RE: Indian Sex Kahani मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना)
मेरे कानो में वो आवाज़ आणि बंद हो गई, और में ख़यालों से वापस निकल आया . माँ अभी भी खिड़की से बाहर देख रही थी.मुझ से अब रुका नहीं गया अब ये दो कदम का फ़ासला मुझे पूरा करना था, में अपने माँ के करीब होता चला गया ... करीब ... और करीब इतना की में उनके साथ पीछे से सट गया.जी ही में अपने माँ के जिस्म के साथ सटा था मुझे लगा की माँ के मुंह से एक सिसकि निकल पड़ी उनके जिस्म में कम्पन आ गया ... शायद उसने अपनी आँखें भी बंद कर ली होंगीं ... जो अनुभुति हमें उस वक़्त हो रही थी वो सिर्फ हम दोनों ही जान सकते हैं ... दोनों के दिल की धड़कन बढ़ गई ... यूँ लग रहा था जैसे हमारे दिल आपस में बाते कर रहे हो.
मेरा पेनिस इतना हार्ड हो गया की दर्द करने लगा ... माँ को जरूर मेरे पेनिस का अहसास हो रहा होगा मैंने धीरे से अपने हाथ माँ के कांधों पे रख दिए ... मुझे साफ़ मेहसुस हो रहा था माँ के जिस्म में उठती हुई कम्पन में धीरे धीरे अपने हाथ निचे उनके बाँहों पे सरकाता चला गया. माँ की दोनों मुठियाँ बंद थि, मेरी उँगलियों ने जैसे ही उन मुठियों को छूआ दोनों मुठियाँ खुल गई और मैंने उनकी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फसा डालि.
हम दोनों की उँगलियाँ आपस में कसती चलि गई और दोनों के हाथ फिर से मुठियों में बंध गये ... ये बंधन था हमारे प्रेम का ... हमने एकदूसरे को पूरा करने की शुरुवात की.मेरे नाक में माँ की सुगंध आने लगी में अपना मुंह माँ के बालों में फेरेने लगा मुझे लगा जैसे माँ अभी थोड़ा पीछे हुई है और मुझ से सट गई है. माँ के बालों को सुंघता हुआ में माँ की गर्दन पे आ गया ... माँ की साँसे तेज होने लगी ... और मेरी साँसे भी तेज होती जा रही थी.
मैने माँ की गर्दन को चूम लिया और मेरे मुंह से अपने आप निकल पड़ा
‘आई लव यु’
शायद बहुत ही हलके से माँ मुंह में बुदबुदाई “आई लव यू टू”
जिसे मेरे तड़पते हुए कानो ने पकड़ लिया ... मुझे आज अधिकार मिल गया था अपनी माँ को छूने का ... उसे प्यार करने का ... उसे फिर से पूरा करने का
मंजू” !’
‘’हम्म’
‘तुम बहुत खूबसूरत हो’ अब में माँ को अपने पत्नी के रूप में देखने लगा था हमेशा जो जुबान आप बोलती थी आज उनके मुंह से कितनी आसानी से तुम निकल गया. मैं समझ सकता था इस वक़्त माँ के दिल में क्या क्या आँधियाँ चल रही होंगीं ... आज में अपने पिता की जगह ले चुक्का था ... आज में माँ का पति था ... पर जिस विश्वास के साथ माँ ने मुझे अपनाया था उस विश्वास को मुझे कायम रखना था.
मै तड़प रहा था पर फिर मुझे खुद पे कण्ट्रोल रखना था ... यही वक़्त का तक़ाज़ा था ... इसी संयम से हमारा प्यार परवान चढ़ने वाला था.माँ कोई जवाब नहीं देती में फिर बोलपडताहु
‘आज में बहुत खुश हु”
“मुझे बहुत खुबसुरत, ‘बहुत सेक्सी बीवी मिली है’
माँ शर्मा कर गर्दन झुका लेती है और में माँ की गर्दन पे अपनी जुबान फेरने लगता हु.
‘जूठ कहते हैं आप ‘
‘ये तो में जानता हु सच क्या है”
“इधर आओ’ और में माँ को ऐसी ही साथ में लिपटाये हुए शीसे के सामने ले जाता हुं.
‘देखो सामने’
माँ सामने देखती है तो उसे अपना अक्स नजर आता है और उनके पीछे में उनके साथ चिपका खड़ा हु. शर्म से आँखें बंद कर लेती है. और में शीसे में माँ के सुन्दर रूप को निहारने लगता हुं.
‘देखो ना’
‘क्या?’
बहुत ही धीमे स्वर में जवाब देती है.
‘आंखे खोल के सामने देखो’
माँ गर्दन हिला के ना कर देती है.
‘मेरी कसम’
माँ फट से अपनी आँखें खोल देती है.
‘आप बहुत तंग करने लग गए हैं”
‘कसम क्यों दी?’
‘और क्या करता” ‘ऐसे तुम मान ही कहाँ रही थी, देखो सामने, अपने होठो को देखो’
माँ शरमाती हुई सामने देखति है लज्जा के मारे उनके गाल लाल सुर्ख़ हो जाते हैं होंठ थरथराने लगते है.
‘बिलकुल गुलाब की पंखुडियों की तरहा कोमल , सुन्दर और रस के भरे है.’
माँ की सांस तेज हो जाती है
‘अपनी आँखें देखो बिलकुल झील सी गहरी, जिसमे प्यार का सागर लहरा रहा है’
‘बस’
ओर माँ पलट के अपना सर मेरे सीने पे रख देती है.
‘क्या हुआ?’
‘बस कीजिये ना’ शर्माती हुई मेरे सीने से लगी माँ धीरे से बोलती है.
‘क्यों में तो अपने देवी की पूजा कर रहा हु, उसकी सुंदरता को पढ़ने की कोशिश कर रहा हु’
‘प्लीज बस कीजिये ना बहुत शर्म आ रही है’
मै माँ को अपनी बाहो में लप्पेट लेता हु मेरा सपना आज पूरा हो गया जो सपना में कब से देखता आ रहा था आज वो सच्चाई में बदल गया.
मेरी माँ आज मेरी पत्नी बनकर मेरी बाँहों में थी.
थोड़ि देर बाद माँ मुझ से अलग होने की कोशिश करती है,
लेकिन में उसे बाँहों की क़ैद से आजाद नहीं करता.
‘छोडिये न’
‘हमम हु’
‘प्लीज छोडिये न’
‘दूर होना चाहती हो?’
माँ ना में सर हिलाती है.
‘फिर?’
‘खाना नहीं खाएँगे क्या? ... छोडिये में खाना लगाती हु’
‘आज तो कुछ औरे खाने का मन है’
‘क्या?’
‘बताऊँ’
फिर ना में गर्दन हिलाती है.
‘प्लीज छोडिये ना ... बहुत भूख लगी है’
मेरे हाथ अपने आप माँ को बंधन से आज़ाद कर देते है.
मै खुद भूखा रह सकता था, क्यूँकि मुझे तो भूख ही माँ की लगी हुई थी, पर अपनी माँ को कैसे भूखी रहने देता. पर में अच्छी तरह जानता ना एक माँ अपने बेटे को भूखा रहने देती है और न ही एक पत्नी ... और माँ तो दोनों थी- फिर कैसे वो मुझे भूखा रहने देती.
‘आप बैठिये, में फ़टाफ़ट खाना लगाती हु’
‘रहने दो- में बाहर से लाता हु, तुम बहुत थक गई होगी, और आज क्यों किचन में खुद को झुलसाना चाहती हो’
‘नहीं इसमें मुझे सुख मिलता है,जो कल करना है वो आज क्यों नहीं’
अब मेरे मुंह से निकल ही नहीं पाया की आज हमारी सुहागरात है इस्लिये नहि
माँ किचन में चलि जाती है और में पीछे पीछे जा के उसे देखने लगता हु.
माँ के हाथ बिजली की गति से चल रहे थे. सब कुछ तो उसने तैयार कर रखा था बस सिर्फ गरम करना था.
मुझे याद आता है की मुझे तो सुहाग सेज तैयार करनी थी.
मैं फटाफट जा के वो छुपे हुए गुलाब की पंखुडियों का पाकेट निकालता हु और पुरे बिस्तर को गुलाब की पंखुडियों से सजा देता हु.
जब तक में इस काम से फ्री हुआ, माँ की आवाज़ आ गई
‘आइये खाना लगा दिया है’
मैने कमरे को पर्दा कर दिया और बाहर आ गया .माँ प्लेट में खाना दाल रही थी.
‘रुको’ मेरे मुंह से निकल जाता है.
माँ मुझे सवालिया नजऱों से देखति है.
इस से पहले में कुछ कहता वो शर्मा के चेहरा झुका लेती है और एक प्लेट रख देती है एक ही प्लेट में खाना डालती है. एक दूसरे के दिल की बात हम समझ जाते है.
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