XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
04-11-2022, 01:19 PM,
#12
RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
छाया भाग -4
छाया मेंरी प्रेयसी
आप कल्पना कर सकते हैं कि जब आपकी प्रेयसी आपके साथ रह रही हो और आप दोनों के बीच कामुक संबंध हों तो जीवन कितना सुखद हो सकता है. मेरे लिए मेरा घर ही स्वर्ग बन चुका था छाया अब जो मेरी प्रेयसी थी उसे आने वाले समय में मैं उसे पत्नी की तरह स्वीकार करने के लिए मन बना चुका था परंतु इसके लिए अभी छाया की पढ़ाई पूरी होनी बाकी थी. हमारे पास अपने प्रेम संबंधों को जीने के लिए ३-४ वर्ष थे. छाया और माया जी के साथ शुरू से ही मेरा कोई संबंध नहीं था पर पिछले वर्ष छाया मेरी जिंदगी में आयी और उसके कारण ही माया जी से मेरा रिश्ता बना.
परिस्थिति वश छाया मुझे मानस भैया बुलाया करती थी जो अब उसकी आदत में आ गया था मेरे एक दो बार मना करने के बाद अब वह मुझे आप, जी, सुनिए इन्हीं शब्दों से बुलाया करती परंतु मुझे सिर्फ मानस बुलाना उसे पसंद नहीं था. पर जब भी वह स्खलित होती मुझे उसके मुख से मानस भैया ही निकलता. मेरे मना करने पर वह कहती
“ठीक है अगली बार नहीं.” और मुस्कुराने लगती. पर स्खलित होते समय वह भूल जाती और उसके मुख से मानस भैया ही निकलता. मैं उसे स्खलन के समय टोकना नहीं चाहता था. मुझे लगता था वो सीमा से प्रेरित थी वो भी मुझे मानस भैया ही बुलाया करती थी.

छाया को नग्न देखें कई दिन बीत चुके थे. मेरे मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. हम दोनों अपनी छोटी छोटी मुलाकातों में अपने राजकुमार और राजकुमारी को स्खलित करा लेते थे पर तन्मयता से प्यार का सुख नहीं मिल पा रहा था. नग्न छाया को अपनी गोद में लेने का सुख अद्भुत था.
अगले दो दिनों तक छुट्टियां थी मैं अपने दिमाग में छाया के साथ एकांत में वक्त बिताने के लिए उपाय सोच रहा था. घर पहुंचने के बाद छाया ने दरवाजा खोला. वह घर पर अकेली थी. मैंने उससे पूछा
“माया जी कहां है?”
“घर का राशन खत्म हो गया था वही लेने वह पड़ोस की एक आंटी के साथ गई है. आप नहा कर तैयार हो जाइए मैं आपके लिए चाय ले आती हूं.”
यह सुनते ही मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मैंने दरवाजे की कुण्डी लगाई और छाया को अपनी गोद में उठा कर अपने कमरे में ले आया वह खिलखिला कर हंस रही थी. मैंने बिना देर किए अपने कपड़े उतारे वह मुझे मंत्रमुग्ध होकर देख कर रही थी. मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसका टॉप उतार दिया उसने भी अपने दोनों हाथ ऊपर करके उसे उतारने में मेरी मदद की और खुद ही अपनी स्कर्ट को नीचे
कर उससे बाहर आ गई. उसने अंदर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी मैंने समय व्यर्थ न करते हुए अपने आलिंगन में ले लिया. मैंने उसे थोड़ा ऊपर उठाया और धीरे धीरे चलते हुए बाथरूम में आ गया उसने इसकी उम्मीद नहीं की थी मैंने तुरंत ही शॉवर आन कर दिया. हम दोनों भीग चुके थे. वह मेरा साथ देने लगी मैंने थोड़ा शावर जेल छाया के हाथ में दिया और थोड़ा अपने हाथ में लेकर उसके शरीर पर मलने लगा उसने भी मेरे सीने और पीठ पर साबुन लगाना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में उसके हाथ मेरे राजकुमार तक पहुंच गए मैंने भी उसके नितंबों को
अपने हाथों में ले लिया. हम एक दूसरे को सहलाते और स्पर्श करते रहे. मैंने उसकी राजकुमारी को भी साबुन से भिगो दिया. हम दोनी एक दुसरे के अंग प्रत्यंगों को सहलाते हुए शावर के नीचे नहा रहे थे,
छाया ने अपनी पीठ मेरी तरफ कर ली थी अब मेरे हाथ उसके स्तनों और नाभि प्रदेश को बड़े अच्छे से सहला रहे थे मेरी उंगलियां उसकी राजकुमारी को छू रही थी इधर मेरा राजकुमार भी उसके नितंबों के नीचे से होता हुआ सामने की तरफ आ चुका था तथा कभी-कभी मेरी उंगलियों से टकरा था. मैंने अपने राजकुमार को अपनी ही उंगलियों से राजकुमारी के समीप लाया छाया ने मुझे पलट कर देखा और मेरे गालों पर चुंबन जड़ दिया. मेरा यह कृत्य उसे अच्छा लगा था मैंने यही काम दो तीन बार किया. छाया ने अपनी राजकुमारी को राजकुमार के अग्रभाग से रगड़ने के लिए अपने शरीर को थोड़ा आगे झुका लिया था.
अब राजकुमार राजकुमारी के मुहाने पर खड़ा था. मेरे कमर हिलाने पर वह राजकुमारी के मुख पर अपनी दस्तक दे रहा था. इस समय सावधानी हटी और दुर्घटना घटी की स्थिति बन चुकी थी. छाया का कौमार्य एक गलती में ख़त्म हो सकता था. मेरे राजकुमार छाया कि कौमार्य झिल्ली से छू रहा था. उसका शिश्नाग्र लगभग राजकुमारी के मुंह में प्रवेश कर चुका था परंतु उसका धड़ बिना कौमार्य झिल्ली का भेदन किए अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था.
हम दोनों लोग पूरी तरह उत्तेजित हो चुके थे. छाया ने अपनी हथेलियों का प्रयोग कर मेरे राजकुमार के लिए तंग और चिपचिपा रास्ता बना दिया इसमें एक तरफ उसकी हथेली थी और दूसरी तरफ राजकुमारी के होंठ. इस रास्ते का मुंह छाया की भग्नासा पर खत्म होता था. मैंने अपनी कमर को तीन चार बार आगे पीछे कर अपने राजकुमार से उसकी भग्नासा पर 3 - 4 कोमल प्रहार किए.
छाया कांप रही थी. मैंने अपने दोनों हाथ उसके नाभि प्रदेश पर रखकर उसे सहारा दिया हुआ था. मेरे अगले प्रहार पर “ मानस भैया .............” की उत्तेजक मुझे सुनाई दे गयी. . छाया स्खलित होने लगी थी. मैंने स्थिति को जानकर उसे कुछ देर यूं ही रहने दिया और अपने राजकुमार को आगे पीछे करता रहा.
कुछ देर बाद वह सामान्य हुई मैं उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाईं और बोला
“फिर भैया”
वह पलट कर मेरे सीने से लग गयी. मैंने उसे चूम लिया. मेरा राजकुमार भी लावा उगलने के लिए तैयार खड़ा था. छाया को आलिंगन में लिए हुए मैं अपने राजकुमार को सीमा की नाभि के आसपास रगड़ने लगा जितना ही मैं सीमा के नितंबों को अपनी तरफ खींचता मेरे राजकुमार पर घर्षण उतना ही बढ़ता सीमा भी इस कार्य में मेरा साथ दे रही थी. वह तथा अपने स्तनों को लगातार मेरी छाती से हटाए हुए थी.
अचानक मैंने अपनी कमर को नीचे कर राजकुमार को राजकुमारी के मुख में कर दिया एक बार फिर छाया के कौमार्य ने मेरे राजकुमार को आगे जाने से रोक दिया पर राजकुमार ने उत्तेजित होकर लावा छोड़ दिया.
वीर्य प्रवाह के दौरान राजकुमार का उछलना ऐसा प्रतीत हो रहा ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे हम दोनों की नाभि के नीचे कोई बड़ी मछली आ गई थी जिसे हम दोनों ने बीच में दबाया हुआ हो. राजकुमार उछल उछल कर वीर्य वर्षा कर रहा था पर बीच में दबे होने के कारण उसका वीर्य उसके आस पास ही गिर रहा था. मैं और छाया ने एक दुसरे को पूरी तरह एक दुसरे से चिपकाया हुआ था.
कुछ देर बाद छाया मुझसे अलग हुइ अपने आप को साफ किया और तौलिया लेकर बाहर आ गई.
छाया ने माया जी को बाजार बाजार दिखा कर हमारे मिलन को आसान कर दिया था.

पनपती कामुकता
छाया को बैंगलोर आये एक वर्ष बीत चुका था. छाया में आशातीत परिवर्तन आ चुका था. गांव की भोली भाली और कमसिन छाया अब नवयौवना बन चुकी थी. उसकी त्वचा और स्वाभाविक सुंदरता भगवान द्वारा दिया गया एक अद्भुत उपहार था. उसके केश चमकीले थे इन सबके वावजूद शहर की टिप टॉप लड़कियों की तुलना में कभी कभी वह अपने को पीछे समझती. पिछले कुछ महीनों में छाया ने सजना सवारना शुरू कर दिया था. मुझे यह बहुत अच्छा लगता. वह जब भी तैयार होकर मेरे पास आती और पूछती..
“मैं कैसी लग रही हूँ.”
मैं कहता
“जैसे भगवान् ने तुम्हे इस धरती पर भेजा था तुम वैसे ही अच्छी लगती हो.” वो समझ गयी और मुस्कुराने लगी.
छाया को अपने बालों को सवारने थे. उसने मुझसे ब्यूटी पार्लर ले जाने के लिए कहा. मैं उसकी बात तुरंत मान गया उसके केस ब्यूटी पार्लर वालों ने बहुत खूबसूरती से सजाएं.
उसके सीधे बाल अब थोड़े घुंघराले हो गए थे. उसकी छरहरी काया पर भी अब कुछ वजन भी आ गया था. सुख के दिनों में यह स्वाभाविक होता है. उसे शारीरिक और मानसिक दोनों ही सुख प्राप्त थे. मेरे साथ चल रहे प्रेम संबंधों और कामुक गतिविधियों ने उसके चहरे पर नव वधु वाली लालिमा भी ला दी थी. अब वह अत्यंत मादक दिखाई देने लगी थी. मेरे बार बार स्तन मर्दन से उसे स्तन भी आकर में बड़े हो गए थे.
मेरी अबोध सिनेमा की माधुरी दीक्षित अब धीरे-धीरे मनीषा कोइराला के रूप में परिवर्तित हो रही थी..
जब भी मैं उसे अपने साथ लेकर बाहर जाता वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बनती. कई बार तो मुझे इस बात को लेकर गुस्सा भी आता पर मन ही मन मैं उन्हें माफ कर देता अप्सरा के दर्शन लाभ से यदि उन्हें खुशी मिलती है तो इसमें छाया या मेरा कोई नुकसान नहीं था. मैं खुश होता कि यह अप्सरा मेरी है.
समय के साथ सीमा कामुक हो चली थी. वह अक्सर माया जी को काम में तल्लीन देखकर मेरे कमरे में आ जाती और दरवाजे की ओट लेकर मुझे अपने पास बुलाती. हम दोनों आलिंगन में बंध जाते मैं छाया को किस करता और वह मेरे चुम्बनो का आनंद उठाते हुए मेरे राजकुमार को अपने दोनों हाथों में लेकर अत्यंत उत्तेजित कर जाती और कुछ ही देर में बिना मुझे इस स्खलित किये मेरे कमरे से चली जाती. मैं भी उसके नितम्बों और स्तनों को सहला कर उसे भी उत्तेजित कर देता. हम दोनों अक्सर इसी अवस्था में रहा करते.
छाया या तो पढ़ रही होती या मेरे साथ यही खेल खेल रही होती. उसमें एक अच्छी बात थी. अक्सर शाम को आफिस से आने के बाद हम दोनों एक दुसरे को उत्तेजित करते. वह अपनी राजकुमारी की प्यास शांत करें या ना करें मेरे राजकुमार को अवश्य स्खलित करा देती थी और मैं खुशी-खुशी निद्रा के आगोश में चला जाता था. वह देर रात तक पढाई करती थी. मुझे उसकी यह आदत बहुत पसंद थी.
मुझे उसके कोमल अंगों को छूने में बहुत आनंद आता था पर मैं कभी उसे कष्ट नहीं देना चाहता था. . मैंने छाया का मुखमैथुन तो राजकुमारी दर्शन के समय किया था. परंतु उसने आज तक मेरे राजकुमार को मुख मैथुन का सुख नहीं दिया था. शायद उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था. मैंने भी कभी इस बात के लिए उसे प्रेरित नहीं किया था. मैं उससे बहुत प्यार करता था और उसमें स्वाभाविक रूप से पनप रही कामुकता का ही आनंद लेता था. मैंने उसका मुख मैथुन करने का प्रयास एक दो बार और किया था पर उसने रोक दिया था.
वह जैसा चाहती मैं उसके साथ वैसा ही करता था.
यह छाया को ही निर्धारित करना था कि उसे अपनी कामुकता को किस हद तक ले जाना है मैं सिर्फ उसका साथ दे रहा था.
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