XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
04-11-2022, 01:23 PM,
#26
RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाग-9

छाया सीमा की गहराती दोस्ती.

कुछ दिनों से मैं बहुत उदास थी. मुझे सीमा दीदी की याद आई. मैंने उन्हें अपने आने की सुचना उनके आफिस में फ़ोन करके दे दी. रविवार को मैं निर्धारित समय पर उनके घर पहुच गयी. वह घर पर ही थी
“ आओ छाया आज मैं बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी”
“जाने दीजिए मैं आ गई ना”
हम दोनों अंदर आ गये. मैं उनके लिए बहुत सारी चाकलेट लायी थी. वह बहुत खुस हुईं और मुझे गले से लगा किया. हम दोनों के ही स्तन पूर्ण रूप से उन्नत थे गले लगते ही सबसे पहले उनकी ही मुलाकात हुई. मैं और सीमा दीदी दोनों हँस पड़े. कुछ समय बाद उन्होंने पूछा
“ छाया क्या खाओगी”
“कुछ भी बहुत भूख लगी है” हम दोनों ने झटपट कुछ खाने की सामग्री बनाई और बिस्तर पर बैठ कर खाना खाने लगे. कुछ ही देर में बाते करते करते हमें नींद आने लगी और मैं बिस्तर पर ही लेटने लगी. उन्होंने कहा..
“ अरे अपनी जींस उतार दो मेरा पायजामा पहन लो”
“नहीं दीदी ठीक है”
“अरे क्या ठीक है”
“इतनी चुस्त जींस में क्या तुझे नींद आएगी”
मैं शर्मा रही थी. पर सीमा तुरंत जाकर एक सफेद कलर का पजामा ले आइ और मुझ पर हक जताते हुए बोली “खुद खोलेगी या मैं खोलू.” मैंने उनकी बात मान ली और पैजामा लेकर बाथरूम में जाने लगी. उन्होंने कहा “ यही बदल लो मैं कौन सा तुम्हें खा जाऊंगी”
मुझे फिर भी शर्म आ रही थी.
“अच्छा लो मैं आंखें बंद कर लेती हूँ. और उन्होंने सच में आंखें बंद कर लीं. मैंने अपनी जींस उतार दी और उनका दिया पायजामा पहन लिया. हम लोग फिर से बातें करने लगे. बातों ही बातों में मैंने उनके दोस्त सोमिल के बारे में पूछा वह थोड़ी रुवासीं हो गयीं. उन्होंने बताया
“ गांव से आने के बाद मैं सोमिल के साथ दो वर्षों तक मिलती-जुलती रही पर पिछले दो ढाई सालों से उसका कुछ अता पता नहीं है. मैंने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की पर मैं सफल नहीं हो पाई. उसके माता-पिता अब उस पते पर नहीं रहते. मैं प्रयास कर कर के थक गइ अब उससे मुलाकात होगी भी या नहीं यह मैं नहीं जानती. पर मैं उसे बहुत याद करती हूँ.”
मैंने स्थिति को सामान्य करते हुए हंसते हुए पूछा..
“सीमा दीदी आपका कौमार्य अभी तक बचा है या सोमिल ने ले लिया”
वह मुस्कुरा पड़ी
“तुझे बड़ा मेरे कौमार्य की पड़ी है. तुम खुद इतनी सेक्सी और खूबसूरत हो गई हो किब मुझे लगता है कि तुम्हारी राजकुमारी अब रानी बन चुकी होगी”
मैं उनके इस पुराने संबोधन पर हंस पड़ी. उनके इन्ही संबोधनों ने कुछ समय पहले तक मानस और मेरे संबधों को जीवंत कर रखा था. मैंने एक बार फिर पूछा
“क्या सच मे आपने अभी तक अपना कौमार्य बचा कर रखा है”
वह हंस पड़ी और कहा..
“तुम्हें देखना है”
“ दिखाइए” मेरा कौतूहल चरम पर था. मैंने आज तक अपनी राजकुमारी के अलावा किसी और की वयस्क राजकुमारी नहीं देखी थी. अपनी राजकुमारी को भी मैंने सिर्फ आईने में देखा था. मुझे राजकुमारी की गुफा देखने की बड़ी तीव्र इच्छा थी. मैं देखना चाहती थी की कौमार्य की झिल्ली किस प्रकार दिखाई देती है. मैं अपनी उत्सुकता ना रोक पाइ और सीमा दीदी से कहा...
“क्या मैं आपकी कौमार्य झिल्ली देख सकती हूं” वह हसीं और बोली
“तुम्हारी उत्सुकता आज भी वैसी ही है” और यह कह कर अपने पजामे को ढीला करने लगीं. कुछ ही देर में उनका पजामा जमीन पर पड़ा था. उनकी गोरी और सुडौल जांघे देखकर मुझे इर्ष्या हो रही थी. उनका रंग गेहुआ था पर जांघों के पुष्ट उभार उन्हें एक अलग किस्म की खूबसूरती प्रदान कर रहे थे. उन्होंने काले रंग की पैंटी पहनी हुई थी. मेरे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने अपनी पेंटी उतारना शुरू कर दिया कुछ ही देर में वह कमर के नीचे नंगी हो गयीं थीं. उन्होंने बिना मुझसे पूछे बिना मेरी कमर से अपनी दी हुई सफेद पजामी उतारना शुरू कर दी. मैं अब धीरे-धीरे नंगी हो रही थी उन्होंने मेरी लाल पैंटी को भी उतार दिया.
हम दोनों को नग्न होने का कुछ ऐसा विचार आया कि हम दोनों ने बिना बात किए एक दूसरे का टॉप उतारना शुरू कर दिया. मैं आज कई महीनों बाद नंगी हो रही थी मानस से दूरियाँ बढ़ने के बाद यह पहली बार हो रहा था. इतना सब होने के बाद अकेले हम दोनों के ब्रा क्या करते उन्होंने भी हमारा साथ छोड़ दिया अब हम दोनों पूर्णतया नंगे थे. हम दोनों ने एक दूसरे के शरीर को बहुत ध्यान से देखें सीमा दीदी का तो पता नहीं पर मैंने किसी वयस्क लड़की को आज पहली बार नंगा देखा था. और वह भी मेरी सीमा दीदी उनके स्तन अत्यंत खूबसूरत थे. उनका रंग मुझसे जरूर सावला था पर उनके पुष्ट शरीर के आगे मुझे मेरी खूबसूरती कम लगती थी. हूम दोनों के शरीर की परिकल्पना ले लिए आप मुझे “ १९४२ एक लव स्टोरी की मनीषा कोइराला “ ( जैसा मानस मुझे कहते हैं) और आज की जेक्लीन फर्नाडिस से सीमा दीदी की तुलना कर सकते हैं.
सीमा तो मुझे देखकर मंत्रमुग्ध हो गइ थी. मैं इतनी हष्ट पुष्ट तो नहीं थी पर अत्यंत कोमल थी. उन्होंने मुझे आलिंगन में ले लिया और बोली यदि मैं लड़का होती तो तुम्हारे जैसी नवयुवती के दर्शन कर धन्य हो जाती. इतना कहकर उन्होंने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मेरी पीठ को सहलाने लगी.

Smart-Select-20201218-101139-Drive हम दोनों के स्तन आपस में टकरा रहे थे जिसका आनंद हम दोनों के चेहरे पर देखा जा सकता था. धीरे धीरे हमारे हाथ एक दूसरे के नितंबों को भी सहलाने लगे. हमारी जांघे एक दूसरे में समा जाने के लिए बेकरार थी. सीमा दीदी मेरे गालों पर लगातार चुम्बनों की बारिश कर रही थी मैंने भी उनका साथ दिया. कुछ ही देर में हम दोनों पूरी तरह उत्तेजित हो गए थे. मैं सीमा दीदी के पैरों के बीच आ गइ उन्होंने अपनी दोनों जांघे फैला दी मेरे सामने उनकी राजकुमारी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. राजकुमारी के होंठो पर हुआ प्रेम रस अत्यंत सुंदर लग रहा था. सीमा दीदी ने कहा
“लो देख लो जो तुम्हें देखना है”

मैंने कांपती उंगलियों से उनकी राजकुमारी के होठों को फैलाया. अंदर अद्भुत नजारा था चारों तरफ गुलाबी रंग की चादर फैली हुई थी. अंदर उनकी मांसल राजकुमारी अत्यंत खूबसूरत लग रही थी. मैंने अपनी दोनों उंगलियां राजकुमारी के मुख में डालकर उसे फैलाने की कोशिश की पर मुझे कुछ विशेष दिखाई नहीं दे रहा था. मैंने उसे और फैलाने की कोशिश की ताकि उनकी कौमार्य झिल्ली को देख सकूं पर मैं इसमें सफल न हो सकी. मैंने अपनी उंगलियां और अंदर की. सीमा दीदी चीख पड़ी और बोलीं....
“छाया बस” मैं समझ गई कि मेरी उंगलियां उनकी कौमार्य झिल्ली तक पहुंच चुकी हैं. मैंने एक बार फिर राजकुमारी के मुख को फैलाया मैंने देखा की राजकुमारी का मुख आगे जाकर सकरा हो गया था. शायद यही उनकी कौमार्य झिल्ली थी. राजकुमार को इसके आगे जाने के लिए इस सकरे रास्ते की दीवार को तोड़ना जरूरी था.
सीमा दीदी की राजकुमारी इस छेड़छाड़ से अत्यंत उत्तेजित हो गई थी. मैंने अपनी हथेलियों से उनकी राजकुमारी को सहलाया. कुछ ही देर में उनकी राजकुमारी में कंपन उत्पन्न होने लगे थे. उसके कम्पन और प्रेम रस की धार ने मुझे यह एहसास करा दिया कि वह स्खलित हो चुकी हैं. उन्होंने मुझे अपने आगोश में फिर से ले लिया. कुछ देर शांत रहने के बाद मैंने अपनी जांघे फिर उनकी जांघों में घुसा दी वह समझ गई कि मेरी राजकुमारी भी स्खलित होना चाहती है. उन्होंने मेरे स्तनों को अपने मुंह में ले लिया तथा अपने हाथ मेरी राजकुमारी के ऊपर ले गयीं. वो राजकुमारी को सहलाने लगी थोड़ी ही देर में मैं भी स्खलित हो गई. हम दोनों इसी प्रकार एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए थोड़ी देर के लिए सो गए. उठने के बाद हम दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और अपने कपडे पहने. सीमा दीदी ने मुझे चाय पिलाई और मैं वापस अपने घर के लिए चल दी.
सीमा दीदी और मेरे बीच बना यह संबंध आने वाले समय में और मधुर होते गए. हम अक्सर एक-दूसरे से मिलते और एक दूसरे की बाहों में वक्त गुजारते सीमा के साथ मैंने कई बार इसी तरह एकांत में समय गुजारा और हर बार सीमा से कुछ नया सीखने को मिलता.

मानस से दूरियां बढने के बाद मैं सीमा के साथ ज्यादा वक्त गुजारती पिछले कुछ महीनों से मानस ने मेरे शरीर को नहीं छुआ था. अब सीमा के साथ ही मेरी काम पिपासा शांत हो रही थी. अभी तक मैंने सीमा को मैंने अपने और मानस के संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं बताया था.

छाया वापस दोस्त बनते हुए.
वक्त का पहिया घूमता हुआ एक दिन हमारे लिए खुशी ले आया. मैं घर पर अकेला था छाया कॉलेज से आई वह बहुत खुश थी. उसके चेहरे की चमक उसकी प्रसन्नता की परिचायक थी. मैंने उससे पूछा
“क्या बात है बहुत खुश लग रही हो”
“आज कॉलेज में एक बड़ी कंपनी आई थी उसने प्लेसमेंट के लिए टेस्ट लिया था मैं उस टेस्ट में अव्वल आई हूं. कल हम लोगों का फाइनल इंटरव्यू है” यह कहकर वह बिना कुछ कहे मुझसे आकर लिपट गई. मैंने उसकी पीठ पर थपथपाई और उसे अपने से अलग करते हुए बोला
“मुझे तुम पर गर्व है. तुमने अपनी पढ़ाई के लिए जो मेहनत की है अब उसका परिणाम सामने आ रहा है”
“मुझे कल होने वाले इंटरव्यू के बारे में कुछ बताइए आपने हमेशा मेरा साथ दिया है और मुझे यहां तक ले आए मुझे उम्मीद है कि आप का मार्गदर्शन कल भी मेरा साथ देगा”
वह बहुत खुश थी और एक बार फिर मेरे गले से लिपट गई. पर आज आलिंगन में कहीं भी कामुकता नहीं थी. वह कुछ देर मुझसे यूं ही लिपटी रही फिर अलग होने के बाद उसने कहा
“क्यों ना आज हम लोग आज खाना बाहर खाएं” . मैं उसकी बात कभी नहीं टालता था. मैंने कहा ...
“ ठीक है”
हम माया आंटी के आने का इंतजार करने लगे. काफी दिनों के बाद हमारी शाम अच्छी बीत रही थी. छाया के चेहरे पर दिख रही खुशी से मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने हमारे वियोग से उत्पन्न दुःख पर विजय प्राप्त कर ली हो और आने वाले समय में वह खुशियों के साथ जीना सीख रही हो.

[ मैं छाया ]
अगले दिन मेरा इंटरव्यू था. मैं सबका आशीर्वाद लेकर कॉलेज पहुची. इंटरव्यू समाप्त होने के कुछ ही समय पश्चात सेलेक्ट किए गए प्रत्याशियों की सूची नोटिस बोर्ड पर टांग दी गई. मेरा नाम सबसे ऊपर था. मैं अपना नाम देखकर बहुत खुश हुई. मुझे मानस की याद आई. मैं इस दुनिया में सबसे ज्यादा शायद मानस से ही प्रेम करती थी. मैं जितनी जल्दी हो सके अपने घर जाना चाहती. मेरे सेलेक्ट होने की सबसे ज्यादा खुशी मानस को होती. आखिर आज मैं जो कुछ भी थी मानस की बदौलत थी.
घर पहुंच कर मैंने अपने सेलेक्ट होने की सूचना दी मानस ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया वह जब भी खुश होते थे मुझे अपने आगोश में लेकर कर उठा लेते थे और मुझे गोल गोल घुमाते. हमारे पेट चिपके हुए हुए थे और मेरे पैर बाहर निकले हुए . थोड़ी देर घुमाने के बाद उन्होंने मुझे छोड़ा. मुझे हल्का हल्का मुझे चक्कर आ रहा था. मैं बहुत खुश थी. उन्होंने मुझे फिर अपने आगोश में ले लिया और मेरे गालों पर एक चुम्मी दे दी. यह बहुत दिनों बाद हुआ था. हम दोनों घर पर अकेले ही थे मैंने भी प्रतिउत्तर में उनके गालों पर चुंबन दे दिया. एक पल के लिए मैं भूल गइ कि मानस अब मेरे प्रेमी नहीं थे.
पर उद्वेग में हुई क्रिया आपके नियंत्रण में नहीं होती हम स्वभाविक रूप से एक दूसरे को प्रेम करते थे आज इस खुशी के मौके पर एक दूसरे के आलिंगन में लिपटे हुए हम अपनी वर्तमान स्थिति भूल चुके थे.
राजकुमार अपनी राजकुमारी से मिलने के लिए बेताब हो रहा था और इसका तनाव मैंने अपने पेट पर महसूस कर लिया था. मैं उनसे दूर हटी और बोली
“मेरी हर सफलता के पीछे आपका ही योगदान है. आप मेरे गुरु हैं:
वो भी मजाक में बोले
“फिर मेरी गुरु दक्षिणा कहां है”
मैं कुछ बोली नहीं और शरमाते हुए उनके पास चली गयी. जाने मुझे क्या सूझा मैंने राजकुमार को अपनी हथेलियों के बीच ले लिया. मैंने कहा
“अब मैं आपकी मंगेतर या प्रेयसी नहीं हूं पर बहन भी नहीं हूँ. मैं अपने राजकुमार का ख्याल आगे भी रखती रहूंगी यही मेरी गुरु दक्षिणा है” मैं खुश थी.

माँ के आने के बाद हम सब भगवान के मंदिर गए और सबने भगवान से मेरे उज्जवल भविष्य की कामना की. रात्रि में मैं समय मानस के पास गयी और हम दोनों ने कसी दिनों बाद बाद एक दूसरे की प्यास बुझाय. पर आज हमारी कामुकता में एक अजब सी सादगी थी. हम दोनो ने सिर्फ अपने हाँथो से ही एक दुसरे के गुप्तांगों की सहलाया और स्खलित हो गए. हमारे प्रेमरस भी हमारे कपड़ों में लगे रह गए.

[मैं मानस]
विधि का यही विधान है हर दुख की घड़ी के बाद सुख की घड़ी आती है. मुझसे वियोग के बाद उसके चेहरे पर जो कष्ट या दुख आए थे वह धीरे धीरे छट रहे थे. एक नई छाया उभर कर सामने आ रही थी जो पूर्णतयः परिपक्व थी.
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