XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
04-11-2022, 02:21 PM,
#49
RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाग 29
बुधवार
मानस का घर [शाम 6:00 बजे]
(मैं छाया)
आज पुलिस स्टेशन में हुई बेज्जती से मैं बहुत दुखी थी. मानस और सीमा भी गुस्से में थे .मानस ने अपने कई दोस्तों और परिचितों को फोन किया पर कोई भी इतना प्रभावशाली नहीं था जो डिसूजा को उसकी औकात पर ले आता. घर में बेचैनी का माहौल था। मेरी मां भी डिसूजा को जी भर कर कोस रही थी पर इन सब का कोई औचित्य नहीं था। वह निरंकुश जैसा व्यवहार कर रहा था.
तभी शर्मा जी मुख्य दरवाजे से अंदर आए मां ने उन्हें सब कुछ बता दिया। उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था. उन्होंने किसी को फोन लगाया और बात करते हुए अपने कमरे में चले गए. अंदर से उनकी आवाज सुनाई पड़ रही थी जिसमें उनके क्रोध की झलक साफ साफ महसूस हो रही थी. वह अत्यधिक उत्तेजित अवस्था में उस आदमी से बात कर रहे थे. कुछ देर बाद वह वापस आये और मुझे अपने पास बुलाया। मैं उनके पास आ गई उन्होंने मुझे अपने से सटा लिया और मेरे माथे को चूम कर बोला
"छाया बेटी कल तक डिसूजा इस केस से बाहर होगा।"
इतना कहते हुए शर्मा जी ने मुझे अपने पास खींच लिया। उनका यह आलिंगन मुझे सामान्य से कुछ ज्यादा लगा। आज उन्होंने मुझे छाया बेटी कहा था इसलिए मैं कुछ गलत नहीं सोच पाई। अन्यथा उस आलिंगन में मेरे स्तन शर्मा जी के सीने से सट गये थे।
यह निश्चय ही पिता पुत्री के आलिंगन से ज्यादा था। मैंने इसकी कल्पना नहीं की थी। मैं तुरंत ही उनसे अलग हो गई वह अपनी कही गई बात पर आश्वस्त थे। उन्होंने कहा
" मेरी होम मिनिस्टर के पीए से बात हो गई है कल मैं उनसे मिलकर डिसूजा को इस केस से हटवा दूंगा। आप लोग निश्चिंत रहिए ।"
मानस और सीमा के चेहरे पर सुकून आ गयी थी। मां भी खुश थी उन्होंने कहा
"आप बैठिए मैं आपके लिए चाय लाती हूँ" हम सभी आपस में बात करने लगे. मैं उनके आलिंगन के बारे में अभी भी सोच रही थी।
आज भी मेरे ई मेल पर सुनील की फोटो आई थी। वह लड़की आज सोमिल के साथ उत्तेजक अवस्था में सोफे पर बैठी हुई थी। उसने सोमिल की वही शर्ट पहनी थी जी उसने सुहागरात के दिन पहनी थी। मुझे उस लड़की की अवस्था आपत्तिजनक लग रही थी। मैंने उसकी फोटो सिर्फ मानस भैया को दिखाई। वह मुझे अच्छे से समझते थे उन्होंने कहा
"छाया मुझे पूरा विश्वास है सोमिल ऐसा नहीं कर सकता। वह निश्चय ही किसी जाल में फंसा हुआ है। तुम निश्चिंत रहो हम इसका हल ढूंढ निकालेंगे।

गुरूवार (चौथा दिन)
जंगल का कैदखाना (सुबह 4 बजे)
(मैं सोमिल)
मैंने शांति के कोमल हाथों को अपने सीने पर पाया। उसके पैर मेरी जांघों पर थे उसका घुटना मेरे ल** से सटा हुआ था। वह सो रही थी। रात में वह मेरे पास कब आ गई मुझे खुद भी पता नहीं चला। मैंने ना चाहते हुए भी करवट ली मेरा चेहरा अब उसकी तरफ हो गया था शायद मेरे हिलने डुलने से उसकी नींद में व्यवधान पड़ा वह थोड़ी देर के लिए हिली और फिर मुझसे और तेजी से सट गई। वह लगभग मुझे आलिंगन में ले चुकी थी उसके स्तन मेरे सीने से सटने लगे थे। उसकी बांहें मेरी पीठ पर आ चुकी थी। वह अपने एक पैर को मेरी दोनों जांघों के बीच रखने का प्रयास कर रही थी। मुझे भी उसका इस तरह पास आना अच्छा लग रहा था। मेरे हाथ उसकी पीठ पर चले गए। हम दोनों पूरी तरह एक दूसरे के आलिंगन में आ चुके थे।
मैं जाग रहा था और वह सो रही थी। मेरा ल** तन कर खड़ा हो गया था। शांति के स्तन अब मेरे सीने को पूरी तरह छू रहे थे। वह जब भी हिलती उसके निप्पलों की चुभन मेरे सीने पर महसूस होती। उसके निप्पल कड़े थे मेरे सीने पर उनकी ताकत महसूस महसूस हो रही थी।
मेरी हथेलियों ने बिना मेरे आदेश के शांति को अपने करीब खींच लिया मेरा ल** अब उसके पेट से सट रहा था और निश्चय ही उसे चुभ रहा होगा।
अचानक शांति ने अपना हाथ मेरी पीठ पर से हटाया और नीचे ले जाकर मेरे ल** के सुपारे पर रख दिया उसके कोमल हाँथ का स्पर्श पाकर ल** में अजीब सी संवेदना हुई। आज कई वर्षों बाद मेरे ल** पर किसी लड़की का हाथ लगा था। ऐसा लग रहा था उसकी नसें फट जाएंगी। मैंने अपने ल** को और आगे की तरफ धक्का दिया। वह उसके पेट से छू रहा था शांति मेरी उत्तेजना पहचान गई थी। अपने अपने हथेलियों से मेरे ल** को सहलाना शुरु कर दिया ल। वह जैसे जैसे उसे सहलाती मेरा ल** और उत्तेजित होता।
शांति ने धैर्य बनाए रखा वह उसे प्यार से उसी तरह सहलाती रही. मेरे हाथ उसके नितंबों को छूने लगे। मेरी शर्ट जाने कब ऊपर की तरफ खींच गई थी। उसके कोमल और मुलायम नितंब मेरी हथेलियों में आते ही मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई ।
उसकी हथेलियों का स्पर्श लगातार मुझे मिल रहा था। कुछ ही देर में मैंने उसे खींचते हुए अपने पेट पर ले लिया। मुझे पता था वह जाग रही थी पर मैंने उससे कोई भी बात करना उचित नहीं समझा। हम दोनों के अंग प्रत्यंग एक दूसरे से मिलने को बेकरार थे। शांति मेरे ऊपर आ चुकी थी उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर के दोनों तरफ कर लिए।
शांति के स्तन मेरे सीने से छू रहे थे। उसके स्तनों का स्पर्श मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था। मेरी दोनों हथेलियां उसके नितंबों पर थी और उनकी कोमलता का एहसास कर रहीं थी। मेरा लं** बेताब हो रहा था. दोनों नितंबों के बीच गहराई में मेरी उंगलियां उसके तथाकथित अपवित्र द्वार को भी छू रहीं थी और मेरी उत्तेजना को बढ़ा रहीं थीं।
शांति अपने स्तनों को लगातार मेरे सीने पर रगड़ रही थी। उसका चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल समीप था। शांति की सांसे तेजी से चल रहीं थीं. उसकी कमर कमनीय और पतली थी। अचानक मुझे शांति की मुनिया से बहते हुए प्रेम रस का एहसास मेरे ल** के सुपारे पर हुआ. इस गीलेपन के एहसास से मुझे अत्यंत उत्तेजना हुई. हथेलियों में जो अब तक शांति के स्तनों को सहला रही थी अचानक उन्हें मसलना शुरू कर दिया.
शांति अपनी कमर पीछे ले जा रही थी। मैंने आंख खोल कर देखा शांति की आंखें बंद थी। मैंने भी इस स्थिति का आनंद लेते हुए आंखें बंद कर लीं। शांति की कोमल मुनिया का एहसास मेरे ल** के सुपारे पर हो रहा था। शांति धीरे-धीरे पीछे आ रही थी और मेरा लं** उसके मुख में प्रवेश कर रहा था. उसने अपनी कमर एकाएक पीछे कर दी और मेरा ल** उसकी गहराइयों में उतर गया । मुझे सीमा को दिए हुए वचन की याद आई। मैं कांपने लगा मेरा वचन टूट गया ……….
तभी मेरी नींद खुल गई ..…….शांति अभी भी करवट लेकर मेरे से दूर सोई हुई थी. मेरा सुखद स्वपन टूट गया था पर मेरा सीमा को दिया बचन सुरक्षित था। मैं खुश था और शांति को देख कर मुस्कुरा रहा था।
यह तय था कि मेरा प्रथम संभोग सीमा के साथ ही होगा. आखिर वह वही सीमा थी जिसने मेरे लं**की दो-तीन वर्षों तक सेवा की थी. मेरा ध्यान शांति की तरफ गया वह करवट लेकर लेटी हुई थी. उसने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर जाने कब हटा दी थी. मेरी शर्ट उसके नितंबों को ढकने में नाकाम हो रही थी. कमरे में फैली हल्की रोशनी में उसकी जांघें और नितंबों का कुछ हिस्सा स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. यदि वहां थोड़ी और रोशनी होती तो जांघों के जोड़ पर निश्चय ही उसकी मुनिया भी दिखाई पड़ती.
मुझे बाथरूम जाना था मैंने लाइट जला दी बाथरूम से आने के पश्चात मेरी नजर शांति के नितंबों पर पड़ी उसके गोल नितंबों के बीचोबीच उसकी मुनिया के दोनों होंठ दिखाई पड़े. शांति जितनी सुंदर थी उतने ही उसके निचले होंठ. एकदम बेदाग मैंने वैसे भी आज तक स्त्री योनि साक्षात नहीं देखी थी और शांति की योनि देखकर मुझे खुशी हो रही थी. नारी शरीर का यह भाग मेरी कल्पना से ज्यादा खूबसूरत था. मैं उसे कुछ देर यूं ही देखता रहा और बिस्तर पर आ गया मैंने लाइट बंद नहीं की थी. मेरी नजरें उस दिव्य दृश्य से हट नहीं रही थी.
मैं शांति के जगने का इंतजार करने लगा. शायद कमरे की लाइट से उसकी आंखें प्रकाशमय हो गयीं थी. वह अचानक मेरी तरफ मुड़ गयी. मैंने पाया उसके शर्ट के ऊपर के कुछ बटन जाने कब खुल गए थे. उसके दोनों स्तन मुझे दिखाई पड़ रहे थे स्तनों के निप्पल जरूर उस शर्ट से ढके हुए थे परंतु उनका आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था.
मेरी उत्तेजना चरम पर थी मेरा ल** अभी भी खड़ा था. पिछले 15 घंटों से मैं उसे अपने हाथों से सहलाते हुए उसे शांत कर दे रहा था पर अब वह विद्रोह पर उतारू था. शांति सो रही थी मैंने हस्तमैथुन का निर्णय कर लिया. मेरे पास शांति की मुनिया और स्तन दोनों की स्पष्ट छवि थी. मेरे विचारों में अर्धनग्न शांति पूरी तरह नग्न हो चुकी थी. अपने देखे गए स्वप्न में मैंने उसके साथ संभोग भी कर लिया था. मैंने अपनी पलकें बंद कर ली और उसके साथ अपने विचारों में ही संभोग रत हो गया. उसकी मुनिया का स्थान मेरे हाथ ले चुके थे. शांति का मेरे ल** पर उछलना और मेरे हाथों का आगे पीछे होना दोनों में जमीन आसमान का अंतर था पर मुझे आनंद आ रहा था.
अपने विचारों में ही उसकी नग्नता का ही जितना आनंद ले रहा था उतना मेरे ल** के लिए काफी था. मैं आंखें बंद किए इस अद्भुत हस्तमैथुन का आंनद उठा रहा था. जैसे ही मेरा वीर्य स्खलित होने वाला था मेरी आंखें खुल गई. बिस्तर पर उठ कर बैठी हुई शांति को देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए. मेरे ल** से वीर्य धारा फूट पड़ी.
जब तक शांति संभल पाती वीर्य की धार अपनी उचाई तय करने के बाद उसके स्तनों पर गिर पड़ी. मेरे लिए वीर्य स्खलन रोक पाना असंभव था. मैंने अपने ल** को शांति के दूसरी तरफ कर दिया. इस अद्भुत और शर्मनाक हस्तमैथुन से मैं शांति से नजरे मिलाने लायक नहीं रह गया था. मैंने कहा "सॉरी शांति" और करवट लेकर अपनी आंखें बंद करके मैं उससे बात कर पाने की स्थिति में नहीं था वह मुस्कुराते हुए बाथरूम की तरह चली गई थी बाथरूम से आती हुई मधुर ध्वनि मेरे कानों तक पहुंच रही थी पर मेरा लं** अब शांत हो चुका था उसे कुछ समय तक आराम की जरूरत थी.


मानस का घर (सुबह 8 बजे)
(मैं मानस)
मेरे फोन पर वही घंटी बजी. मैंने डिसूजा के फोन के लिए अलग घंटी रख ली थी. मैंने फोन उठाया डिसूजा की आवाज आयी
"मिस्टर मानस आपने और छाया ने तो खूब गुलछर्रे उड़ाये है?
"जी, क्या मतलब है आपका?
"मतलब मैं समझा दूँगा आप अपनी छमिया को लेकर थाने पहुंच जाना 12:00 बजे. ध्यान रखना 10:00 नहीं 12:00 बजे."
"क्या हुआ सर? कुछ बताइए तो क्या बात है?"
"तुम लोगों ने उस रात जो किया है उसके सारे सबूत मेरे पास आ गए हैं. मुझे यहां आकर समझाना कि तुम दोनों ने क्या किया था उस रात."
मैं बहुत डर गया. छाया और सीमा किचन में नाश्ता बना रही थीं . मैंने उन्हें आवाज भी और हम तीनों मेरे कमरे में आ गए. मैंने डिसूजा से हुई सारी बातें बता दी. छाया डर के मारे रोने लगी. वह बहुत मासूम थी. हमारा प्यार सच्चा था हमने जो किया था वह गलत नहीं था यह हम तीनों जानते थे पर डिसूजा इस बात को समाज में फैला कर हमारी बेज्जती करना चाहता था. हमारे लिए यह असहनीय हो जाता. आखिर हमें समाज में ही रहना था. हम तीनों बहुत डर गए थे. छाया रोए जा रही थी. मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूमने लगा. वह बोली
"मानस भैया अब हम लोग क्या करेंगे?
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा
"मेरी छाया चाहे कुछ भी हो जाए हम इस बात को बाहर नहीं आने देंगे. चाहे हमें इसके लिए कुछ भी करना पड़े. यदि डिसूजा ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा चाहे मुझे अपना आने वाला सारा जीवन जेल में ही क्यों न बिताना पड़ा मेरी आंखों में खून आ गया था. मैंने उसके दोनों गालों को सखलाते हुए बोला
" तुम चुप हो जाओ मैं तुम्हें रोता नहीं देख सकता"
छाया मुझसे अमरबेल की तरह लिपट गई थी. सीमा भी उसकी पीठ सहला रही थी और उसके गालों को चूम रही थी. हम तीनों के चेहरे एक दूसरे से सटे हुए थे. सच में यदि ऊपर वाला देखता तो हम तीनों का प्यार देखकर निश्चय ही कोई ना कोई मार्ग हमारे लिए अवश्य बना देता. हमारा प्रेम सच्चा था हम तीनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे।
हम तीनो में से कोई भी नाश्ता करने के पक्ष में नहीं था. हमने बड़ी मुश्किल से अपना समय काटा और पुलिस स्टेशन जाने के लिए तैयार होने लगे. सीमां को मैंने आज जाने के लिए मना कर दिया वैसे भी उसके पेट में दर्द था वह रजस्वला थी.
छाया एक बार फिर सादगी से तैयार हुई उसने सफेद सलवार कुर्ता पहना जिस पर छोटे-छोटे गुलाबी रंग के फूल बने हुए थे. इतनी सादगी भरे कपड़े भी उसके शरीर पर खिल रहे थे. हम दोनों पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़े. मैं स्वयं ही ड्राइव कर रहा था. छाया मेरे बगल में बैठी थी वह आने वाली घटनाओं के बारे में सोच रही थी. उसने मुझसे कहा
"डिसूजा बहुत खराब है वह निश्चय ही मुझे ब्लैकमेल करेगा मैंने उसकी आंखों में हवस देखी है। कहीं उसने मेरे साथ संभोग की मांग रख दी तब?"
छाया की यह बात सोच कर मैं डर गया वह इतनी सुंदर और कोमल थी और डिसूजा इतना भयानक. ऐसा लगता जैसे कोई काला कुत्ता किसी खरगोश के साथ संभोग कर रहा हो. मैं वह दृश्य सोच कर मन ही मन डर गया. मैंने छाया की जांघों पर हाथ रखा और उसे थपथपाते हुए कहा
"छाया घबराओ मत, भगवान हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होने देंगें." हालांकि इसका डर मेरे मन में भी आ चुका था. हम पुलिस स्टेशन पहुंचने ही वाले थे तभी छाया के फोन पर घंटी बजी. शर्मा जी का फोन था..
छाया ने फोन स्पीकर पर कर दिया
"जी"
" छाया बेटी डिसूजा इस केस से बाहर हो गया है. यह केस मिस्टर रॉबिन देखेंगे. भगवान ने हमारी सुन ली."
छाया खुशी से चहकने लगी और बोली
"आप हमारे लिए भगवान हैं डिसूजा को आपने इस केस से हटवाकर हम सबको एक बड़ी मुसीबत से बचा लिया है" "छाया बेटी तुम और माया जी मेरे लिए एक जैसे हो. जितना प्यार में माया जी से करता हूं उतना तुमसे भी करता हूँ. आखिर तुम मेरी बेटी हो."
"डिसूजा ने हम लोगों को 12:00 अपने ऑफिस बुलाया था. हम लोग वहीं जा रहे थे"
"अब वहां जाने की कोई जरूरत नहीं है तुम लोग आराम से रहो में शाम को आकर बात करता हूं"
उन्होंने फोन काट दिया था।

डी आई जी आफिस ( दिन 12.15 बजे)
शर्मा जी डी.आई.जी के ऑफिस में बैठे हुए थे. होम मिनिस्टर ने डीआईजी को जरूरी निर्देश पहले ही दे दिए थे. शर्मा जी बेसब्री से डिसूजा का इंतजार कर रहे थे जिसे डीआईजी ने अपने ऑफिस में बुलवा लिया था. उन्हें अपनी विजय पर गर्व था. उनके इस कार्य ने उन्हें छाया और उनके परिवार वालों की नजरों में महान बना दिया होगा सा उनका अनुमान था. वह घर के मुखिया के रूप में अपना प्रभाव बना सकते थे. कुछ ही देर में डिसूजा भीगी बिल्ली की तरह कमरे में प्रवेश किया
"वह होटल मर्डर वाले केस का क्या हुआ"
"सर लगभग क्लोज होने वाला है जो आदमी मरा था वह कंप्यूटर हैकर है किसी ने उसे पैसों का गबन करने के लिए हायर किया था और काम हो जाने के बाद उसे वही मार दिया. जो आदमी गायब हुआ था सर मुझे लगता है उसे फंसाया गया है क्योंकि उसके कमरे का उपयोग सिर्फ इंटरनेट एक्सेस करने के लिए किया गया है और उसका मोबाइल फोन भी ओटीपी के लिए प्रयोग किया गया है. मैं जल्दी ही उस आदमी का पता लगा लूंगा."
"और कोई बात"
"जी सर, सोमिल का साला भी इस घटना में शामिल हो सकता है……"
"अच्छा डिसूजा एक काम करो तुम यह केस रॉबिन को दे दो" तुम्हें एक जरूरी मिशन पर जाना है. डीआईजी ने उसकी बात बीच मे ही काट दी.
"पर सर मैं एक-दो दिन में यह केस क्लोज कर के चला जाऊंगा"
"नहीं, डिसूजा तुम्हें आज ही इस केस को हैंड वर्क करना होगा और अपने नए मिशन की जानकारी एसपी रामप्रताप से ले लेना."
"सर…."
"ठीक है तुम जा सकते हो.." डिसूजा का मुंह छोटा हो गया था. उसके चेहरे पर तनाव था. वह कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर डीआईजी ने अपना सर झुका लिया था और वह अपने कार्यों में खो गया था.
डिसूजा वापस जा चुका था. मैंने डीआईजी साहब को थैंक यू कहा और बाहर आ गया.
शाम तक रोबिन इस केस के इंचार्ज बन चुके थे वह मेरे पूर्व परिचित भी थे. मैंने डीआईजी साहब से उनका नाम की ही सिफारिश की थी.
शाम को में उनके ऑफिस में उनसे मिला और इस केस से संबंधित सारी जानकारी इकट्ठा की. मेरे लिए आज का दिन बहुत अच्छा था. मेरी माया और छाया दोनों खुशी खुशी मेरा इंतजार कर रहे होंगे ऐसी मुझे उम्मीद थी.
वीरान रास्ता ( दोपहर 2 बजे)
शर्मा जी का फोन कटते ही छाया खुशी से चहकने लगी. वह मुझ से लिपटना चाहती थी पर मैं ड्राइविंग सीट पर था. मैंने अपनी गाड़ी तुरंत दूसरी दिशा में मोड़ ली. अब हम डिसूजा से आजाद थे और शायद पुलिस स्टेशन से भी. शर्मा जी ने वाकई सराहनीय कार्य किया था. हम दोनों ही उनके शुक्रगुजार थे. छाया की खुशी का ठिकाना नहीं था. उसने मुझसे कहा
"मानस भैया आज उसी वीरान जगह पर ले चलिए."
मैं उसकी बात समझ नहीं पाया मैंने उससे पूछा
"कौन सी जगह?"
वह शरमा गई और बोली
"जहां आपने मुझे खुली हवा में ही नग्न कर दिया था"
मैं मुस्कुराने लगा मुझे वह दिन याद आ गया. मुझे छाया की इस अदा पर हंसी भी आ रही थी और मेरे राजकुमार में उत्तेजना भी.
छाया में आज उत्पन्न हुई कामुकता खुशी की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी. आज मेरी छाया पुराने रूप में मुझे दिखाई पड़ी. पिछले तीन-चार दिनों का अवसाद जैसे छूमंतर हो गया था. तभी छाया के मोबाइल पर ईमेल अलर्ट फिर आया. उसमें इस बार भी सोमिल की फोटो थीं. फ़ोटो देखकर छाया की आंखें फटी रह गई. उसने मुझे फोटो दिखाने की कोशिश की. मैंने गाड़ी एक तरफ रोक कर वह फोटो देखी. सोमिल बिस्तर पर नग्न पड़ा हुआ था उसका पायजामा नीचे खिसका हुआ था और राजकुमार से उछलता हुआ वीर्य फोटो में कैद हो गया था. सोमिल की आंखें बंद थी. वह लड़की सोमिल की शर्ट पहने हुए ठीक बगल में बैठी थी और उसे ध्यान से देख रही थी. उस लड़के की नग्न जाँघे और खुले हुए स्तन भी उस फोटो में स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.
छाया आज बहुत खुश थी उसने वह फोटो देखते ही कहा "यह फोटो देखकर तो लग रहा है कि सोमिल को भी एक छाया मिल गई है"
मैंने छाया को चूम लिया और कहा
"मेरी छाया इकलौती है और इकलौती ही रहेगी"
मैंने अपनी गाड़ी उस वीरान जगह की तरह घुमा ली. यह वही जगह थी जहां मैं छाया को एक बार लेकर गया था. यह बेंगलुरु शहर से लगभग 10 - 12 किलोमीटर दूर थी तथा मुख्य सड़क से हटकर थी. वहां से नदी का सुंदर नजारा दिखाई पड़ता था. जाने अभी तक बेंगलुरु के प्रॉपर्टी बिल्डरों की नजर वहां तक क्यों नहीं पहुंची थी. मेरे एक दोस्त ने मुझे उस जगह के बारे में बताया था. मैं और छाया उस दिन बहुत खुश थे. छाया के कहने पर हम उस जगह को देखने चले गए वहां का नजारा वास्तव में बहुत खूबसूरत था. छाया उसे देखकर मोहित हो गई. उस दिन उसने हमेशा की तरह स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था. मुझे उससे छेड़खानी करने का मन हुआ कुछ ही देर में वह मेरी बाहों में थी. हम दोनों पास पड़े हुए पत्थर पर बैठ गए थे. छाया मेरी गोद में थी प्रकृति के इस नजारे को देखते हुए वह मेरे राजकुमार को अपने कोमल हाथों से सहला रही थी और मेरी उंगलियां उसकी राजकुमारी को. हमारे होंठ आपस मे एक हो गए थे. एक दूसरे को इस तरह प्रकृति की गोद में स्खलित करने का सुख अद्भुत था.
यही बातें सोचते सोचते हम दोनों एक बार फिर उसी जगह पर आ गए. गाड़ी को किनारे खड़ी करने के बाद हम उसी जगह पर एक बार फिर खड़े थे. वह पत्थर आज भी वहीं पड़ा हुआ हमारे प्रेम की गवाही दे रहा था जिस पर मेरे और छाया के प्रेम रस के कुछ अंश गिरे हुए थे बाकी तो छाया के स्तनों में सुखा लिया था.
छाया शर्माते हुए उसी जगह की तरफ बढ़ रही थी. उसके चेहरे पर एक बार फिर शर्म की लाली आ गई थी. उसे पता था कुछ देर बाद क्या होने वाला था. वह खुद ही स्वेच्छा से वही करने यहां आई थी मैं तो बस उसका साथ दे रहा था. छाया को आगे आगे चलते देख मुझे हंसी आ रही थी. उसके नितंब पीछे से बड़ी अदा से हिल रहे थे. वह सलवार कुर्ता पहने हुए थे और सीधी-सादी लड़की जैसे लग रही थी पर वस्त्रों के अंदर मेरी कामुक छाया थी अद्भुत और बेमिसाल.
वाद अदुतीय प्राकृतिक छटा को निहार रही थी. तभी मेरे हाथ उसकी कमर पर आ गए. वह कुछ बोली नहीं मेरे हाथों में अपना काम करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में छाया की सलवार जमीन पर थी। छाया की पैंटी को सरकाने में मेरी उंगलियों को काफी मेहनत करनी पड़ी. जाने क्या सोचकर उसने इतनी कसी हुई पैंटी पहनी थी. एक पल के लिए मुझे लगा कि उसने डिसूजा से बचने के लिए इतनी टाइट पेंटी पहनी थी पर उसे यह बात नहीं मालूम थी कि डिसूजा संभोग के लिए उसकी इस पैंटी को एक पल में फाड़ देता और उसकी कोमल योनि को तार-तार कर देता.
मेरी हथेलियां उसकी जांघों पर खेलने लगी. धीरे-धीरे वो छाया के निचले होठों को तलाश रही थी. मेरी मध्यमा उंगली ने छाया की रानी के दोनों होठों को अलग किया और स्वयं रानी के प्रेम रस में डूब गई. मैंने अपनी उंगली को होंठों के ऊपर किनारे तक लाया और वह भग्नासा से छूने लगा. छाया ने अपनी कमर पीछे की तरफ कर ली और जांघों को सिकोड़ लिया. वह पूरी तरह उत्तेजित थी. मुझे लगता है रास्ते में वह यहां होने वाले घटनाक्रम को ही सोच रही थी. मैंने उसकी रानी को और ज्यादा तंग करना उचित नहीं समझा मेरी उनलियों की काबिलियत से वह भलीभाँति परिचित थी. मैंने उसके स्तनों का हाल-चाल लेना चाहा. वह भी ब्रा के अंदर कैद थे. छाया ने आज ऐसी ब्रा पहनी थी जिससे उसके स्तनों का आकार दब गया था. छाया ने अपने अंगो को बचाने के लिए व्यूहरचना की थी ऐसा उसने डिसूजा के डर की वजह से किया था।
छाया के स्तनों को आजाद करना जरूरी था वरना वह छाया की इस अद्भुत खुशी में शरीक नहीं हो पाते और मेरा राजकुमार भी उनकी संवेदना पाने के लिए तरसता रहता. मैंने छाया का कुर्ता ऊपर उठाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे कुर्ता ऊपर आ रहा था उसके नितंब कटीली कम,र गोरी पीठ और सफेद ब्रा नजर आने लगी. छाया के हाथ स्वतः ही ऊपर उठते चले गए और कुर्ता बाहर आ गया. छाया अभी भी अपना चेहरा नदी की तरफ की हुई थी मैंने ब्रा के हुक खोलने शुरू कर दिए. मेरी उंगलियों को हुक खोलने में अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ रही थी. आखरी हुक खोलते ही ब्रा एक स्प्रिंग की तरह अलग हो गई. छाया की पीठ पर ब्रा के निशान बन गए थे मैंने उसे अपने हाथों से सहलाया और होठों से चूम लिया. छाया ने स्तनों के आजाद होते ही छाया का रोम रोम खिल उठा. मेरे हाथ उसके स्तनों पर चले गए छाया में मुझे कष्ट न देते हुए अपनी ब्रा को स्वयं ही अपने शरीर से अलग कर दिया. कुदरत की बनाई हुई मेरी खूबसूरत और कमसिन छाया आज प्रकृति की गोद में ही नग्न खड़ी थी और संभोग सुख के लिए प्रतीक्षारत थी.
मैं उसके स्तनों और पेट को सहलाता हुआ सामने की तरफ आ गया. मुझे छाया की खूबसूरत रानी के दर्शन हुए. वह अपने होंठों को एक दूसरे से चिपकाये हुए मुस्कुरा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने भीतर से रिस रहे प्रेमरस को बाहर आने से रोकना चाहती हो. पर इश्क और मुश्क छुपाये नही छुपते. होंठो के बीच प्रेमरस झांक रहा था. मेरी उंगली ने कुछ प्रेमरस रानी के होंठों पर भी लगा दिया था वो चमक रहे थे.
मैंने आज कई दिनों बाद छाया की रानी पर हल्के बाल देखें थे. शायद पिछले दो-तीन दिनों के तनाव में वह अपनी रानी का ख्याल नहीं रख पाई थी अन्यथा छाया के ऊपर और नीचे के होंठो में नियति ने सुंदरता कूट-कूट कर भरी थी. छाया की बाहें अब हरकत में आ रहीं थीं. उसकी उंगलियां मेरी बेल्ट से खेलने लगी राजकुमार बाहर आने के लिए बेताब था. कुछ ही देर में वह छाया के हाथों में अपनी लार टपकाते हुए खेल रहा था. मैं छाया की पीठ और नितंबों को सहला रहा था मैंने पूरे वस्त्र पहने हुए थे और छाया पूर्णता नग्न. हमारे अप्रतिम प्रेम का गवाह वह बड़ा पत्थर निकट ही था. मैंने छाया को अपनी गोद में उठाया और उस पत्थर पर के पास आ गया. मैंने छाया को अपनी गोद में बिठा लिया उसके दोनों पैर मेरी कमर के दोनों तरफ थे और चेहरा मेरी तरफ. मेरा पेंट मेरे घुटनों तक आ गया था. मेरी जांघें नग्न थीं. छाया अपने नितंबों को मेरी जांघों पर टिकाए हुए थी. राजकुमार उसके और मेरे पेट के बीच दबा हुआ था. हमारे होंठ मिलते चले गए. छाया को आज मिली अद्भुत खुशी ने उसमें और जोश भर दिया था यह उसके होठों की गति से स्पष्ट था।
उसके स्तन मेरी शर्ट से टकरा रहे थे मुझे उनकी अनुभूति नहीं हो पा रही थी. मैंने अपनी शर्ट ऊंची कर ली हम दोनों के निप्पल आपस में मिलने लगे. छाया मेरे होठों को बेतहाशा चूमे जा रही थी. हमारी जीभ भी आपस में एक दूसरे को उसी तरह छू रही थी जैसे राजकुमार रानी के मुख्य को छू रहा था. छाया ने अपने पैरों से स्वयं को व्यवस्थित किया हुआ था वह भी। राजकुमार को छेड़ना जानती थी. मुझे मेरा राजकुमार छाया के नटखट पुत्र जैसा लगता था वो दोनों एक दूसरे से बहुत छेड़खानी करते और उतना ही प्यार.
अचानक छाया नीचे की तरफ बैठती चली गई और मेरा राजकुमार रानी की गहराइयों में उतरता गया. छाया की रानी का कसाव अद्भुत था ऐसा लग रहा था जैसे किसी पतली सकरी गुफा में राजकुमार को गहरे दबाव के साथ जाना पड़ रहा था. राजकुमार रानी द्वारा उत्सर्जित प्रेम रस के सहारे बढ़ता जा रहा था और छाया का चेहरा लाल होता जा रहा था. उसके होंठ मेरे होंठ से अलग हो रहे थे. शायद छाया के ध्यान रानी की तरफ था. वह राजकुमार को अपने अंदर बिना दर्द के सजो लेना चाहती थी. राजकुमार के पूरा प्रविष्ट होने के बाद छाया ने चैन की सांस ली. उसने अपनी आंखें खोली और मुझे अपने चेहरे की तरफ देखता पाया. उसमें अपनी पतली उंगलियों से मेरी आंखें बंद कर दी और कहा
"प्लीज आंखें बंद कर लीजिए मुझे शर्म आ रही है" इस चटक धूप में छाया के साथ इस तरह संभोग करना अद्भुत आनंद था. मैंने अपनी पलकें बंद कर ली. छाया की कमर ऊपर नीचे होने लगी. छाया अद्भुत लय में अपनी कमर ऊपर नीचे कर रही थी. राजकुमार रानी के इस तरह आगे पीछे होने से बेहद खुश था. वो उछल उछल कर रानी के अंदरूनी भाग में प्रवेश करता और उसके होंठो तक आता. मेरे दोनों हथेलियां छाया के नितंबों को सहारा दी हुई थीं और उन्हें आगे पीछे होने में मदद कर रहीं थीं. बीच-बीच में मेरी उंगलियां छाया की दासी को भी छू देतीं. ऐसा करते ही छाया के कमर स्थिर हो जाती. मैं उसका इशारा समझ जाता और अपनी उंगलियों को हटा लेता. छाया की कमर फिर हिलने लगती मुझे पता था कि वह तिरछी निगाहों से मुझे देख रही होगी. पर उसने मेरी पलके बंद कर दी थी मैंने उस सुख का अनुभव लेने का विचार त्याग दिया छाया धीरे-धीरे उत्तेजित हो चली थी. मैंने महसूस किया कि छाया की कमर अब ज्यादा ऊपर नीचे नहीं हो रही थी अपितु एक ही जगह पर वह अपनी कमर को तेजी से हिला रही थी. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अपनी भग्नासा को मेरे शरीर के रगड़ रही थी. मैंने उसके स्तनों को सहलाना शुरु कर दिया. अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पओं को दबाते ही छाया कांपने लगी वह स्खलित हो रही थी. मुझे पता था उसने अपनी आंखें बंद कर ली होंगी. मैं उसे स्खलित होते हुए देखना चाहता था वह उस समय बहुत प्यारी लगती थी. मैंने अपनी आंखें खोल दी. छाया का चेहरा लालिमा से दमक रहा था उसने अपन निचला होठ दांत से दबाया हुआ था. मैंने एक बार फिर उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया.
रानी के कंपन लगातार राजकुमार को महसूस हो रहे थे. मैं भी मेरी छाया के साथ-साथ स्खलित होना चाहता था. मैंने भी अपनी कमर तेजी से हिलानी शुरू कर दी. मेरी जांघों के ऊपर नीचे होने की वजह से छाया उछलने लगी. राजकुमार से और बर्दाश्त ना हुआ. इससे पहले कि वीर्य की पहली धार छाया की रानी को भिगोती, छाया ने अपनी कमर ऊपर उठा ली. राजकुमार बाहर आ गया और छाया को भिगोना शुरु कर दिया. मेरी हथेलियों ने राजकुमार को दिशा देने का कार्य बखूबी सम्हाल लिया था.
छाया हंस रही थी और वीर्य की धार से बचने का झूठा प्रयास कर रही थी. वीर्य स्खलन समाप्त होते ही उसने राजकुमार को अपने हाथों में ले लिया और नीचे झुक कर उसे चूम लिया. मैं उसके मुलायम बालों पर उंगलियां फिरता रह गया.
छाया ने अपने वस्त्र पहन ने शुरू किए. सलवार पहनाने में मैंने उसकी मदद की प्रत्युत्तर में मुझे छाया की रानी को चुमने का एक अवसर मिल गया. छाया जोर से हंस पड़ी और मेरे सिर को दूर धकेला. उसकी रानी में संवेदना अभी भी कायम थी. छाया की ब्रा और पेंटी नीचे पड़ी थी जिसे मैंने अपने हाथों में उठा लिया और अपने पैंट की दोनों जेब में रख लिया. हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले कार की तरफ बढ़ चले. हमारे चेहरे पर खुशी और सुकून था.
घर पहुंचने पर हमारे कपड़ों की सलवटें और हमारे चेहरे पर खुशी देख कर सीमा ने घटनाक्रम भाप लिया. शर्मा जी ने शायद माया आंटी को भी फोन कर दिया था.
छाया भी मेरे साथ मेरे कमरे में आ गई थी. मैंने उसकी ब्रा और पेंटी अपनी जेब से निकाल कर बिस्तर पर रख दी. सीमा पीछे खड़ी थी वह मुस्कुराने लगी और बोली
"मेरी ननद डिसूजा से तो बच गए पर उसके भैया से बचना मुश्किल है" सीमा स्वयं रजस्वला थी उसे मेरे और छाया के बीच हुए संभोग से कोई आपत्ति नहीं थी. यदि वह स्वस्थ होती तो निश्चय ही हमारा साथ दे रही होती. हम दोनों ने सीमा को अपने आलिंगन ने ले लिया और उसके गालों को चूम लिया. आज का दिन शर्मा जी ने हमारे लिए खुशनुमां बना दिया था।
मानस का घर ( शाम 6:00 बजे)
(मैं मानस)
दरवाजे पर आहट हुई. सीमा ने दरवाजा खोला किसी अनजान व्यक्ति ने उसे एक लिफाफा दिया और तुरंत ही वापस लौट गया. अंदर आने के बाद उसने लिफाफा खोला मैं, छाया और माया जी सीमा के पास ही थे. हम सभी को उतनी ही उत्सुकता थी कि इस लिफाफे में क्या है? लिफाफा खोल कर सीमा ने अंदर पड़े फोटोग्राफ्स बाहर निकाल दिए. यह सभी फोटोग्राफ छाया के थे. कुछ में वह पूर्ण नग्न अवस्था में थी. कुछ फोटो में छाया के साथ मैं भी दिखाई दे रहा था और भी आपत्तिजनक अवस्था में. कुछ फोटो में सीमा भी थी. एक फोटो में छाया और सीमा पूरी तरह नग्न होकर बाथरूम में नहा रहीं थीं । छाया के शरीर पर हल्दी लगी हुई थी. यह स्पष्ट हो गया था यह सारी फोटो विवाह भवन के बाथरूम से लीं गयीं थीं. माया आंटी को हमारे संबंधों की भनक थी उन्होंने यह फोटो देखकर कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया न हीं हमने उन्हें सफाई देने की कोशिश की.
यह कौन व्यक्ति था जिसने बाथरूम में कैमरा लगाया हुआ था? कहीं इसमें कोई साजिश तो नहीं थी? या फिर होटल वाले ने अपनी कामुकता शांत करने के लिए ऐसा किया था.
हम तनाव में आ गए थे।
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RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता - by desiaks - 04-11-2022, 02:21 PM

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