RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाग -6
रिश्तों में उतार चढ़ाव .
नया घर नया रिश्ता
बेंगलुरु में आने के बाद मैंने एक पॉश कॉलोनी में दो फ्लैट बुक कर दिए थे. यह दोनों फ्लैट एक दूसरे के ठीक सामने थे. हर फ्लैट में दो बैडरूम एक हॉल और किचन था दोनों फ्लैट के हाल की मुख्य दीवार कॉमन थी. मैंने बिल्डर से बात करके वहां पर एक बड़ा दरवाजा लगा दिया था. उस दरवाजे को खोल देने पर दोनों फ्लैट एक हो जाते थे. घर पूरी तरह से बन चुका था. अब सिर्फ घर के साजो सामान सजाने थे. हर फ्लैट के मास्टर बेडरूम की डिजाइन बहुत खूबसूरत थी. कमरा भी काफी बड़ा था साथ में लगा बाथरूम भी काफी बड़ा था. ड्रेसिंग के लिए अलग जगह थी. मास्टर बैडरूम के साथ लगी हुई बालकनी से बेंगलुरु शहर बहुत खूबसूरत दिखाई देता था यह बिल्डिंग कुल दस वाले की थी और हमारा फ्लैट दसवें माले पर था. मैंने दो फ्लैट एक साथ लेकर यह सोचा था कि एक में खुद रहूंगा और दूसरे को अपने किसी मित्र या दोस्त को किराए पर दे दूंगा या जरूरत पड़ने पर दोनों फ्लैट को जोड़कर अपने ही प्रयोग में रखूंगा.
अभी तक इस घर के बारे में मैंने माया आंटी और छाया को नहीं बताया था. घर की चाबियां मिल जाने के बाद मैं उन्हें अचानक यह खबर देकर खुश करना चाहता था.
अंततः एक दिन मैं छाया को लेकर इस नए फ्लैट में गया फ्लैट का दरवाजा खुलते हैं छाया अंदर आई उसने फ्लैट को बहुत बारीकी से देखा. “इतना सुंदर फ्लैट? बालकनी में जाकर वह चहकने लगी..
“किसका है यह फ्लैट?
मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके गालों पर
चुम्बन करते हुए बोला
“हमारा” वह बहुत खुश हो गई.
वह फिर से मास्टर बेडरूम में गई और बोली
“मैं इस रूम को अपने मन से सजाऊंगी”
मैंने उससे कहा
“जरूर”
वह आकर मुझसे लिपट गई. उसने मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिये. वह एकांत का फायदा उठा लेना चाहती थी. कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे को सहलाने लगे. उसने मेरे राजकुमार को बाहर निकाल लिया तथा उसे आगे पीछे करने लगी. मैं भी उत्तेजित हो गया और उसके दोनों नितंबों को छूने लगा. वह पेंटी नहीं पहनी थी. कभी कभी जब वो मेरे साथ अकेले
बाहर आती थी तो पैंटी नहीं पहनती थी. मुझे उसके नंगे नितंब छूने में बहुत मजा आ रहा था अब मेरी आदतों में नितंबों के साथ-साथ उसकी दासी को छूना अच्छा लगता था. जैसे ही मेरी उंगलियां उसकी दासी पर जाती वह मेरी तरफ तीखी नजरों से देखती थी. मुझे उसकी यह अदा बहुत अच्छी लगती थी. कुछ ही देर में उसकी राजकुमारी का रस मेरी उँगलियों पर महसूस होने लगता था. यही वक्त होता था जब राजकुमार और राजकुमारी मिलने के लिए व्याकुल होते थे. छाया मुझे बालकनी में लगे एक प्लेटफार्म के पास ले गइ. वह उस प्लेटफार्म पर झुक गई. उसकी राजकुमारीपीछे से मुझे दिखाई देने लगी मैंने तुरंत ही अपने राजकुमार को उसके राजकुमारी के मुख पर रख दिया और उसकी भग्नासा पर रगड़ बनाने लगा.
वह कुछ ज्यादा ही उत्तेजितथी थोड़े से घर्षण से राजकुमारी कापने लगी. हम दोनों के प्रेम रस से पर्याप्त गीलापन आ चुका था. मेरा लावा भी फूटने वाला था. उसने मेरा उतावलापन पहचान लिया था. अचानक वह उठी और मेरी तरफ मुड़ कर दोनों हाथों में मेरे राजकुमार
को ले लिया. राजकुमार ने अपना लावा उसके हाथों में ही उड़ेल दिया. वह हाथों में मेरे वीर्य को लेने के बाद मास्टर बेडरूम की तरफ आई और उसकी एक दीवार पर मेरे वीर्य से ही एक दिल का निशान बनाया और उसमें एक तीर बना दिया. मैंने उससे पूछा…
“यह क्या कर रही हो”
आज हम दोनों ने पहली बार इस घर में प्रवेश किया यह हमें हमेशा इसकी याद दिलाएगा” हम फ्लैट बंद करके बाहर
आ चुके थे.मैं छाया को लेकर एक बड़े फर्नीचर शोरूम में गया. छाया ने वहां अपनी पसंद से घर के कई सारे फर्नीचर खरीदें. पलंग पसंद करते समय मैंने उसकी चुटकी ली. मैंने उससे कहा..
“पलंग मजबूत लेना तुम्हारे साथ इसी पर उछल कूद होनी है”
वह हंसने लगी उसकी यह मुस्कुराहट मुझे बहुत अच्छी लगती थी. उसने मोटे और मुलायम गद्दे भी लिए. उसने मुझसे कहा..
“छू कर देखिए ना कितने मुलायम हैं.”
“तुम्हें गद्दे पर सोना है मुझे तुम पर. तुम से ज्यादा मुलायम तो नहीं है”
वो फिर हंसने लगी.
सुन्दर नवयौवना की हसीं अत्यंत मादक होती है.
कुछ ही देर में हमारी खरीदारी संपन्न हो गई. मैंने शॉपकीपर को अपने घर का पता दिया और दो दिनों बाद उसकी डिलीवरी सुनिश्चित कर ली. अब हम घर की तरफ वापस आ रहे थे. छाया की खुशी का ठिकाना नहीं था उसका यह नया घर मेरी मंगेतर बनने के उपलक्ष्य में एक उपहार जैसा लग रहा था. हालांकि यह घर मैंने पहले बनाया था पर छाया को यह घर देने या इस घर से रूबरू कराने का यह बेहतरीन मौका था. वह बहुत खुश थी. मैंने छाया से कहा था कि वह माया जी को इस बारे में कुछ भी ना बताएं. वह मान गई थी.
अगले दिन मैं माया आंटी को लेकर अपने दूसरे फ्लैट में गया. एक फ्लैट की सजावट उनकी बेटी छाया पहले ही कर चुकी थी दूसरा फ्लैट मैंने उनकी पसंद से सजाना चाहा. मैंने यह सोचा था कि दूसरा फ्लैट मैं शर्मा जी को दे दूंगा शर्मा जी के पास माया आंटी का आना जाना रहता ही है. उन्होंने मुझसे बार-बार कहा..
“बेटा छाया को ले आए होते तो अच्छा होता. वह अपनी पसंद से अपना घर सजा लेती.”
“आप सामान पसंद कर लीजिए हम लोग घर सजाने के बाद उसे ले आएंगे. आप तो उसकी पसंद नापसंद जानती है.”
हम फिर एक दूसरी फर्नीचर शॉप में गए और वहां से माया जी की पसंद के फर्नीचर खरीदें. माया जी भी घर देखकर बहुत खुश थी. उनको भी उस घर का बालकनी वाला एरिया बहुत पसंद आया था. अपनी बेटी के लिए पलंग पसंद करते समय उनके मन में जितने क्या ख्याल आये होंगे ये वही जानती होंगीं.
हम घर आ चुके थे. हमारे वर्तमान घर में सारा सामान कंपनी का दिया हुआ था. सिर्फ हमारे कपड़ों को छोड़कर इस घर में हमारा कुछ भी नहीं था. घर का राशन पानी ले जाने लायक स्थिति में नहीं था. उधर तीन-चार दिनों के अंदर ही मेरा नया फ्लैट सुसज्जित हो चुका था.
जब से हमने नए घर में जाने का फैसला किया था तब से माया आंटी थोड़ा चिंतित रहती थी. कहीं न कहीं उनके मन में कोई चिंता अवश्य थी. जिसे वह खुलकर नहीं बताती थी. हमारे प्रेम संबंधों की स्वीकार करने के बाद शर्मा जी से उनकी मुलाकात ज्यादा होती थी. जब इन मुलाकातों के दौरान वो घर से बाहर रहतीं तो मैं और छाया अपनी कामुकता को संतुष्ट कर बहुत खुश होते.
एक दिन तो छाया ने मुझसे कहा...
“अच्छा होता मम्मी शर्मा जी से शादी कर लेती”
शायद छाया जा जान गई थी की माया आंटी को शर्मा जी के साथ वक्त बिताने में अच्छा लगता था. एक दिन माया आंटी ने मुझसे कहा शर्मा जी कह रहे थे कि आप लोगों के जाने के बाद मैं फिर से अकेला हो जाऊंगा. मैं सारी परिस्थिति को पहले ही समझ चुका था. मैंने सिर्फ इतना कहा..
“वह अकेले नहीं रहेंगे आप खुश हो जाइए.” माया आंटी के चेहरे पर खुशी आ गई. मैं समझ चुका था कि शर्मा जी से उनके संबंध प्रगाढ़ हो चुके हैं और दोनों का एक साथ रहना ही उनके लिए अच्छा है.
माया आंटी खुश तो हो गयीं पर उन्हें
समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे होगा. हम अपने नए घर में जा रहे थे. वहां रहने वाले लोगों से अभी मेरा परिचय नहीं था परंतु वहां जाने के बाद उनसे परिचय अवश्य होता. मैंने माया आंटी से बात की मैंने उनसे कहा...
“आप शर्मा अंकल को कहिए कि वह भी हमारे साथ उसी सोसाइटी में चलें. माया आंटी शर्मा गई. आप दोनों का मिलना जुलना है और दोनों साथ में समय व्यतीत करते हैं इसमें कोई बुराई नहीं है. शर्मा जी वहां हमारे साथ में रहेंगे तो अच्छा ही रहेगा उनके लिए भी और हमारे लिए भी. मैंने अपने फ्लैट के सामने एक फ्लैट देखा है हम उसे भी किराए पर ले लेंगे.
मैंने माया आंटी से कहा..
“शर्मा जी से आप ही बात कर लीजिए हम नवरात्रि के बाद नए घर में चलेंगे”
आखिरकार हम अपने नए घर में पहुंच गए. पहले हम सब उस फ्लैट में गए जिसमें माया जी ने सजावट कराई थी.
उनका शयन कक्ष बहुत ही खूबसूरत लग रहा था. शयनकक्ष में पहुंचते ही उन्होंने छाया से कहा..
“बेटी मानस के कहने पर मैंने अपनी पसंद से तेरा कमरा सजाया है उम्मीद करती हूं तुझे पसंद आएगा”
अब यहां पर मुझे बोलना पड़ा..
“आंटी यह कमरा आपका है”
“पर छाया कहां रहेगी” मैं उन्हें दूसरे फ्लैट में ले गया. हॉल से जाते समय उन्होंने यह पहचान लिया की पिछली बार उन्होंने आधा घर ही देखा था. अब हम छाया के कमरे में थे. वह बहुत खुश हो गयीं. छाया ने भी अपना कमरा बहुत अच्छे से सजाया था. माया आंटी ने कहा बेटा इतना बड़ा घर. मैंने उनसे कहा..
“यह हम सब के लिए ही है. आप सब लोग अपना अपना सामान व्यवस्थित कर लें.” शर्मा अंकल भी घर के अंदर आ चुके थे.
मैंने माया आंटी से कहा..
“ हम सोसाइटी के लोगों को यही कहेंगे आप और शर्मा जी पति पत्नी है तथा छाया आपकी बेटी है. मैंने यह घर आप लोगों को किराए पर दिया हुआ है.”
माया आंटी को मेरी बात ठीक लग रही थी. वहां की सोसाइटी के लोग हमें जानते नहीं थे अतः इस नए रिश्ते के साथ वहां रहने में कोई बुराई नहीं थी. शर्मा जी का साथ रहने से हम दोनों के लिए अच्छा ही था.
शर्मा जी भी मान गए थे माया आंटी ने उन्हें हमारे घर की सारी परिस्थितियों से अवगत करा दिया था. वह जान गए थे कि मैं और छाया प्रेमी प्रेमिका है और माया आंटी ने उनका रिश्ता स्वीकार कर लिया है. उन्होंने माया आंटी को आश्वस्त किया था की वह जरूरत पड़ने पर हर स्थिति संभालने में उनकी मदद करेंगे और हमेशा उनके साथ रहेंगे.
उन दोनों के बीच में एक ऐसा संबंध बन गया था जो पति-पत्नी जैसा ही था बस विवाह नहीं हुआ था. मेरी और छाया की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही थी.
मैं और छाया अपना सामान अपने बेडरूम में लगाने लगे. हम दोनों यही बात कर रहे थे की क्या माया आंटी और शर्मा अंकल एक ही कमरे में रहेंगे या अलग अलग. यह एक ऐसा प्रश्न था जिसका उत्तर कुछ घंटे बाद ही मिलना था. थोड़ी देर बाद माया. आंटी की आवाज आई वह हमें चाय के लिए बुला रहीं थी.
हम हॉल में गए. छाया अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाई और और यह देखने गई कि शर्मा अंकल ने अपना सामान कहां लगाया है. मास्टर बेडरूम के बाथरूम से आ रही शर्मा जी की आवाज ने सारे प्रश्नों का उत्तर दे दिया. हमने इस पर आगे कोई चर्चा नहीं की. हमें माया आंटी की खुशी ज्यादा ज्यादा प्यारी थी. शर्मा जी के साथ उनका रहना उनके जीवन का नया अध्याय था. लगभग अड़तीस वर्ष की उम्र में माया आंटी लिव इन रिलेशनशिप में रहने जा रहीं थी. माया आंटी एक समझदार महिला थी. उन्होंने अपने वाले फ्लैट में एक कमरे में छाया का कुछ सामान रख दिया था.
आखिरकार वह उनकी बेटी थी किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में वह उस कमरे में जाकर रह सकती थी. हम लोगों ने यह निर्णय किया था की जरूरत पड़ने पर हम हॉल का दरवाजा बंद कर देंगे. शर्मा अंकल और माया आंटी यही कहेंगे कि मैंने अपने फ्लैट का वह हिस्सा उन लोगों को किराए पर दिया हुआ है. छाया के लिए अब दो कमरे बन चुके थे. माया आंटी वाले फ्लैट का कमरा उसका मायका बन गया था और मेरा बेडरूम उसकी भावी ससुराल.
जब वह मेरे कमरे में रहती मेरी मंगेतर बनकर रहती और जरूरत पड़ने पर वह अपने घर के अपने कमरे में भी रह सकती थी. घर पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया था. अब हम इन नए संबंधों के साथ नए घर में खुश थे.
नियति ने हमारे नए घर में दो नए रिश्तों को जीने का पूरा मौक़ा दे दिया था. दोनों ही जोड़े प्यार के लिए तरस रहे थे और एकांत उन्हें प्रिय था.
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