Antarvasna Sex Story - जादुई लकड़ी
04-30-2022, 12:03 PM,
#54
RE: Antarvasna Sex Story - जादुई लकड़ी
अध्याय 52

नेहा दीदी और मैंने मिलकर एक प्लान बनाया और मां के पास गए…मां पहले से अच्छी लग रही थी

“अरे राज तू तो आता ही नही अपनी मां से मिलने ,बेटा काम में इतना भी बिजी न हो जा,अपने सेहत का भी ध्यान रखा कर “

मैं उनके पास ही बैठा लेकिन आज मेरे चहरे का भाव संजीदा था वही हाल नेहा का भी था ..

“क्या हुआ बच्चों तुम्हारे चहरे का रंग क्यो उड़ा हुआ है ..??”

“मां विवेक अग्निहोत्री मारा गया है “

“हा वो तो बहुत पहले ही मार चुका है ,है ना ..”

मा ने बड़े ही भोलेपन से कहा

“माँ बनने की कोशिस मत करो “

इस बार मेरी आवाज थोड़ी कांप रही थी ,पता नही ये प्लान सही बैठता की नही लेकिन हमने इसी के सहारे आगे जाने की सोची थी ..

“क्या मतलब है तुम्हारा “

मम्मी की आवाज भी थोड़ी कठोर हो गई

“मां पुलिस को दो दिन पहले ही विवेक की लाश मिली है और उसे मारने वाले ने एक जंगल में उसे मारा है लेकिन..लेकिन उसने एक गलती कर दी उससे जुड़े सुबूत पुलिस के हाथ लग गए ,और ..और वो कोई और नही बल्कि भैरव अंकल है “

मेरी बात सुनकर मां उछल पड़ी

“ये क्या बक रहे हो तुम लोग “

“हाँ मां और उसके बाद उन्होंने आपसे बात की थी ,आप उस समय हॉस्पिटल में थी ,भैरव अंकल आपसे मिलने आये और उन्होंने आपको ये खबर सुनाई “

“वाट तुम लोग पागल हो गए हो “

“माँ सबूत कभी झूठे नही हो सकते ,हॉस्पिटल में आने का और आपके कमरे में जाने का सीसीटीव फुटेज है ,हा आप उस समय होश में नही थी इसलिए उन्होंने आपके पास खड़े होकर आपसे बात की ,आप होश में नही थी लेकिन उन्होंने फिर भी ये बात कहि की उन्होंने विवेक को मार दिया है तुम चिंता मत करो और जल्दी होश में आ जाओ ,लेकिन वो भूल गए थे की जब पेशेंट कोमा में रहता है तो उसके शरीर की हर गतिविधियों को रिकार्ड करने के लिए एक कैमरा और एक रिकार्डिंग डिवाइस कमरे में लगाई जाती है (ये सरासर गलत था,एक तुक्का) और उसमे भैरव अंकल की ये बात रिकार्ड हो गई “

इस बार माँ के चहरे का रंग उतारने लगा था ,मतलब साफ था की दाल में कुछ काला तो है ..

“अब चुप क्यो हो माँ ..”

“नही राज जानकारी गलत है ,पता नही भैरव ने ऐसा क्यो कहा लेकिन ऐसा नही हो सकता भैरव इतना बड़ा कदम नही उठा सकता …”

“सबूत तो उनके खिलाफ है और उन्हें तो सजा होनी तय है ,विवेक और पिता जी दोनो की मौत के लिए “

“तुम दोनो पागल हो गए हो क्या “

माँ के चहरे में मानो अंगारे नाचने लगे थे

“सबूत तो यही कहते है “

“भाड़ में गए सबूत मैं इन्हें नही मानती भैरव ने ना ही विवेक का कत्ल किया है ना ही तुम्हारे पापा का “

“तो किसने किया है ..”इस बार नेहा की आवाज में एक जोर था ..

“वो तो …” माँ इतना ही बोलकर रुक गई थी ,कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था ,गहरा सन्नाटा …..

“वो तो क्या माँ”इस बार मेरी आवाज नार्मल थी

माँ अचानक से रोने लगी थी ,हमारी समझ में इतना तो आ गया था की जो हुआ उसमें माँ किसी ना किसी रूप में इन्वॉल्व तो है ..

“बोलो माँ अब छिपाने से कोई फायदा नही होगा “

नेहा माँ के पास आकर उनके कंधों पर अपना हाथ रखती है और उन्हें सहारा देती है ..

“वो भैरव ने एक प्रोफेसनल से करवाया था ,ये समझते देर नही लगी की बम वाली हरकत विवेक ने ही की है ,अगर मैं होश में रहती तो शायद भैरव को रोक लेती लेकिन उस समय मैं होश में ही नही थी और विवेक को रोकना भी जरूरी था वरना वो हमारे परिवार के लिए सबसे बड़ी चुनोती बन जाता इसलिए भैरव ने एक प्रोफेसनल की मदद ली और उसे रास्ते से हटा दिया “

कमरे में फिर से शांति छा गई थी …..

“इसका मतलब की आपको पता था की विवेक जिंदा है “

अगर मैं पहले से इन चीजो के लिए प्रिपेयर नही होता तो शायद ..शायद ये बात मेरे लिए कोई बहुत ही बड़ा आघात होती लेकिन नेहा दीदी और मैंने पहले से ही प्लान कर लिया था और एक रिस्क लिया था,इसलिए मैं थोड़ा नार्मल ही था ..

“हा मुझे पता था,असल में ये हमारा ही प्लान था की विवेक अपने को छिपा लेगा ताकि प्रोपेर्टी के मामले में कोई भी डिस्प्यूट ना हो ,चन्दू को लेकर कंफ्यूशन ही ऐसा था ..”

“मतलब ??”

“मतलब तुम वापस आ चुके थे ,लेकिन इस बार नए राज बनकर ,”

“नही माँ यंहा से नही शुरू से ...ये सब कहा से शुरू हुआ क्यो शुरू हुआ मुझे सब जानना है “

मेरी बात सुनकर माँ ने एक गहरी सांस ली ,और बोलना शुरू किया ..

“बेटा जैसा की तुम जानते ही हो की तुम्हारे पिता के कारण मेरी और भैरव की शादी नही हो पाई ,और उसके बाद विवेक भी तो था मुझे चाहने वाला ,वो भी टूट गया था लेकिन उसने कुछ दिखाया नही बल्कि हमारे पिता को बहका कर एक वसीयत बनवाई ,ये बोलकर की कही रतन मुझे छोड़ ना दे ,मेरे पिता ने मेरी शादी तो रतन से कर दी थी लेकिन वो उसके व्यवहार से हमेशा ही परेशान रहते थे ,वही हाल तुम्हारे दादा जी का भी था ,इसलिए उन्होएँ विवेक की बात मानी और दो वसीयत बनाई एक थी सारे बच्चों के बलिक होने के बाद के लिए और दूसरी थी बलिक होने से पहले की ,जिसके बारे में मैंने तुम्हे बताया था,तुम लोगो के बलिक होने पर पहली वसीयत के द्वारा तुम्हे जयजाद दी गई थी ,लेकिन दूसरी वसीयत में एक लोचा था ,और वो था की हम अगर एक दूसरे से अलग हुए तो जयजाद का बड़ा हिस्सा जो की तुम्हारे दादा जी का था वो पूरा विवेक की ट्रस्ट में चला जाएगा ,वही मुझसे भी पूरी जायदाद का मालिकाना हक छीन लिया जाएगा और सिर्फ तुम्हारे नाना जी के जायदाद तक ही सीमित हो जाती (अब ये बात पहले भी बताई गई थी, बिल्कुल एक ही बात के दो मतलब निकलते है विस्वास नही होता तो वो अपडेट पढ़ कर देखना ) ,विवेक असल में वंहा पर खेल गया था ,जिसे ना तो उस समय मैं ना ही तुम्हारे पिता समझ पाए,यंहा तक की तुम्हारे दादा और नाना भी उसका असली मतलब नही समझ पाए,विवेक ने चालाकी दिखाई थी क्योकि ट्रस्ट उसका ही था ,हम अगर लड़ते तो उसे बहुत ज्यादा पैसे मिलने वाले थे,और उसने पूरे जीवन भर हमे लड़ाने की कोशिस की ,इसी कोशिस में उसने अपनी दो नॉकरानीयो कान्ता और शबीना को भेजा,लेकिन जब हमे धीरे धीरे इस बात का अंदाजा होता गया तो हमने एक समझौता कर लिया की बच्चों के बालिक होने तक हम अलग नही होंगे ..”

उनकी इस बात से मैं चौक गया

“मतलब आप लोगो को पहले से उस वसीयत के बारे में मालूम था “

“हा लेकिन सिर्फ मुझे ,तुम्हारे पिता जी और विवेक को ,लेकिन रतन उस वसीयत को खत्म करना चाहता था ,उसे पसंद नही था की उसकी इतनी मेहनत से कमाई पुरी की पूरी दौलत बच्चों को ऐसे ही मिल जाए ,ऐसे भी जैसा तुमने कहा था उसे ये शक भी था की तुम भैरव के खून हो .”

“लेकिन क्यो..”

मेरी बात सुनकर माँ थोड़ी सी मुस्कुराई

“क्योकि लोग जैसा होते है वैसे ही दुसरो को भी सोचते है ,तुम्हारे पिता ने अर्चना को ..”

वो चुप ही हो गई थी

“हमे ये बात पता है माँ “इस बार नेहा दीदी ने कहा

“क्या??”

“हा माँ हमे पता है की पिता जी ने अर्चना आंटी के साथ क्या किया था “

“हम्म इसलिए रतन को लगता था की भैरव उसका बदला लेगा,जब ये बात मुझे पता चली तो मैं भी टूट गई थी,और रतन से अलग होने की सोच रही थी ,लेकिन फिर मुझे मेरे बच्चों का ख्याल आया ,अगर उस समय मैं रतन से अलग हो जाती तो ..हमारे पास कुछ खास नही बचता ,जिनके नाना और दादा इतने बड़े इंसान थे ,जिनके पिता ने अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर इतना बड़ा साम्राज्य बनाया था वो एक झटके में खत्म हो जाता ,और वही बच्चे एक आम इंसानों का जीवन जीते(यंहा समझने वाली बात ये है कि अलग होने पर भी राज के नाना की संपत्ति उन्हें मिलती,लेकिन वो सभी बच्चों में बराबर बात जाती जिससे अभी के मुकाबले कुछ खास नही बचता, वही रतन ने अपने पिता के बिजनेस को ज्यादा बढ़ाया था ).यही सोचकर मैं फिर से रतन से अलग नही हुई लेकिन इस हादसे के बाद से ही भैरव और मेरे बीच की कडुवाहट और भी कम हो गई ,शायद भैरव को ये समझ आ गया था की आखिर मैंने उसे क्यो धोखा दिया था ,मेरे और उसके बीच कभी शाररिक संबंध तो नही रहे लेकिन भावनात्मक रूप से हम हमेशा से ही जुड़े हुए थे..अर्चना तो इस चीज को समझती थी लेकिन तुम्हारे पिता जी नही उन्हें हमारे रिश्ते से नाराजगी थी ,उन्होंने कभी ये कहा नही लेकिन वो दिख जाती थी ,क्योकि वो इंसान खुद ही कभी किसी के साथ भावनात्मक रिश्ते में नही रहा बल्कि हमेशा उसे शारीरिक सुख ही चाहिए होता था ,शायद इसलिए उसकी मानसिकता भी गलत हो गई थी ..खैर समय निकलने लगा और तुम बड़े हुए ,रतन ने तुम्हारे साथ सौतेला व्यवहार किया ,उसके दो कारण थे एक तो ये की उसे भैरव और मुझपर शक था और दूसरा वो वसीयत थी ,उसे पता था की उसके बाद तुम सबके मालिक होंगे ,शायद इसलिए तुमसे जलन सी होती थी उसे ,वही वो तुम्हे इस काबिल भी नही मानता था की उसके मेहनत से खड़ी की गई संपदा को तुम सम्हाल पाओगे ,उसे ये भी लगता था की चन्दू भी उसका ही खून है ऐसे सभी को यही लगता था की चन्दू रतन का ही खून है इसलिए वो चन्दू को अपना वारिस बनाना चाहता था ,और ये बात विवेक को भी पता थी ,और मुझे भी इसका अनुमान होने लगा …

लेकिन मैं अपने बच्चों का हक तो नही जाने दे सकती थी ,इसलिए मैंने भैरव से इस बारे में बात किया ,निशा के बालिक होने में कुछ ही दिन बचे थे तो हमे जो भी करना था वो जल्दी जल्दी करना था ,हमने प्लान किया था की मैं इस बारे में विवेक से बात करूंगी लेकिन कुछ करने से पहले तुम ही गायब हो गए …..और तुम्हारे वापस आने के बाद हमे एक आशा की किरण दिखाई देने लगी ,विवेक अपना खेल शुरू कर चुका था उसके दिमाग में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी ,वो अब भी मुझे पाने के सपने देख रहा था और जो वो अब तक नही कर पाया था वो अब करना चाहता था ,रतन को पूरी प्रॉपर्टी से बेदखल करके प्रोपेर्टी अपने बस में करना,लेकिन फिर तुम्हारी वापसी हुई ,तुम बदले बदले से लगे तो विवेक का खेल बिगड़ने लगा ,वही मुझे एक नई उम्मीद दिखाई दी और मेरे दिमाग में पहला नाम आया चन्दू को घर से बाहर करना ,क्योकि वो नेहा के लाइफ में आ चुका था और वो कैसा लड़का है इसका मुझे इल्म था ,उस समय मेरी मजबूरी थी की मुझे दोनो के रिश्ते को मंजूरी देनी पड़ी थी लेकिन अब तुम इतने काबिल थे की प्रोपेर्टी पर हक जमा सको लेकिन चन्दू एक रोड़ा बनता,इसलिए मैंने और भैरव ने प्लान बनाया विवेक से जाकर मिले,विवेक को भैरव ने बताया की वो रतन को हटाने के आग में जल रहा है और मैंने भी उसे भरोसा दिलाया की प्रोपेर्टी के ट्रस्ट में जाने से अच्छा है की मालिकाना हक के साथ मिले और इसके लिए पहले वो उसे बच्चों के नाम में आने देते है उसके बाद उसे आधा आधा करवा लेंगे क्योकि बच्चे मेरी बात मानेगे,मुझे ये भी पता था की उसकी बीबी एक बेवफा औरत थी ,एक तीर से दो शिकार किया जा सकता था ,खुद को मारकर अपनी बीबी और उसके आशिक से बदला और उसके बाद अपने प्यार को हमेशा के लिए पा लेना ...इतना लालच विवेक के लिए काफी था ,और उसने चन्दू को अपने जाल में फंसा कर तुमसे और तुम्हारे हक से दूर कर दिया ,बाद में ये पता लगा की वो रतन नही बल्कि खुद विवेक का ही खून था और जब ये बाद हमे पता चली तो हमने विवेक से दूरी बना ली और वही से उसका और हमारा झगड़ा शुरू हो गया...विवेक ने अपनी बीबी और उसके आशिक को ठिकाने लगा दिया था लेकिन साथ ही खुद को भी मारकर अपनी भी पहचान खत्म कर दी थी ,हमारे किनारे कर दिए जाने से वो भड़क गया था ,उसे भैरव को धमकी दी लेकिन भैरव ने उसका मजाक बना दिया ,अब वो विवेक पागल हो गया था उसने तुम्हारे ऊपर हमले करवाने की कोशिस की लेकिन तुम बच निकले ,भैरव ने भी तुम्हारे प्रोटेक्शन के लिए आदमी लगा रखे थे,और फिर चन्दू जो की उसका ही खून था वो भी मारा गया और विवेक पूरी तरह से पागल हो गया ,और उसने प्लान बना कर हमारे पूरे परिवार को एक साथ मारने की सोची ,हमे लगा था की हमारी सिक्योरटी हमेशा उसे मात दे देगी और भैरव तो उसे ठिकाने लगाने की भी सोच चुका था लेकिन विवेक आखिर शातिर इंसान था ,वो बम लगाने में कामियाब हुआ और ...लेकिन शायद उसका मेरे लिए प्यार आज भी जिंदा था की वो मुझे नही मार पाया और तुम्हारे पिता को फोन कर जानकारी दे दी ,लेकिन इसमे मैं भी बुरी तरह से जख्मी हो गई थी ,मैं अचेत थी और ये बात भैरव को सहन नही हुई ,उसने पूरी ताकत लगा कर विवेक को ढूंढ ही लिया और फिर उसे मरवा दिया …”

हम सभी चुप हो चुके थे ,माँ ने जो किया वो गलत था या सही था ये मुझे नही पता लेकिन उसने जो भी किया था वो हम बच्चों के भले के लिए ही किया था ,लेकिन बोलने के लिए कुछ भी नही था ..

माँ ने बोलना जारी रखा

“मुझे कभी कभी विवेक के लिए दुख होता है ,वो मेरे बचपन का दोस्त था ,भैरव को तो अर्चना ने सम्हाल लिया लेकिन उस बेचारे के जीवन में कोई नही आया जो उससे प्यार करे,बीबी भी मिली तो वो भी बेवफा ..”

माँ चुप हो गई ,वही नेहा ने माँ के कंधे पर हाथ रखा

“माँ गलती बस एक ही इंसान की थी ,वो थे पापा अगर उन्होंने अपनी दोस्ती नही तोड़ी होती तो ये सब होता ही नही ,”

माँ ने अपने आंसू पोछे और नेहा को अपने सीने से लगा लिया वही मैं भी उनकी गोद में जाकर सो गया था …...
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RE: Antarvasna Sex Story - जादुई लकड़ी - by desiaks - 04-30-2022, 12:03 PM

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