महारानी देवरानी
11-12-2023, 06:18 AM,
RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी

अपडेट 61 A

इधर सेनापति की खोटी नियत उधर पारस में ख़ुशामदीद बहना 


शुरष्टि सोच ही रही थी कि सेनापति से बचने के लिए वह आगे क्या करे!

उतने में राधा वहाँ आ जाती है।


[Image: 60-srishti.gif]

राधा: क्या हुआ महारानी ये सेनापति इतना सवेरे यहाँ क्यों आया था?

शुरष्टि: वो राज्य के लोगों के बीच में बढ़ रहे डर के बारे में बताने आया था ।

राधा: कैसा डर महारानी?

शुरष्टि अपनी बात को छुपाते हुए चतुराई से राधा को दूसरी बात बताने लगती है।

शुरष्टि: अरे! वही दिल्ली के बादशाह शाहजेब का डर के कहीं वह राज्य पर आक्रमण न कर दे।

राधा: महारानी तो इसलिए आप भी बहुत डरी हुई लग रही हैं, वैसे डरने की बात भी है बादशाह शाहजेब बहुत निर्दय और ठरकी राजा हैं।

शुरुष्टि: तुम्हें कैसे मालूम?

राधा: महारानी पूरे जग को मालूम है कि उसने 9 पत्निया रखी है और उसने अपने हरम में तो ना जाने कितनी महिलाओं को रखा है।

शुरष्टि: क्या बात कर रही हो राधा?

राधा: जी महारानी वह जिस राज्य पर भी आक्रमण करता है वहाँ की रानियों को अपनी रानी बना लेता है और उनके जिस्म को रौंद देता है।

शुरुआत: उफ़! कितना नीच राजा है शाहजेब।

राधा: हाँ महारानी मैंने सुना है कि एक राज्य में उसने खूब लूटपाट मचाई थी और वहा की रानी के साथ जबरदस्ती सम्बन्ध बनाये जिस से रानी की जान चली गई, कद काठी में वह हमारे युवराज बलदेव से कम नहीं है । उनसे भी ऊंचे है।

शुरष्टि: (मन में: ये तो पूरी कहानी बताने लगी । मैं मेरी समस्या इसे तो नहीं बता सकती। पता नहीं कहाँ गा दे।) 

शुरष्टि: अच्छा राधा तो तुम जा कर कुछ भोजन बना लो मुझे भूख लगी है। इस विषय पर हम फिर कभी बात करेंगे।


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शुरष्टि सोच में पड़ी थी कि आगे कैसे खेलें क्या करे?

शुरष्टि: (मन में-उस बुधु आलोक को मैंने कह दिया था कि राज्य छोड़ कर चला जाए, पर मुर्ख ने अपने साथ-साथ मेरी भी जान जोकिम में डाल दी है ।

शुरष्टि अपने वस्त्र पहन कर बाहर आती है और कमला और राधा से कह कर खाना बनवाती है। फिर सब आकर बारी-बारी से सुबह का नाश्ता करते है।

शुरष्टि (मन में-बाहर जा कर देखती हूँ लगता है सोमनाथ से बात किये बिना कोई बात नहीं बनेगी।) 



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शुरष्टि बाहर आती है तो देखती है सेना गृह के पास बहुत सारे लोग, खास कर युवा इकट्ठे हो गए हैं और सेनापति सोमनाथ सबको तलवारबाजी सिखा रहा है।

सोमनाथ: ए युवक! तलवार को टेढ़ा पकड़ो!

"सुनो तुम सब कुछ दिन में तैयार हो जाओगे युद्ध के लिए!"

शुरष्टि दूर खड़ी सेनापति को युद्ध कला सिखाते हुए देख रही थी ।

तभी सेनापति सोमनाथ की नजर शुरष्टिपर जाती है सोमनाथ का हाथ एक बार अपने गाल पर चला जाता हैं और वह शुरष्टि की थप्पड याद करते हुए मुस्कुराता है।

सेनापति शुरष्टि के पास आकर बोलता है ।


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सेनापति: आइये महारानी श्रुष्टि!

शुरुष्टि: तुम ज्यादा व्यस्त तो नहीं हो सेनापति ।

सेनापति: जीवन में पहली बार आप खुद चल के हमारे पास आए हैं ऐसे में भला मेरा व्यस्त रहना किस काम का ।

सेनापति मुस्कुराता है जो शुरष्टि को कांटे की तरह चुभता है।

शुरुआत: मुझे तुमसे बात करनी है। सेनापति सोमनाथ!

सेनापति: हम बात ही तो कर रहे हैं महारानी, कहिए क्या कहना है?

शुरष्टि आँखे तरेर कर देखती है।

"सेनापति ज्यादा बनो मत! हम एकांत में बात करना चाहते हैं"

"चलिए महारानी अगर आपको बुरा ना लगे तो मेरे कक्ष में चलिए! आपको हमारे मेहमान आलोक से भी मिलवाता हूँ ।"

शुरष्टि चुपचाप सोमनाथ के पीछे चलने लगती है।



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सोमनाथ सेनागृह के एक कक्ष का दरवाजा खोलता है। सामने रोशनदान से हल्की धूप आ रही थी और धूल उड़ती है।

शुरष्टि: आहा-आहा खांसते हुए"कितनी धूल है यहाँ।"

सेनापति: महारानी! ये महल नहीं है, सेनागृह है। यहाँ लड़ाकू सेना रहती है जिसकी मौत कब आएगी। उसे पता नहीं, फिर उसे धूल में ही मिट जाना है।

शुरष्टि अंदर आती है देखती है सामने कुर्सी पर आलोक बंधा हुआ है और उसका मुंह भी बंधा है।

शुरुष्टि: क्या हाल कर दिया है तुमने इसका!

सेनापति: ओह तो महारानी को दर्द हो रहा है अपने विश्वस्नीय आलोक की दशा देख कर ।

नींद से जागता हुआ आलोक देखता है महारानी शुरष्टि उसके सामने खड़ी है।

वो इशारे से कहता है मुझे खोल दो।

शुरष्टिजा कर उसका मुँह खोल देती है और मुँह में फसे कपड़े को हटा देती है।

सेनापति ये खड़ा-खड़ा देख रहा था और मुस्कुरा रहा था।

आलोक: महारानी मुझे बचा लो! कृपा कर के मुझे बचा लो! ये मेरी जान ले लेगा और आलोक रोने लगता है।

शुरष्टि: तुमने तो इसके साथ जानवर से भी बदतर सुलूक किया है। सेनापति! तुम मनुष्य नहीं हो सोमनाथ।

सेनापति: महारानी अब जो अपनी सौतन की जान लेने पर लगी है, वह मुझे बताएगी कि मनुष्यता क्या है।

शुरष्टि: चुप करो सेनापति मेरे हाल खराब है, पर मैं हु तो महारानी! में चाहु तो तुम्हारे खाल निकलवा...!

सेनापति: आहा चुप हो जाओ महारानी जी!

सेनापति सामने से एक पन्ना निकलता है जिसपर आलोक ने अपना जुर्म कबूल किया है और हस्ताक्षर किये है।

सेनापति वह पन्ना उठा कर।

"ये देखिये महारानी आलोक ने हस्ताक्षर है। उसने माना है की उसने आपके साथ मिल कर रानी देवरानी को मारने की साजिश की सजा की है और आपको सांप दिया है जिसके विष से उनके एक घड़ी में प्राण चले जाएंगे ।"

शुरष्टि गुस्से में थी पर चुपचाप खड़ी सुन रही थी।


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सेनापति: और महारानी आपने बलदेव को मारने के लिए भी अपने आदमियों को बलदेव और देवरानी के पीछे भेजा है।

शुरष्टि आलोक की ओर देखती है आलोक अपना सर नीचे कर लेती है और बलदेव तो राज्य का युवराज और महाराज का एकमात्र उत्तराधिकारी है ।

सेनापति: तो कुल मिला कर आपने रानी देवरानी और युवराज को मारने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है ।

शुरष्टि: तुम्हें क्या चाहिए, जो चाहिए मांग लो। हम तुम्हारा कक्ष सोने चांदी से भरवा देंगे, सोमनाथ!

सेनापति: महारानी अगर ये बात मैंने घाटराष्ट्र वासियो में फेला दी तो वह लोग आपकी फांसी की सजा देने की मांग करेंगे वह अन्यथा ये भी हो सकता है के यहाँ के लोग आपको खुद सजा दे दे।

ये सुन कर शुरष्टि का दिल पहली बार दहल गया और अपने भविष्य के बारे में सोच कर उसकी आँखों में आँसू भर गये।


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सेनापति: (मन में-महारानी शुरष्टि! तुमने सेनापति सोमनाथ को थप्पड मारा था । उसकी कीमत सोना या चांदी नहीं है ।) 

शुरष्टि: तुम आलोक को छोड़ दो मैं तुमसे मुँह माँगा इनाम दूँगी।

सेनापति: मैं इसे छोड़ दूंगा पर अगर आपने कोई चाल चली तो मैं ये पत्र महाराज को भारी सभा में पढ़ के सुना दूंगा और उसके बाद आपकी फासी पक्की । हाहाहा!

शुरुष्टि: तुम इसे खोलो!

सेनापति आलोक को खोला जाता है आलोक आज़ाद होते हैं वह शुरष्टि के पैरो में गिर जाता है।

"महारानी! मेरी जान बचाने के लिये, बहुत-बहुत धन्यवाद!"

शुरष्टि: मूर्ख! मैंने तुम्हें कहा था कि घाटराष्ट्र छोड़ कर चले जाओ ।दुबारा घाटराष्ट्र में अपना चेहरा मत दिखाना ।

आलोक अपनी जान बचाये भाग जाता है।

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सेनापति: महारानी शुरष्टि को देख मुस्कुराता है ।

शुरष्टि: बोलो क्या चाहिए हम मुँह माँगी कीमत देंगे।

सेनापति सोमनाथ शुरष्टि के चारो ओर घूम कर शुरष्टि को निहारता है।

सेनापति: महारानी आपके जान बचाने की कीमत सोने चांदी से नहीं होगी।

श्रुष्टि: फिर?

सेनापति शुरष्टि के करीब आकर उसका हाथ पकड़ कर बोलता है ।

"मुझे आपका साथ सोना है महारानी श्रुष्टि!"

शुरष्टि सेनापति का हाथ झटका कर।

"खबरदार मुझे छूने की भी कोशिश की तो तुम्हारा सर तुम्हारे धड से अलग कर दूंगी। सेनापति सोमनाथ अपनी हद मत भूलो।"

सेनापति मुस्कुराते हुए ।

"देखिए महारानी अगर आप चाहती हैं कि मैं आपका राज महाराज या घाटराष्ट्र की सभा में सबके सामने नहीं खोलूं तो मेरी बात तो आपको माननी पड़ेगी । अन्यथा ...!"

"होश में आओ सेनापति! महाराज ने तुम जैसे दो टके के सैनिक को सेनापति बना दिया नहीं तो तुम भी आज अपने बाप के साथ लोहार बने लोहा पीट रहे होते या कहीं पर लोहा काट रहे होते। नीच आदमी! सोच नीच!"

"महारानी मुझे नीचे कहो पर हर लोहार नीचे नहीं होते! मेहनत करते है। तुम जैसी ऊंची जाति के लोग, राजा सिर्फ हमारे बलिदानों से बने हैं।"

शुरष्टि कक्ष से बाहर जाने लगती है।

सेनापति: अगर तुम आज शाम में मेरे कक्ष में नहीं आई और अपने आपको मुझे नहीं सौंपा तो महारानी शुरष्टि कल की सुबह आपकी आखिरी सुबह होगी!

और सोमनाथ कुटिलता पूर्वक मुस्कुराता है ।


[Image: ramya-annoyed.gif]

शुरष्टि गुस्से से पाँव पटकती हुई कक्ष से बाहर जाने लगती है

"सेनापति तुम सपने में भी मुझे भोग नहीं सकते!"

सेनापति: ये मत सोचो कि मैंने आलोक को छोड़ दिया तो तुम महाराज के सामने मुझे झूठा साबित कर दोगी, मैं जब चाहूँ उसे फिर से उसे क़ैद कर सभा के सामने प्रस्तुत कर दूँगा।

शुरुआत सोमनाथ को एकटक देखती रह जाती है।

सोमनाथ: आपको आज शाम तक का समय देता हूँ।

शुरष्टि चली जाती है।

सोमनाथ वही अपने बिस्तर पर लेट जाता है और अपना लंड सहलाता है ।

सोमनाथ: (मन में) रानी इसी धूल वाले बिस्तर पर तुम्हारे जिस्म को नोच-नोच कर खाऊंगा । शुरष्टि तुम्हारे थप्पड़ का उत्तर देगा ये सोमनाथ तुम्हें!


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दोपहर का समय हो गया था और पारस की ओर तेजी से जा रहे थे बलदेव देवरानी श्याम और बद्री के साथ अपने अश्वो पर ।

श्याम: बद्री यार मुझे भूख सताए जा रही है। ये पारस कब आएगा?

बद्री: धीरज रखो हम पहुँचने ही वाले हैं।

तभी बलदेव को दूर एक बाज़ार नज़र आता है।

बलदेव: माँ देखो वहाँ बस्ती है और बाज़ार भी है ।

ये सुन कर देवरानी की खुशी का ठिकाना नहीं था।

जारी रहेगी ।
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RE: महारानी देवरानी - by aamirhydkhan - 11-12-2023, 06:18 AM

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