XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
04-11-2022, 01:20 PM,
#15
RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
छाया ( भाग -5)

छाया प्रेयसी से मंगेतर तक.
नज़रों के नीचे
समय तेजी से बीत रहा था. मैं और छाया एक ही छत के नीचे प्रेमी प्रेमिका का खेल खेल रहे थे. अपनी मां की उपस्थिति में भी छाया इतने कामुक और बिंदास तरीके से रहती थी जैसे उसे किसी बात का डर ही ना हो. वह अपनी मां की नजर बचाकर मेरे पास आती मुझे उत्तेजित करती और हट जाती. कई बार तो उसने अपनी माया जी की उपस्थिति में ही उनकी पीठ पीछे मेरे राजकुमार को सहला दिया था.
एक बार खाना खाते समय अपने पैरों को मेरे पैरों से रगड़ रही थी. मेरा राजकुमार उत्तेजित हो रहा था. कुछ देर बाद उसके हाँथ से एक चम्मच गिरी. वह टेबल के नीचे झुकी और मेरे राजकुमार को मेरे पायजामा से बाहर कर दिया और चम्मच उठाकर उपर आ गयी. कुछ ही देर में खाना खाते- खाते उसने अपने पैरों से मेरे राजकुमार को छूना शुरु कर दिया. बड़ा अद्भुत आनंद था माया जी बगल में बैठी थी. हम सब खाना खा रहे थे, और नीचे छाया के पैर रासलीला कर रहे थे.
खाना खाते खाते मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई. खाना खत्म करने के बाद जैसे ही माया जी बर्तन साफ करने किचन की ओर गयीं छाया मेरे कमरे में आई और अगले 2 मिनटों में ही मुझे स्खलित कर मेरा सारा वीर्य अपने हाथ से अपने स्तनों पर लगा लिया. मुझे इस बात से बहुत खुशी मिलती थी यह उसे पता था.
कभी-कभी वह मेरी गोद में आकर बैठ जाया करती. वह भी एक अलग तरह का आनंद होता. एक बार हम सब सोफे पर बैठकर फिल्म देख रहे थे. ठण्ड की वजह से हमने अपने ऊपर रजाई डाल रखी थी. नायिका की सुहागरात देखकर छाया उत्तेजित हो गई उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी पैंटी में डाल दिया. मैं उसकी मंशा समझ चुका था. बगल में माया जी बैठी थी फिर भी मैंने हिम्मत करके उसके राजकुमारी को सहलाया. कुछ ही देर में उसकी राजकुमारी कांपने लगी उसने मेरे हाथ को अपनी दोनों जांघों से दबा दिया. राजकुमारी के कंपन यह बता रहे थे कि वह स्खलित हो रही थी.
उसने पिछले कुछ महीनों में कई प्रकार की परिस्थितियां बनाकर सेक्स को रोमांचक बना दिया था. कभी कभी वह स्कर्ट के नीचे पैंटी नहीं पहनती और मुझे इस बात का एहसास भी करा देती. हम दोनों दिन भर एक दुसरे से माया जी उपस्थिति में ही छेड़खानी करते. एक बार मैंने उसकी जांघो और राजकुमारी से खेलते हुए पेन से एक बिल्ली की आकृति बना दी. राजकुमारी का मुख बिल्ली के मुख की जगह आ गया था. वह आईने में देखकर बहुत खुस हो गयी थी.

एक दिन छाया ने मुझसे पूछा
“आप मम्मी से शादी की बात कब करेंगे?”
“ तुम्हारे कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद.”
“कोई हमें भाई बहन तो नहीं मानेगा न?”
“तुम किसी भी तरीके से मेरी बहन नहीं हो . मेरे पापा और तुम्हारी मां की मजबूरियों की वजह से हम सब एक ही छत के नीचे आ गए. मैं खुद नहीं समझ पा रहा हूं कि हम दोनों के एक होने में क्या दिक्कत आएगी. हम भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे विवाह में आने वाली अड़चनों को दूर करें.”
डर तो मुझे भी था पर मैं उसे समझा रहा था.

माया जी के नए साथी.
हमारी सोसाइटी में रहने वाले शर्मा जी एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर थे. वह बहुत ही मिलनसार थे. जब भी वह देखते मुस्कुरा देते कुछ महीने पहले एक दिन उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. लिफ्ट में जाते समय उन्होंने मुझसे कहा ...
“मानस क्या आप मेरी एक मदद करोगे? मेरे लिए कुछ दवाएं ला दो”
उनके चेहरे से पसीना निकल रहा था. मैं उन्हें उनके फ्लैट में जो ठीक हमारे ऊपर था छोड़कर दवा लेने चला गया. लौटकर मैं देखता हूं कि वह अपने बिस्तर पर बेसुध पड़े हुए थे. मैं घबरा गया मैं नीचे जा कर माया आंटी को बुला लाया. माया आंटी को उनके पास छोड़कर मैं डॉक्टर को फोन करने लगा. माया आंटी ने उनके चेहरे पर पानी के छींटे मारे थोड़ी देर में उन्होंने अपनी आंखें खोली वह माया आंटी को अपने पास देख कर आश्चर्यचकित थे. माया आंटी उनके सर को हल्के हल्के दबा रहीं थीं. कुछ ही देर में पास में रहने वाले डॉक्टर वहां आ गए और उन्होंने शर्मा जी का चेकअप किया. उन्होंने माया आंटी की तरफ देखते हुए बोला ..
“आपके पति बिल्कुल ठीक-ठाक है. लगता है इनका ब्लड प्रेशर ज्यादा बढ़ गया था . चिंता की कोई विशेष बात नहीं है.”
फिर वह शर्मा की की तरफ मुखातिब हुआ...
“आप घर पर आराम करिए और तेल मसाला वाला खाना मत खाइए. कुछ ही दिनों में आपका ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाएगा” मैं एक बार फिर डॉक्टर की बताई दवा लेने गया तब तक माया आंटी वही बैठी थी. वहां से आने के बाद माया आंटी खाना बनाने चली गई और मैं शर्मा अंकल का ध्यान रख रहा था. माया आंटी ने अगले तीन-चार दिनों तक शर्मा अंकल का खूब ख्याल रखा और उन दोनों में दोस्ती हो गई. हम और छाया कभी-कभी यह बात करते कि माया आंटी ने अपने जीवन में कितने कष्ट सहे हैं. लगभग सत्ताईस वर्ष की अवस्था में उनके पति का देहांत हो गया था. तब से वह अकेली ही थीं. मेरे पापा के साथ आकर उन्होंने अपने और अपनी बेटी छाया के लिए एक छत तलाश ली थी पर शारीरिक सुख की बात असंभव थी. तीन-चार दिन शर्मा अंकल की सेवा करने के बाद माया आंटी की उनसे दोस्ती हो गई थी.

माया जी का शक
छाया पर इक्कीसवां साल लग चुका था. मैंने और छाया ने पिछले कुछ महीनों में एक दूसरे के साथ इतनी कुछ किया था पर माया जी को इसकी भनक न लगी हो यह बड़ा आश्चर्य लगता था. हमने घर के हर कोने में अपनी कामुकता को अंजाम दिया था. मुझे तो लगता है कि यदि किसी फॉरेंसिक एक्सपर्ट को घर की जांच करने को दे दी जाए तो उसे हर जगह मेरे या छाया के प्रेम रस के सबूत मिल जाएंगे.
हमने घर की लगभग हर जगह पर अलग-अलग प्रकार से अपनी कामुकता को जिया था. घर का सोफा, डाइनिंग टेबल, किचन टॉप, बालकनी, बाथरूम आदि मेरे और छाया के प्रेम के गवाह थे.
माया जी ने हमारे कपड़ों पर भी उसके दाग जरूर देखे होंगे पर व हमेशा शांत रहती थी. मुझे नहीं पता कि उनको इसकी भनक लग चुकी थी या नहीं पर उनका व्यवहार सामान्य रहता था .
परंतु एक दिन मैं और छाया अपनी प्रेम लीला समाप्त करके उठे ही थे और अपने वस्त्र पहन रहे थे तभी माया जी के आने की आहट हुई वो बाज़ार से वापस जल्दी आ गयीं थी. इस जल्दबाजी में छाया अपने गालों पर लगा मेरा वीर्य पोछना भूल गई. माया जी की निगाहों ने उसके गाल पर लगा सफेद द्रव्य देख लिया उन्होंने अपनी उंगलियों से उसे पोछते हुए बोला यह क्या लगा रखा है. सीमा घबरा सी गई वह कुछ बोल नहीं पाइ. उसने अपने हाथों से अपना गाल पोछा और बोला “कुछ लग गया होगा”
माया जी ने चलते चलते अपना हाथ अपनी साड़ी के पल्लू में पोछा और अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले गयीं जैसे वह उसे सूंघ कर पता करना चाहती हो की वह क्या था.
[ मैं माया ]
अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले जाते ही मुझे अपनी उंगलियों में लगे चिपचिपे पदार्थ पहचानने में कोई वक्त नहीं लगा मैं समझ गई कि मेरा शक सही था. छाया और मानस के बीच बढ़ती हुई नजदीकियां इतनी जल्दी ऐसा रूप ले लेगी यह मैंने नहीं सोचा था. इन दोनों का साथ में हंसना मुस्कुराना एक दूसरे के साथ घूमना और कई बार देर रात तक वापस लौटना हमेशा से शक पैदा करता था पर मानस को देखकर ऐसा लगता नहीं था कि वह छाया को इस कार्य के लिए मना लेगा.
मैंने छाया के कपड़ों पर अलग तरह के दाग देखे थे पर मैं यह यकीन नहीं कर सकती थी कि वह अपने कपड़ों पर किसी पुरुष का वीर्य लगाए घूम रही होगी. छाया जब भी मानव के कमरे से निकलती थी उसके कपड़े की सलवटे यह बताती थी जैसे किसी ने उसके स्तनों को अपने दोनों हाथों से खूब मसला हो. आज यह देखने के बाद कि यह वीर्य मानस का है मैं सच में चिंतित थी.
मुझे अब छाया पर निगाह रखना आवश्यक हो गया था. मैंने मन ही छाया को रंगे हाथ पकड़ने का निश्चय कर लिया. छाया भी शायद अब सतर्क हो गई थी. मैंने तीन चार दिनों तक उस पर पैनी निगाह रखी पर उसने मुझे कोई मौका नहीं दिया. कई बार मुझे लगता जैसे मैंने इन दोनों पर नाहक ही शक किया हो. मानस एक निहायती शरीफ और जिम्मेदार लड़का था उसने छाया की बहुत मदद की थी. आज उसकी बदौलत ही छाया ने इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया था और वह अपनी पढ़ाई अच्छे से कर रही थी. वह छाया को इन गलत कामों के लिए प्रेरित करेगा ऐसा यकीन करना मुश्किल था.
परंतु ये छोटी छोटी घटनाएं मुझे हमेशा शक में डालती थी. छाया के गाल पर वह चिपचिपा पदार्थ देखकर मुझे आज से लगभग 3 वर्ष पहले मानस के गाल पर लगा द्रव्य याद आ गया. इन दोनों घटनाओं में एक ही संबंध था वह था मानस.
मेरे पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था मैंने अपनी निगाहें चौकस रखनी शुरू कर दी और वक्त का इंतजार कर रही थी. मैंने घर से बाहर जाना लगभग बंद कर दिया. मैं घर से तभी बाहर निकलती जब मानस या छाया में से कोई एक घर के बाहर होता. मानस कभी-कभी छाया को बाहर ले जाना चाहता पर मैं किसी ना किसी बहाने उसे टाल देती.
दिन बीतते जा रहे थे और मेरा सब्र अब जवाब दे रहा था. बाहर न निकल पाने के कारण मैं भी अब तनाव में रहने लगी थी. मेरी शर्मा जी से भी मुलाक़ात नहीं हो पा रही थी. पर अपनी बेटी को इन गलत कार्यों से बचाने के लिए और इन दोनों के बीच बन रहे इस नए रिश्ते को रोकने के लिए मेरी निगरानी जरूरी थी..
एक ही छत के नीचे जवान लड़की और लड़का दिया और फूस की तरह होते हैं.
छाया अब २१ वर्ष की हो चुकी थी एवं मानस लगभग २5 वर्ष का. इनके बीच में कामुकता का जन्म लेना यह साबित कर रहा था की इन दोनों ने अपने बीच भाई बहन के रिश्ते को अभी तक स्वीकार नहीं किया था.
सतर्क छाया
[मैं छाया]
मां के द्वारा मेरे गालों से मानस का वीर्य पोछना मुझे बहुत शर्मनाक लगा. मुझे यह डर भी लगा कि कहीं मां ने उसे पहचान लिया तो? अभी तक मैं उनकी रानी बिटिया थी उनके लिए मेरा यह रूप बिल्कुल अचंभा होता. मैंने मानस को भी इसकी जानकारी दे दी. वह भी काफी चिंतित हो गए थे अब हम सतर्क रहने लगे , पर कितने दिन ? हमें एक दूसरे की आदत पड़ गई थी. राजकुमारी बिना राजकुमार के एक दिन भी नहीं रह सकती थी. हमारी रासलीला में रुकावट हमें बर्दाश्त नहीं थी.
मैंने भी जैसे अपनी मां की आंखों में धूल झोंकने का बीड़ा उठा लिया था. अब इस काम में मुझे और मजा आने लगा.
कामवासना पर लगी रोक उसमे और उत्तेजना पैदा कर देती है.
एक बार हम ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. ठंड का समय था मैं जाकर रजाई ले आई. मैंने भी अपने पैर रजाई में डाल दिए. हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे माया जी किचन से हम दोनों को देख रही थी. रजाई लाने से बाद मैंने बाथरूम गयी और अपनी पेंटी उतार कर बाथरूम में फेक आई. सोफे पर बैठते समय मैंने मानस का हाथ पकड़ा और उसे सोफे पर रखा और अपनी स्कर्ट ऊपर करके उनकी हथेली पर बैठ गई. उनकी उंगलियां अब मेरी राजकुमारी के संपर्क में थी. मैं मानस से सामान्य रूप से बात कर रही थी तथा बीच-बीच में मां को आवाज भी लगा रही थी. मेरी आवाज पर मां बार-बार कुछ न कुछ जवाब देती हमारे संवादों के बीच में शक की गुंजाइश खत्म हो गई थी.
मेरी राजकुमारी मानस की उंगलियों से लगातार बातें कर रही थी. मानस की उंगलियां मेरी राजकुमारी के होंठों पर घूमतीं कभी राजकुमारी के मुख पर दस्तक देती. उनकी उंगलियां मेरे रस से सराबोर हो गई थी. उंगलियों से बहता हुआ प्रेम रस मेरी जांघों यहां तक कि मेरी दासी को भी गीला कर गया था. उनका हाथ अब मुझे बहुत चिपचिपा लग रहा था मेरी उत्तेजना अब चरम पर पहुंच गई थी. मानस ने भी जैसे मुझे सताने की ठान ली थी. जब भी मां मुझसे कुछ पूछती वह अपनी उंगलियों का कंपन बढ़ा देते. कम्पन से मेरी आवाज लहराने लगती. मां किचन से बोलती
“ क्या हुआ ऐसे क्यों बोल रही है ?”
मेरे पास कोई उत्तर नहीं होता. कुछ ही देर में राजकुमारी ने अपना प्रेम रस उगल दिया. मानस ने अपने हाँथ साफ किये और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.
एकांत पाने के लिए मैं और मानस अपनी सोसाइटी की छत पर रासलीला करने लगे. हम दोनों छत पर ही एक दूसरे से मिलते और अपनी काम पिपासा को शांत करते. लिफ्ट भी हमारा एक पसंदीदा स्थल था। हमेशा एक बात का ही दुख रहता था कि हमें अपना कार्य बड़ी शीघ्रता से करना पड़ता.
“जल्दबाजी में किया हुआ सेक्स कभी-कभी तो अच्छा लगता है पर यह हमेशा उतना आनंददायक नहीं रहता”
हम कुछ ही दिनों में अपने मिलन के लिए उचित समय का इंतज़ार करने लगे.
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