RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
और अपने दोनों पैर हवा में तान दिए मैंने अपने होठों पर राजकुमारी के कंपन महसूस किये. उसके हाथ अब मेरे सिर को राजकुमारी के पास आने की इजाजत नहीं दे रहे थे. वह कांप रही थी. उसकी राजकुमारी से प्रेमरस बह रहा था. मैं इस अद्भुत दृश्य को देख कर खुश हो रहा था. कुछ सेकंड बाद उसके हवा में तने हुए पैर नीचे आए और मेरे कंधे से छूते हुए बिस्तर पर आ गए. छाया ने अपनी आंखें खोली और इशारे से मुझे ऊपर बुलाया और मेरे होंठों को अपने होंठो में ले लिया. एक पल के लिए मुझे लगा . शायद वो अपने प्रेम रस को मेरे होठों से चूसकर उसका स्वाद लेना चाहती हो.
छाया ने आज एक दिन में इतना कुछ पा लिया था जिसे पाने में कई युवतियों को विवाह तक और कईयों को जीवन भर इंतजार करना पड़ता है. बहुत खुश लग रही थी. उसने कमरे से जाते समय शरमाते हुए बोली
“मानस भैया अपने जन्मदिन पर राजकुमारी को दिया गया आपका यह उपहार मैं कभी नही भूलूंगी.” इतना कहकर वह मेरे पास आयी और मेरे कान में बोला
“अब आपको सीमा दीदी की याद भी कम आएगी” कहकर वह बाथरूम में चली गयी.
मैंने अपने राजकुमार को इंतज़ार करने की सलाह दी और कमरे से बाहर चला आया.
राजकुमार से मित्रता
अगले कई दिनों तक छाया मुझसे नहीं मिली. शायद वह शर्मा रही थी. एक दिन वह मेरे कमरे में कुछ सामान निकालने आई. सामाँन काफी उचाई पर था. वह मुझसे उतारने के लिए बोली. मैंने उससे कहा
“मैं तुम्हें ही उठाता हु तुम खुद ही निकाल लो.”
वह हँस पड़ी और बोली
“ठीक है:
मैंने उसे उसकी जांघो से पकड़ कर ऊपर उठा लिया . उसके कोमल नितम्ब मेरे हांथों से सटे हुए थे. उसकी राजकुमारी लहंगे के अन्दर से मेरे चहरे से सटी हुए थी. मेरे नथुनों में उसकी खुशबू आ रही थी. मैंने अपने होंठों से उसे चूमने की कोशिश की तो छाया में कहा
“ मानस भैया मैं गिर जाउंगी.”
मैं रुक गया. उसने सामान निकाल लिया था. वह मुझसे सटे हुए फिसलते हुए नीचे आ रही थी. उसके स्तनों की रगड़ मैंने अपने चहरे पर भी महसूस की. मेरे हाथ उसके नितंबो को भी सहला चुके थे.
उसने अपने कपडे ठीक किये. और बोली
“आप तो हमेशा राजकुमारी के साथ ही छेड़खानी करते हैं मुझे तो राज कुमार से कभी मिलवाया ही नहीं. उस दिन भी आप मुझे बाथरूम में छोड़कर चले गए.” कह कर वह सामान लेकर जाने लगी.
मैंने कहा
“ वो तब से तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा है.”
“अच्छा ? तो मैं सामान माँ को दे कर आती हूँ.”
वह चली गयी और मैं और मेरा राजकुमार उम्मीद लिए उसका इंतज़ार करने लगे.
छाया आई और उसमे मुझे आंखे बाद करने के लिया कहा. मैंने भी अपनी आंखे वैसे ही बंद कर लीं जैसे वह राजकुमारी के दर्शन के समय की थी. छाया ने राजकुमार को बाहर निकाल लिया था. उसने कौतूहल भरी निगाहों से मेरे राजकुमार को देखा. उसने उसकी कोमलता और तनाव को नापने की कोशिश की. उसके कोमल हाथों में आते ही राजकुमार उछलने लगा. राजकुमार की धड़कन छाया को बहुत पसंद आ रही थी. जब वह अपने हाथों से उसे दबाती तो राजकुमार ऊपर की तरफ उछलता. छाया को इस कार्य में बहुत मजा आ रहा था. उसने अपनी उंगलियों से राजकुमार की चमड़ी को पीछे किया. चमड़ी पीछे आते हैं मेरा शिश्नाग्र जो अभी आधा खुला था पूरी तरह उसके सामने आ गया. उसके मुंह से निकल गया
“मानस भैया यह कितना सुंदर है” मैं हँस पड़ा. वह शर्मा गयी. उसने अपनी उंगलियों से उसे छुआ. राजकुमार फिर उछला वह इस खेल में तल्लीन हो गई थी. वह मेरे राजकुमार को अपने दोनों हाथों से अपनी इच्छा अनुसार खिलाने लगी. यह उसका पहला अनुभव था और मैं इसमें अपना अनुभव नहीं डालना चाह रहा था. जैसे जैसे वह राजकुमार से अपना परिचय बढ़ाती गयी मेरा तनाव बढ़ता गया मैं अभीअब स्खलित होने वाला था. वह मेरे बिल्कुल समीप बैठी थी जैसे ही उसने अपनी हथेली से शिश्नाग्र को छूना चाहा ज्वालामुखी फूट गया. स्खलित हो रहे लिंग को पकड़ पाना छाया जैसी कोमल युवती के लिए असंभव था. राजकुमार में अपना वीर्य छाया के ऊपर ही छिडक दिया छाया इस अप्रत्याशित वीर्य वर्षा से हतप्रभ थी. उसे शायद इसका अंदाजा नहीं था वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखी जैसे पूछ रही हो यह क्या हुआ. मैं मुस्कुराने लगा और उसे अपने आलिंगन में खींच लिया.
मैंने उसे बताया
“ ये तुम्हारी मेहनत का फल था. अब राजकुमार तुम्हारा मित्र हो गया है” इसका ध्यान रखना.
वयस्क छाया
बैंगलोर आगमन
15 दिन बाद मुझे बेंगलुरु मैं अपनी नई नौकरी ज्वाइन करनी थी मैंने सीमा का इंजीनियरिंग में दाखिला बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित कालेज में कराने के लिए आवेदन कर दिया. माया जी को मैंने जाकर यह सूचना दी कि अब हम सब बेंगलुरु में ही रहेंगे. छाया और माया जी की खुशी का ठिकाना ना रहा. छाया बहुत खुश थी यह आप समझ सकते हैं पर माया जी की खुशी इस बात से भी थी कि उन्हें यहां अकेले नहीं रहना
पड़ेगा. उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि मैं उन्हेंअपने साथ ले जाऊंगा. मेरे और छाया के बीच बन चुके इस नए रिश्ते के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.
छाया और माया जी ने अपने जरूरी सामानों की पैकिंग चालू कर दी.
कुछ ही दिनों में बेंगलुरु जाने का वक्त आ गया छाया और माया जी का यह पहला हवाई सफर था. वह दोनों ही बहुत
उत्सुक और खुश थे. माया जी मेरी बहुत शुक्रगुजार थी. छाया तो मेरी प्रेमिका बन चुकी थी. हम हवाई सफर का आनंद लेते हुए बेंगलुरु आ गए.
बेंगलुरु में मेरी कंपनी द्वारा दिया गया नया घर बहुत ही सुंदर था इस घर में दो कमरे बाथरूम सहित एक बड़ा हाल
और एक किचन था सभी कमरे पूरी तरह सुसज्जित थे . उनमें आधुनिक साजो सामान लगे हुए थे कुछ ही घंटों में हम सब घर में व्यवस्थित हो गए. छाया ने तो किचन में जाकर चाय भी बना लाई. माया जी बहुत खुश थी उन्होंने इतने अच्छे घर की कल्पना नहीं की थी. शाम को मैं घर से बाहर जाने लगा ताकि जरूरत की सामग्री ले आऊं तो छाया भी मेरे साथ आ गई. हम दोनों ने घर के आस-पास आवश्यक साजों सामग्री की दुकानें देखीं और अपनी जरूरत का सारा सामान ले आए.
रास्ते में आते समय मुझे एक बढ़िया रेस्टोरेंट दिखा मेरे मन में छाया और माया जी को खुश करने का एक और विचार आया मैंने छाया को बोला तुम घर पहुंचो मैं आता हूं. मैंने फूलों की दुकान से दो खूबसूरत गुलदस्ते लिए और मुस्कुराते हुए घर चल पड़ा. वह अभी लिफ्ट का ही इंतजार कर रही थी. मेरे हाथों में दो गुलदस्ते देखकर वह कौतूहल से भर गई उसने कहा
“यह किसके लिए” मैं कुछ बोलता इससे पहले लिफ्ट आ गइ. और हम दोनों लिफ्ट के अंदर प्रवेश कर गये. लिफ्ट खाली थी हम ऊपर की तरफ चल पड़े. छाया ने दोनों हाथों में सामान पकड़ा हुआ था. मैंने उसे सामान नीचे रखने के लिए कहा और अपने हाथ में लिया हुआ गुलदस्ता उसे दिया. मैंने उसे बड़े प्यार से कहा...
“मेरी प्रेयसी का बैंगलोर और मेरी जिंदगी में स्वागत है.”
वह भावुक हो गइ और मुझसे लिपट गई.
“मानस भैया आप बहुत अच्छे हैं” मैंने उसकी गाल पर चपत
लगाई और बोला अब भी भैया बोलोगी क्या. वह मुस्कुराइ और बोली
“घर में तो बोलना ही पड़ेगा”
घर पहुंच कर मैंने दूसरा गुलदस्ता माया जी को दे दिया वह भी बहुत खुश हुयीं और मुझे जी भर कर आशीर्वाद दिया. यह वही माया जी थी जो आज कुछ साल पहले मेरे सपने में आयीं थी पर अब रिश्ते बदल चुके थे उनकी पुत्री मेरी प्रेयसी बन चुकी थी. मैंने माया जी से कहा..
“आप लोग तुरंत अच्छे से तैयार हो जाइए हमें किसी से मिलने जाना है.”
माया जी ने कहा...
“मानस अभी बहुत देर हो चुकी है खाना भी बनाना है क्यों ना हम लोग कल चलें”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा..
“आज ही जरूरी है ज्यादा समय नहीं लगेगा” थोड़ी ही देर में हम सब तैयार होकर घर से बाहर आ गए. मैं उन लोगों को लेकर रेस्टोरेंट में गया उनकी प्रसन्नता की सीमा न रही मैंने अपनी पसंद से सभी के लिए भोजन मंगाया और खाना खाकर हम खुशी खुशी घर वापस आ गए. माया जी के रूम में जाते ही छाया मेरे से लिपट गई. उसके स्तनों का मेरे सीने पर दबाव उसके खुश होने की गवाही दे रहा था. अगले कुछ दिनों में धीरे धीरे हम सब नए परिवेश में अपने आप को ढाल रहे थे.
छाया की मालिश
दो हफ्ते बाद छाया का एडमिशन था. उसका कॉलेज मेरे ऑफिस के रास्ते में ही था. छाया के एडमिशन कराने मैं उसके साथ गया. छाया की एडमिशन की प्रक्रिया काफी थकाने वाली थी. एक काउंटर से दूसरे काउंटर दूसरे से तीसरे ऐसा करते करते पूरा दिन बीत गया. हम दोनों बुरी तरह थक चुके थे. वापस टैक्सी में आते समय वह मेरे कंधे पर अपना सर रख कर सो गइ. घर पहुंचते ही पता लगा माया जी सोसाइटी में चल रहे कीर्तन में गई हुई हैं. हम दोनों घर पर आ चुके थे मैं और छाया दोनों ही अपने बाथरूम में नहाने चले गए. कुछ ही देर में फूल की तरह खिली हुई छाया बाथरूम से बाहर आई. मैं उससे पहले ही बाहर आ चुका था. उसने मुझसे कहा पूरे शरीर में दर्द हो रहा है. वह वास्तव में थकी हुई थी. यह बात में भली-भांति समझता था. मैंने कहा
“छाया लाओ में तुम्हारी पीठ में तेल लगा दूं.” मेरे मुंह से यह सुनकर वह खुश भी हुई और शर्मा भी गई पर बात निकल चुकी थी उसने कहा
“ठीक है” वह भी रोमांचित लग रही थी.
कुछ ही देर में मैंने किचन से सरसों का तेल ले आया. गांव में सरसों
के तेल की बड़ी अहमियत होती है. मैंने तेल को थोड़ा गर्म कर लिया था. उसने अपनी बिस्तर पर एक बड़ी और मोटी सी पुरानी चादर डाली और पेट के बल लेट गई.
उसने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था. बैंगलोर आने के बाद उसका लहंगा चोली भी स्कर्ट टॉप में बदल गया था. उसे इस तरह तुरंत तैयार होते देखकर मुझे एहसास हो रहा था कि शायद वह इस मालिश से कुछ और भी आनंद लेना चाह रही है. पता नहीं क्यों मुझे यह बात छठी इंद्रिय बता रही थी. मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और बिस्तर पर आकर अपने दोनों हाथों से उसके पैरों में तेल लगाने लगा.उसकी पिंडलियों तक पहुंचते-पहुंचते मैंने अपने राजकुमार में तनाव महसूस करना शुरू कर दिया. वह पूरी तरह तन कर खड़ा था. कुछ ही देर में मेरी उंगलियां उसकी जांघो तक पहुंच गई थी वह शांत भाव से लेटी हुई थी. उसने चेहरा एक तरफ किया हुआ था. मुझे उसके गालों पर
लालिमा स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. मैंने अपने हाथ नहीं रोके और मैं उसकी जांघों पर तेल से मालिश करता रहा. कुछ ही देर में स्कर्ट बिल्कुल ऊपर तक उठ गया था. उसके नितम्ब दिखाई पड़ने शुरू हो गए थे. शायद उसने पैंटी मेरे किचन में जाते समय उतार दी थी. . मुझे उसकी दासी की हल्की झलक दिखाई पड़ी. उसके नीचे से उसकी राजकुमारी भी अपनी झलक दिखा रही थी. मैंने उसको उसी अवस्था में रोक दिया और वापस स्कर्ट को थोड़ा सा नीचे कर दिया. अब मैं सीमा की कमर पर तेल लगा रहा था. मैंने स्कर्ट को इतना नीचे किया था जिससे उसके नितंबों का अधिक से अधिक भाग पर मैं तेल लगा सकूं. मेरे हाथ स्कर्ट के अंदर जाकर भी अब पूरे नितंबों को तेल से सराबोर कर चुके थे. धीरे धीरे मैं उसके कमर पीठ और गर्दन तक तेल से सराबोर कर दिया था. मेरे हाथ उसके कोमल शारीर पर फिसल रहे थे. इससे निश्चय ही उसके दर्द और थकान में राहत मिली होगी. मैंने छाया का स्कर्ट व टॉप उतारे बिना उसके नितंबों और पूरे शरीर पर तेल मालिश कर ली थी. उसके नितंबों की मालिश करते समय जितना सुख उसे प्राप्त हो रहा था उतना ही सुख मुझे भी मिल रहा था.
उसके नितंब अत्यंत कोमल थे जब मेरी उंगलियां जांघों के बीच होते हुए नितंबो तक पहुंचती तो कभी-कभी वह उसकी दासी से भी टकरा जाती. उन मांसल जांघों और नितंबों के बीच के बीच उंगलियां फिसलाते हुए मुझे अद्भुत आनंद मिल रहा था. कुछ ही देर में मुझे उंगलियों पर राजकुमारी के प्रेम रस की अनुभूति हुई. उंगलियों के राजकुमारी के होठों से टकराहट से राजकुमारी उत्तेजित हो चुकी थी और उसका प्रेमरस उसके होठों पर आ चुका था.
मैंने छाया को पीठ के बल लेट जाने का इशारा किया. उसके स्तन उसके टॉप के नीचे थे. जांघे खुली हुई थी. मैंने उसके पैरों पर तेल लगाना शुरू किया. उसके उंगलियों, टखनो और घुटनों पर तेल लगाने के पश्चात धीरे-धीरे मेरे हाथ उसकी जांघों तक पहुंचते गए. उसकी जांघे अत्यंत सुंदर थी. छाया ने अपना एक पैर थोड़ा ऊपर किया. मुझे राजकुमारी के दर्शन हो गए. यह समझते ही उसने अपना पैर पुनः नीचे कर लिया. मैं उसकी जांघों की मालिश करता रहा और मेरी उंगलियां राजकुमारी के करीब पहुंच चुकी थी. उसका स्कर्ट अभी भी राजकुमारी के ऊपर था. कुछ देर उसकी जांघों की मालिश करने के बाद मैंने अपनी उँगलियों से उसकी राजकुमारी को छुआ.
छाया के चेहरे पर तनाव दिख रहा था वह इस आनंद की अनुभूति कर तो रही थी पर थोड़ा घबराई हुई थी.मैंने अपनी उंगलियां राजकुमारी से हटा लीं और वापस उसकी नाभि प्रदेश में चला गया. धीरे-धीरे मैंने उसकी नाभि पर तेल लगाया और बढ़ते बढ़ते स्तनों तक आ पहुंचा. मैंने स्तनों को बिना छुए स्तनों के बीच की जगह और अगल-बगल तेल से सराबोर कर दिया. मैं उसके कंधे की भी मालिश कर रहा था और गर्दन पर अपनी उंगलियां फिरा रहा था. छाया पूरी तरह आनंद के आगोश में थी.
मैंने उसके माथे पर चुंबन दिया और अब मैं उसके स्तनों पर तेल लगाना शुरू कर चुका था. उसके स्तन अत्यंत कोमल थे. आज कई दिनों बाद मैं उसके नग्न स्तनों को इस प्रकार से छू रहा था. स्तनों को तेल लगाते वक्त मैं उन्हें उनके आकार में लाने की कोशिश कर रहा था. मैं अपनी हथेलियों से उन्हें आगे की तरफ खीचता . अपने हाथों से लेकर दबाते हुए ऊपर की तरफ आता और उनके निप्पलों को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच रखते हुए उन्हें सहलाता. जैसे मैं उसके स्तनों
को उचित आकार देने की कोशिश कर रहा था जो गुरुत्वाकर्षण की वजह से अभी थोड़ा दबे हुए लग रहे थे.
छाया आनंद से अभिभूत थी. उसके चेहरे पर संतुष्ट के भाव दिखाई पड़ रहे थे पर उत्तेजना से उसके गोरे चेहरे पर लालिमा आ गयी थी. कुछ देर स्तनों की मालिश करने के बाद मैंने उसके पैरो में हलचल देखी. उसके
पैर तन गए थे. छाया स्खलित होने की प्रतीक्षा कर रही थी. उसकी जाँघों का कसाव और उनमे हो रही हलचल इस बात का प्रतीक थी. छाया कभी अपने दोनों जाँघों को एक दूसरे में सटा लेती और कभी उन्हें फैलाती. मैं उसकी स्थिति को समझ रहा था. मैं अपनी उंगलियां
उसकी जांघों के बीच ले गया और अपनी हथेली और उंगलियों से उसकी राजकुमारी को एक आवरण दे दिया.
मेरी उंगलियां राजकुमारी के होंठों में घूमने लगी जो प्रेम रस से भीगे हुए थे. हुए थे. कुछ ही देर में मैंने छाया के जांघों का दबाव अपनी हथेलियों पर महसूस किया. उसने अपनी दोनों जांघों को ऊपर उठा लिया था. मुझे राजकुमारी के कंपन महसूस होने लगे थे. मैं कुछ देर राजकुमारी को यु ही सहलाता रहा. अपने दूसरे हाथ से मैं उसके स्तनों को भी सहला रहा था. अंततः राजकुमारी स्खलित हो गई. छाया के मुख से “ मानस भैया .............” की धीमी आवाज आयी जो अत्यंत उत्तेजक थी. सीमा की जांघें अब तनाव रहित हो चुकी थी. उसके पैर फैल चुके थे और धड़कन बढ़ी हुई थी.
मैंने फिर से उसे माथे पर चूमा और उसका स्कर्ट तथा टॉप को नीचे कर दिया और कमरे से बाहर आ गया.
कुछ देर बाद छाया भी हाल में आई वह बहुत खुश लग रही थी उसके चेहरे पर तृप्ती के भाव थे.
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