RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाई बहन
[मैं मानस ]
दो दिनों के बाद मनोहर चाचा की लड़की की सगाई का कार्यक्रम था. हम तीनों समय से कार्यक्रम में पहुंच गए. कार्यक्रम शुरू होने में अभी देर थी माया आंटी मंजुला चाची से बात करने के लिए उत्सुक थी. उनकी अधीरता उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रहे थी. कुछ ही देर में उन्होंने मंजुला चाची को एकांत में पाकर उनसे बात छेड़ दी और कहा
“ मंजुला मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है”
“ हां बोलिए ना”
“ मानस और छाया के भी संबंध वैसे नहीं है जैसा तुम समझ रही हो”
“ क्या मतलब”
“ वह दोनों एक दूसरे को भाई-बहन नहीं मानते”
“ क्या मतलब यह कैसे हो सकता है”
“ अरे वह दोनों शुरू से ही एक दूसरे से बात नहीं करते थे और एक बार जब बातचीत शुरू हुई तो उन दोनों ने लड़के लड़कियों वाले संबंध बना लिए. मुझे यह कहते हुए शर्म भी आ रही है कि दोनों अभी तक इन संबंधों में लगे हुए हैं. मेरे समझाने के बाद भी वह दोनों एक दूसरे को भाई बहन नहीं मानते. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं”
माया आंटी ने खुद को निर्दोष रखते हुए सारी बातें एक साथ कह दी.
मंजुला चाची समझदार महिला थी उन्होंने कहा..
“ मैं भी समझती हूं की छाया मानस की अपनी बहन तो है नही. और वैसे भी उन दोनों की मुलाकात युवावस्था में हुई है. इस समय लड़का और लड़की में शारीरिक परिवर्तन हो रहे होते हैं जिससे वह दोनों करीब आते हैं . मुझे लगता है छाया इतनी सुंदर थी की मानस उसके करीब आ गया होगा. और दोनों में इस तरह के संबंध बन गए होंगे. पर क्या छाया अब कुंवारी नहीं है?
“नहीं नहीं वह पूरी तरह कुंवारी है”
“तब तो चिंता की कोई बात ही नहीं है. युवावस्था में लड़के लड़कियों के बीच ऐसे संबंध बन ही जाते हैं वैसे भी छाया उसकी सगी बहन तो थी नहीं इसलिए वो दोनों पास आ गये होंगे. तुम इन बातों को दिमाग से निकाल दो वह भी इस बात को समझते होंगे.”
“अरे नहीं वह दोनों तो एक दूसरे से विवाह करना चाहते हैं मुझसे बार-बार इस बात के लिए अनुरोध करते हैं”
“ यह कैसे संभव होगा? तुम यह बात कैसे सोच भी सकती हो. गांव वालों के सामने क्या मुंह दिखाओगी. सब लोग यही कहेंगे की माया ने अपनी बेटी को मानस को फासने के लिए खुला छोड़ रखा होगा. मां-बेटी ने मानस जैसे शरीफ लड़के को अपने जाल में फांस लिया ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके. छाया इतनी समझदार लड़की है और काबिल भी, क्या तुम दोनों इस अपमान के साथ जीवन गुजार पाओगी.”
मंजुला आंटी की बातें माया आंटी को निरुत्तर कर गयीं. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोलूं.
मंजुला आंटी फिर बोलीं ..
“ गांव में तुम्हारे परिवार की बड़ी इज्जत है. सभी लोग गर्व से मानस का नाम लेते हैं और कहते हैं कितना अच्छा लड़का है पिता के जाने के बाद अपने परिवार को पूरी तरह संभाल लिया. अपनी बहन छाया को पढ़ाया लिखाया. भगवान ऐसा लड़का सबको दे. तुम इन दोनों के विवाह के बारे में सोच कर अपनी और अपने बच्चों की आने वाली जिंदगी हमेशा के लिए बर्बाद कर दोगी. यह बात अपने दिमाग से बिल्कुल निकाल दो”
इतना कहकर उन्होंने माया आंटी की पीठ पर हाथ रखा और बोला चलो सगाई का कार्यक्रम शुरू हो रहा है.
मेरा मन कार्यक्रम में नहीं लग रहा था. छाया भी कुछ लड़कियों के साथ गुमसुम बैठी थी. कार्यक्रम के बाद हमने गाँव से आए सभी लोगों से मुलाकात की. मनोहर चाचा के पैर छूते समय वह भावुक हो गए और बोले..
“मानस बेटा तुम्हें देख कर बहुत अच्छा लगा. तुमने पापा के जाने के बाद अपनी बहन छाया और इनकी मां को अपना लिया. यह एक बहुत बड़ा कदम है. तुम्हारे इस अच्छे काम की सराहना आस पास के गांवों में भी होती है. सभी लोग अपने बच्चों को तुम से प्रेरणा लेने को बोलते हैं और तुम्हारे जैसा बनने की अपेक्षा रखते हैं. भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे.”
मनोहर चाचा ने यह भी कहा कि “तुम्हें और छाया को साल में एक बार गांव अवश्य आना चाहिए. वहां तुम लोगों की संपत्ति है तुम्हारे पापा ने संपत्ति के कुछ हिस्से छाया के साथ साझा किए हैं. अपनी जमीन को व्यवस्थित और अपने प्रभाव क्षेत्र में रखने के लिए साल में एक दो बार गांव आना उचित होगा. मुझे पता है तुम्हारी नौकरी में व्यस्तता ज्यादा रहती होगी पर दायित्व निर्वहन भी जरूरी है. उन्होंने चलते चलते फिर से आशीर्वाद दिया तुम दोनों भाई बहन हमेशा खुश रहो यही मेरी भगवान से प्रार्थना है.”
कार्यक्रम से वापस आने के बाद मैं और माया आंटी बहुत दुखी थे. माया आंटी के चेहरे पर उदासी यह स्पष्ट कर रही थी कि उन्हें मंजुला चाची का समर्थन नहीं मिला है. सारे गांव वालों द्वारा हम भाई बहन की तारीफों ने और इस सामाजिक ताने बाने ने हमारे मन में चल रहे विचारों पर कुठाराघात किया था.
कुठाराघात
माया आंटी ने मुझे अपने पास बुलाया और सारी बाते बतायीं और बोला..
“ बेटा मानस अब तुम्हें ही छाया को समझाना होगा. तुम दोनों के बीच में चल रहे प्रेम संबंधों को यहीं पर विराम देना होगा. तुम दोनों का विवाह होना असंभव लग रहा है. कोई भी इस बात को स्वीकार करने को राजी नहीं है कि तुम दोनों भाई बहन नहीं हो. बल्कि तुम दोनों को आदर्श भाई बहन की संज्ञा दी जा रही है. गांव में तुम लोगों की इतनी तारीफ होती है यह बात मुझे लगभग हर व्यक्ति ने कही. जब उन्हें यह पता चलेगा की तुम दोनों विवाह कर रहे हो वह इसे बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे. और समाज में हमारी बड़ी बेइज्जती होगी. तुम दोनों एक दूसरे को प्रेम करते हो मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी. मैं समझती हूं परंतु विवाह होना यह शायद संभव नहीं हो पाएगा.
तुम छाया को समझा लो अभी तक उसका कौमार्य सुरक्षित है यह एक अच्छी बात है. तुम दोनों ने एक दूसरे के साथ अभी तक जो भी किया है वह उचित है या अनुचित इस बारे में न सोचते हुए इस संबंध को यहीं पर विराम दे दो. कुछ ही महीनों में छाया की पढ़ाई पूरी हो जाएगी. उसके बाद हम लोग उसका विवाह कर देंगे. विवाह के पश्चात वह स्वयं इन सब चीजों को भूल जाएगी.
तुम दोनों के बीच जो प्रेम संबंध बने हैं वह बने रहे. यह आवश्यक नहीं कि उसमें कामुकता ही प्रधान रहे तुम दोनों बिना कामुकता के भी एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना रखते हुए आगे का जीवन व्यतीत कर सकते हो. मैं उम्मीद करती हूं तुम दोनों के जीवन साथी भी तुम लोगों की तरह ही खूबसूरत और समझदार होंगे. ताकि तुम दोनों उनके साथ अपनी अपनी इच्छाओं को पूरा कर सको. यही एकमात्र उपाय है”
इतना कहकर माया आंटी उठ गई. इन बातों के दौरान छाया कब हमारे पीछे आ चुकी थी यह मैं नहीं देख पाया था. उसने भी वह सारी बातें सुन ली थी वह पैर पटकती हुई मेरे कमरे में चली गई और बिस्तर पर पेट के बल लेट कर उसके दोनों हांथों से सर पकड़ लिया था. मैं उसे उठाने की चेष्टा करने लगा. उसकी आंखें भीगी हुई थीं
वह मुझसे लिपट कर रोते रोते बोली
“ क्या यह सच में नहीं हो पाएगा”
मैं निरुत्तर था. मैं उसकी पीठ सहलाता रहा और बालों पर उंगलियां फिरता रहा. मेरे पास कुछ कहने को शब्द नहीं थे मैं स्वयं भी रो रहा था.
गांव वालों ने आकर हमें हमारी कल्पना से हमें वापस जमीन पर पटक दिया था.
छाया से वियोग.
अंततः यह सुनिश्चित हो चुका था कि मेरा और छाया का विवाह संभव नहीं है. छाया बहुत दुखी थी, पर वह स्थिति की गंभीरता को समझती थी. माया आंटी ने छाया से उसके सारे कपड़े अपने नए कमरे में लाने के लिए कहा. छाया का नया कमरा माया आंटी के शयन कक्ष के बगल वाल था. छाया जब अपने कपड़े और सामान मेरे कमरे से बाहर ले कर जा रही थी तो मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरे जीवन से सारी खुशियां एक साथ बाहर जा रहीं है. मेरी आँखे भर आयीं थी. इतना मजबूर मैं कभी नहीं था.
छाया को मैंने आज तक कभी अपनी बहन नहीं माना था और न ही भविष्य में कभी मान सकता था पर परिस्थितियां ऐसी बन गई थी कि मैं उसे अपनी प्रेमिका या प्रेयसी नहीं बना सकता था. हमारे सपने खंडित हो चुके थे.
हम दोनों ने कई दिनों तक एक दुसरे से बात नहीं की. जब भी वह मुझसे मिलती अपना सर झुकाए रखती थी. हम क्या बातें करें यह हमें खुद भी नहीं समझ में आता था. घरेलू बातों के लिए माया आंटी ही मेरा ध्यान रखती. मेरे कमरे में चाय खाना या किसी अन्य तरह की सहायता के लिए वही आती. मुझे छाया से यह सब काम बोलने में शर्म आती थी. जब भी मेरे से उसकी नजरें मिलतीं उसकी नजरों में एक अजीब सी उदासी रहती.
मैंने इतनी प्यारी लड़की से जैसे अन्याय कर दिया हो. इसकी आत्मग्लानि मुझे हमेशा रहती. मुझे लगता जैसे मैं उसकी भावनाओं और शरीर के साथ पिछले तीन वर्षों से खेल रहा था. इस आत्मग्लानि ने मेरा भी सुख चैन छीन लिया था.
नियति में जो लिखा होता है उसे आप बदल नहीं सकते. हमारे प्रेम में हम दोनों की साझेदारी बराबरी की थी पर उम्र में बड़ा होने के कारण मैं इस आत्मग्लानि से ज्यादा व्यथित था.
समय सभी घावों को भर देता है इसी उम्मीद के साथ हम अपनी गतिविधियों में व्यस्त होने का प्रयास कर रहे थे. लगभग दो महीने बीत गए थे. घरेलू कार्यों के लिए की गई बातों को दरकिनार कर दें तो मैंने और छाया ने आपस में कभी भी एक दूसरे से देर तक बात नहीं की थी . अब वह मुझे बिल्कुल पराई लगने लगी थी. माया आंटी मेरी केयरटेकर बन चुकी थी. छाया मुझसे दूर ही रहती और पता नहीं क्यों मैं भी उससे बात करने में कतराता था.
मेरे मन की कामुकता जैसे सूख गयी थी.
[शेष समय के साथ। ]
मेरा विवाह हो चूका था. छाया की अपनी भाभी से बहुत बनती थी. हम तीनों घनिष्ठ दोस्त बन गए थे. अंततः छाया का विवाह भी हुआ पर उसके साथ सुहागरात उसके प्यार ने ही मनायी ….. छाया का देखा हुआ स्वप्न भी साकार हुआ. छाया मेरी बहन तब भी नहीं थी और अब भी नहीं है. जिनके लिए हम भाई बहन थे उनके लिए आज भी हैं. माया आंटी ही हमें समझ पायीं थी की हम दोनों एक दुसरे के लिए ही बने थे. …….वह भी कामदेव ओर रति के रूप में …….
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