XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
04-11-2022, 01:22 PM,
#20
RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
माया आंटी और शर्मा जी.
{मैं माया}

मेरे मन में दिन पर दिन शर्मा जी के प्रति स्नेह बढ़ता जा रहा था वह मेरा बहुत ख्याल रखते थे. मैं उनके साथ कभी अंतरंग तो नहीं हो पाई थी परंतु हमने अपने जीवन के बारे में सारी बातें एक दूसरे से साझा कर ली थी. वह मेरी पति की अकाल मृत्यु पर बहुत दुखी थे. उन्होंने तो अपना वैवाहिक जीवन अपनी पत्नी के साथ लगभग 10 - 15 वर्षों तक जी लिया था और वह उससे काफी संतुष्ट भी लगते थे परंतु वह मेरे लिए सोच सोच कर दुखी होते कि कैसे युवावस्था में ही मुझे अपने पति के बिना रहना पड़ा और अपनी जिम्मेदारियों की वजह से मैं अपने जीवन का सुख नहीं ले पाइ. परंतु हम दोनों में से सेक्स के लिए कभी किसी ने पहल नहीं की.

जब मैंने छाया और मानस को एक साथ रंगे हाथों पकड़ा था उस दिन उन दोनों की तस्वीर मेरी आंखों में कैद हो गयी थी. इन दोनों को नग्न देखकर मेरा मन विचलित हो गया था. बिस्तर पर बैठे हुए थे और दोनों के गुप्तांगों पर तकिया रखा हुआ था पर पूरा शरीर नग्न था. उन दोनों की छवि को देखकर मेरे मन में बहुत दिनों बाद कामुकता आई. यह बहुत दिनों बाद हो रहा था जब मैं किसी स्त्री पुरुष को नग्न देखी थी. छाया को देखकर ऐसा लगा जैसे मैं अपनी युवावस्था में आ गई थी. छाया काफी हद तक मेरे ऊपर ही गई थी उसकी शारीरिक संरचना लगभग मेरे जैसी थी पर वह युवा थी और मैं युवती हो चुकी थी. उन दोनों को नग्न देखने के बाद जब मैं एकांत में होती मेरे मन में कामुकता जन्म लेती और कई कई बार मैं अपनी योनि में गीलापन महसूस कर रही होती.

शर्मा जी का साथ होने पर यह कामुकता और तीव्र होती. नए घर में आने के बाद मानस और छाया एक ही कमरे में चले गए. मैं और शर्मा जी भी अपने कमरे मैं आ गए बातों ही बातों में शर्मा जी ने यह बात बोली मानस और छाया एक आदर्श जोड़ी हैं वह दोनों इतने सुंदर हैं जैसे कामदेव और रति. भगवान उन दोनों का प्रेम हमेशा बनाए रखें.

शर्मा जी द्वारा कहे गए यह वाक्य मेरी अपनी सोच से मिलते थे. एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे मैं और शर्मा जी एक ही दिशा में सोच रहे हैं. अचानक उन्होंने कहा छाया तुम पर ही गई है” मैंने हंसकर कहा..

“किस मायने में.” वह मुस्कुरा दिए. मैंने फिर पूछा

“बताइए ना”

उन्होंने कहा

“हर तरह से. तुम्हारे शरीर की बनावट उससे काफी मिलती है”

“क्या मिलता है”

तुम दोनों का रंग. शरीर की बनावट आदि”

मैं चाहती थी कि वह मुझसे खुलकर बात करें पर वह बहुत ही संभल कर बातें कर रहे थे फिर अचानक ही उन्होंने मुझसे पूछा..

“क्या कभी भी तुम्हारे मन में कामुकता जन्म नहीं

लेती?”

“जब मनुष्य का मन प्रसन्न हो और उसके शरीर में कोई कष्ट ना हो तो युवावस्था में यह स्वाभाविक रूप से जन्म लेती है. साथी उपलब्ध न होने की दशा में हम उसे दबा ले जाते हैं”

उन्होंने हंसते हुए कहा..

“पर आज तो साथी भी है यह कहते हुए वह मुस्कुरा दिए”

मैं उनका इशारा समझ चुकी थी बाथरूम में नहाते समय मैंने अपने आपको आईने में देखा मेरे स्तन पूर्णतयः उभरे हुए थे पर उनमे अब थोड़ा झुकाव आ चुका था. रतिक्रिया के लिए इनका उपयोग तो हुआ था पर सिर्फ कुछ ही वर्षों तक. मेरा शरीर अभी भी सुंदर था. ग्रामीण परिवेश में लगातार रहने और कार्य करने से मेरे शरीर गठीला हो गया था. आप अपनी परिकल्पना के लिए स्वर्गीय स्मिता पाटिल को याद कर सकते हैं. मेरा शरीर लगभग उनके जैसा था सिर्फ रंग गोरा था. मैंने

अपने कमर के नीचे अपनी योनि को देखा मुझे सिर्फ अपने बाल ही दिखाई दे रहे थे. आज पता नहीं क्यों मुझे इन्हें काटने की इच्छा हुई मैंने वहीं पड़े शर्मा जी की शेविंग किट से उन्हें साफ कर लिया. कई दिनों बाद अपनी योनि पर लगातार हाथ लगने से वह गीली हो चली थी. रेजर को बार-बार उसके होठों पर लगाने से एक अलग तरह की अनुभूति हो रही थी.

कभी कभी मेरे मन में छाया और मानस के बीच चल रही अठखेलियों

का ध्यान आ जाता. आज वह दोनों भी अपने कमरे में अकेले थे. उनके बारे में सोचते हुए कभी मुझे यह शर्मनाक भी लगता.

कामुकता के समय हमारे ख्याल वश में नहीं होते वो किसी भी दिशा में किसी भी हद तक जा सकते हैं इसमें रिश्तों को कोई भूमिका रह नहीं जाती.

कुछ ही देर में मेरी योनि पूरी तरह चमकने लगी थी. उसके सारे बाल साफ हो गए थे. मैंने अपना नहाना धीरे-धीरे खत्म किया और एक सुंदर सी नाइटी पहन कर बाहर आ गई. शर्मा जी बिस्तर पर बैठे-बैठे टीवी देख रहे थे. मुझे देखते ही वह बोले….

“ अरे वाह आज तो आप अत्यंत सुंदर लग रही हैं.” मैं अपने बाल सुखा रही थी और पीछे मुड़कर कहा..

“ ठीक है पर अपनी नजरें दूर ही रखिए.” कुछ ही पलों में मैं भी बिस्तर पर आ चुकी थी उन्होंने लाइट बंद कर दी. कुछ ही देर में मैंने उनके हाथों को अपनी कमर पर महसूस किया जैसे वह मुझे अपनी तरफ खींच रहे हैं. मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ मुड़ गइ वह मेरे और करीब आ गए. कुछ ही देर में उन्होंने मुझे आलिंगन में ले लिया. अभी भी हमारे वस्त्र पूरी तरह सही सलामत थे. वह अपना चेहरा मेरे पास लाए और बोले

“माया तुम बहुत अच्छी हो तुम्हारे साथ रहते हुए चार-पांच महीने कैसे बीत गए पता ही नहीं चला क्या हम जीवन भर साथ नहीं रह सकते” इतना कहते हुए उन्होंने मुझे गालों पर चूम लिया. मैं थरथर काँप रही थी. आज कई वर्षों के बाद किसी पुरुष ने मुझे छुआ था. वह मेरे जवाब की प्रतीक्षा कर रहे थे. इस दौरान वह निरंतर अपने चुम्बनों की बारिश

मेरे गालों और माथे पर कर रहे थे. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हुआ. मैंने अपने हाथ उनकी पीठ पर रख दिए. कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह उनके आलिंगन में थी मेरे स्तन उनकी छाती से टकराने लगे. धीरे-धीरे उनका दाहिना पैर मेरी कमर पर आ चुका था. और हमारे अंग प्रत्यंग एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब हो गए थे.

शर्मा जी धीरे-धीरे मेरी नाइटी को कमर तक ले आए अब उनके हाथ मेरी जाँघों और नितंबों सहला रहे थे कई वर्षों बाद किसी पुरुष का हाथ मुझे इस प्रकार छू रहा था. मेरी योनि पूरी तरह गीली हो चुकी थी धीरे धीरे वो कब निर्वस्त्र हो गए यह मुझे पता भी न चला. मुझे एहसास तब हुआ जब शर्मा जी ने नाइटी हटाने के लिए मेरे दोनों हाथों को ऊपर करने करने लगे. कमरे में अंधेरा अभी भी कायम था. खिड़की से बैंगलोर शहर दिखाई पड रहा था. उसकी कुछ रोशनी हमारे कमरे में भी आ रही थी. हम दोनों एक दूसरे को कुछ हद तक देख पा रहे थे. उनके आलिंगन में आने पर मुझे उनके लिंग का एहसास

अपनी पेट पर हो रहा था. मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि मैं उस लिंग को छू लूं. मन में कहीं न कहीं अपराध बोध भी अपनी जगह स्थान बनाया हुआ था.

पर आज कामुकता प्रबल थी अपराधबोध बहुत कम. कामुकता

अपना प्रभाव जमाते जा रही थी.

शर्मा जी ने मेरे स्तनों को अपने होठों से छूना शुरू कर दिया. मैं पहले ही काफी उत्तेजित थी. मुझसे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी. मैंने भावावेश में आकर अपने हाथ उनके लिंग पर रख दिए तथा उसे महसूस करने लगी. शर्मा जी का लिंग मेरे अनुमान से बड़ा था. उसकी लंबाई तो लगभग मेरी हथेलियों के बराबर थी पर उसकी मोटाई कुछ ज्यादा लग रही थी. मैंने अपने अंगूठे और तर्जनी से उसे पकड़ना चाहा पर सफल न हो सकी. शर्मा जी अब मेरे दाहिने स्तन का निप्पल अपने मुंह में लेकर चुभला रहे थे. मैं उनके लिंग को हाथों में लेकर आगे पीछे करने लगी.

हमारी कामेच्छा अब चरम पर पहुंच चुकी थी. शर्मा जी के हाथ लगातार मेरे नितंबों पर घूम रहे थे. कभी-कभी उनके हाथ नितंबों के रास्ते मेरे योनि तक पहुंचने की कोशिश करते पर मेरी जांघों का दबाव

आते ही वह वापस हो जाते. शर्मा जी ने मुझे धीरे धीरे अपने ऊपर ले लिया. शर्मा जी पीठ के बल बिस्तर पर लेटे हुए थे और मैं अब उनके ऊपर आ चुकी थी. जैसे ही मैंने अपना दाहिना पैर उनकी कमर के दूसरी तरफ किया मैं उनके नाभि पर बैठी गयी. उनका लिंग मेरे नितंबों से टकरा रहा था उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरे होंठों को अपने होठों में ले लिया. मेरे होठों को चूमने वाले वह दूसरे पुरुष थे.

इन चुम्बनों के दौरान कब मेरी कमर पीछे होती गयी मुझे कुछ भी पता नहीं चला.

अचानक मुझे शर्मा जी का लिंग अपनी योनि के मुख पर महसूस हुआ. मेरे योनि से निकला प्रेम रस उस लिंग को अपनी सही जगह तक ले

आया था. उनके लिंग की अनुभूति मेरी योनि को अत्यंत उत्तेजक लग रही थी. आज लगभग 10 वर्षों के बाद मुझे यह सुख प्राप्त हो रहा था. मैं इससे पहले कुछ करती लिंग का अगला भाग मेरी योनि में प्रवेश कर चुका था. शर्मा जी ने मुझे एक बार फिर जोर से किस किया और अपनी कमर ऊंची करते गए. लिंग मेरी योनि में लगभग आधे से ज्यादा प्रवेश कर गया. योनि पूरी तरह गीली थी.इतने वर्षों बाद योनि में लिंग प्रवेश से मुझे अजीब सी अनुभूति हुयी. शर्मा जी का लिंग थोड़ा मोटा था इस वजह से मुझे हल्का दर्द भी महसूस हुआ. परंतु शर्मा जी के लगातार होंठ चूसने की वजह से वह दर्द ना के बराबर था मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई थी.

मैंने अपनी कमर पूरी तरह नीचे कर दी शर्मा जी का लिंग मेरे अंदर पूरी तरह प्रवेश कर चुका था पर अभी भी मेरी भग्नाशा उनसे सट नहीं रही थी. अपनी कमर को इससे ज्यादा पीछे ले पाना मेरे लिए संभव नहीं था. मुझे लगता था अभी भी लिंग का कुछ हिस्सा बाहर था. भग्नाशा की रगड़ बनाने के लिए लिंग को पूरी तरह अंदर लेना अनिवार्य था. मैंने एक बार फिर प्रयास किया अब मेरी भग्नासा उनसे सट चुकी थी. उनका लिंग मेरी योनि में पूरी तरह फंसा हुआ था. मुझे अंदर हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा था . मैं इस स्थिति में कुछ देर यूं ही पड़ी रही. शर्मा जी के हाथ लगातार मेरे नितम्बों को सहला रहे थे. जैसे मुझे शाबाशी दे रहे थे कि अंततः मैंने लिंग को पूरी तरह अन्दर ले लिया.

कुछ देर बाद मैंने अपनी कमर को आगे पीछे करना प्रारंभ कर दिया. भग्नाशा पर होने वाली रगड़ बढ़ती जा रही थी. लिंग अपना काम कर रहा था जैसे ही लिंग बाहर की तरफ होता ऐसा लगता जैसे मेरे शरीर में एक अजीब सा खालीपन आ गया आ गया है. जब वो अंदर की तरफ आता तो एक अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती और शरीर पूरा भराव महसूस करता. मैं इस प्रक्रिया में अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे करने लगी थी. योनि के अंदर शर्मा जी के लिंग के कंपन महसूस हो रहे थे. शर्मा जी लगातार नितंबों को सहलाते जा रहे थे. कभी-कभी वह अपने चहरे को उठा कर मेरे स्तनों को अपने मुह में ले लेते. योनि के अंदर लिंग के उछलना लगातार महसूस हो रहा था.

मेरी योनि अब स्खलित हो रही थी. मैं शर्मा जी के ऊपर लगभग गिर सी गयी. मेरी कमर चलाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी. शर्मा जी ने यह महसूस करते ही स्खलित हो रही योनी में के बीच में अपने लिंग को तेजी से आगे पीछे करने लगे. यह एक अद्भुत अनुभव था इस क्रिया में उनके लिंग ने भी अपना स्खलन प्रारंभ कर दिया था. हम दोनों के एक साथ स्खलित हो रहे थे.

स्त्री की योनि को स्खलित होने में कुछ समय लगता है परंतु पुरुष का स्खलन अपेक्षाकृत जल्दी होता है.

मैं शर्मा जी के उपर कुछ मिनटों तक पड़ी रही. मेरा चेहरा उनके बगल में था. हम दोनों एक दूसरे के देख तो नहीं पा रहे थे पर दोनों के आनंद को महसूस जरूर कर पा रहे थे. हमारी धड़कने तेज थी. छाती पर पसीना आ गया था. मैंने अपनी कमर को आगे किया और शर्मा जी लिंग धीरे से बाहर आ गया. हम मुझे उनका वीर्य अपनी योनि से निकलता हुआ महसूस हुआ जो शायद शर्मा जी के ऊपर ही गिरा होगा. मैं हाल ही में रजस्वला हुयी थी मुझे गर्भाधान का डर नहीं था.

हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले उसी अवस्था में सो गए सुबह उठकर मैंने देखा तो शर्मा जी उसी तरह नग्न पड़े हुए थे. मैंने उनके ऊपर चादर डाली और मैं बाथरूम में चली गई. शर्मा जी ने मुझे जो सुख दिया था वह एक यादगार सुख था मैंने अपने स्वर्गीय पति से इस कार्य के लिए क्षमा मांगी.

जीवन में आया यह बदलाव सही था या गलत मैं नहीं जानती पर मैं आज बहुत खुश थी. मानस को मैंने दिल से आशीर्वाद दिया और किचन में नाश्ता बनाने चली गयी.
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