RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाग -12
छाया का मुझे मनाना
छाया ने वापस आते समय ने मुझसे कहा आपने मेरा बहुत ख्याल रखा है हमारे बीच जो फासला बन गया है उसे सिर्फ सीमा ही भर सकती है. सीमा एक अच्छी लड़की है मैं इस बात की गारंटी देती हूं. आप सीमा को स्वीकार कर सकते हैं. पर उसे आपको ही मनाना होगा. मैं छाया की समझदारी पर बहुत खुश था मैंने छाया से कहा
“मैं तुम्हारा गुनहगार हूं मैंने तुम्हारे साथ इतने दिनों तक अंतरंग वक्त बिताया है और हमें इस तरह अलग होना पड़ा यह मुझे अपराध बोध से ग्रसित रखता है”
उसने कहा
“उन अंतरंग पलों का जितना आनंद मैंने लिया है शायद आपने न लिया हो. वह मेरे लिए बहुमूल्य है मुझे उस बात का कोई अफसोस नहीं है. अपने कौमार्य को सुरक्षित रखते हुए यह संबंध मैं अब भी आपसे भी रख सकती हूँ मैं आपकी प्रेयसी न सही दोस्त तो अब भी हूँ.”
घर का दरवाजा आ चुका था और हम दोनों अपने अपने कमरों की तरफ चले गए.
अगले शनिवार को छाया ने सीमा को फोन करके फिर से बुला लिया था. अब हमारे पास दो रातें थी हम तीनों ने बहुत सारा वक्त एक साथ गुजारा था. छाया बीच-बीच में मुझे और सीमा को पास लाने का पूरा प्रयास कराती. हम दोनों का मन भी परिस्थितियों वश एक दुसरे का हो चला था.. धीरे धीरे एक दो मुलाकातों में सीमा ने अपनी रजामंदी दे दी.
छाया अब घर के अभिभावक के रूप में काम कर रही थी. उसने माया आंटी को सारी बातें खुलकर बता दी. माया आंटी ने भी सीमा को सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह हमारे घर के लिए सर्वथा उपयुक्त थी. वह छाया की एक बहुत अच्छी सहेली थी और मेरे से पूर्व परिचित भी थी. माया आंटी ने सीमा के माता-पिता से हमारे संबंधों की बात की वह मुझे अच्छे से जानते थे और उन्होंने अपनी रजामंदी तुरंत दे दी.
कुछ ही दिनों में मेरी और सीमा की मंगनी हो गई और 3 महीनों के बाद का शादी का दिन भी निर्धारित हो गया. मेरे और सीमा के शादी के फैसले में छाया का बहुत बड़ा योगदान था। उसने ही हम दोनों का मिलन कराया था. हम दोनों उसके बहुत शुक्रगुजार थे. हम दोनों ने ही उसके साथ एकांत में वक्त बिताया था और अपनी काम पिपासा को उसकी मदद से हर संभव तरीके से बुझाया था. वह हम दोनों को हर तरीके से खुश रखती आई थी पर अब हम एक हो चुके थे और वह अकेली थी.
मंगनी का समारोह समाप्त हो जाने के बाद सभी लोग अपने-अपने घर वापस चले गए सीमा भी अपने परिवार वालों के साथ कुछ दिनों के लिए चंडीगढ़ चली गई.
आयोजन से थका हुआ मैं अपने कमरे में आराम कर रहा था. छाया चाय लेकर मेरे कमरे में आई मैं समझ गया माया आंटी घर पर नहीं हैं. मैंने फिर भी पूछा
“तुम”
उसने कहा
“वह दोनों लोग बाहर गए हैं दो-तीन घंटे में लौटेंगे” मैं उठकर चाय पीने लगा और वह भी मेरा साथ देने लगी उसने दो कप चाय लायी थी. मैंने एक बार फिर से उसे धन्यवाद दिया. वह भी बहुत खुश थी. चाय खत्म होने के बाद उसने मेरी चादर खींची और बोला
“जल्दी से नहा लीजिए मैं नाश्ता लगा रही हूं” चादर के हटते ही मेरा राजकुमार बाहर आ गया. मैं राजकुमार से खेलते खेलते सो गया था और अपनी पजामी को ऊपर करना भूल गया था. छाया मेरे राजकुमार को कई दिनों बाद देख रही थी. उससे बर्दाश्त ना हुआ उसने उसे अपने हाथों में ले लिया और कहा
“तुमने मेरी और मेरी राजकुमारी की बहुत मदद की है” ऐसा कहकर उसे प्यार से सहलाने लगी और मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी. मेरे हाथ छाया की तरफ बढ़ने लगे यह सब अपने आप होता चला गया. कुछ ही देर मे छाया मेरी बाहों में थी.
हम दोनों कई महीनो बाद नग्न होकर एक दूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे. छाया की राजकुमारी को छूते समय मुझे बालों का एह्साह हुआ. राजकुमारी बालों से ढक गई थी. पिछले कई दिनों से छाया प्रूरी तरह व्यस्त थी. शयद छाया ने अपनी राजकुमारी को सजाया संवारा नहीं था. आखिर वह करती भी किसके लिए. राजकुमारी को बालों में डूबा देख मैं थोड़ा दुखी हो गया. मैंने कहा राजकुमारी का क्या हाल बना रखा है. वह मुस्कुराकर बोली
“राजकुमार के वियोग में उसकी दाढ़ी बढ़ गई कहकर वह हंस पड़ी.” कहते हुए उसने राजकुमार को सहला दिया.
उसकी हंसी पहले जैसी ही मादक थी. मैंने उसकी राजकुमारी देखना चाहा पर वो तैयार नहीं हुई शायद वह बालों की वजह से शर्मा रही थी.
कुछ ही देर में हम वापस एक दूसरे से लिपटे हुए अपने राजकुमार और राजकुमारी को एक दूसरे पर रगड़ रहे थे. हमारे होंठ एक दूसरे में फिर उलझे हुए थे. मैंने छाया के नितंबों को अपनी और खींच रखा था. कई महीनों बाद हम दोनों इस सुख का आनंद ले रहे थे. कुछ ही समय में मेरे राजकुमार ने राजकुमारी के कंपन महसूस कर लिए छाया के मुह से “मानस भैया ...........” की धीमी आवाज कई महीनो बाद आ रही थी.
मैं उसके चेहरे को चूम रहा था . मेरे राजकुमार ने भी वीर्यपात कर दिया। वीर्य हम दोनों के नाभि के आस पास फैल गया छाया अपना शरीर नीचे की तरफ ले गई अपने स्तनों से मेरी नाभि को छूकर वीर्य अपने स्तनों पर लगाया और नीचे झुकते हुए उसने मेरे राजकुमार को अपने होठों से चुंबन किया जिससे वीर्य की कुछ बूंदे उसके होठों पर लग गइ. वह वापस मेरे पास आयी और मेरे होठों पर किस करते हुए बोली
“हमारे बीच ज्यादा कुछ नहीं बदलेगा बस आपको सीमा को बहुत खुश रखना होगा. जब तक वह खुश रहेगी आपको मेरा प्यार मिलता रहेगा. मैं आपको मंगनी में आपको कोई उपहार ना दे पायी थी. उम्मीद करती हूं कि मेरा यह उपहार आपको अच्छा लगा होगा“
छाया की बातें सुनकर मन प्रफुल्लित हो गया. उसने मुझे माफ कर दिया था. मैं उसे खुश करना चाहता था और वह मुझे उसका यह प्रेम आगे भी कायम रहेगा यह मेरे लिए स्वर्गीय सुख की बात थी. मैंने उसे अपने सीने से सगा लिया और उसे जीवन भर खुश रखने के मन ही मन वचनबद्ध हो गया.
मैंने उससे कहा छाया तुम बहुत अच्छी हो. वह मुस्कराई और बोली
“अच्छी दोस्त हूँ.” उसने दोस्त पर विशेष जोर दिया था. मैं भी अब उसे अपना दोस्त मान चुका था.
कमरे से जाते समय भी वह नग्न ही थी. उसने अपने कपडे हाँथ में उठे हुए थे शायद वह नहाने जा रही थी. मैं उसके गोरे और मादक नग्न नितम्बों को हिलाते हुए देख रहा था. राजकुमारी के बढे हुए बाल भी जाँघों के बीच से दिखाई दे रहे थे.
सीमा मेरी मंगेतर
[ मैं छाया ]
कुछ दिनों बाद सीमा वापस बेंगलुरु आ चुकी थी. अब वह मानस की मंगेतर थी. आज से कुछ महीनों पहले तक मैंने मानस की मंगेतर के रूप में मानस के कमरे में कई महीने व्यतीत किए थे. उसकी सुनहरी यादें अभी भी मन को गुदगुदा जाती और मुझे रुला जाती है. पर मैं स्थिति को मन से स्वीकार कर चुकी थी. मुझे पता था मानस मुझसे बहुत प्यार करते है मैं उनकी दोस्त बनकर भी सारा जीवन काट सकती थी. वह मेरे लिए समय समय पर दोस्त, प्रेमी, सखा, भाई, पिता सबकी भूमिका में आते और उसे बखूबी निभाते.
सीमा इस बार भी वीकेंड पर हमारे घर आई. मैंने उसके लिए आज विशेष इंतजाम कर रखा था. मानस को मैरून कलर की नाइटी बहुत पसंद थी. मैंने उनकी पसंद को ध्यान रखते हुए एक ट्रांसपेरेंट नाइटी खरीद ली थी. नाइटी के ऊपर एक गाउन भी था जिसे पहन लेने पर नाइटी की पारदर्शिता खत्म हो जाती थी . शाम को मैं सीमा को लेकर अपने कमरे के बाथरूम में गई और हम दोनों ने एक दूसरे को शावर के नीचे खूब प्यार किया. बाहर आने के बाद मैंने उसे नाइटी पहनाई जिसे देखकर वह बहुत खुश हो गयी.
वह अत्यंत सुंदर लग रही थी. उसने मुझसे कहा
*लगता है तुमने आज रात के लिए विशेष तैयारी कर रखी है. मेरी ननद मेरा इतना ख्याल रखेगी यह मैंने कभी नहीं सोचा था”
ननद शब्द सुनकर मेरे मन में बिजली दौड़ गई. मेरे और मानस के बीच बन चुके संबंधों में इस शब्द की कोई गुंजाइश नहीं थी पर यह सीमा के शब्द थे जो इससे पूरी तरह अनभिज्ञ थी. मैंने उसे सजाया. पैर्रों में आलता लगाया, पायल पहनाई बाल सवारे. मानस को सजे हुए पैर अच्छे लगते थे.
हम सब खाने की टेबल पर आ चुके थे. टेबल पर दो अत्यंत खूबसूरत नवयुवतियों को नाइटी में देखकर मानस के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. खाना खाने के पश्चात हम सब हमेशा की तरह मानस की बालकनी में चले गए. कुछ देर बात करने के बाद मैंने कहा
"अच्छा सीमा मैं चलती हूं तुम्हारे कपड़े मानस भैया के कमरे मैं ही रखे हैं तुम रात में यहीं सो जाना." इतना कहकर मैं मानस के कमरे से वापस आने लगी सीमा भी मुझे छोड़ने दरवाजे तक आई और बार-बार बोल रही थी
“यह ठीक नहीं रहेगा माया आंटी भी है कितना खराब लगेगा” मैंने उसकी राजकुमारी को ऊपर से छुआ और बोली
“एक बार इसको राजकुमार से मिला तो लो. पता नहीं इतने दिनों में राजकुमार का क्या हुआ होगा? आखिर विवाह तो राजकुमारी का भी होना है। उसे अपने होने वाले राजकुमार को देखने का पूरा हक है” मैं हंसते हुए वापस आ गइ सीमा भी हंसते हुए दरवाजा बंद कर रहे थी.
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