए बिस्तर से उठने लगीं मैं भी उनके पीछे-पीछे उठने लगा.
जमीन पर मेरे पैर पड़ते ही मेरी निद्रा भंग हो गयी. मेरी आंखें खुल चुकी थी और मैं अपने आप को हॉस्टल के कमरे में अकेला अपनी पजामी को नीचे किए स्खलित हुए लिंग के साथ असहाय सा खड़ा था. मेरा स्वप्न टूट चुका था. मैं माया जी को याद करते हुए पुनः सो गया. मन ही मन यह ख्वाहिश थी कि वह स्वप्न फिर से आए .
जीवन में कुछ विचार और भावनाएं सिर्फ सपनों में ही आते हैं हकीकत उन से भिन्न होती है.
घर की याद
पढ़ाई के बाद मुझे जब भी समय मिलता मैं रोमांटिक साहित्य पढ़ने लगा. मैंने कामसूत्र की पुस्तक पढ़ीं पर वह अत्यंत जटिल थी . लोलिता उपन्यास ने भी मुझे अंदर तक छू लिया था. मेरे मन में हमेशा नायिका के साथ जी गयी कामवासना एक पूजा स्वरूप थी. मैं हर हाल में अपनी नायिका को खुश और मदमस्त देखना चाहता था. नायिका की स्वीकृति होने पर मेरे लिए उसकी उम्र और यहां तक की रिश्तों की अहमियत भी नहीं रह गई थी. सपने में माया जी के आने के बाद मैंने कभी कभी उनके सपने खुली आंखों से भी देखे थे, मैं भी अब काम पिपासु हो चुका था, धीरे धीरे यह वर्ष बीत गया परीक्षा के बाद मुझे ट्रेनिंग में जाना था इसलिए मैं गांव नहीं जा सका, पापा मुझसे मिलने दिल्ली आए उन्होंने बताया कि सीमा गांव पर आई हुई है और उसका सिलेक्शन इंजीनियरिंग में हो गया है. उसने तुम्हें धन्यवाद बोला है.
मैंने अपनी कामुकता और कैरियर में से कैरियर को चुना था.
मैं पापा से मिलकर अपनी ट्रेनिंग पर चला गया. रास्ते में मुझे सीमा की बहुत याद आ रही थी. इस समय वह पूरी तरह तनाव मुक्त होती. और हम दोनों उन्मुक्त भाव से प्रेम रस में डूबे होते. पर नियत को यह मंजूर नहीं था. मेरी ट्रेनिंग उतनी ही जरूरी थी. अगले कुछ महीने मैंने खूब पढ़ाई कि अपने कोर्स की भी और कामुक साहित्य की भी. अपनी कामवासना को शांत करने के लिए मेरी मुख्य नायिका सीमा ही थी परंतु कभी-कभी मेरी सहपाठी राधिका और मेरी टीचर भी मेरा साथ दे देतीं थीं.
कॉलेज में मेरे दो वर्ष बीत चुके थे. इस दौरान मैं सिर्फ एक बार घर गया था जब मैं सीमा से मिला था.
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